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________________ -- दिगंबर जैन। ( २२ ) SHOREGDHANGADA तो उनको मालुम ही होगा कि वे संसारमें कैसे२ महिलाओंका कर्तव्य दिव्य२ कार्य कर चुकी हैं और कर रही हैं 2 और करती रहेगी। सत्र पूछए तो संपारकी GRADEGRATEDNAGDRA वाग्डोर उन्हींके हाथों में है। इसलिए उन्हें उपर्युक्त श.पर मेरे लिए एक अनोखासा अपनी- इस भारी जिम्मेवारीकी चौड़ सी हरहम। भान पड़ता है क्योंकि महिला समानको अना- रहना चाहिए। उन्हें माने और मतश्वी स्वार्थी दिकाल से यह स्वत्व प्राप्त रहा है कि वह जगल के क.यौको गौण (कम) करके अपने आत्मोन्न. नायक और विधायक पुरुषों एवं सतीशिरोमणि तिके उगायों को अपनाना होगा। स्त्रियोंको उनके उत्कृष्ट मावमय उच्च म आदर्श अस्मोन्नति दो उपायों से कही नासक्ती है । एक मार्गपर अनुशीलन और अनुगमन करनेकी शुक्ल क' शुल तो शुद्धोपयोगके लिहानसे अपने आत्मतत्वा सौम्य-पवित्र शक्ति अपनी ही रचनात्मक कान करके संयम, शील, उपवास, वा अदि मौलिक गोदमें शैशव कालसे ही अर्पण करती, समझ वृझकर करना । निप्तसे निनरूपका मान है! यही वह पृ०१मई मानव दुख मोचिना हो और मोक्षमार्गका ज्ञान हो । विना नानेवूझे संसारताप विच्छे इनी समान है, निने श्री तीर्थ प देखादेखी इनको करना कार्यकारी नहीं । इसलिए कर भगवानको जन्म दे जगतको शांतिसुखका आपका पहिला कर्तव्य होगा कि आप धर्मकी मार्ग समय२ पर निर्दिष्ट कराया ! इसने महात्मा जानकारी के लिए विद्याध्ययन करें-लिखना पढ़ना बुद्र जैसे दयालु र णा प्रताप जैसे प्रतापी पुरुष सीने और धार्मिक पुस्तकको पढ़कर धर्मके स्वरूप रत्नों और महिलारस्न सीता और सावित्री, समझें । अपनी कन्यायोंको पाठशालाओं और त्यागमूर्ति ब्राह्मी और पुन्दरी जैसी सती शिरो. श्राविकाश्रमों में भेजिए और आप खुद ग्राम में मणियों को उत्पन्न किया था। और सांप्रतमें ही यदि आप बाहर नहीं नासक्तीं हैं तो अपनी महात्मा गांधी आदिको इन्हींकी कोखने संसारसे किसी विद्वान महिलासे अथवा अपने पिता माई पुद्गलबादकी सत्ताको हटाने के लिए कर्मक्षेत्र में अवतीर्ण किया है। फिर मला ! उनके कर्तव्यका भादिसे शिक्षा ग्रहण कीजिए। ऐसा करनेसे आप बहुतसे वृथा पापोंसे बचेंगी और आनी यहां पर खाका खींचना अबाधिकार्यत्येष्टा मात्र . होगा । उन्हें भरना कर्तव्य स्वयं अपने मेरो सतानको आदर्श संतान बना सकेंगी, निससे समक्ष नीती जागती मूर्तिके स्वरूप में उपस्थित समानमें प्रचलित धर्मके नामसर दौं। और मिथ्या होगा। पर तो मी मैं ए उन्हीं की गोद कुपथाओं का अन्त हो नायगा। ललित पालित पवान पोंके तापसे भयभीत पुरूष आपको मालन होगा कि बाहरी दिख वेसे कार हृदय दो शब्दों को उन महिनों के लिए जो अपने नहीं चलता। आप देखतीं होंगी बहुलप्ती स्त्रि इस मारी मारको अपनी घरेलु उलझनों में और दिखावेके लिए मुलंमेका जेवर पहिनतीं हैं लेकिन सुलझनों में भुलाए हुए हैं कहना चाहता हूं। यह किसी वक्त उनकी असलियत प्रगट होनाती है
SR No.543188
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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