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दिगंबर जैन ।
(३२) - आरोग्य शिक्षा। ११-वासी और गरिष्ट चीनोंके खानेसे वर्षा ऋतुमें बहुधा है ना भादि रोग हुआ
परहेज करो।
१२-यदि सम्भव हो तो भोजनकी वस्तु . करते हैं, इस लिये खान-पान और रहन-सह
। अदल बदल कर खाना चाहिये ।। नमें बहुत सावधानी करनी चाहिये। सब
___१३-वर्षा ऋतुमें दही मठा भी न खाना प्रकारके रोगोंसे बचने के लिये नीचे लिखी चाहिये। बातोंपर ध्यान देना बहुत आवश्यक है- १४-संसारमें कम भोजन करनेवालोंकी
१ नियत समयपर भोजन करना चाहिये। अपेक्षा अधिक भोजन करनेवाले बहुत मरते हैं।
२-काममें लगनेके पहिले प्रातःकाल थोड़ाप्ता सबको उचित है कि अधिक न खांय इससे हलका भोजन करलेना चाहिये । जब कि हैज़ा स्वास्थ्यको हानि पहुंचती है। रोग फैला हो तो खाली पेट रहना हानिकारीहै। १४-भोजनके समय थोड़ा २ जल पीना
३-दोपहरके समय उत्तम गर्म भोजन करना चाहिये । भोजन करनेके माध घंटे पीछे पानी चाहिये । इसी प्रकार सायंकालको १ बजेके पीना चाहिये। • लगभग करना चाहिये।
१६-सबेरे बिना कुछ खाये खाली पेटपर ४-भोजन करनेके पीछे कुछ देर विश्राम पानी न पीना चाहिये। करना चाहिये।
१७-बिना भूखके बारबार भोजन न करना ५-भोजनको अच्छी तरह चबार कर निग- चाहिये। लना चाहिये । भोजन करने में जल्दी न करनी १८-भोजनमें शरीरको पुष्ट करनेवाली वस्तु चाहिये।
... हों, इस बात का विचार रक्खो । केवल स्वादके ६-भोजनके बर्तन तांबे या पीतलके हों। लिये ही कोई चीज न खाओ।
७-इस बातका ध्यान रक्खो कि खाने पीने की प्यारे पाठको ! यह सब बात स्मरण रक्खो किसी चीजपर मक्खियां न बैठने पावें। और इन्हीके अनुसार चलो तब तुम सदैव ८-कच्चे या गले सडे फल या तरकारी मत
निरोग रहोगे। खाओ, और सब प्रकारके निकम्मे भो ननका नये २ ग्रंथ मगाइये। परित्याग करना उचित है।
प्राचीन जैन इतिहास प्रथम भाग) ९-बिना उबाला, बिना छ!ना हुमा दूध जैन बालबोधक चौथा भाग-३समें कदापि न पिओ । जल भी छानकर पीना चाहिये। ६७ विषय हैं। पृ० ३७२ होनेपर मी मु. सिर्फ
१०-जहां तक सम्भव हो सादा भोजन करो। १८) है। पाठशाशा व स्वाध्यायोपयोगी है। थोड़े मसालेसे लाभ होता है, परंतु अधिक आत्मसिद्धि-अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती ॥) मसालेसे आमाशयमें हानि पहुंचती है। लाल जिनेंद्रभजनभंडार ( ७१ भजन ) !-) मिर्च अधिक खानेसे परहेज करो। पता-मैनेजर, दिगम्बर जैन पु०-सूरत।