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________________ दिगबर जन। हमारा मोलहकारण पर्व श्रावण सुदी १५ भी शास्त्र नहीं हैं यह कितनी खेदजनक बात से पारम्भ हुआ है व आश्विन वदी १ मंगल है। मंदिरों में प्रतिमानी व शास्त्र इन दोनोंकी वारको पूर्ण होगा । अब इस पर्व में हमारे सभी खास आवश्यक्ता है उनमें प्रतिमानी होती ही तो मंदिरों में नित्य पंच पूना, तत्त्वार्थ-सहस्रनाम हैं परंतु शास्त्र कुछ होते हैं तो वे अपवस्थित! पाठ, अभिषेक व सोलह कारण पूना होती है यह कहां तक ठीक है ? हमारे विचारसे हरएक परन्तु सोलह कारण भावनाका स्वरूप तथा मंदिरमें सभी शास्त्रों की एक २ प्रति अवश्य तत्त्वार्थ-सहस्रनामके अर्थ तो प्रायः सभी मंदि. होनी चाहिये। छपे हुए सुलभतासे मिल सकते रोंमें नहीं सुनाया जाता इससे पाठ व पूनाका हैं व न छपे हों वे होसके तो लिखवाकर रखने सच्चा रहस्य श्रावकों के समनने में नहीं भाता चाहिये । स्वर्गीप दानवीर सेठ माणकचंदनीकी इसलिये सभी मंदिरोंमें यह जरूरी कार्य स्मृतिमें एक संस्कृत सुलभ ग्रन्थमाला निकल होनेकी आवश्यकता है अर्थात् एक माहतक रही है उसके प्रकट हुए २४ शास्त्र तो अवश्य नित्य मंदिरमें तत्वार्थ के अर्थ होने चाहिये व मंगाकर शास्त्रभंडारमें विराजमान करने चाहिये। सोलह कारण धर्म की : ६ भावनाओं का स्वरूप हमने इसवार हमारे सभी छपे हुए शास्त्रोंका जो रत्नकरंड श्रावकाचारादिमें है सबको पढ़कर एक बड़ा सूचीपत्र तैयार करके हमारे पाठकोंको सुनाना चाहिये । हमने "सोलहकारण धर्म" इस अंकके साथ वितरण किया है उनको हरएक नामक पुस्तक भी इसी लिये तैयार करवाके पाठक ममाल लेवें व अपने जिन २ मंदिरोंमें प्रकट की है उसका भी कमसेकम नित्य पठन जो २ शास्त्र न हों मगा लेनेका प्रबन्ध करना पाठन होना चाहिये । आशा है हमारे हरएक चाहिये । अपने निजी द्रव्यसे नहीं तो मंदिरके पाठक इस सोलह कारण पर्वमें नित्य सोलह भंडारके द्रव्यसे तो सभी शास्त्र अवश्य मंगाकर ‘भावनों का पठनपाठन अवश्य करेंगे। संग्रह करने चाहिये। . हमारे अनेक मंदिरों में हजारों का. द्रव्य है, सारे हिंदुस्थान में हमारे तीर्थक्षेत्र सिद्धक्षेत्र, परंतु उनका उपयोग न ___ अतिशय क्षेत्र, प्राचीन भंडारों के द्रव्यका होकर वह ऐसा ही पड़ा तीर्थरक्षा फंड । जैन स्मारक व मंदिर उपयोग। . रहता है और तो उनके अनेक हैं जिनकी रक्षा ___सुद तकका भी उपयोग करते रहने के लिये हमारे स्वर्गीय दानवीर सेठ नहीं होता। मंदिरों में लोग जो द्रव्य देते हैं वह माणिकचंद्र नी बम्बई में हीराबागमें भारतव. धर्मकार्य के लिये देते हैं न कि मंडरों में रख छो- र्षीय दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी स्थापित डनेके लिये । हमारे कितने ही मंदिर ऐसे हैं. कर गये हैं (जो भकारमें रष्ट्रिी की गई है) जहां हजारोंकी सिलक होते हुए भी सौ दोसौ परन्तु इसमें कोई स्थायी फंड न होनेसे चालू
SR No.543188
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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