Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 10
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Digamber Jain-Surat. "Regd. No. B-744. VASNA श्रावण। rw cܫܫܗܒܪ̈ܒܫܒܫܫܫܫܫܫܡܡܡܫܡܫ बीर सं० २४४९ संपादक वर्ष १६ वां अंक १० विक्रम १९७९, मूलचंद किसनदास कापड़िया-सूरत। । ई.सन् १९२३ मा विषयानुक्रमणिका । नं० विषय | पृष्ठ १ संपादकीय वक्तव्य .... २ दशलाक्षणी पर्वका कर्तव्य ( विद्यानंद शेरसिंह ).... ५ ३ भ० सुरेन्द्र कीर्तिनीने खुल्लो पत्र (सोया) .... ६ ४ जैन समाचार संग्रह ५ सूचीपत्र शास्त्रभंडार नृसिंहपुरा दि जैन मंदिर-सूरत र महिलाओं का कर्तव्य (या • कामतापसाद जैन) ७ सम्पादकके लक्षण पं० देवेंद्रकुमार गोधा ) .... ८ धार्मिक मनुष्यनां गुणो (मोहनलाल मथुरदास शाह) २ प्रेम ( पं० गोरे लाल पंवरत्न, जवेरा )........ १० करमसद के प्राचीन दर्शनीय ग्रन्थ ......... १ आरोग्य शिक्षा .. SE25252525252525252525252525252525252525252|| SAREE BALL ANSAR SIRON STATE MEEमममममममममममममममान पेशगी वार्षिक मूल्य रु०१-१२-० पोस्टेज सहित । Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EASRASRASARITRA BAHAR है “दिगम्बर जैन " के तीन उपहारग्रन्थकी है वी०पी० होरही हैं। 33551ऊन SCREENSHO HORA SUSCLOSURROGOROSCOS दिगम्बर जैन (वष १४ व १५वाँ) वीर सं० २४४७ व २४४८ अर्थात् सं० १९७७-७८ का वार्षिक मूल्य करीब २ सभी ग्राहकोंसे वसूल आनेका है और इन दो वर्षों के तीन उपहार ग्रन्थ १. श्रावक प्रतिक्रमण (विधि, अर्थ सहित ) २. बालबोध जैनधर्म ( चतुर्थ भाग )। ३. जैन इतिहास प्रथम माग ( प्रथम १२ तीर्थंकरोंका चरित्र ) तैयार हैं और दो वर्षों का मूल्य वसूल करने के लिये रु० ३||-)की वी० पी० ६ से भेजे जारहे हैं । आशा है समी ग्रहक वी० पी० आते ही मनीऑर्डर चार्ज =)) हैं सहित ३॥) देकर तुर्न छुड़ा लेवेगे। जब इन दो वर्षों के सभी अंक आपको मिल चुके हैं तब आपका प्रथम वर्तव्य है कि वी० पी० अवश्य छुड़ा लेवें । इन पीछले दो वर्षोंका मूल्य देरसे वसुल करने में हमारा ही प्रमाद कारणरूप है । वर्तमान १६ वे वर्षमें मी एक ग्रन्थ उपहार में दिया जायगा जो तैयार होने पर इस वर्षका मूल्य भी सूट किया जायगा । जिन २ ग्राहकों का मूल्य भागया है । उनको ये ग्रन्थ बुकपेकेटसे भेजे जायगे । किसी ग्राहकको हिसाबमें कुछ भूल पालुप हो तो भी वे व० पी० वापस न करें । जो कुछ भूल होगी, दुसरे वर्षके मूल्य में समन ली जायगी। मैनेजर, दिगम्बर जैन-सूरत। ॐSASRHANISINSISNEARS HOSPHORUSSILIGESON Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दिगंबर जैन. THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविश्व तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बरं जैन समाज - मात्रम् ॥ वर्ष १६ वाँ. वीर संवत् २४४९. श्रावण वि० सं० १९७९. अंक १० वाँ. 9 व तीर्थरक्षा के प्राण रूप थे । यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि आपकी धमक्रिया एक त्यागीं से भी बढ़कर थी अर्थात् दिनके १२ घंटोंमें करीब ६–१ घंटे तो धर्म ध्यान, पूजा पाठ, स्वाध्याय आदि में बिताते थे व तीर्थरक्षा के लिये आपने तन मन व धनका कितना समर्पण किया था वह सारे जैनसमाजसे विदित है । हम तो यही कहते हैं कि पूज्य तीर्थराज श्री सम्मेद शिखरजी आदि सभी तीर्थ जहां२ हमारे श्वे० बन्धुओं द्वारा झगड़ा चल रहे हैं उनमें दि० जैन समाजकी तरफ से प्रथम रेवडे रहनेवाले छागुए आप ही थे व कोर्ट में केसों में आपका ही प्रथम नाम चल रहा है। शिखर जी की रक्षाके लिये कई बार आपने पचास १० हजार रु का दान कर दिया था व जब चाहें रुपयों की भी मदद देते रहते थे । आपका स्वभाव भी सीधासाधा व हसमुखा था व आपका प्रभाव सरकारी आफिसरों पर बहुत पड़ता था । जैसे स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचंदजी सारे जैन समाजमें दानी व ला• जम्बू प्रसाद तीर्थभक्त प्रसिद्ध होगये जीका वियोग । उसी प्रकार सहारनपुर निवासी बड़े जमींदार, श्रीमान्, धर्मात्मा, दानी, कोट्याधीश व तीर्थभक्त लाला जम्बुप्रसादजी रईसका नाम भी सारे जैनरुमःजमें बच्चा २ जानता है । आपमें धर्मभक्ति व तीर्थभक्त कूट भरी थी व एक कोट्याधीश होनेपर भी आप रातदिन धर्मक्रिया तथा तीर्थरक्षा के कार्यों में तल्लीन रहते थे परन्तु यह कौन जानता था कि आप केवल ४३ वर्षकी आयु में अकस्मात् ही जैन समाज से चल बसेंगे ? आप दोएक मापसे कुछ बीमार थे और उसका दुखद परिणाम यही आया कि आप श्रावण वदी १३ ता० १० ८ - २३को इस असार संसारसे में ही सदके लिये चल बसे जिसका सारे दि० जैन समाजको अपार दुःख होरहा है । लालाजी धर्मके विद्यादान में भी आप कम न थे । आपने वर्षोंतक महाविद्यालय मथुराका कुल अपनी जे से दिया था । हम समहैं आपका वियोग जैन समाज में इतना असह्य हुआ है कि जिसकी पूर्ति होना कई घटा झते Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन। (२) कठिन व असंभव है । तीर्थक्षेत्र कमेटीके महा १० को हुआ है यह भी दुःखदायी है । सेठ मंत्रीजी आप व लाला देवी पहाय नी फिरोजपुः सखाराम जी हमारे पूज्य नेता सेठ हीराचंद नेमरसे कई तीर्थोके केसोंके लिये निश्चित थे इस चंदजीके बड़े भ्राता व बम्बई परीक्षालयके महालिये आपके वियोगसे तीर्थक्षेत्र कमेटीके सभी मंत्री सेठ रावजीभाईके पूज्य पितानी थे। आपकी कार्मोमें बड़ा भारी धक्का लगा है। जैसे आयु करीब ७० वर्षकी थी। भापम धर्म व स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचंदनीका नाम बच्चा देशप्रेम अपार था। वर्षोंसे आपको स्वदेशी बच्चाको याद रहेगा. इसी प्रकार लाला जम्बूम- कपड़े वापरने की प्रतिज्ञा थी व स्वदेशी कपड़ेका सादजीका नाम भी सदा चिरस्मरणीय रहेगा। ही व्यापार करते थे । आपके नामसे कई वर्षों से हमारी महद् इच्छा है कि आपका चित्र व एक औषधालय सोलापुरमें चल रहा है । अंत बृहत् जीवन चरित्र प्रकट हो और इसके लिये समयमें आप २८१००) का दान इस प्रकार इनके इकलौते सुपुत्र श्रीमान प्रद्युम्न कुमार- कर गये हैं-२००००)सखाराम नेमचंद औषजीको हम निवेदन करते हैं कि आप हमारी घालय सोलापूर, ५.००) ऐलक पन्नालाल जैन इस ईच्छाको पूर्ण करने के लिये अपने धर्मवत्सल पाशशाला सोलापुर, ५००)सोलापुर पांजगपोल, दानी-पूज्य पिताजीका चित्र व परिचय हमें १०००) कंकुब्हेनको. ३००) कुंथलगिरि तैयार करवाकर भेजने की कृपा करें कि जिसको आश्रम. ८००) सोलापुर मंदिर, व १५००) हम 'दिगंबर जैन के पाठकोंकी सेवामें प्रकट कर फुटकर । हमारी यह महद् इच्छा है कि सेठ सकें । आपकी दान-सुची व धर्मकार्य साधा- सखारामजीके स्मरणमें शास्त्रदानकी भी कोई रण नहीं है इसलिये वे प्रकट होनेकी आब. व्यवस्था सेठ रावजीभाई करेंगे तो बहुत ही श्यकता है । अन्तमें हम पूज्य लाला जम्बूप- उपयुक्त होगा । अंतमें भापकी आत्माको शांति सदनीकी आत्माको शांति चाहते हैं व आपके व कुटुम्बको धैर्य प्राप्त हो रही हमारी भावना है। कुटुम्बयों हो धैर्य प.पज हो यही हमारी भावना है तथा हमें पूर्ण आशा है कि आपके सुपुत्र हमारे सभा धार्मिक पर्व वर्ष तीन दफे प्रद्युम्नकुमारकी अपने पूज्य पितान के कार्योको माते हैं परन्तु वर्षास्तुमें अवश्य संभाल लेंगे व पिताजीके मार्गका ही मोल कारण ही सभी पर्व अच्छी मनुसरण करेंगे। पर्व। तरहसे पालन होते हैं उसका खास कारण यह लाल। जानूप्रसादजीके वियोगके बाद ही दूसरा वियोग सोलापा भी है कि वर्षाऋतुमें पृथ्वी जलमग्न होनेसे दुसरा विशेग। निवासी वय वृद्ध दानी- त्यागीगण एक ही स्थानपर निवाप्त करते हैं देशभक्त व धर्मात्मा सेठ इससे धर्मलाभ विशष होता है व गृहस्थीको भी - सखाराम नेमचंद दोशीका गत श्रावण सुदी व्यापारसे अवकाश रहता है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगबर जन। हमारा मोलहकारण पर्व श्रावण सुदी १५ भी शास्त्र नहीं हैं यह कितनी खेदजनक बात से पारम्भ हुआ है व आश्विन वदी १ मंगल है। मंदिरों में प्रतिमानी व शास्त्र इन दोनोंकी वारको पूर्ण होगा । अब इस पर्व में हमारे सभी खास आवश्यक्ता है उनमें प्रतिमानी होती ही तो मंदिरों में नित्य पंच पूना, तत्त्वार्थ-सहस्रनाम हैं परंतु शास्त्र कुछ होते हैं तो वे अपवस्थित! पाठ, अभिषेक व सोलह कारण पूना होती है यह कहां तक ठीक है ? हमारे विचारसे हरएक परन्तु सोलह कारण भावनाका स्वरूप तथा मंदिरमें सभी शास्त्रों की एक २ प्रति अवश्य तत्त्वार्थ-सहस्रनामके अर्थ तो प्रायः सभी मंदि. होनी चाहिये। छपे हुए सुलभतासे मिल सकते रोंमें नहीं सुनाया जाता इससे पाठ व पूनाका हैं व न छपे हों वे होसके तो लिखवाकर रखने सच्चा रहस्य श्रावकों के समनने में नहीं भाता चाहिये । स्वर्गीप दानवीर सेठ माणकचंदनीकी इसलिये सभी मंदिरोंमें यह जरूरी कार्य स्मृतिमें एक संस्कृत सुलभ ग्रन्थमाला निकल होनेकी आवश्यकता है अर्थात् एक माहतक रही है उसके प्रकट हुए २४ शास्त्र तो अवश्य नित्य मंदिरमें तत्वार्थ के अर्थ होने चाहिये व मंगाकर शास्त्रभंडारमें विराजमान करने चाहिये। सोलह कारण धर्म की : ६ भावनाओं का स्वरूप हमने इसवार हमारे सभी छपे हुए शास्त्रोंका जो रत्नकरंड श्रावकाचारादिमें है सबको पढ़कर एक बड़ा सूचीपत्र तैयार करके हमारे पाठकोंको सुनाना चाहिये । हमने "सोलहकारण धर्म" इस अंकके साथ वितरण किया है उनको हरएक नामक पुस्तक भी इसी लिये तैयार करवाके पाठक ममाल लेवें व अपने जिन २ मंदिरोंमें प्रकट की है उसका भी कमसेकम नित्य पठन जो २ शास्त्र न हों मगा लेनेका प्रबन्ध करना पाठन होना चाहिये । आशा है हमारे हरएक चाहिये । अपने निजी द्रव्यसे नहीं तो मंदिरके पाठक इस सोलह कारण पर्वमें नित्य सोलह भंडारके द्रव्यसे तो सभी शास्त्र अवश्य मंगाकर ‘भावनों का पठनपाठन अवश्य करेंगे। संग्रह करने चाहिये। . हमारे अनेक मंदिरों में हजारों का. द्रव्य है, सारे हिंदुस्थान में हमारे तीर्थक्षेत्र सिद्धक्षेत्र, परंतु उनका उपयोग न ___ अतिशय क्षेत्र, प्राचीन भंडारों के द्रव्यका होकर वह ऐसा ही पड़ा तीर्थरक्षा फंड । जैन स्मारक व मंदिर उपयोग। . रहता है और तो उनके अनेक हैं जिनकी रक्षा ___सुद तकका भी उपयोग करते रहने के लिये हमारे स्वर्गीय दानवीर सेठ नहीं होता। मंदिरों में लोग जो द्रव्य देते हैं वह माणिकचंद्र नी बम्बई में हीराबागमें भारतव. धर्मकार्य के लिये देते हैं न कि मंडरों में रख छो- र्षीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी स्थापित डनेके लिये । हमारे कितने ही मंदिर ऐसे हैं. कर गये हैं (जो भकारमें रष्ट्रिी की गई है) जहां हजारोंकी सिलक होते हुए भी सौ दोसौ परन्तु इसमें कोई स्थायी फंड न होनेसे चालू Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४) ___दिगंबर जैन । सहायतासे ही करीब २०-२२ वर्षसे काम चल पुत्र श्रीकुमार था। आयु ६वर्ष व सांगली रहा है । श्री शिखरजी, अंतरीक्षनी, मक्तीनी जैन बोर्डिगमें ५ वें दर्ज में पढ़ता था । यह आदि तीर्थों की रक्षाके झगड़ोंमें आन तक जो कुमार अकस्मात् ज्वरसे पीड़ित होगया व जब कार्य इस तीर्थक्षेत्र कमेटीने कर दिखाया है इस कुमारने जान लिया कि मेरी मृत्यु निश्चित वह अतीव प्रशंसनीय है । परन्तु यह कार्य है तब इसने पं. रामचंद्र द द के उपदेशसे समाचालू होने से रुपयोंकी नित्य आवश्यकता रहती धिमरणकी विधि धारण की व शरीरके सब है इसलिये ४-५ वर्ष हुए इस कमेटीने ऐसा वस्त्रोंका भी त्याग कर दिया और णमोकार उचित व सुलभ प्रस्ताव किया है कि प्रतिवर्ष मंत्रका जप करने लगा | द नके लिये उसके हरएक दि जैन गृहवाले सिर्फ एकर पिताने आकर १०० लाकर रखे उसीको देखरुपया तीर्थरक्षा फंडमें देवें परन्तु इस कर कुमार चूप रह गया व बादमें पितासे कहाप्रस्तावकी अमली कार्रवाई बहुत ही कम होती मैं तो मरनेवाला हूं। क्या मेरी इच्छा पूर्ण है । गत वर्ष इस फंडमें बहुत ही कम आय करेंगे ? पिताने कहा-ओ तेरी इच्छा हो सो हुई थी यह ठीक नहीं है। वर्षभरमें सारे कह । कुमारने कहा- मेरे पंछे धर्मोन्नति के लिये कुटुम्बके पीछे तीर्थरक्षाके लिये केवल एक रुपया. २००००) निकालना चाहिये । पिताने तुर्त देना कुछ भी कठिन नहीं है इसलिये इन रुपयों स्वीकार किया ! तब पासवाले लोगोंने कहा क्या की उगाई दशलाक्षणी पर्व में करके रुपयोंकी रकम इस रकमसे नया मंदिर बंधाया नायगा तब उस तीर्थक्षेत्र कमेटीको भेज देनी चाहिये । हरएक धर्मप्रेमी कुमारने अपने पिताको बुलाकर कहाशहरमें एक २ भई स्वयंसेवक होकर यह पितानी, इस रकमको इस प्रकार खर्च करनाकार्य करेंगे तो सहजमें यह कार्य हो सकेगा। ५०००) जैन बोर्डिगमें व १५०००) से जैन कमसे कम अनंत चतुर्दशीके दिन ही उन स्वयं.. धर्मके ग्रन्थ प्रसिद्ध करो व जैन विद्यार्थियोंको सेवकको घर २ जाकर या मंदिरमें भाये हरसे छात्रवृत्ति देना जिससे जैनधर्मकी उन्नति हो। . तीर्थरक्षा फंडका रुपया इकट्ठा कर लेना न किसीने आग्रह किया कि इनमें से ५०००) तो ठीक होगा। श्री सम्मेदशिखरजी क्षेत्र के लिये द न कर । तब * * अपनी इच्छा न होते हुए भी कुमारने १५०००) अभी दक्षिण प्रान्तमें जो एक बाल मरण व मेंसे ५०००) शिखर नीके लिये स्वीकार किये व स्तुत्य दान हुमा है वह यह पुण्यात्मा जीव ता. ४-८-१३की रात्रिको बाल-मरणमें चिरकाल तक याद रहेगा। ११॥ बजे इस संसारसे चल बप्ता । यह मृत्यु स्तुत्य दान। इस मरण व दानकी कथा व दान कितना अनुकरणीय हुआ है उसको इस प्रकार है-सांगली हमारे पाठक अच्छी तरह से जान नायगे व समय (बेलगाम) निवासी एक प्रसिद्ध धनिक व्यापारी आनेपर इसका ही अनुकरण करेंगे ऐसी हमारी सेठ सावंतप्पा भाऊ भारवाडे हैं। उनके एक ही भावना है। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ दिगंबर जैन । आगामी वीर निर्वाण संवत २ ४ २ ० के प्रारंभ झालाक्षिणी पर्वमें में भी प्रतिवर्षको सचित्र खास भांति हमारा विचार हमारा कर्तव्य । अंक। दिगम्बर जैन' का सचित्र प्रिय भारतीय जैनी भाइयो ! आपको विदित खास अंक प्रकट करनेका है कि दशलाक्षिणी पर्व हमारा कितना निश्चित रूपसे है इसलिये हमारे सुज्ञ उत्तम पर्व है । इससे बढ़कर हमारा पर्व नहीं लेखकोंको हम अभीसे आमंत्रण करते हैं कि है अतएव इन पर्वो में कमसे कम भाइयोंको वे हिंदी, संस्कृत, गुजराती, मराठी व अंग्रेजी देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, . भाषाके उपयोगी लेख शीघ्र ही तैयार करके दान यह छै कर्म (नो श्रावकों के लिये प्रति दिन भेनें व कोई भाई अप्रकट प्राचीन तीर्थोके, पालन करनेके हैं ) अवश्य करने चाहिये । इस संस्थाओंके व प्रसिद्ध दानी धर्मात्माओंके चित्र षट्कर्मों में दान मुख्य है । चूकि ५ कोसे व परिचय भेजेंगे तो उनको भी सहर्ष स्थान तो अपना भला होता है और दान तो दूसरोंके दिया जायगा । इस वर्ष भी करीब १००- भलोंके लिये रक्खा गया है। १२५ पृष्ठका खाप्त अंक निकालनेका हमारा यह तो आपको विदित है कि दानीका पद इरादा है। आशा है हमारे लेखकगण व कितना बड़ा है । कोई उर्दूका कवि कहता हैग्राहकगण हमें इस कार्यमें अवश्य सहायक होंगे। अगर मंजूर धन रक्षा, - दाहोद-की पाठशालाके १०१) हेमचन्द तो धनवानों ! बनो दानी । बापुजी, ५१) बोबड़ा परथीराज मंगलजीत व कुवेसे जल न निकलेगा, ११) तलाटी भोजराजनीने दिये हैं। यहां तो सड़ जायगा सब पानी ॥ पं. दीपचंदजी वर्णी इस चातुर्मासमें भी पधारे दिया जल हमको बादलने, हैं और आपकी प्रधानतामें दाहोदमें जैन बोर्डिंग तो बादल होगया ऊंचा। निकालने के लिये एक डेप्युटेशन गुजरातमें रहा नीचा ही सागर है, . भ्रमण करेगा । दाहोद मालवा व गुजरातका अदाताको पशेमानी ॥ मध्य बिन्दु है। कोई देता धन जीकर, गोमहस्वामी मस्ताभिषेक-श्री श्र.... कोई मरकर देता है। वण बेलगोलामें आगामी फाल्गुन मासमें श्री जरासे फेरसे बन जाते, .. गोमट्टस्वामी का महा मस्तकाभिषेक १५ वर्षके हैं-ज्ञानीसे अज्ञानी ॥ बाद होगा। खर्चके लिये तीर्थक्षेत्र कमेटीसे आपको इस कवितासे विदित होगया होगा कि १८०००)की मंजूरी दीगई है। इस समय वहां दानीका पद कितना ऊंचा होता है । दान देने कई सभाएँ व प्रदर्शिनी भी होगी।। वालेका हाथ हमेशा ऊंचा होता है। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । मुनिश्वर जो दान लेते हैं उनका हाथ नीचा है कि श्री जेन अनाथ अम देहनी. होता है और देने वाले का ऊना होता है। नो में जी खोलकर दान करो, इसमें इस वक्त जैन दान देते हैं ! उन्हें हमेशा दानशर इत्यादि जातिके ६० विद्यार्थी उच्च कोटीकी शिक्षा पाएँ कहकर पुकारते हैं ! दानो बादलों की तरह हैं । भोजन वस्त्र औषध सब विद्यर्थियों को स्वच्छताको प्रप्त होने हैं से- जब बादल दिया जाता है। .... जल भरकर लाते हैं और वह जल नहीं देते, इस संस्थ में दान देने से आपको चारों काले रहते हैं लेकिन जब वह जल छोड देते दानोका फल होगा। प्रथम आहारदाव, विद्याहैं, स्वच्छताको प्राप्त हो जाते हैं : बादल गो र्थियों को भोजन दिया जाता है । औधि दान, औषधि आवश्यकतानुसार दीनाती है। प्राणियोंको जल देते हैं उनका जल शीतल और मिष्ट होत है और समुद्र जो जोड़ता है शास्त्र दान, उच्च कोटीकी शिक्षा दे नाती है जिससे विद्यार्थी जाति व धर्मकी सेवा करें । उसका जल खारा होता है,कोई भी नहीं पीता। अभयदान, इससे बढ़कर और क्या अभयदान इन सब बातोंसे आपको मालूम होगया होगा कि दानीकी पदवीके बराबर किपीकी ऊंत्री होगा कि बारह २ दिनके बच्चे पल रहे हैं । विधवाओंको भी घर बैठे ४)से ८)तक मासिक पदवी नहीं । आदीश्वा भगवानको राना श्रेयांशने दान दिया तो वह देवों और चक्रव सहायता दी जाती है व और सब बात आपको से पूजनीय हुए थे। रिपोर्टसे विदेत होगी। दान सब प्रकारका दे सकते हैं। दान इत्यादि भेनने और पत्र व्य दान किसको देना चाहिये। वहार करने का पता यह है-मंत्री, जैन अनाथादान उनको देना चाहिये जिनको दानकी श्रम, दरियागंन, देहली। आवश्यकता हो । पहिले समयमें मुनीश्वरको जातिसेवक-विद्यानन्द शेरसिंह । दान दिया करते थे लेकिन अ जाल हम अभा भूतपूर्व विद्यार्थी, जैन अनाथालय-देहली। गोंके लिये उनके दर्शन भी दुर्लभ है । अब उनको दान देना चाहिये जो बिचारे अनाथ, सा२४ सुरेन्द्रजीतने मुस्ता पत्र ! अपाहज,लंगड़े, लूले हैं, जिनके माता ५युष५ ५ना पत्र दिवसमा पिता मर गए हैं या उन पतिव्रता. ઝેરના ઝેરે વધારશે કે ધટાડશે ? આપનો પરિચય સુરતમાં ગત વિશાખ માસમાં : ओंको जो बिचारी विधवा है- ना सनी पत्तिा वमते आपना व्यपाना દ્વારા કંઈક થયે તે વખતે આ ની ભાવન જંદગી જૈન સમાજના ઉ ઉ મ.ટેક થતી बिचारे न जातिके लाल हैं और जैन जातिसे यश मम स यता ते ५२ nि साये। જણાવવું પડે છે કે ઝેરમાં પડેલા બે તડોમાં पृथक होकर मुसलमान, ईसाई हो रहे हैं! मागे मा५ पधारे ५२ ५४ी खानु one इनको बचाने के लिये भाइयों ! तुम्हारा कर्तव्य मापने मा भुक्षा ५ मा दिया थे. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ૭ ) ભટ્ટારકજી ? પ્રથમ તે મને એજ શકા થાય છે કે આપને આપના દુક્કેક વગરના નૃસિંહપરા ભાઇએના ગામમાં ચેમાં કરવાની જરૂર કેમ પડી હશે ? વળી કહે છે કે આપે જોગ લીધે ત્યારે એક પક્ષે બહુ વિનમ્યા કે ભાવનાઓ માટે ચિઠ્ઠીએ મુઢ્ઢા અને દરેકની ભાવનાઓ કરી પશુ આપે ા એક પક્ષ સાથે નકકોજ કરી દીધું અને સામા પક્ષના મંદિરમાં ન દાખલ થાય માટે પ્રભુના દરખાર ઉપર પેલીસ બેસડાવીને કાપણ વ્યકિતના દર્શન કરવાના પ્રાથમિક હકક ઉપર 'ત્રાપ મારી એ કેટલે અર્થ ? આપને યાદ તા હશેજ કે બે વર્ષ પર જે વ્યકિતને માર પડવાથી તે મરવાની અણી ઉપરથી સાક્ષ ભૂ1 તરીકે જીવી રહેલ છે તેની દશા પગ હજી સુધરી નથી ત્યાં વળી ખીજા પર્યુષ ગ્રુપના પવિત્ર દિવસે માં આપની હાજરી હેઠળ કે પ્રયાગ થશે તેતા ખ્યાલ તા આવી રહ્યા છે પરંતુ હજી પશુ આપની કીર્તિ વધારી આપના ધર્મ બન્ધુઓને એક કહેવાના પ્રસંગ, જ્ઞતિ ઝધડાઓની ખટપટે ક્ષમાવી દેવાને ક્ષમાવવાના દિવસ પર્યુંષણું પ આવે છે તેા આપના ષને છાજે તેવી નિળ જ્યેતથી છુટા પડેલા એ અમારા આંધવાતે જોડી દેશા ? એ બન્ધુઓમાં રહેલા ઝેરનું નિવારણ કરી દેશેા કે? આજે દેશ ઐકયતાની સીડી ઉપર પ્રયાગુ કરી રહ્યો છે તેનિડાળા અને આપના નામ સાથે ોડાયેલા ભટ્ટારક નામ તે લીધેલા તેમનું સાથ કપણું બાવી હંમેાને ઉન્નતિના પથે ચઢ વે નહિ તે! દેશ્નને ખે:ારૂપ ત્રીસ લાખ સાધુ કયાં નથી ? આપણે જાણી મેં છીએ કે શ્વેતાંખરી બાઓમાં કેટલાક- સાધુએ જેમ લડ રાપી રહ્યા છે તેમ આપ કડી ઘટાડવાને બદલે ન વધારા. બીજાં શુ લખવાનુ હોય તે ધણુ એ, પણ ઝેરના ઝેરે એક બીજા ગળી જાય એજ મંડફ્ ઇચ્છા હોવાથી ઢાલ તા જય તેિદ્ર ! ઝેરમાં અમને ચાહનારછગનલાલ ઉત્તમચંદ્ર સરૈયા-સુરત. दिंगबर जैन जैन समाचारावलि । ** નામ रक्षाबंधन पर्व - पानीपत में चारों मंदिरों में મહામુનિ પૂત્રનજી વાર્યું તથા થા સુનારૂં શરૂં થી થમેરીનેં ૬૨-૬શ્નો સમા વ સંચાર દુર્ तथा १५को शांति होम सलना पूजन व व्या-ख्यान आदि हुए थे । मोरेना में सुबह पूजन, होम, शांतिपाठ होकर सबने यज्ञोपवीत धारण किया जिसकी विधि पं० बालकृष्ण शाहकार વી. ૬. ને દારૂં થી। ગામો રક્ષાબંધન થા . सुनाकर व्याख्यान दिया था। इसीप्रकार अन्य સ્થાન પર મો થક પર્વ મનાયા ગયા થા | चातुर्मास त्यागियोंके चातुर्मास के विशेष समाचार इस प्रकार हैं-मुनि आदिसागरजी नसलापुर (बेलगाम) सेडवाळ स्टेशन से ८ मील । भागीरथजी वर्णी - जबलपुर जैन शिक्षामंदिर મુનિ સ્ત્રજ્ઞાની જીતનેર (વાલિયર) त्यागी सुखानंदजी - फिरोजपुर छावनी । મુછન્ન પાર્શ્વ ગાર્ગી-થઇજા વેઝનામ) ૬૦ બાળાના કે સેઙાજ (વેજગામ) गुरु पूजन - इन्दोर विद्यालय में भी इस वर्ष आषाड सुदी ११ को सत्र विद्यार्थियोंने गुरुपूजन જિન્ના થા ! प्रचारक नियत - ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वति भवनकी तरफ पं० सुब्वैयाजी प्रचारक नियत हुए हैं कर्नाटक प्रांतमें भ्रम णकर वहां शास्त्रभंडारों की सूची व सम्हाल શે । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । . विना मूल्य-नीचे लिखी पुस्तकें हमसे प्रप्तादनी साहब रईस सहारनपुरके असमय विना मूल्य मिलेंगी। जिन्हें चाहिये डाकखर्च स्वर्गवास हो जानेपर अपना अत्यंत हार्दिक की टिकट भेनकर मगा लेवें-१ उपासना तत्व, शोक प्रकट करती है और उनकी अप्लीम धर्म २ विवाहका समुद्देशय, ३ वर-पुष्पांजलि, ४ परायणता एवं तीर्थभक्तिका स्मरण कर, उनकी मेरी भावना, ५ विधवा कर्तव्य । पोस्टेन चा आत्माको परम शांति प्राप्त हो ऐसी भावना प्रथम तीनका आध १ आना, ४ का पांच तक प्रगट करती हुई प्रस्ताव करती है कि इसकी आध आना व पांचका एक आना होता है। नकल उनके सुपुत्र लाला प्रद्युम्नकुमारनीको जुगलकिशोर मुखत्यार पो. सरसावा भेजी जाय । " ( सहारनपुर ) पानीपत जैन हाईस्कूलमें संस्कृत व बंगाल आसाम-खंडेलवाल सभाका धर्मशिक्षा विभाग। दुसरा तीसरा अधिवेशन कलकत्तेमें कार्तिकी पूज्य ब्र० शीतलप्रसादनीके चातुर्माससे पानीमहोत्सव पर करनेकी तैयारी हो रही है। पतमें जैनोंमें नवचेतन आ रहा है। अभी - आवश्यक्ता-वीसपंथी आम्नायानुसार पू ब्रह्मचारीनीके उपदेशसे वहांके भाइयोंने जैन जा पाठ कर सके व शास्त्र वांच सके ऐसे दो विद्वान तैयार करने के लिये जैन हाईस्कूलके विद्वान विद्यार्थियों की भाद्रपदके लिये आवश्य- साथ एक संस्कृत धर्मशिक्षा विभाग खोलनेका क्ता है । आनेजाने का व भोजन खर्च दिया निश्चित किया है । इसमें परदेशी या पानीपतके जायगा । लिखो-चुनीलाल बापुनी दलाल पेड़ व अनपेड़ छात्र भर्ती किये जायगे व जलगांव ( खानदेश ) . इसके प्रार्थनापत्र सितम्बर मासतक लिये नायगे। शोक सभाएं-जैन समानके सुपसिद्ध व अक्टूबर में पढ़ाई का कार्य प्रारंभ होगा। अगुए श्रीमान् लाला जम्बूपसादजीके अप्समय इसकी नियमावलि जयकुमार सिंह जैन मैने नर, वियोगके लिये स्थान २ पर शोक सभाएं हो जैन हाईस्कूल पानीपतको लिखने से मिल सकती रही हैं जिनमें गत ता० १९ को धम्बई में . हैं । वा संस्कृत, व्याकरण, न्याय साहित्य, व एक शोक सभा सेठ पानाचन्द रामचन्द जौहरीके दि जैन धर्मकी शिक्षा नियत पठनक्रमानुसार सभापतित्वमें हुई थी जिसमें पं खूब वंदनी, दी जायगी। पं० फुलजारीलालनी व पं. पं० धन्नालाल जी, सेठ स्तनचंद चुनीलाल बी. भीषमचन्दजी ये काशी व मोरेना पढ़े हुए ए. आदिने लालजीकी तीर्थ-क्ति व अनेक विद्वान हैं वे यहां धर्म व संस्कृत पढ़ायंगे। समाजसेवाका हृदयस्पर्शी व अनुकरणीय चा छात्रवृत्ति देने के लिये वहांके भाइयोंने ९०) रित्रका वर्णन किया था। अंतमें इस प्रकार मासिककी सहायता जहांतक विद्यालय कायम प्रस्ताव पास हुआ कि "बम्बई दि. जैनसमाज रहे देते रहने का स्वीकार किया है और आशा परम धर्मात्मा, तीर्थभक्त श्रीमान् लाला नम्बू है कि इससे विशेष सहायता भी मिल नायगी । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । सूचीपत्रप्राचीन सरस्वती भंडार ६ रोहणीकथा ज्ञानसागर कृत ५० ४१ ७ नागकुमार चरित्र मल्लिषेणकृत लि०१६९१ ८ करकंडूचरित्र स० शुमचन्द्र प० २९ श्री दिगम्बर जैन मंदिर नरसिंहपुरा ९ , , ५० ७१ पापुरा सूर्यपुर (सूरत) लि० स० अक्षाहि ४१ वर्षे सोमित्रा में जिसको छिज्येष्ठ सुदी ६से ११ । वेष्टन नं० २. १० क्रियाकलाप वृत्ति लि० स० १५५७ तकमें ग्रंथोंकी सम्हाल _ ११ लोकानुयोग हरिवंशात नकशे सहित करके बनाया। सर्ग ३ प० ७७ विदित हो कि यह मंदिर सूरतमें बहुत ही १२ द्रव्यसंग्रह मूळ प्राकृत प० ४ प्राचीन है। यहां का शस्त्र मंड र वर्षोंसे बिना १३ व्यसंग्रह वृत्तहित १० ६९ पूछके अलमारी में बन्द पड़ा था। चूहोंने मन हान मस. १४ रत्नकरण्ड श्रा०प०१६ कोक १९१ मारी काटकर तथा कीड़ोंने मीतर बहुतसे शस्त्र लि. स. १६०८ में जाहणापुरमें नष्ठ किये । सम्हाल करनेपर करीब ६०० नोट-१५० श्लोक प्रसिद्ध हैं मिलान करना शास्त्र पूर्ण निकल्ले । शेष करीव ४०० शास्त्र चाहिये कि ४१ श्लोक क्यों प्रसिद्ध नहीं । अपूर्ण होंगे जिनकी सूची नहीं लिखी गई है। १५ स्वोपज्ञलिंगानुशासन व्याकरण हेमचन्द्र इस कार्य में माई नगीनदास नासिंहपुगने पूर्ण कृत श्लो० ३३८४ १० ६५ सहायता दी है जिसके लिये वे धन्यवाद १६ सामायिक प्रा० का सं० भब्य १० पात्र हैं। १०लि. स. १६९९ संस्कृत व प्राकृतके ग्रन्ध। १७ ,, भाष्य ५० २८ लि० स० १६४९ वेष्टन नं. १ १८ , पाठ सं० १० १०. १ प्रास्यंका चरित्र सं. प. २६कि.प.१६४६ १९ आलापपद्धति १० ७ २ पद्मनाभ पुराण विद्याभूषण का सर्ग १८२० कर्मप्रकृति सं० वृत्ति सहित प० ११ [० १४३ लि० १० १७०१ खंभातमें लि. स. १७१० ३ नेमिनिर्शग काव्य वाग्मट्ट प० ७७ . २१ चंडकृत प्राकृत व्याकरण की प्राका सारो. नोट-यह अछित्र व सी वाहड़ के पुत्र थे। द्धर वृत्ति प० ११ लि. स. १६१७ श्लो-अहिछत्र पुरेत्पन्न प्रारबाट कुलशालिनः २२ द्रव्यसंग्रह सं वृत्त २०१४ ले०१६९७ - बाहस्य सुतश्चके, प्रव-धं वाग्मटः कविः। २३ तत्वार्थसुत्र मूल ५० ११ ४ भविष्यदत्तच रेन श्रीधा कृन लि. स. २४ समवशरण स्तोत्र विष्नुसेन ५० ६ . १९९२ वेष्टन नं. ३ पांडवगण शुभचन्द्र प. १९१ २५ मह पुराण प्रकृत पुष्पदंत १०२ पत्र Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर दिगंबर जैन। (१०) ५० ४५१ लि. स० १६४९ इसी मंदिरमें १८ सम्पक कौमुदी १० १९४ मीण २६ हनुमानचरित्र. ब्रमजित १० ७५ ३९ पुशंजलि कपा ५० ३ लि० १६९४ अहमदावाद मौनमपुरे ४० श्रेणिकचरित्र प० ८९ २७ कथाएं ७५० ३१. ४१ होली पर्व कथा 4.2 .२८ प्राकृत श्रीपालचरित्र श्री नरसेन्देव रत . ४१ पर्द्धमानपुराण पद्मदि लि०म० १५२१ ५०१९ लि०सं० १४१४ योगिर्न परे मुस्तान ५३ धन्यकुमार च० सकलकीर्ति ५० २८ फीरोजशाह राज्ये म० श्री क्षमाभूषणदेवके समय में देष्टन नं. ५ उनके शिष्य ब्र० रामदेवने लिखा था। ४४ गोमटसार मूल ५० ९७ शुद्ध हि०० नोट-यह सबसे प्राचीन ग्रंथ ५६३ वर्षका १५६७ (दर्शनीय) लिखा है। यह प्रगट होने योग्य है ४५ परीक्षामुख १० १२ २९-जिनदत्तकथा गुणमद्र कृ० वि० स० ४१ पार्श्वनाथस्तोत्र स्वृत्ति ५० ११ १९९२ सुरतके सीतलनाथ मंदिर में म० विनय. ४७ विषापहार भूपाल चौ० हवृत्ति २०१६ कीर्तिके समयमें ४८ षटूदर्शन ५०६ ३० नागकुमार चरित्र प० २१ १९ सुप्पयदोहा प्राकृत ७७ १०८ ३१ यशोधरचरित्र तोमर्क ति ५० ५२ ५० हरस्वती स्तुति सटिपणी जण । नकल ३२ यशोधरचरित्र प्राकृत पदंस्कृत ४ योग्य । शायद आशाधर कृत है। परि०प० १०५ लि०स०१५७९ (प्रगतयोग्य) ५१ दिर प्रकरण प० १४ . वेष्टन नं. ४ ५११.र्श्वगथ स्तोत्र १०३ ३३ महापुराण प्रारत पुष्पदंत प० २४९ ५३ बृहत् दक्षाविधि समंत्र १०६ ३७ पर्व तक भरत निर्वाण लि. १६४८ यहीं ५४ पौत्र सठाणा वृत्ति लि० १६३३ यहीं ___३४ महावीरपुरण विद्य भूषणकत १.१८८ ५५ प्रतिक्रपण पाठ १०६ अन्तके एक दो नहीं ५६ आराधनासारादि प० १८ __३१ रामचरित्र श्रुतसागरका ५० ७७ लि....५७ पञ्चस्तोत्र वृत्त R. १६९७ कारनामें स. १६०९ सुति सीतलनाथ मंदिरमें ५८ प्रश्नोत्तर श्रा० सालकीर्ति प० १०४ .२१ प्रद्युम्न चरि• महसे चार्थकृत १०१६ १९ भक्तामर समंत्र ५० ३९. . लि० स० १५९४ वर्वर पुत्र हुम युं राज्ये ६० तत्वसार ५० ३३ (अंतका नहीं) गे.पाचल दुर्गे निकट सुरक्षावली में भ० गुण- ६१ मातृका अमिधान वंदवक मंत्रशास्त्र मद्र काल में ५० २१ - ३७ रोहिणी कथा ५० १९ लि० स० १२ पद्मावती अष्टक वृत्त मंत्र ५० ११ ६३ परमात्मा प्रकाश प्रा० गाथा ५९ प०५ १९५९ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____ दिगंबर जैन । वेष्टन न०६ वेष्टन नं. ७ . ६४ श्रृंगारीक काव्यानि तथा वैराग्यशतक ८९ नेमिनाथपुराण ब्र. नेमिदत्तकृत ५० .. मर्तृहरि प० ४४ १३० लि. स. १९४६ ६५ गा पासा केवली १० ९ लि० स० ९० जंबूस्वामी चरित्र प० २० .१७१३ कार्यरंजक परे चन्द्रप्रभु मंदिर। ९१ पांडवपुराण लि. १६४२ सोमित्रा प. ! मह कारंजाका प्रचीन नाम है। २३२ शुमचंद्रका ६१ वृद्ध चाणक्य प. ९ ९२ सम्यक्तकौमुदी लि. स. १४९६ ६७ स्वप्न चिंतामणि गोव रचित प०१६ ९३ यशोधरचरित्र जीर्ण प०१३ ६८ शौचाचार ५०६ ९४ हरिवंश पु० श्रीभूषण प० २४४ लि. ६९ उत्पत्ति विचार ५०४ स० १७१० अहमदाबाद शीतकनाथ मंदिरे ७० नारचन्द्र न्योतिष जैन ५० १० प्र० 1° ९५ त्रिकाल चौवीसी स्थान ५० ४. प्रकरण लि० त० १९३१ । ९६ अनंतव्रत कथा प.. ७१ पासाकेवली गर्ग ५० ९ ९७ त्रिषष्टि स्मृतिः ( महापुराणांतर्गत तत्व ७२ मातृका विहग विचार प०४ संग्रह)आशाघर का श्लो० ५०५ लि. १६०१ ७३ हितोपदेश कथा प• १५. नोट-इसमें १३ शका पुरुषोंके चरित्रका ७४ सप्न व छींकपरीक्षा प० ३ संक्षेत्र है। प्रगट योग्य है। ७५ षष्टि संवत्सरी १० १५ लि. स. - वेष्टन न.4 : १६१४ पार्श्वनाथ च. सकलकीति लि०१६०२ ७१ , ५० २१ ९९ पद्मनामपुराण शुमचंद्र प०११८ लि. ७७ वासुदेवके अनेक अर्थ ५०३ स. १६४८ जवाच्छनगरे ७८ प्रस्ताविक श्लोक १०७ ७९ सुभाषित कोषकाव्य ५० ३६ १० भविष्यदत्त चरित्र प० ७६ १०१ विद्याविलासचरित्र प. ७ ८. धनंजय नाममाला १०१७ १०१ नेमिनाथचरित्र प०१६लि. १९७१ ८१ सूक्ति- मुक्तावली १० १६ १०३ वृषभनाथच० ५० २२७ सकनकीर्ति ८२ पटदर्शन हरिभद्र प० ५ .. वेष्टन न. ९ ८३ प्रास्ताविक श्लोक ५० ९ १०४ त्रिलोकतार मूल टिप्पणी ५० ५५ ८४-तिलकदिवप्त अर्चन विधि ५० १५ शि०स० १६८५ ८५ सिद्धप्रियस्तोत्र सटीक प० ७ १०५ द्रव्यसंग्रह १०१ ८६ सिंदूर प्रकरण १०९ १०६ विदग्ध मुखमंडनकाव्य धर्मात प. ८७ गर्गपासाकेवळी १०९ २३ लि. स. १९९८ (प्रगट योग्य), ८८ अमरकोश पूर्ण प० १२२ १०७ आलोचना सूत्र प्राकृत प०८ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । CONOM १०८ पंचाख्यान द्वारा कथा ( पंचतंत्र ) प० ३९ हि० स० १५४५ १०९ उपादसकाव्य १७ १० १ ११० धनंजय नाममाला प० १८ १११ सामायिक पाठ प्रा०लि० सं० १९७५ ११२ वाग्मट्टालंकार १० १७ लि० १६९१ ११३ समुच्चय संख्या प० २२ ११४ प्रायश्चित समुच्चय व्याख्या सहित नंदिगुरुकृत १० ७९ ( अच्छा लिखा ) ११५ क्रियाकलार टीका प्रमाचंद्र ९० ४९ लि० १७०१ अही पुर शी लनाथ मंदिरमें ११६ जिनसेन सहस्रनाम टीका विश्व रेनकृत ११७ मदनपराजय काव्य जिनदेव का १ सर्ग १० १४ लि० स० १५५३ घनौघदुर्गे ( प्रगट योग्य ) ( १२ ) ११८ त्रास्तिकाय वृति जयसेन प० ११६ हि० स० १६०१ ( अच्छी लिखी ) ११९ द्रव्यसंग्रह सवृत्ति प० ११ १९३ द्रव्यसंग्रह व नवरत्नी १० १२४ सिंदूर प्रकरण १९ १२५ ४ १२६ १० १२७ एकाक्षर नाममाला ७ १२८ सिद्धांत चर्चा ३४ १२९ ऋद्धि वर्णन ५ १३० तत्वार्थरत्नप्रभाकर प्रभा चंद्र १०२ हि० स० १११६ ( सूत्र टीका ) 93 "" १३१ द्रव्यसंग्रह, ज्ञानसार व श्रावका चार दोहा गाथा २२७ ( प्रगट योग्य १३९ द्रव्यसंग्रह ९ १३६ २४ ठाणा चर्चाका० ८२ ११४ ऋद्धिमंत्र साथै विधि नं० ४८ १०७ १३५ पासा केवली ५० १३ वेष्टन नं० ११ १३६ प्र० श्रावका० ७४ बि०स०१५९९ नाटिका नगरे १२० """ मूल १०५ १२१ ज्ञानार्णव ध्यान २१ १४६ समयसार कक्श अमृतचंद्र १० १२ १२२ चौबीसठाणा १७ लि० ११४४ ईल में लि० स० १९१६ क्षुलकी रोहण को दिया नोट- इस समय आर्यिकाजी रोहिणी संस्कृत कलसका मनन करती थीं । १४७ - प्रमाणमंजरी १०८ १४८ धनंजय नाम ० ५०९ १४९ प्रस्ताविक श्लोक ३६ १३७. आराधनासार प्रा० सं० टि० प० ७ १३८ पंच पवर्त स्वरूप १ १३९ (कुनावली १ १४० पद्मनंदि पच्चीसी ६३ लि.सं. १७०१ १४१ परमात्मा प्र० प०१७ लि० १६१७ १४२ बोध पंचासिका प्रा० प्रश्नोत्तर नाममाला सुतक विचार प० ५ १४३ सज्जनचिच प ४ १४४ द्रव्यसंग्रह मूत्र ५ १४५ अमरकोश पत्रे १०८ शुद्ध १५० स्वप्नाध्याय ३. १५१ प्रस्ताविक श्लोक १०१ १५२ लोकानुयोग हरिवंश ८२ ११३ महाभारतादि लोक रात्रिभोजन त्याग में Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) दिगंबर जैन । - १५४ तत्तार्थसुत्र वृत्ति लि० स० १६३१ सर्ग प० ७६ लि. स. १७१३ (प्रगटयोग्य) - १५५ अमरकोश प० ७७ १७५ श्रीपालच० ० रेमदत्त ५० ६१ १५६ धननय नाममाला प०१८ लि० स० १६४३ १५७ अनेकार्थ मंजरी १६ १७६ चंदना चरित्र २८ लि. १६३१ । १५८ पंचास्तिकाय मु० सं०छाया ५० १४ १७७ लब्धिविधान कथा ६ जीर्ण लि. स. १६९१ . १७८ अशोक रेहिणीकथा २० १५९ कर्म प्रकृति सं० अमयचन्द्र १६ - १७९ शांतिनाथ पुराण प्राकृत चित्र १६० मत्तामर सटि. १० रेधू कविकृत ५० ६३ दर्शनीय (प्रगट योग्य) १६१ वसुनंदि श्रा की पंजिका हि० स० १८० पुण्य श्री रामचन्द्र ११९ लि० १५१९ १६०६ एड श्री सोमदत्त राज्ये गिरिपुरे मल्लिनाथ १६२ वाग्मट्टीलंकार ९ ___ मंदिरे ११३ जिनस्तवन श्लो० २५ १०३ वेष्टन नं० १३ १६४ प्र० श्रावका० लि. स. १६९. १८१ महापुराण स० ४४७ जण देष्टन न० १२ १८२ आराधना कथाकोश लि. स. १६८० १६५ कयाकोश चन्द्रकीर्ति ५२ आदिका नहीं मांगलपुरे शाहजहांरान्ये म० चन्द्रकीर्ति समये १६६ पार्श्वपुराण , १५ सर्गप. १०९ १८३ हरिवंश ब्र० मिनदास २४७ श्लोक २७१५ लि०६० १६९८ (पगट योग्य) १८४ उत्तरपुराण जीर्ण ३११ अंतका१ नहीं १६७ यशोधरचरित्र सोमकीर्ति लिन १८५ हनूमानचरित्र ब्र. अमित ९० लि. १६१२ १६०१ मारहगापुर १६८ हनुमानचरित्र अनित स० १६११ १८६ श्रीपाल च. सोमकीर्ति प०४ . १६९ मविष्यदत्तव० श्रीधर हि० १९९८ वेष्टन नं० १४ - सूर्यपुर १८७ त्रिलोकसार सं० वृत्ति १४६ जीर्ण - १७० वरांगवरित्र विद्याभूषण प० ६० लि. लि० स० १५८० १६६७ सागवाड़ा----१८८ , वृत्ति ९८ १७१ कर्पूरमंनरी नाटक प्राकृत रानशेषरकृत १८९ सार चौवीसी सकलर्ति कृत ९० लि.-स० १५७१ ( प्रगट योग्य ) . लि. १५३८ वांसवाड़ा १७२ सुदर्शनचरित्र सालकीर्ति ६१ लि. १९० तत्वसार संस्का वृत्ति भ० कम१९१४ भिलोड़ा (बागड़) लकीर्तिकृत ५० ७२ लि० सं० १९९१ कर१७३ पमनाथ पुराण ६३ दि. १६२३ हलमें ( अच्छी टीका देवसेन कृत तस्वजारपर है १०१ जयकुमार पुराण ब्र. कामरान १० प्रगट योग्य है ) . Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __दिगंबर जैन । (१३) १९१ भक्ताभा सं० वृत्त १८ वेष्टन न०१७ १९२ मदन पराजयकाव्य ४६ २१० समयसार कलश प० २४ १९३ जिनयज्ञ कप आशाधर प० ९८ लि. २११ कर्म प्रकृति सं० १०२९ स. १५९४ नौगाममें ( आदि पत्र नहीं) २१२ त्रिलोकसार सचित्र ६५ १९४ चौवीस ठाणा ३२ २१३ प्रतिष्ठा तिलक नरेन्द्रसेन जीर्ण ४० १९५ सुक मुक्तावली २३ २१४ अमरकोश १४६ लि. १७२० १९६ व्यसंग्रह प्रमाचन्द्रकन सं० वृत्ति १८ ११५ कल्याण मंदिर १२ . . ( प्रगट योग्य ) २१६, सटीक १४ १९७ त्रिलोकसार २१ देष्टन नं १५ २१८ धनंजय नाममाला २४ १९८ यशसितल चंद्रिका ३७४ अतके २१९ त्रिलोकप्तार मुल ७२ सर्व धारा वर्णन पत्र नहीं। २२० प्राकृत नाममाला १३ लि. १६३० १९९ गोमटसार सं० वृत्ति १८३ आदिके २२१ जन्म स्त्री विचार २० जैन ज्योतिष कुछ नहीं । लि० स० १७२४ २२९ सस्त्र स्थानमंग प्ररूपणा सं० वृति २०० त्रिलोकमा वृत्ति २२९ , कनकननि ५० १३ वेष्टन नं० १६ २९३ प्रशमतिकरण सं० उमास्वामी का१६ १०१ पद्मपुराण प्र० जिनदास अंतके कुछ २२४ चौवीस ठाणा २८ पत्र नहीं। २९९ तत्वतार ३ २०२ प्रद्युम्नचरित्र शुभचन्द्र ७१ लि०१५९३ २९६ षटदर्शन ५ २०३ रात्रिका कथा ६ २१७ कर्म प्रकृति मुल ९. २०४ कथाकोश छोटा २० २२८ चौवीस ठाणा २३ २०५ नागकुमार कथा प०३२ १२९ धनंजय १२ २०६ जिनदत्त कथा गुणमद्रकृत लि० स० १३० सज्जनचित्तालम ४ २३१ कर्मविपाक १७ (प्रगट योग्य) २०७ भविष्यदत चरित्र प्राकृत सं० २३२ गोमटशार मुल १४ ठाणा १८ (दर्शनीय) ५० ८२ अंतके कुछ नहीं (चित्र २३३ न्यायशास्त्र ६७ बहुत सुन्दर हैं तथा प्रगट योग्य हैं) २३४ सहस्र नाम आशाधरवृत्ति श्रुप्तागर ..२०८ जीन्धर चरित्र शुमचन्द्र ११० लि. वेष्टन नं. १८ १६.१ देवगिरिमें (पगट योग्य)। २३५ पुण्याश्रा कयाकोष १०८ २०९ हरिवंश पुराण निनदास २१९ २३६ पांडव पुराण १७७ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ नेमिपुराण ३१७ २३८ पांडपुगण श्रीभूषण प० २७८ २३९ प्रद्युम्नचरित्र २१७लि. स. १६४४ वेष्टन नं० १९ २४० सिंदुर प्रकरण ११ २.१ ३० चौवीप्ती नाम ९ २४२ सहस्रनाम ४ २४३ भागधनाप्सार मूल ७ २४४. साठि संवच्छरी १५ २४५ षटू दर्शन ? २४६ ज्ञानार्णव ध्यान ८ २४७ पद्मनन्दी पच्चीसी ८५ शुद्ध जीर्ण २४८ पंच परातन ४ २४९ त्रिलोक सार ७१ आदिका नहीं २५० पावापुरी कस प्रा० १२ २५१ देवागमस्तोत्र , १५२ श्नोत्तर श्रावकाचार ११५ २९१ अध्यात्मोपनिषद् हेमचन्दकत ४ सर्ग ५० १२ नोट-यदि र ह भक्तक प्रकट न हुभा हो तो र प्रगट करना चाहिये। २५४ निंदुर प्रकरण १६ २५५ पाशाके वली रर्ग ७ .. . वेष्टन नं० २० ... २५६ अंबूस्वामी चरित्र ५६ लि. १६३८ ९५७ पूजा कल दुरस्त्या श्री भूषण १६ २५८ ज्येष्ठ मिनरकथा ५ २१९ श्रीपालचरित्र प्राकृत नरेन्द्र. सेनकृत १० २९ (प्राट योग्य ) २६० वृषभनाथ पृ. ब. चंद्रक ति का ३१४ दिगंबर जैन २६१ हरिवंश पुराण जिनदास कृत २८२ २६२ यशोधरचरित्रप्राकृत पुष्पदन्तका १६२ लि. स. १६७३ २६३ F१० कमासूत्र व्या० १९ . २६४ नम्बुस्वामी च. जिनदास लि.१६३४ २६५ नागकुमार कथा २१ वेष्टन न० २१ २६६ यशोधर च० श्रु.सागर ४० २६७ हनुमानचरित्र अनित. ८२. . २१८ वसंगचरित्र वर्द्धमान कृत ७७ २६९ पांडपुगण २१२ कि. १६६२ २७० हनुमानचरित्र ९१ लि. १६०३ . २७१ वृषभनाथव० श्रीधर २४० मतके नहीं २७२ , सफल सीर्ति १६६ . २७३ करकंड कथा १० २७४ लबिविधान ९ २७५ नेमिचरित्र काव्य भेवदूतपर समस्या . २१ जीर्ण (प्रगट योग्य) २७६ सुगंध दशमी कथा ५ १७६ . . २७७ श्रीपाल चरिम विद्य नंदिकृत स.१५२७ २७८ पंचा तोत्र २५ लि० स० १६९७ २७९ विबुराष्टक टीका ५.. २८० त्रिंशचतुर्विशतिका पुना प० २९ २८१ कर्मदहन ५० ३७ (अंतका नहीं) १८२ गणधरचलय पूजा १० ९. . २८३ कर्मदहन पूना ५० १८ .. २८४ ऋषेमंडळयंत्रपूना ५० ३८ विद्या भूषण कृत लि. स. ११९१ . २८५ ऋषिपडल पूना लि० स० १९४३ ९८६ दशरक्षण पूना प्रा० रेधूकृत प०१० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन। .. (१६) २८७ ऋषिमंडल पूना ५० १३ ३१५ चारित्र शुद्धि या १९१४ व्रत पूना २८८ गणधर पूना प०४ - लि० सूर्यपरे चन्दप्रमु चैत्यालय २८९ अष्टकरम चूरण पूना १०६ ३१६ जिनमातृका विधान ८ ..... २९० कलिकुंड पूना विद्याभूषण का प०७ ३१७ ध्वनारोहणविधि प० १२ २९१ सप्तऋषि पूना श्रीभूषणका ५० १२३१८ शांतिक समग्र विधि लि. स. २९२ श्रुतस्कंध पुना , , १४ . १५१.४ प्रल्हादरे २९३ पत्यविधान पूना त्रिभुवनकीर्तिहत ८ ३१९ चिन्तामणि पार्श्वनाथ पूना २९४ त्रीसचौवीसी पूना १० ८३ ३२. जलहोम ७ २९५ वृद्धांतिक पूना प० ७३ ३२१ ध्वमारोहण विधि ११ २९६ होमविधि ,६ ३९२ अनन्तवन भूषणका २९७ पद्मावती पूना , १५ ३९३ चरित्रशुद्धि पूना २९८ गणधरवलय ,, ,७ ३१४ ऋषि मंडल पुना २९९ शांतिक पूजा विधान पं० धर्मदेव पत्रे ३२५ जिनसंहिता सारोद्धारे प्रतिष्ठा तिलक २४ जीर्ण नाम्नि त्रिणिकाचार ब्रह्मसूरिरचित पर्व ८ ३०० भक्तामरस्तोत्र पुमा ५० १९ लि. ३२६ सिद्धचक्रपूना स. १७०२ ३२७ सप्तपरमस्थान अर्ध ३०१६ऋषि पूज' (त्रे ७ . . ३०१ सिद्धचक्र पूना , २३ ३२८ रत्नत्रयपूना नरेन्द्रसेकृत , ३०३ चतुर्विशति तीर्थकर पूजा ५० १४ ३२९ पद्म वती पूना ३०४ समवशरण पूरा , २१ ३३० पला विधान पूना ३०५ वृहतसिद्ध पूना विद्याभूषण कृत ३०६ ऋषिमंडल पूना ३३२ , , . ३३३ ऋषिमंडल पूरी ३७७ रत्नत्रय स्तवन विधि ३०५ ऋषिमंडल पूना ३३४ गणधरवलय पूजा सोमकीर्ति प्तऋषे २०९ कलिकुन्ड पूना __३३५ त्रिकाल चौवीसी पूना ३१० वृहत् सिद्धचक्र पूना ३३६ कर्मदहनपूजा विद्याभूषण का ३११ १६ कारण नयमाल अभयचंद्रका -३१७ पंच परमेष्ठी पूना श्रीभूषण न ३१२ परयविधान पूना ३३८ वास्तुपूजा विधि प. ७ ३१३ पार्श्वनाथ वृपूजा विद्याभूषणकृत ३३९ धर्मचक्रपूजा (सिद्ध) वेष्टन नं० २३ ३४० कलिकुंड पूना ३११ प्रतिष्ठातिलक भाशावर जीर्ण ९१ . ३४१ होमविधि Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KOPARora (१७) दिगंबर जैन ३४२ रत्नत्रयपूना राजकीर्ति पूना गुजराती भाषाक ग्रंथ । ३४३ पद्मावतीपूजा वेष्टन नं० २५ १४४ चिंतामणि पवनाथपूना विद्याभूषणका ..१६६ पुष्पांजलि अनंत ब्रा कथा आदि ३४५ चिंतामणि पार्श्वनाथपूना शुमचन्द्र कत . ३६७ रोहणी सुगंधदशमी आदि कथा वेष्टन नं० २४ ३६८ गुणस्थान द्वारा कर्मक्षपण ३४६ फरय विधान पूना ३१९ दानशील तप मात्र संवाद ६४७ कर्मदहनपूना २७० आदित्य व्रत कथा ३४८ क्षेत्रपालपूना ३७१ मणिरूद्धहरण आख्यान जयसागरकृत ३४९ त्रिकाल चौवीसी पूना ३७१ सिंहासन बत्तीसी कथा स० १६४९ ३९० त्रिशच्चतुर्विंशति पूजा विद्याभूषणकृत ३७३ नेमनाथ बागुण सागर छंद ३५१ ९६ क्षेत्रपाल पुना ३७४ महापुराण त्रिमुपननी वीनती ३५२ जलहोम विधि ३७५ सवाया छत्तीसी ३५३ कलिकुन्ड पूजा ३७६ भादीश्वर फाग म० ज्ञानभूषण कृत १५४ मुक्तागिरी बानगजा अदि पूना ३७७ पुरन्दर विधान कथा ३५५ सप्तऋषि पृग ३७८ समकित मंडन रास, ३५६ सोलहकारणवतोद्यापन ३७९ सम्मति साझाय ३१७ Fप्तऋषि पूजा ३८० प्रायश्चित्त आदि ३५८ पुश्रुकंत्र पूना ३८१ मंत्र व औषधिय ३५९ वर्मदहन पूग ...-- ३८२ त्रिलोसार चोई ३६० महा अमिषेक विधि नरेन्द्रसेनका लि. ३८३ ने मनाय रानीमती काग १० ११५" सं० १४५६ वाटरडा ग्राम (उदयपुर) ३८४ त्रिलोकसार चोपाई . भादि चैत्यालय में भ० रनकीर्ति ३८५ श्रेणिक आख्यान छंद ब्र. हर्षसागरकृत , १६१ शुक्लांचमी पूना पं. चांगनीकृत लि. ३८६ हनुमानराप्त ब्र० मिनाप्त का स. १६४६. भवासमें ३८७ श्रावकाचार पदमशाहकृत जीर्ण ३६२ ९१ क्षेत्रपालपुजा ३८८ श्रीमंदस्वामी रास ३६३ सिद्ध चक्र पूमा शुमचंद्रकृत लि. . ३८९ चंदनषष्टी वा कथा .स. १५९४ ३९० सुसंदरी रास . .३६४ पद्मवती स्तोत्र १९१ धर्मपरीक्षा रास रची संवत ११२५ २६५ लब्धिविधान कथा - वीरदास कृत Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । AOPNOS वेष्टन नं ० २६ ३९९ अक्षय दशमी कथादि ३९३ सुकुमाल स्वामीरास ३९४ श्रेणिक पृच्छा १९९ भावदेव भवदेव रात ३९६ पांडव छंद. ३९७ महापुराण विज्ञप्ति ३९८ निर्दोष सप्तमी कथा १९९ मौन एकादशी व्रतकथा ४०० हरिवंश रास ४०१ पंत्र इद्री संवाद ४०९ भरतेश्वरराणी धर्मचर्चा ४०३ - नरसिंहं कुमाररास ब्र० ज्ञानसागर का ३०४ नेमिजिन फाग ४०५ ष्ष्टी वा कथा ४०६ प्रद्युम्न रास सं० १९९६ में बनाया श्रीभूषण ने सूर्य पुर (सुरत) चन्द्र प्रमुमंदिर में ४०७ श्रीपादशस ४०८ समकित वर वा कुछ लि०स०१५६७, ४०९ मन्त्रः कथा ४१० सुरसुन्दरीरास ४ ११ दिनार कथा ४१२ तो वीसी । आदिका नहीं ४१३ सातव्यसन रासादि ४१४ रात्रिभोजनस ४१५ सिंहासन त्तसी कथा ४१६ सुकोशहरात (१८) प्तपरमस्थान कथा ४ १७ ४१८ शासनदेवी छंद मंदिरकी गुजराती टीका हि० स० [१५९३ ४२० त्रिलोकसार ध्यान ४२१ कर्मविपाकरास ४२२ श्रेण पृच्छा ४२३ दानशीलतप भावना ४२४ बकिमद्र सम्झाय ४२५ किल्प मंत्र ४२६ रामसीता रास ४२७ पषवास व्र अजैन ग्रंथ वेष्टन नं० १७ ४२८ किरात र्जुनीय काव्य १८ पर्व लि० सं० १४५३ ४२९ चंडिका स्तोत्र वृत्ति लि०सं० १९१९ रचित चंडीशत टीका ४३० किरातार्जुनीय काव्य सवृत्ति लि० सं० १६९८ सूर्य रे च द्रभु मंदिरे | ४३१-१ कुमारसंभवकाव्य कालिदासका लि० सं० १९९९ ४३१-२ किए. टीका मलिषेण सुरे १७ सर्ग ४३१ ४ था सर्ग " ७ ह ४३१ शिशुपाल वध का ४३४ कुमारसंभी दिन र १ al लि० १६३१ ४१५ किरात टीका १८ सर्ग मल्लिन ४३६ मे दूतकाव्य सं०लि० सं० १४९९ कालिदास कर ४९७ भोज प्रबंत्र पं० बलालकृत कि० सं० १७२८ ४३८ कवि ४३९ संग्रह टोका ४४० कालज्ञान पं० वोपदेवकृत Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Oo . दिगंबर जैन । ४१ सारोद्धार ज्योतिष ४६५ वृत्तरत्न कार . ४४२ शैवमुख वज्रची ४६६ सामुद्रिक लक्षण ४ ४ ३ नैषधकाव्य अपूर्ण ४६७ निाघटीका १० विद्यःवर कृत जीर्ण ४ ४ ४ किरातार्जुनीय लि० सं० १६९७ .. ___ लि० स० १७०९ कार्यरंजकपूरे ४६८ किरात्टीका लि० सं० १६१० ४४५ रघुवंश दर्पण हेमाद्रिका सर्ग १० ४६९ विवाह पटल प० केशवकृत ४४६ किरात लि० स० १९९८ सुर्यपुरे ४७० मेवहुत कालिदास कृत लि० १६३५ चन्द्रप्रभु चैत्यालये ४७१ तर्क दीपिका ४४७ मेघदूत कालिदासका लि. स. - ४७१ माघटीका वरमदेव कृत १९७६ - ४७३. मेवदूत टीका लि० स० १५३४ चंद्र. ४४८ न्यायसंग्रह आत्मारामा कीर्ति मा० ने ४४९ हप्तादार्थी टीका वेष्टन नं. २९ ४५० रघुवंश कालिदास ४७४ सप्त पदार्थी - वेष्टन नं० २८ ४७६ रघुवंश लि०स० १६३१ जाहणापूरे ४५१ सिद्ध दुतामिव काव्य ४७६ अनेकार्यानि मंजरी लिप्त.१८०५ १२२ रघुवंश १७७ हरीतकी कवैध ४५३ कुमारसंभा वि. स. १६९७ । ४७८ तमाता मुल ४९४ मर्तृहरि टीका लि. स. १९९५ ४७९ उपहा देवपल्ली नगरीमें १८० ". ... ४५५ तर्क भाषा १८१ तर्कमाषा ४५६ तर्कमाषा प्रकाश गोवर्धन ४८२ सुमुख पूना ४५७ काव्य एक ४८३ रघुश (भादि पत्र नहीं) ४५८ योमवासिष्ट ४८४ सप्तपदार्थी लि० स० १५८९ १५९ छंदशास्त्र ४८५ किरात टीका एकन थ भट्ट का लि. ४६. वसंतरान शकुनग्रंथ लि० स०१६३० स. १६५९ _ ... देवगिरि ४८९ ज्योतिषचक नकशे ४६१ न्यायसागर लि० १५९४ इला प्राकारे ४८७ शास्त्रमन्नरी ४६२ तर्कभाषा • ४८८ सप्तपदार्थी ४६३ वृत्तरत्नाकर भट्टकेदार ४८९ तर्कमाषा ४६४ तर्कभषा Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । CONO ४९१ सारगंवार वै० ४९२ द्वत्रिंशत्पुरुष लक्षण ४९३ कुपुमांजली ४९४ विवाह पटल ४९९ रघुवन्श स० ५ ४९६ वैद्यक ग्रंथ ४९७ परिभाषा ४९८ निधे वैद्य ४९९ कुंडमंडप कौमुद्द १०० ज्योतिषसार संग्रह वेष्टन ०.३०. १०१ कौमुदी प्रक्रिया व्याकरण ५०२ सारस्वत प्रक्रिया अपूर्ण ५०३ सारस्वत ५०४ 39 ९०९ कौमुदी प्रक्रिया ५०६ सारस्वत प्र० (अपूर्ण) - ५०७ सिद्धांत कौमुदी पूर्वार्द्ध ५०८ सारस्वत प्र० लि० स० १६९६ " १०९ लि० ६० ११७३ ९१० चुरादियोणितो घातयः १११ रूपावली ५१२ सारस्वत प्र० लि० स० १६७१ ५१३ प्रकृत सूत्रवृति कात्यायन ११४ नीलकन्ठ कविकलित शब्दशोमा ११९ सारस्वत व्या० ११६ 17 ५१७ खण्ड़ बहुत पत्रे ५१८ कौमुदी प्रक्रिया ( २० ) ५१९ व्याकरण (पत्र ११ से १३२ लक) १२० व्याकरण फुटकल पत्रे ५२१०१ अपूर्ण ५२२ रसमंजरी भानुदत्त अपूर्ण १२३ वैद्य १२४ तर्क परिभाषा ५२५ योगशत वैद्य ?? ५२६ ५२७ मेघदूत लि० स० १४१२ हिन्दीके जैन ग्रंथ | वेष्टन नं० ३१ ५२८ समयसार कलश हिन्दी टीका पुग्य पाप अधिकार 39 27 "> ( पत्र एक नहीं ) १२९ ५३० ५४१ १३२ १३६ १३४ "" १३५ प्रवचनसार टीका हेमराज ५३६ समयसार न टक बनारसीदात ५१७ रजु पच्चीसी १३८ तिथिषोड़ी १.३९ नंदलाल कविकृत अनेकार्थ नाममाला ५४० चिंतामणि प. र्श्वनाथ जैपाल ر 11 संवर निर्जरा " २न्ध मोक्ष जीव 39 भःश्रा प्रथम अधिकार १४१ मक्तामर भाषा ५४२ बनारसीविवास १४३ ८४ बोळ श्वे० संस्कृतदि १४४० सामायिक मध्य ( आदिका १ पत्र नहीं । ) १४५१ मराठी भाषामें स्तोत्रादि टीका १४६ नेमनाथ फागु गु० Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । ५४७ साठ संवत्सरी ५७५ विरदावली १४८ चिंतामणि पा० पूना १७६ कलिकुड बेर ४५९ राजनीति समुच्चय गु० ५७७ जयपताका का ५५० सुभाषित ग्रंथ संस्कृत सकल कीर्ति ५७८ गणित सुव . ५५१ बासुदेव आख्यान ५७९ समवशरण रचना गु. १५२ गर्गपाशा केवली .. . वेष्टन नं. ३२ .५५३ बालावबोध वृत्ति । ५८. गोमरसार कर्मकांड सं० टीका (अपूर्ण) ५५४ षटदर्शन ५८१ त्रिलोकप्त र सचित्र मूक आदिके कम ५५५ रेणुका रात ५८२ प्रश्नोत्तर श्र व काचार आदिके २ कम ५५६ शांतिनाथ स्तुति मेरूतुंग गु० ५८३ मी कर्तिकेयानुप्रेक्षा मूठ लि. ५१७ गुरावशी ५५८ श्रङ्गार शतक ५८४ त्रिकार मुटकुछ कर . ५५९ रोहिणी कथा ५८५ गोमटसार स० वृति जीवकांड पत्र ५६० अशोक सप्तमी कथा ... १६ कम है ५६१ वास्तुपूजा विधान ५८६ धनपाल चरित्र प्राकृत लि• स०. ५६२ तर्क परिभाषा . १४८२ सुल्तान भालमशाह चंदेरी देशे ५६३ धातु संख्या - ५० ३० से ११२ ५६४ शीलोपदेशमाला प्राकृत वेष्टन नं० ३३ नकशे ५६५ आदीश्व! फाग गु० , ३४ अपूर्ण पुराणादि प्रथमानुयोग १६६ दशलक्षण जयमाल ६.६७ पासाकेवली .. ५१८ मिनसेन सहस्रनाम टीका ". ....३७ अपूर्ण पुराण सिवाय अन्यग्रंथ ५६९ थूलभद्र चंद्रायण ५७० अष्टप्सहस्री लि० स० १७३७ शुरूके वेष्टन नं० ३९-४०-४१-४२-४३ गुटके - कुछ नहीं १४-४५-३६-४७ फुटकल पत्रे ५७१ अष्टसहस्री टिप्पणी . शीतलप्रसाद ब्रह्मचारी। ५७२ उत्तरपुरण शुरूके कुछ नहीं लि०स० १७१२ पवित्र काश्मीरी केशर-. ५७३ नीतिप्तार इन्द्रनन्दि -- का भाव २) फी तोला है। ५७४ आत्मसंबोध. प्रा. . मैनेजर, दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- दिगंबर जैन। ( २२ ) SHOREGDHANGADA तो उनको मालुम ही होगा कि वे संसारमें कैसे२ महिलाओंका कर्तव्य दिव्य२ कार्य कर चुकी हैं और कर रही हैं 2 और करती रहेगी। सत्र पूछए तो संपारकी GRADEGRATEDNAGDRA वाग्डोर उन्हींके हाथों में है। इसलिए उन्हें उपर्युक्त श.पर मेरे लिए एक अनोखासा अपनी- इस भारी जिम्मेवारीकी चौड़ सी हरहम। भान पड़ता है क्योंकि महिला समानको अना- रहना चाहिए। उन्हें माने और मतश्वी स्वार्थी दिकाल से यह स्वत्व प्राप्त रहा है कि वह जगल के क.यौको गौण (कम) करके अपने आत्मोन्न. नायक और विधायक पुरुषों एवं सतीशिरोमणि तिके उगायों को अपनाना होगा। स्त्रियोंको उनके उत्कृष्ट मावमय उच्च म आदर्श अस्मोन्नति दो उपायों से कही नासक्ती है । एक मार्गपर अनुशीलन और अनुगमन करनेकी शुक्ल क' शुल तो शुद्धोपयोगके लिहानसे अपने आत्मतत्वा सौम्य-पवित्र शक्ति अपनी ही रचनात्मक कान करके संयम, शील, उपवास, वा अदि मौलिक गोदमें शैशव कालसे ही अर्पण करती, समझ वृझकर करना । निप्तसे निनरूपका मान है! यही वह पृ०१मई मानव दुख मोचिना हो और मोक्षमार्गका ज्ञान हो । विना नानेवूझे संसारताप विच्छे इनी समान है, निने श्री तीर्थ प देखादेखी इनको करना कार्यकारी नहीं । इसलिए कर भगवानको जन्म दे जगतको शांतिसुखका आपका पहिला कर्तव्य होगा कि आप धर्मकी मार्ग समय२ पर निर्दिष्ट कराया ! इसने महात्मा जानकारी के लिए विद्याध्ययन करें-लिखना पढ़ना बुद्र जैसे दयालु र णा प्रताप जैसे प्रतापी पुरुष सीने और धार्मिक पुस्तकको पढ़कर धर्मके स्वरूप रत्नों और महिलारस्न सीता और सावित्री, समझें । अपनी कन्यायोंको पाठशालाओं और त्यागमूर्ति ब्राह्मी और पुन्दरी जैसी सती शिरो. श्राविकाश्रमों में भेजिए और आप खुद ग्राम में मणियों को उत्पन्न किया था। और सांप्रतमें ही यदि आप बाहर नहीं नासक्तीं हैं तो अपनी महात्मा गांधी आदिको इन्हींकी कोखने संसारसे किसी विद्वान महिलासे अथवा अपने पिता माई पुद्गलबादकी सत्ताको हटाने के लिए कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण किया है। फिर मला ! उनके कर्तव्यका भादिसे शिक्षा ग्रहण कीजिए। ऐसा करनेसे आप बहुतसे वृथा पापोंसे बचेंगी और आनी यहां पर खाका खींचना अबाधिकार्यत्येष्टा मात्र . होगा । उन्हें भरना कर्तव्य स्वयं अपने मेरो सतानको आदर्श संतान बना सकेंगी, निससे समक्ष नीती जागती मूर्तिके स्वरूप में उपस्थित समानमें प्रचलित धर्मके नामसर दौं। और मिथ्या होगा। पर तो मी मैं ए उन्हीं की गोद कुपथाओं का अन्त हो नायगा। ललित पालित पवान पोंके तापसे भयभीत पुरूष आपको मालन होगा कि बाहरी दिख वेसे कार हृदय दो शब्दों को उन महिनों के लिए जो अपने नहीं चलता। आप देखतीं होंगी बहुलप्ती स्त्रि इस मारी मारको अपनी घरेलु उलझनों में और दिखावेके लिए मुलंमेका जेवर पहिनतीं हैं लेकिन सुलझनों में भुलाए हुए हैं कहना चाहता हूं। यह किसी वक्त उनकी असलियत प्रगट होनाती है Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - दिर्गघर जैन । और उनको बड़ी लज्जा उठानी पड़ती है। दिखा- चाहिए । इस बातको छिपाने के लिए उसने कह कटके लिए यह सब कुछ किये-पूछनेपर झूठ दिया कि वह सिंगार किंगार कुछ नहीं करती। मी बोले पर अन्नमें दुःख और मिल्छत उठानी और वह मायाचारसे रही। दिखावट में आर्यिका पड़ी। यह दिखावट और ढौंग पुरूष समान में रही । पर इन दिखावटी माया चारीके कामों में बेहद घुसी हुई है। इसका कारण मैं आपको वह बुरी गतियों में दुःख उठाती फिरी इसलिए ही बतलाऊं। क्योंकि जैसे कुम्हार अपने बरत- आनी ही भलाई के लिए हमें दिखावटी ढोंग और नोंको चाहे वैसा बनासका है वैसे ही आप मावाचारमें नहीं फंपना चाहिए । यह तभी हो अपने पुत्रपुत्रियोंको अच्छा बुरा बनासक्तीं हैं। सक्ता है जब आप हमारी पूज्य मातायें धर्मके जर आपमें दिखावट और ढौं। है तो सारी यथार्थ स्वरूपको और अपने कर्तव्यको समझ समान उसी.रूपमें ढक जायगी और दिखावट जाओ। और ढौंगसे उल्टा दुख बढ़ता है यह आपको अब दूसरे शुमोपयोगके लिहानसे दूसरे जीवों मालूम होगा। पर परोपकार करना । यदि आप पहिले मार्गसे श्री आराधना कथाकोष में आपने पढ़ा होगा अपना हित कर लेंगी तो इस मर्गमें आप कि पाचीन काल में प्रसिद्ध अजितावर्त नगरके सम वसे ही जल्दी अगाडी बड़ जायगी। भाप , राजा पृष्पचूल थे और उनकी रानी पुष्पदत्ता। अपनी गोदसे ही परोपकार का कार्य प्रारंभ कर राजसुख भोगते राना पुष्पचूछने एक दिन भगर- देंगी। अपनी सन्तानको इस योग्य बनाकर गुरु मुनिके निकट धर्म का स्वरूप पुना जिससे संसारका कल्याण व रोगी कि जिससे वह उनको संसार के विष सुखोंसे वैराग्य होगया आदर्श जीवन व्यतीत करे । फिर आप अपने और उन्होंने दक्षा ग्रहण कर ली। उनकी घर हीसे इसका प्रचार करोगी। दिखावटी बातों में देखादेखी उनकी रानी पुष्पदत्त ने मी ब्रह्मल नहीं फंसेगी। धर्मके अनुपारं चलेगी। निसके नामकी पार्थिकाके पास आर्यिकाकी दीक्षा ले फल में आपके अड़ोसी पड़ोसी आपका अनुकरण ली। धर्म का स्वरूप समझे विदून देख देखी करेंगे । हौंग लापता होनायगा। अपलियत आर्यिका तो वह होगई लेकिन उसके दिलसे भामायगी। बुरी प्रथाएं अपने आप माग आने बड़ा का ध्यान नहीं गया और वह मांगीं । सुख शान्ति के मार्ग पर धीरे १ सब किसी अयिकाकी विग्य नहीं करती थी। चलने लगेंगे । और आपके इस जीवनसे वे सुतरां अज्ञानके कारण इस योग की हालतमें वह उदार पुरुष व महिलाऐं खालकर विधुर और सुगंबहार चीनोंसे शृंगार किया करती थी और विधवाएं अगाड़ी आऐंगे और अपना आत्मकइस प्रकार धर्म विरुद्ध कार्य करती थी। आर्थि. त्याण करते हुए देशविदेश फिरकर धर्मका का ब्रह्मन ने उसे सम्झ था कि धर्म विरुद्ध स्वरूप सपझ सुव शांति को फैला परोपकारको बते पापकी कारण हैं। इनसे विषयों की इच्छा अपनाऐंगे । विधवा बहिने जो अभी दिखावे में बढ़ती है। इसलिए यह काम नहीं करना फी घरों में पड़ी सड़ रही है, अपने अमुल्य Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NOPN - दिगंबर जैन । (२४) जीवनको नष्ट कर रहीं हैं वे उत्साहसे खुशी २. सम्पाटकके लक्षण। श्राविकाश्रयों में जांयगी और आकर माने २ पाठको ! जकल सामा' क तथा राननैतिक ग्रामों में पाठशालाएं खोल धर्मका प्रचार करेंगी, ' क्षेत्रमें नित्य नूतन समाचा त्रि निकल रहे हैं भाने आत्माका उद्धार करेंगी, वर्तमानकी तरह .यह समाज तथा देशकी उन्नतिके शुभ चिन्ह दिखावे में पर्थ जीवन नष्ट नहीं करेंगी । सिंगर, ए हैं। जबसे गांपीकी प्रबल मांधी चली है तमीसे विगार करने को हेय समझेंगी । और शुद्ध खद्दर लोगों में समाचारपत्रोंके देखनेकी रुचि पदा हा पहनकर ग्राम २ में प्रचार करेंगी। गई है यह अच्छी बात है क्योंकि हमाचारपत्र महिलाओ ! नतमानमें से पुरुषसमान मुश्किल ही जनतामें जागृति करनेके एक मात्र साधन ही आपका हाथ बटानेको अगाडी आएगा क्योंकि हैं। परन्तु समाचारपत्रों को योग्य रीत्या चलावह पिहीके कारण (क्षमाकीजिए) आने कत्रेयको नेके लिये अनुभवी-गम्मीर एवं विचारशील मुझे हुए हैं-अपने जैनत्यको विसारे हुए हैं। सम्पादकों का होना आवश्यक है । इसलिए विदुषी महिलाओ ! वारशासनका दिव्य दैनिक व साप्ताहिक पत्रों में जो सम्पादकीय प्रकाश संसारमें प्रगट करनेके लिये जिससे कि मुख्य लेख तथा मासिकपत्रों में नो सम्पादकीय संसारके दुख बन्धन कट मांय आपको खु। एक नोट लिखा है उस प्रतिष्ठित सज्जन व्यक्तिको ऐसा संघ (डे यूटेशन) तैयार करना होगा निप्तके समादक कहते हैं । साधारण जनता ख्याल अंग उदासीन पर आत्मज्ञानासीन विविध लोकिक है कि सम्पादक महोदय प्रातःकाल से सायंकाल माषाओं और विचारों से मिज्ञ महिलाऐं हों नो पर्यत लेखादि लिख में ही निमग्न रहते हैं, भआपके ग्रामों २ में भ्रमण कर इस दिखावटके उडेको बत करने की फर पर नहीं मिती अज्ञानान्धकारको मेट कर मोक्षमार्गका रू। दशा- तथा दैनिक समाचारपत्रोंके सम्पादक को तो सकें। और क्रमशः संसारको पद्न वा इ की हानि । ख.नेशीने तकका भी समय नहीं मिलता, परन्तु जतला सके । मानके श्राविकाश्रम यदि इस यथार्थ में बात ऐसी नहीं है। सुयोग्य संपादक गण कामके लिए अपने २ आश्रम से दो दो निःस्वार्थ सम्मादनका कार्य करते हुये देश तथा समान की सेविकाएं तैयार करसके और समानमें प्रकार सेवा कर सक्ते हैं और करते हैं तथा अन्य कराते रहसके तो ही वीरशासनका उद्धार होस- कायों के लिये मी उन्हों के पास पर्याप्त समय केगा। ध्यान रहे कि:- . रहता है। युरोप देशमें लंडन शहरसे ही सैकड़ों "विद्या हमारी भी तरतक काममें कुछ आयेगी। प्रसिद्ध दैनिकपत्र निकलते हैं परन्तु उन पत्र जबतक नारियों को सुशिक्षा दी न जायगी ॥” सम्पादकों को एक कालम तो क्या एक पंक्ति एम् मातु। मी अपने समाचारपत्रों के लिये नहीं लिखनी महिलाहितैषी-कामताप्रसाद जैन। पड़ती परन्तु तब भी पत्र नियमित रूपसे चलते हैं। अनेक समाचारपत्रों के सम्मादक अपने कार्या Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____दिगंबर जैन। लयमें बैठकर सम्पादकीय टिप्पणियां अग्रलेव टाइम्पके भूतपूर्व संपादक डिनका नाम इंगनहीं लिखते और न पत्रों के लिये हेडिंग ही लेण्डके पत्र संसदकों में प्रसिद्ध है। डिलेनके बनाते हैं परन्तु उनका इतना आदर होता है कि समयमें टाइम्पकी अपूर्ण उन्नति थी । स्वदेश तो राज्यके प्रधान सचिव भी उनके साथ बैठकर का विदेशमें उसका आदर बहुत बढ़ गया था अपनेको भाग्यशाली समझते हैं, प्रत्युत कई पातु डिझेचने आने पत्र टाइम्पके लिये वर्षोंतक दशाओं में मचिवगण मादकोंसे भय खाते हैं। २ पंक्ति भी नहीं लेखी । डिलेन का मुख्य कार्य ऐसी कई मासिकपत्र पत्रिकाये हैं जिनमें सम्पा. पत्रका नाति स्थर रखना, अच्छे । सुलेखकों का दककी लेखनीसे निकला हुमा एक शब्द भी सम्पादकीय विभागमें संग्रह करना और संवाददानहीं होता परन्तु सुरूपसे वर्षोंतक चलती ताओं का ठीक स्थिति में रखना था। देशके प्रधान रहती हैं। सचिवतक उसे भय खाते थे। डिलेन उस सम्पादन वही कहलाता है मो पत्र की नीतिका बीर सेनापत्तिकी भांति था जो Fयं एक मी संचालक तथा उसके लिये उत्तरदाता हो । पत्र में गोली नहीं चलाता परन्तु अपनी आज्ञासे हर सम्पादकीय अग्रलेख समाचारों का क्रम शीषेक प्रकारकी सेनाको यथास्थान भेनकर लड़ाता था। तथा प्रेरित पत्रों का चुनाव इनसे मिन्न २ संपा- डिलेन वर्तमान संपादकों का अादर्श रूप है। कका कोई भी आपक कार्य नहीं है। जैसे धान सम्पादकोंके आधीन कार्य करनेपाझे कई शष्ट तिन कचहरी करता है और न पहरे पाक रहते हैं। एक सम्राहक सननैतिक हवादिका प्रबन्ध परन्तु यह देश की संरक्षा व विषयों को सम्मालता है तो दूसरा व्यापारिक उन्नतिके लिये उत्तरदाता है उसी प्रकार संग- वियोंको, तीसरा साहित्यकी समालोचनाको व : "दक भी आने पत्रका उत्तरदाता है। यदि बौथा समाचार सम्बाद --माच र संग्रहको संपादक पत्र के लिये कोई लेख दिखे तो अत्युः अवमा मुख्य कार्य सझा है। इस प्रकार संगातम है पर दि वह अपने पत्रके लिये लेखन न दलका कार्य उस उस विषयके विद्वानों में बँटा दिखे तो कोई हानि नहीं है और न रहता है। यदि मुख्य सम्पादकको सम्पादनका वह संपादकत्व दूर है अर्थत उसका संपाद लेख संबन्धी कार्य भी करना पड़ तो पूर्वोक का पर नहीं होता । यिक समाचारपत्रों बाये हुगे गुगों के साथ ही निम्नलिखित गुर्गों का में के मुख्य संपादक निम्न लखित गुणोंकी विशेष होना मी आवक है। भावपकता है (१) अपने विषयको परिज्ञान । (१) मनुष्यों को निगम रखकर कार्य में लगा- (२) विशुद्ध और मनोरन्नक लेखशैली । नेकी योग्यता (२) थामें अधिक लिखने की योग्यता । (२) संसारका विस्तृत परिज्ञ न । (४) सर्वसाधारणको रुचका परिज्ञान । (३) राजनैतिक स्थिति के पहचानने की शक्ति। देवन्द्रकुमार गाधा विशारद . (१) समाजको परखने के लिये अन्तर्दृष्टी। इन्दौर निवासी। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , , , , . . .હો ટી હિiા નૈના (૨) OMGOO. દંભ ત્યાગ. હું ધાર્મિક છું, વિદ્વાન છું, બીજાઓ શું धार्मिक मनुष्यना गुणो. સમજે, મારા જેવી સમજ કાનામાં છે? કોઈને કે ફલાહકાકાહાહાહા મારા જેવું કામ-ધર્મ આવતું નથી વિગેરે અભિમાન યુકત મીક વચને ધાર્મિક મનુષ્ય વહાલા વાંચક બંધુઓ ! બોલી શકે નહિ, આવા દંભીકપણામાં ધર્મધ્યાન કર્યું તે પ્રભુ પ્રત્યે દંભીપણું બતાવી તેને છેતમથાળાના મોટા અક્ષરાવાળું વાક્ય એટલે રવા બરાબર છે, બગલાના શિકારી ધ્યાન બરાબર કે ધાર્મિક મનુષ્યમાં કેવા ગુરુ હોવા જોઈએ, છે. આત્મજ્ઞાનમાં પ્રવેશ કરનાર મુમુક્ષીએ આવા એ એક મહત્વને વિષય છે. આપણે આજે તેજ દંભીપણાને ત્યાગ કરવો જોઈએ. આ ધાર્મિક વિષયમાં વિચાર કરવાનો છે. જે પુરૂષ બ્રહ્મને મનુષ્યને બીજો ગુણ છે. જાણવા ઈચ્છે છે એટલે કે આત્માને ઓળખવા - અહિંસા. ચાહે છે. તેનામાં નીચે લખેલા ગુણે ખાસ કરીને મન વાણી અને કાયાએ કરી બીજા પ્રાણીને હોવા જોઈએ. વળી જે પુરૂષ સમ્યફ પૂર્વક જન પીડા આપવી–મરિવું તે હિંસા છે. અને પીડા, ધર્મને ધારણ કરે છે, તેણે ૫ણુ તે ગુણે ક્રમે ન આપવી તે અહિંસા છે. બીજાને ઉપદેશ કમે ધારણ કરી અને આત્માને પ્રત્યક્ષ કરી મુક્તિ આપવામાં પણ અહિંસા વ્રતને ભંગ થવા દેવા નારીના કંથ બનવા પ્રયાસ કરવો જોઈએ. જે ન જોઈએ. બીજાને ઉપદેશ આપતાં તેને પીડા? પુરુષનામાં એ ગુણો હોતા નથી, તે પ્રભુની સામાન્ય ન થાય તે જાળવી પ્રેમપૂર્વક આપવો જોઈએ. ઉપાસનાને અધિકારી પણ થઈ શકતો નથી, તે કોઇની લાગણી દુખાવી, પીડા કરી, ઉપદેશ અપપછી પ્રભુ ભક્ત તો કયાંથી જ કહેવાય ? વાથી કંઇ તે સુધરી જતો નથી. જેને પ્રભુ પ્રત્યે માન યાગ. પ્રેમ ઉત્પન્ન થયે તે મન વચન અને કાયાએ કરી ધાર્મિક મનુષ્ય પોતાને તરણાથી પણ હલકે કોઈપણ પ્રાણીને પીડા આપી શકે જ નહિ. પિતાના માને છે. તે કેડના પણ સન્માનની ઇચ્છા રાખતો જીવને બચાવવા ખાતર પણ બીજા ભુવને નહિ ન, કોઈ માર, ગાળે દે, નુકશાન કરે, તે ૫૨ મારે જોઈએ. કોઇપણ જીવને દુઃખ થાય તેવું કધ કર નથી. વૃક્ષ માફક સહિષ્ણુ બની છે, તેવું વચન ખરો આત્મજ્ઞાન થવા દેજ અપકાર કરનાર પર પણ ઉપકાર કરે છે. એટલે નહિ. બીજાને માટે પોતે પ્રાણ આપે પણ પિતાને કે વૃક્ષ જેમ મારનાર પ્રહાર કરનારને ફળ કુલ' માટે બીજાને પ્રાણ ન અાપવા દે તેજ પ્રભુને છાયા આપી સંતષિત કરે છે, તેમજ ધાર્મિક વહાલો છે. પ્રભુ કૃપા મેળવવા ઈચ્છનારે મત મનુષ્ય પણ મારનાર પર ઉપકાર કરી તેને સંતો વચન અને કાયાએ કરી દરેક જાતની હિંસા, અને ષિત કરવો જ એ એટલે કે પ્રેમ પૂરંક બે લાવી દુઃખ થાય તેવું ભાષણ વર્તન શ્રિય પૂર્વક સમાન કરી સમાચાર પૂછી અન્નપાન લી ખબર છોડી દેવું જોઇએ, અહિંસાવ્રત એ સર્વ ધર્મનું પૂછવી અને ધર્મને ઉપદે કરે. વળો હું ગુસ- પહેલામાં પહેલું વ્રત છે ને તે આ સ્થળે ધમોમાં વાન છું, ધનવાન છું, મને બીજા કેમ માન ન માટે ત્રીજું પગથીઉં છે. આપે, તે લોકો આવા છે, ને તેવા છે, એમ શાન્તિ, કહી તેમની નિંદા કરી ને માનની સ્મૃડા બીજાઓને પી ન આપવી તે તો અહિંસા રાખવી નહિ. વળી સાદા અને સરળ વ્યવહારી વત છે, પણ પિતાના ઉપર આવેલી પીડ, દુઃખ, બની બહેજ નમ્રતા ધારણ કરવી, એજ ધાર્મિક માર, ત્રાસ, ભય, સંકટ એ બધું ધીરજ પૂર્વક મન મને પહેલો ગુણ છે. સહન કરવું, પણ તે જેના તરફથી થતું હોય Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ૨ તેની સામે ન થવું' તેજ ખરી શાન્તિ છે. કોધને રાકવે! અને અત્યાચાર ન થવા દેવા તેજ શાન્તિ. ભયની સામે ન થવું પદ્મ આવેલા ભયને રાકવા એટલે સહન કરવા તેજ જ્ઞાન્તિ. કોઇના તરફથી અણુધારી આત આવી પડે -તે વખતે ઉશ્કેરાઇ ન જતાં શાંત રહી આ તને સહન કરવી તેજ શાન્તિ. આ ધર્માત્માના ચેાથેા ગુણુ થયા. આજે વ. આવ એટલે સરલતા-નિમળતા. કાચ જેવુ નિર્મૂલ હૃદય કરવું તેજ આવ. મનમાં કપટ રાખી મેઢેથી સારૂ લગાડવા પ્રયત્ન કરવા તે એક પ્રકારની કુટિલતા છે, તેના ત્યાગ કરવે તેનુ નામજ આવ. જેને બધી વસ્તુ બ્રહ્મ સ્વરૂપજ ભસી છે તેને કુટિલતા કરવાની વસ્તુ કે પાત્ર રહેતુંજ નથી. સત્પુરૂષને કપટભાવ સંભવેજ નહિ. સરળ સ્વભાવ એ ધર્માત્માની પાંચમી નિશાની છે, આચાપાસના. ચારિત્રવાન ગુરૂની સેવા પૂજા ભક્રિતુ રી તેમને સંતુષ્ટ રાખવા તેનુ નામજ આચાર્યંપાસના છે. પ્રભુના પંથમાં આગળ ધપવાની ઇચ્છા કર નારે જ્ઞાની અને ચારિત્રવાન પુરૂષને ગુરૂ તરિકે સ્વીકાર કરી તેના દ્વારાજ આત્મજ્ઞાનના ઉડા પાડી સમજવા. શાય. માટી અને જળના સ ંસર્ગથી જે શુદ્ધિ થાય છે, તે બાહ્ય શુદ્ધિ સિવાય આત્મજ્ઞાની આત્માને આળખી શકતા નથી. સુખી તુર મિત્રભાવ, દુઃખી તરફ્ યાભાવ, પુણ્યવાન તક્ દુ ભાવ અને પાપી તરફ તેને -- સુધારવાની ઉપેક્ષા સખવાથીજ અંતરની શુદ્ધિ કહેવાય છે. અંતઃકરણમાંથી ચારે પ્રકારના ક યેાના ત્યાગ કરવાથી, ઇન્દ્રિયાને નિયમિત ખનાવવાથી ૨ પવિત્ર બને છે. અંતર પત્રિત્ર થયા સિવાય, શરીર શુદ્ધિ સિવાય પ્રભુભજનને લાયક થજી શકાતું નથી અને પ્રભુભજનમાં દ્રઢ થયા frie DO સિવાય આત્માને આળખી શકાતા નથી. શરીર અને રન અન્ત પત્રિત્ર રાખી વિચારા શુદ્ધ રાખવા એ ધર્માત્માના સાતમેા ગુણ છે. શાય. ) સેંકડાવા આવે છતાં પ્રભુ પ્રાપ્તિના સાધના સામ ન કરતાં તેને હિંમત · પૂર્વક વળગ્યા રહેવું તે શૈાય છે. પાંચ ઈંદ્રિયાને અનુકૂળ ચારિત્ર ભ્રષ્ટ ન થવું તે શા સ’જોગા હૈાવા છતાં છે. પરિષડા સહન કરવા, બાહ્ય અને આભ્યંતર તપ ફરતાં, ઉપવાસાદિ વ્રત કરી શરીર કૃષ કરવું તે પશુ થાય છે. હિંમતપૂર્વક કાર્યં કર્યાં જવુ તે થાય છે. પ્રભુ પ્રાપ્તિના પંથમાં શા અ મહત્વને ગુણુ હેઇ તે આઠમા ગુણુ છે. આત્મનિગ્રહ, મન, વાણી અને શરીરને વશ કરવ, તેજ આત્મનિગ્રહ. જે જેતે દેખાડે છે, તે તેના આત્મા. તેનાં અગ, મન, વચન અને કાયાને શાસ્ત્ર ની આજ્ઞા પ્રમાણે સ્થિર કરી તેઓને સન્માર્ગે લગા ડવાં તેનુ' નામજ આત્મનિગ્રહ. વિષય વૈરાગ્ય. આ સસારમાંના સવે સુખ વિષય લક્ષમી વિગેરે ક્ષણુભ’ગુર છે એમ માની તેના દોષને અવલેાકી તેના તરફ અરૂચિ ઉત્પન્ન કરવી તેજ વિષય વૈરાગ્ય. દરેક પ્રકારના વિષય ક્ષચુ · સ્થાયી અને દુઃખથી ભરેલા છે, માટે તેના સમજુ માણસે પ્રતિજ્ઞા પૂર્વક ત્યાગ કરવા જોઋએ. આત્મજ્ઞાતી બ્રહ્મચર્ય સિવાય ધારેલુ સિદ્ધ કરી શકે નહિ, બ્રહ્મચર્યું એજ વિષય વૈરાગ્ય. આ ધર્માંમા દશમા ગુણુ. અનહંકાર. કે ધન દેહ વિદ્યા કુળ જાતિ એ પૈકી કોને સને પણ અભિમાન કરવા નહિં, તેમજ હું સથી શ્રેષ્ઠ છું, એમ પણ દવે કરવા નહિ, શેરને માથે સવાશેર હાય છે” એમ માની સર્વને સમાન દ્રષ્ટિની અવલેાકવા એજ ધર્માં મનુ કબ્ધ છે. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ faણા શેષ દર્શન, . સમભાવના (શમચિંતત્વ) જન્મ મરણ અને વૃદ્ધપણું દરેકને માથે ભમ્યા ધારેલું થાય તો પણ હર્ષ શેક કરવો નહિ, કરે છે. આ જીવ ચોરાસી લાખ યોનિમાં ભમને વહાલાં સ્વજનને જન્મ, યા મરણ થાય પણ હર્ષ ભમતે આ મનુષ્ય જન્મમાં આવ્યા છે, તે તેનું શોક કરે નહિ. સુખ આવે ત્યા દુખ આવે પણ અહોભાગ્ય છે. - હર્ષ શાક કરે નહિ. આ જીવે ભાતભાતના જોમાં ભાતભાતનાં આ આત્માથી તે દૂરજ છે ને તે પ્રમાણે ફેરફાર પાપ કર્યા હશે ને કર્યા જાય છે. આ થવાને તે વસ્તુને સ્વભાવ છે, એમ માની આત્મા કશું પણું લઇને આવ્યો નથી, ને તે લઈ જવાને સમજુ મનુષ્ય હર્ષ કાદિને ત્યાગ કરી શમ પણ કશું નથી, જેથી સંસારભરમાં સર્વજ્ઞ ચિંતત્વ ગુણ ધારણ કરવો જોઈએ. પ્રણિત ધર્મજ ફકત આ જીવને પાર ઉતારનારી અન્યોગ ભકિત નૈકા છે, માટે ધર્માત્મા મનુષ્ય અનહંકારને પ્રભુના શરણ સિવાય મારી ગતિ નથી, એમ સ્વિકાર કરી તે ધર્મને જ શરણે જવું જોઈએ. નિશ્ચય પૂર્વક ભાવના ભાવી અને પ્રભુ ભકિતમાં અનાસકિત. ' ', " દ્રઢ થવું. પ્રભુ ૫ર વિશ્વાસ બેસાડી એકજ પ્રભુ 'એકજ મંત્રમાં ચિત્તને પરોવવું એટલે કે એકજ આ દેહ સ્ત્રી, પુત્ર, ધન, દેલત એ કઈ આ પ્રભુપર નિશ્ચય પૂર્વક વારિકવું (સર્વસ્વ અર્પણ આત્માને વળગેલાં નથી. તે ફકત આ અવતાર કરવું) પ્રભુ પ્રત્યે પૂર્ણ પ્રેમ પ્રગટયા વિના પ્રભુના પુરતા મદદગાર સાક્ષીઓ છે, તે કોઈને મદદ કરતાં માગને પહોંચી શકાતું નથી એમ સમજી ધર્માત્મા નથી પણ વ્યવહારમાં તેમજ ગણાય છે, જેથી મનુષ્ય તેના તરફ અટૂટ શ્રદ્ધા-અટૂટ ભકિત બાહ્ય દ્રષ્ટિએ તે વળગેલાં છે. અંતરાત્માને તે કંઈ દાખવવી. વળગતું જ નથી. વિવિકત સેવા. આ સ્ત્રી પહેલાં પુરૂષ હશે. આ પુત્ર પહેલાં ભય રહિત બનવું, જંગલ નદી તીર કે મંદિતે બાપ હશે, વળી તે પહેલાં બહેન હશે, તે પહેલાં રના એકાંત સ્થળે વસવા અનુરાગી થવું. કરી હશે. એ રીતે આ જન્મ મરણની પ્રથા જયાં મોટામાં મોટો ભય હોય ત્યાં નિર્ભચાલી આવે છે. તેમાં કઈ કોઈને વળગેલું છેજ થતા પૂર્વક ગમન કરવું અને ધ્યાન લગાવી બેસવું નહિં. આ ધન આજે પુષ્કળ છે, ને કાલે વિલય ને આત્મચિંતવન કરી પરમપદને મેળવવા પ્રયાસ થઈ જાય, વળી પાછું આવે ને જાય, એમ એ કરવો તે જ વિવિકત સેવા છે. "જીજળીના ચમકારાની માફક બદલાયા કરે છે. આ શરીર૫રથા મમત્વ છોડી ભયવાળી જગ્યાએ દે આજે સુખરૂપ છે, તો કાલે દુઃખરૂપ થાય, કે એકાંત સ્થળે મનને સ્થિર કરી પ્રભુ ભકિતમાં - વળી ખરૂપ થાય એવી રીતે ઘટિકાયંત્રના કાંટાની દ્રઢ બને તેના ગુણનું ચિતવન કરવું તેજ વિવિકd માફક તે પણ ફર્યા કરે છે. સર્વે જીવ પોતપોતાના સેવા ધર્માત્મા મનુષ્ય યાદ રાખવું કે શરીર પરથી કર્માનમાર ઉંચ નીચ ગતિમાં જન્મ લઇ થોડા મોલ ફ્રાયા સિવાય અભિાને આખી વત્તા સુખને અનુભવે છે, તેને બહારની કોઈ પણ શકાતો નથી.. પ્રવૃત્તિ તરફ લેવા દેવા નથી હોતું તેમ ન તો તે ને દુષ્ટ ન ત્યાગ. કોઈને દબાયેલો છે. આ જીવ સદા સર્વદા કર્મો- દુષ્ટ એટલે વિષયી, પ્રભુભકિત રહિત, ચારિ, ' થીજ ઢંકાયેલો હોય છે, માટે તે કર્મોના પટલને ત્રહીન, નાસ્તિક, પ્રભુને ન માનનારો, એવાના દૂર કરવા જ આ બહારની વૃત્તપત્ર, સ્ત્રી, સંસર્ગથી દૂર રહેવું, પણ તેમને સન્માર્ગે વાળવા ધનથી ધર્માત્મા મનુષ્ય મેડિ ઘટાડો જોઈએ. ઉપદેશ અવશ્ય કરવ, ધર્માત્મા મનુષ્ય પિતાને Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (૨૨). વિનર જૈિન ! હરેક બળથી તેઓને ઉદ્ધારવા પ્રયાસ કરો. આ લખાણ શ્રીભગવદ્દગીતા તથા જેન દશ ધાર્મિક કાર્યમાં ડખલ ન કરે માટે જ તેને લક્ષણ ધર્મ અને સલહ કીરણ ધર્મના વર્ણન ત્યાગ કરવો. ઉપરથી ઉપજાવી કાઢયું છે અને તે સર્વે ધર્મઆત્મજ્ઞાન નિષ્ણા. વાળા મુમુક્ષજનેને લાભકારી નિવડશે, એમ લેખ- આત્મજ્ઞાનથી આત્મા ઓળખી શકાય છે. કને સંપૂર્ણ આશા છે. આ સ્થળે હું ગીતા પરિચયની પ્રકાશક એ નિશ્ચય પૂર્વક માની આત્મજ્ઞાનમાં પ્રવેશ કરો કંપનીને આભાર માનવાની રજા લઈશ કે જેના ને પ્રવેશ કર્યા પછી કરોડો પરિષહ આવે તેને વાંચન પછીજ મારા જ્ઞાનપડળ ખુલી હું છોડવું નહિ, તો અવશ્ય કાર્ય સિદ્ધ થાય છે, માટે આ મનાનના રસ્તા તક વેવ્યો છે અને મને સમજુ મનુષ્ય હંમેશા આત્માના શેધનમાં ઉઘેગી પ્રાણપ્રિય એવા જૈન દર્શનમાંના દશલક્ષશુદિ બનવું. ધર્મના વર્ણનને વધારે ખુબીથી વાંચવા પણ ત્યાર તત્વજ્ઞાન. પછીજ લાગે છું. હું સંપૂર્ણ આશા રાખું છું ધર્મના સિદ્ધાન્તના અર્થનો વિચાર કરો કે- ઉપરથી સમજીને જ્ઞાનની કાંઇક ઝાં ની તેનું નામજ તત્વજ્ઞાન, દરેક ફરમાન, દરેક સૂત્રને કરી તત્રમાણે વતન બનાવી અધ્યાત્મના ઉંડા અથ પૂર્વક વિચારવાં તેનું નામજ તત્વજ્ઞાન. એ જ્ઞાનમાં પ્રવેશ કરશે, અને આત્માને ઓળખ તત્વજ્ઞાન થયા પછી જ્ઞાનમાં પ્રવેશ કર્યા પછી જ પરમપદને મેળવવા ભાગ્યશાળી બનશે, ૐ શાંતિ આત્મા ઓળખી શકાય છે અને આત્માને લખ્યો છે. શ્રી પરમાત્મને નમઃ તેજ પરમપદ, તેજ મુકિત, તે જ સુખનું સામ્રાજ્ય. લખનાર હું છું આત્મજ્ઞાનીઓને સેવક એ હનલાલ મથુરાદાસ શાહુ-કાણીસા. ઉપસંહાર. - જે મનુષ્ય આ સિદ્ધાંતમાંથી સારને ગ્રહણ કરી અગ્ય ક્રિયાઓનો ત્યાગ કરી ઉત્તમ ચારિ तूने मुझे भुलाकर बरबाद कर दिया है । . ત્રવાન બનશે તેજ જ્ઞાન અને ભકિતના રહસ્યને तेरेलिए तरसता हरदम मेरा जिया है ॥ સમજી ઉત્તમ માર્ગને સંપાદન કરશે. - જેઓ પોતાના સ્વરૂપને ઓળખવા ઇચ્છતા तु तत्व है निराला तेरा स्वरूप अला। હેય, સર્વ સુખ દુઃખની વૃત્તિ શાંત કરવા ઇચ્છતા - તેરે પરિણ ન શોર્ટ્સ નિરવ ઢિવા હૈ . હેય, પરમાનંદની સ્થિતિ પ્રાપ્ત કરવા ઇચ્છતા હોય तू सूर्यमें समाया तू चाँदमें समाया। . તેમણે ઉપરના ગુણે અવશ્ય ધારણ કરવા જોઈએ. दरिया पहाड़में भी तुझको निरख लिया है। જેનામાં આ ગુણ હોય છે, તેજ ધાર્મિક મનુષ્ય. जिसने तुझे भुलाश उसने न सौख्य पाया । ગણાય છે. ' ...तेरे बिना ये जोवन योंही गमा दिया है। આ સંસારમાં રહી ધર્મસાધન પૂર્વક આભાને ઓળખી પરમાત્માના સવરૂપને પિછાનવા जो तेरे आसरेपर रहता जहांन अंदर । સુચના માત્ર છે, પરંતુ ઉત્તમ જ્ઞાનને પ્રાપ્ત કરી ને રમી નાતો નાના વન ક્રિયા છે મોક્ષશીલાપર બિરાજવાની ઇરછાવાળા મુમુક્ષ इससे पुकार मेरी सुन प्रेम कर न देरी । જનોને તો આ દુઃખરૂપી અને ક્ષણમાં વિલય मेरे हृदय समाना गोरेन कह दिया है । થનારા સંસારને ત્યાગ કરી યોગ લીધા સિવાય સિદ્ધિ નથી. સંસારમાં તેજ નર બહાદૂર કે જેણે વિષયાદિ કષાને જીત્યા છે. પં. નોરા ઉત્તર પ્રેમ-છેવ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOANUाल नीचे है ग्रंथ नं दिगंबर जैन। करमसद (खेडा)में प्राचीन २ यशोधरचरित्र सोमकीर्ति प० ४७ ४ शांतिनाथपुराण सं० श्रीभूषण प० ११७ दर्शनीय ग्रंथ। नोट-श्रीमूषणके ग्रन्थ बिलकुल अपगट हैं। हमने ता० ३ व ४ जुलाई को करमसदके । इनको प्रगट करना चाहिये। ग्रंथोंका दर्शन किया व उनकी सम्हाल की । ----- __५ लोकस्थिति सं० ५० १० यहां एक भट्टारक रत्नकीर्ति हो गए हैं उनका १ पुराणिक श्लोक सं० ५० १५ . ___ ७ मल्लिनाथ चरित्र सकलकीर्ति प. ९० एक संदूक था उसकी सूची नहीं बनी हुई थी। उसकी सूची बनाई गई निसका कुछ वर्णन वेष्टन न० ३ में व न० ८ से २१ ता संस्कृत पूजाके ग्रन्थ हैं जिनमें न. १५ में वेष्टन नं. १ विमान शुद्धि पूना प० ११ व न० १८ में १-श्री जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति प्राकृत पद्मनंदि त्रेपनक्रिया पूजा व ८४ जाति जैमाल है व कृत संधि १३ लि० सं० १४६० योगिनीपुरे न० १८ में बाराव्रत उद्यापन पद्मनंरिकृत प. सुलतान मुहम्मद शाह राज्ये पत्रे २५४ वेष्टन न. ४-५-६-८ में गुजराती ग्रन्थ मंगलाचरण देवासुरिंद महिदे दसडरूवूण (चार) कम हैं जिनमें जानने योग्य हैंपरिहीणे । केवलणाणा लोर सद्धम्मुव एसदे न० २२ चंद्रपम पार्श्वनाथ शांतिनाथरास अरुहे। अंतप्रशस्ति- ११ पंचपरमेष्टीरास व हरिवंशराप्त ५० विउधबइमउड़ मदिण गणकर सलिल सुधोय चारुपय कमलं । वर पउमणदि णमियं वीर - २१ महावीरराप्त व कर्मविपाकरास जिनदास जिणिदणमामि । २६ धर्मपरीक्षाराप्त सुमतिकीर्ति प० ११४ यह हमें तो दिगम्बरी मालूम होता है। - २७ सगर आख्यान प० १४ . इसकी प्राकृत सुगम है । इसका प्रकाश अवश्य २९ भादिनाथरास निनदास प० २१ होना योग्य है । यहां वाले कहते हैं कि सेठ ३१ सीताहरण पाख्यान जयसागरकत . माणकचंदनीने इसकी नकल करा ली थी। ____४० श्रावकाचार गुजराती प० ११२ । यदि बम्बई में नकल हो तो उसको सबसे प्रथम श्रीपाल कृत बड़ा गुटका (प्रगट योग्य) "माणिकचंद ग्रंथमाला" में प्रगट करना वेष्टन न० ७ में हिन्दी मराठी ग्रन्थ हैं उनमें चाहिये । यदि नकल न हो तो नकल कराना न० ३६ आत्मविलास हिन्दीका बहुत उपयोगी चाहिये। प्रगट योग्य है । प० १६३ सम्पूर्ण है। वेष्टन नं. १ न० ३७में धर्मामृत तत्वसार मराठी ग्रंथ न० २ पांडवपुराण श्री भूषण त ५० भाषा गुणकीर्तिकृत प० ५२ (प्रगट योग्य) २१० लि. स. १७१२ बहादुरपुरे बेष्टन न० ९ भनेक यंत्र व चित्र पोथी है Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) . दिगंबर जैन । नं० ४१ रमणीक चित्र २९ विचित्र रंगके पत्रे नं. १३ से नं० १९ तकमें पूजा२४ तोथंकरोंके शरीर वर्णके २४ चित्र, ५ पाठके गुटके हैं। अन्य माहारदान, संसार वृक्ष आदि दर्शनीय । यहांके पंचायती शास्त्र भंडारके लिखित शास्त्र नं. ४२ रविवारकथा गुजराती सचित्र बहुत भंडारको लिखा, उसमें जानने योग्य वे० नं. ही बढ़िया चित्रकला बताई गई है। इसमें ५१ १ में ग्रन्थ नं. १ आत्मानुशासनकी चित्र अपूर्व हैं । यह सं० १८१६ में अंजन संस्कृत वृत्ति प्रभाचंद्र कृत ५० ६५ ग्राममें सेठ वृषभनाथकी स्त्री चांदबाईने लि० सं० १८८२ है यह अवश्य प्रगट लिखवाए। .. योग्य है) व वे० नं० २ में न० ४ श्रावका४३ शृतस्कंध यंत्र रंगीन चार श्रीपालकृत गुजराती श्लोक १०, १५ ४४ ८४ लाख उत्तरगुण चित्र पत्रे १८८, वे० नं. ३ में ग्रं० ५ यशोधर ४५ पद्मावती यंत्र चरित्र गुजराती देवेन्द्रत पं० ९९,वे. नं. ४ ४१ योगवृद्धि यंत्र गोमटसार में ग्रन्थ नं० ६ प्रद्युम्नचरित्र देवेन्द्र प० ३१ है। ४७ ६४ मंत्र यंत्र जो ग्रंथ मंगाना हो उसके लिये यहांके सेठ . १८ एकासी यंत्र झवेरदास रणछोडदासको लिखना चाहिये । ४९ ज्वालामालिनी यंत्र नोट-यहां भ० रत्नकीर्तिका एक संदूक था ५० क्षेत्रपाल यंत्र. .. उसमें ३ संस्कृत ग्रंथ थे उसमें प्रतिबोधवेष्टन नं. १० चिंतामणि श्रावकाचार श्रीभूषणकृत पत्रे १८५ लि० सं० १६६९का अप्रगट है । यह ११ जिनसे न सहस्रनाम सुवर्णसे लिखा हुआ, भी प्रगट होने योग्य है। भागगमें औरंगशाहके राज्यमें अग्रवाल मीतल सीतलप्रसादजी ब्रह्मचारी। गोत्री सेठ पर्वतने ब्रह्मचारी हर्षसागरके उपदे. - - शत. १७ १६ में लिखवाया, प० २१ । । स्वर्गीय कविइसमें कई पीढ़ियोंकी वंशावली दी है (दर्श- हीराचंद अमोलिक फलटनकर कृतनीय है । ) हिंदी सुरस पद ५२ यशोधरचरित्र सोमकीर्ति सं. जो वर्षों न ही मिलता । वहीं फिर छपकर पत्र ६१ इसमें सोनेकी कलमसे बने बहुत ही तैयार होगयः ! इसमें इत्तमोत्तम १०० पदोंका बढ़िया १८ चित्र दर्शनीय है । इसको हूमड संग्रह है . उत्तर काग, अभबई की उत्तम छपाई ज्ञातीय प्रतापसिंह के पुत्रोंने लिखाया। पृ. ४८ व मूरु छ, आन । इन पदों की ख्याति . संवत अत्रेकैकपंचयुक्ते ऐसा दिया है तो मान्य है । ये भ६ मं॥इए । कविका सम्झमें नहीं आया। चित्र मा । . वे० नं. ११ में अजैन, १२ में फुटकर मैनेजर, दि० जैन पुस्तकालय-मरत । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । (३२) - आरोग्य शिक्षा। ११-वासी और गरिष्ट चीनोंके खानेसे वर्षा ऋतुमें बहुधा है ना भादि रोग हुआ परहेज करो। १२-यदि सम्भव हो तो भोजनकी वस्तु . करते हैं, इस लिये खान-पान और रहन-सह । अदल बदल कर खाना चाहिये ।। नमें बहुत सावधानी करनी चाहिये। सब ___१३-वर्षा ऋतुमें दही मठा भी न खाना प्रकारके रोगोंसे बचने के लिये नीचे लिखी चाहिये। बातोंपर ध्यान देना बहुत आवश्यक है- १४-संसारमें कम भोजन करनेवालोंकी १ नियत समयपर भोजन करना चाहिये। अपेक्षा अधिक भोजन करनेवाले बहुत मरते हैं। २-काममें लगनेके पहिले प्रातःकाल थोड़ाप्ता सबको उचित है कि अधिक न खांय इससे हलका भोजन करलेना चाहिये । जब कि हैज़ा स्वास्थ्यको हानि पहुंचती है। रोग फैला हो तो खाली पेट रहना हानिकारीहै। १४-भोजनके समय थोड़ा २ जल पीना ३-दोपहरके समय उत्तम गर्म भोजन करना चाहिये । भोजन करनेके माध घंटे पीछे पानी चाहिये । इसी प्रकार सायंकालको १ बजेके पीना चाहिये। • लगभग करना चाहिये। १६-सबेरे बिना कुछ खाये खाली पेटपर ४-भोजन करनेके पीछे कुछ देर विश्राम पानी न पीना चाहिये। करना चाहिये। १७-बिना भूखके बारबार भोजन न करना ५-भोजनको अच्छी तरह चबार कर निग- चाहिये। लना चाहिये । भोजन करने में जल्दी न करनी १८-भोजनमें शरीरको पुष्ट करनेवाली वस्तु चाहिये। ... हों, इस बात का विचार रक्खो । केवल स्वादके ६-भोजनके बर्तन तांबे या पीतलके हों। लिये ही कोई चीज न खाओ। ७-इस बातका ध्यान रक्खो कि खाने पीने की प्यारे पाठको ! यह सब बात स्मरण रक्खो किसी चीजपर मक्खियां न बैठने पावें। और इन्हीके अनुसार चलो तब तुम सदैव ८-कच्चे या गले सडे फल या तरकारी मत निरोग रहोगे। खाओ, और सब प्रकारके निकम्मे भो ननका नये २ ग्रंथ मगाइये। परित्याग करना उचित है। प्राचीन जैन इतिहास प्रथम भाग) ९-बिना उबाला, बिना छ!ना हुमा दूध जैन बालबोधक चौथा भाग-३समें कदापि न पिओ । जल भी छानकर पीना चाहिये। ६७ विषय हैं। पृ० ३७२ होनेपर मी मु. सिर्फ १०-जहां तक सम्भव हो सादा भोजन करो। १८) है। पाठशाशा व स्वाध्यायोपयोगी है। थोड़े मसालेसे लाभ होता है, परंतु अधिक आत्मसिद्धि-अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती ॥) मसालेसे आमाशयमें हानि पहुंचती है। लाल जिनेंद्रभजनभंडार ( ७१ भजन ) !-) मिर्च अधिक खानेसे परहेज करो। पता-मैनेजर, दिगम्बर जैन पु०-सूरत। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदासीनाश्रम- इन्दौर से इस चातुर्मास में ८ ब्रह्मचारी कलकत्ता, सांगोद, सारोला, खातेगांव आदि स्थानों पर उपदेशार्थ भेजे गये हैं। धर्मशिक्षाका प्रबंध-महाराष्ट्रकी जैन • बोर्डिग में फरज्यात हुआ है । हमीरगढ में अभी मेवाड़ खेराड़ प्रा० दि० जैन खं० सभाका अधिवेशन हुआ था जिसमें उपयोगी ३० प्रस्ताव पास हुए थे । मुख्य २ ये हैं- शास्त्रानुसार आहार विहारका प्रचार करना, प्रान्तकी स्कूलोंमें एक घंटा धर्मशिक्षा देनेका प्रबंध करना, विवाह जैन विधिसे हो, कन्याविक्रय साबित होजाय तो उनके यहां संमिलित न होना, पं० धन्नालालजी केकड़ीको ' खंडेलवाल कुलभूषणका' पद दिया गया, आ. तिशबाजी, वेश्यानृत्य बंद, विवाह नुकता के खर्च कम करने के नियम बनावें, उदैपुर में पुष्प चढ़ानेका झघड़ा चल रहा है उसको निबटानेके लिये दोनों दलोंने लिखित प्रतिज्ञापत्र दिया व फैसला पंचको सौंपा गया, तीर्थक्षेत्र कमेटीको यथाशक्ति सहायता देते रहना आदि । कलकत्ता में भी श्रावण सुदी को सर सेठ हुकम चंदजी के सभापतित्व में शोकसभा हुई थी जिसमें शोक व सहानुभूतिका प्रस्ताव रखते हुए सर सेठ हुकमचंद जीने लाला जम्बूपसादजीके अपूर्व गुणों का हृदयस्पर्शी वर्णन किया था । इसी प्रकार स्याद्वाद महाविद्यालय काशी, उदयपुर विद्यालय, सागर विद्यालय, बर्द्धमान मंडल इन्दौर, मोरेना विद्यालय, खंडवा, बड़नगर, दमोह, विलसी, बेट आदि अनेक स्थानों पर लालानी के स्वर्गव ससे शोक सभाएं हुई थीं। सिद्धवरकूट- क्षेत्र पर अभी बेरिस्टर जुगमंदिरलालजी जडन इन्दौर हाईकोर्ट यात्रार्थ पधरे थे। आपने प्रबधसे प्रसन्न होकर १०१) पूजन के स्थायी फंडमें दिये जिसकी आमदनी से कार्तिक में मेले के समय पूजन हुआ करेगी । सांगली-में प्रसिद्ध व्यापारी सावंतप्पा भाउ आरवाड़ेके १६ वर्षके युवान पुत्रका देहांत होगया । आपके पीछे २००००) दान किया गया है । पानीपत में पूज्य ब्र सीतलप्रसादजी ने चातुर्मास किया है जिससे वहां अच्छी धर्मवर्षा हो रही है । प्रवचनसार, श्रावकाचार, व राजवार्तिकजीका कथन चल रहा है। यहां पं० कबूलसिंहजी, पं० रामजीदासजी, पं अरहदासजी, बाबू जै भगवान बी० ए०, रा० बा० सेठ लखमीचंदजी धर्म चर्चाके बड़े प्रेमी हैं। खंडेलवाल जैन हितेच्छु-मैनेजर का प्रबंध न होनेसे बंद हुआ है । देहली में डॉ० बख्तावर सिंहजी जैन एम० ए० (अमेरिका) एल० आर०सी० पी० एन्ड एस० आदि पदवियोंके धारी विलायतसे पधारे हैं । आपने ५ वर्ष अमेरिका व २ वर्ष इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त की है व वहां असि सर्जन का भी कार्य किया है। आपने सदर बाजार डिप्टीगंजके पास अपना औषधालय खोला है । د उदेपुर विद्यालय-त्रो उनके अधिष्ठाता ब्र० चांदमलजीको अभी मन्दसौर, दाहोद, फतियाबाद, उज्जैन, बम्बई आदिसे करीब १००) की सहायता मिली है । अभी आप नसीराब द उदासीनाश्रममें ठहरे हुए हैं । Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम संस्कारमें दान-सुसारीके सेठ ગુજરાત દિઃ જૈન યુવક મંડલ-મુબા रोडमल मेघर नजीके सेमी-दजीने अपने पुत्रका एनी तथा 5 सुE 13 सभा 24 નાગપુરમાં રાષ્ટ્રીય વાવટા સત્યાગ્રહ યુદ્ધમાં જેલ नाम सम्करण जैन वितिसरे म्या व म्भा करके જનાર ગુ. રાતના બે વીર શેઠ છોટાલાલ ગાંધી 29. दान अपने कर्मचाईयों को व અત્ બાદ ઠાકર લાને અભિનંદન આપવાને संस्थाओं को दान किया ઠરાવ થયે તો मुक्तागिरी-का खापर्डे का एक मुकदमाहाराच्या घशाताना शून भासभा कोर्ट ने खारिज किया है जिप्तकी वे अपील 988 मने बाधमा 734 मन मन भुसाल राय साभलीधा हती, तथा घामाताना 850 कारनेवाले हैं। અને 702 નવા રાગીયે એ લાભ લે. હતા. दशलाक्षण पर्व-में उपदेश देने के लिये स्था महाविद्य लय क शीसे उच्च कक्षाके विद्यार्थी व धर्माध्यापक कैलाशचंद्र कहींसे मांग आने पर जा सकेंगे क्योंकि विद्यालयमें पर्वकी छुट्टी रहती है। महात्माजीको जैन ग्रंथ भेजे गयेजैन मित्र कार्यालयकी ओरसे महात्मा गांधी जीको येरोडा (पूना) जेलके सुप्रिन्टेन्डेन्ट मार्फत ब शीतलप्रसादनी कृत समाधिशतक टीका, समयप्तार टीका, इष्टोपदेश टीका, भात्मधर्म, आस्मानंदका सोपान, स्वसमरानंद व अनुभवानंद तथा वेरिटर चम्मतराय जी कृत असहमतसंगम ये 8 पुस्तकें भेजी गई थीं जो सुप्रिन्टेन्डेटने स्वीकार करके वे पुस्तकें महात्माजीको दी हैं ऐसा पत्र हमारे पास आगया है। लाभ लिया-दानवोर सर सेठ हुकमचंद. जीके भायु औषधालय इौरका गत 3 महीनों में 3274 नये व कुरु 11360 रोगियोंने लाभ लिया था। इनमें 39 बीमा रोंकी विजली द्वाग चिकित्सा कीगई तथा 20 ओपरेशन हुए थे। इसकी 13 श ख ये भी खुल चुकी हैं। "जेनविजय " प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला,-सुरतमें मूलचंद किसनदास कापड़ियाने मुद्रित किया। और “दिगम्बर जैन" आफिस, चंदावाड़ी-सूरतसे उन्होंने ही प्रकट किया। अगरबत्ती। गरकी 2) रतल 4) रतलाम . अगरकी सलीपर / चंदनकी सलीपर२) र पर्युषणपर्वके पवित्र दिनोंके लिये पवित्र द्रव्यों से तैयार किया हुआ व दशांग धप-- चंदनकी 1) / प्रशंसा पात्र अवश्य मगाइये ! अवश्य मगाइये!! फी रतल 2-8-0 ढाई रुपये। सरैया ब्रधर्स जैनी-सूरत। RAPandharpaapaa0000pmportanpany पवित्र काश्मीरी केशर 2 // ) तोला