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- दिर्गघर जैन । और उनको बड़ी लज्जा उठानी पड़ती है। दिखा- चाहिए । इस बातको छिपाने के लिए उसने कह कटके लिए यह सब कुछ किये-पूछनेपर झूठ दिया कि वह सिंगार किंगार कुछ नहीं करती। मी बोले पर अन्नमें दुःख और मिल्छत उठानी और वह मायाचारसे रही। दिखावट में आर्यिका पड़ी। यह दिखावट और ढौंग पुरूष समान में रही । पर इन दिखावटी माया चारीके कामों में बेहद घुसी हुई है। इसका कारण मैं आपको वह बुरी गतियों में दुःख उठाती फिरी इसलिए ही बतलाऊं। क्योंकि जैसे कुम्हार अपने बरत- आनी ही भलाई के लिए हमें दिखावटी ढोंग और नोंको चाहे वैसा बनासका है वैसे ही आप मावाचारमें नहीं फंपना चाहिए । यह तभी हो अपने पुत्रपुत्रियोंको अच्छा बुरा बनासक्तीं हैं। सक्ता है जब आप हमारी पूज्य मातायें धर्मके जर आपमें दिखावट और ढौं। है तो सारी यथार्थ स्वरूपको और अपने कर्तव्यको समझ समान उसी.रूपमें ढक जायगी और दिखावट जाओ।
और ढौंगसे उल्टा दुख बढ़ता है यह आपको अब दूसरे शुमोपयोगके लिहानसे दूसरे जीवों मालूम होगा।
पर परोपकार करना । यदि आप पहिले मार्गसे श्री आराधना कथाकोष में आपने पढ़ा होगा अपना हित कर लेंगी तो इस मर्गमें आप कि पाचीन काल में प्रसिद्ध अजितावर्त नगरके सम वसे ही जल्दी अगाडी बड़ जायगी। भाप , राजा पृष्पचूल थे और उनकी रानी पुष्पदत्ता। अपनी गोदसे ही परोपकार का कार्य प्रारंभ कर
राजसुख भोगते राना पुष्पचूछने एक दिन भगर- देंगी। अपनी सन्तानको इस योग्य बनाकर गुरु मुनिके निकट धर्म का स्वरूप पुना जिससे संसारका कल्याण व रोगी कि जिससे वह उनको संसार के विष सुखोंसे वैराग्य होगया आदर्श जीवन व्यतीत करे । फिर आप अपने
और उन्होंने दक्षा ग्रहण कर ली। उनकी घर हीसे इसका प्रचार करोगी। दिखावटी बातों में देखादेखी उनकी रानी पुष्पदत्त ने मी ब्रह्मल नहीं फंसेगी। धर्मके अनुपारं चलेगी। निसके नामकी पार्थिकाके पास आर्यिकाकी दीक्षा ले फल में आपके अड़ोसी पड़ोसी आपका अनुकरण ली। धर्म का स्वरूप समझे विदून देख देखी करेंगे । हौंग लापता होनायगा। अपलियत आर्यिका तो वह होगई लेकिन उसके दिलसे भामायगी। बुरी प्रथाएं अपने आप माग आने बड़ा का ध्यान नहीं गया और वह मांगीं । सुख शान्ति के मार्ग पर धीरे १ सब किसी अयिकाकी विग्य नहीं करती थी। चलने लगेंगे । और आपके इस जीवनसे वे सुतरां अज्ञानके कारण इस योग की हालतमें वह उदार पुरुष व महिलाऐं खालकर विधुर और सुगंबहार चीनोंसे शृंगार किया करती थी और विधवाएं अगाड़ी आऐंगे और अपना आत्मकइस प्रकार धर्म विरुद्ध कार्य करती थी। आर्थि. त्याण करते हुए देशविदेश फिरकर धर्मका का ब्रह्मन ने उसे सम्झ था कि धर्म विरुद्ध स्वरूप सपझ सुव शांति को फैला परोपकारको बते पापकी कारण हैं। इनसे विषयों की इच्छा अपनाऐंगे । विधवा बहिने जो अभी दिखावे में बढ़ती है। इसलिए यह काम नहीं करना फी घरों में पड़ी सड़ रही है, अपने अमुल्य