Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 09
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ दिगंबर जैन । योंकी उत्पत्तिका यथार्थ मूल किप्तीको भी । लेसे संघमें मतभेद अवश्य मौजूद रहा होगा; मालूम न था ? सबने पीछे से · कुछ लिखना यह विशेष युक्तिसंगत है। क्यों कि बौद्ध चाहिए ' इसी लिए कुछ न कुछ लिख दिय ग्रन्थों से हमें पता चलता है कि भगवान महावीरहै ।........श्वेतांबर सम्प्रदायके आगमका सूत्र के मोक्षलाभ करने के उपरान्त ही म० बुद्ध के ग्रन्थ वीरनि०सं०९८० (विक्रम सं० ११० के जीवन काल में ही संघों मतभेद उपस्थित होगया लगमग बल्लपुर में देवर्षिगणि क्षमाश्रमण . था। जैसे कि मि० ला की पुस्तक The Ks. की अध्यक्षतामें संगृहित होकर लिखे गये hatriya clans in Buddhist India हैं और जितने दिगम्बर श्वेतांवर ग्रन्थ उम से व्यक्त है कि " जैन संघमें जो भगवानकी हब्ध हैं और नो निश्चय पूर्वक साम्प्रदायिक निर्वाण प्राप्तिके बाद मतभेद पड़ा था, उससे म० कहे जाप्तते हैं वे प्रायः इस समयसे बहत पहि. बुद्ध और उनके मुख्य शिष्य सारीपत्तने अपने लेके नहीं हैं। अतएव यदि यह मान लिया धर्मका प्रचार करने का विशेष लाभ उठाया जाय कि विक्रम संवत ४१. के सौ पचास प्रतीत होता है। 'पासादिक सुत्तं' से ज्ञात है वर्ष पहिले ही ये दोनों भेद सुनिश्चित ओर कि पावाके चन्द नामक व्यक्तिने मल देशके सुनियमित हुए होंगे तो हमारी समझमें - हागाममें स्थित आनन्दको मान तीर्थ कर गत न होगा। इसके पहिले मी भेद रहा होगा: मह वीके शरीरान्त होने की ख र द थी। परन्तु वह स्पष्ट और सुशंखलित न हुआ होगा। आनन्दने इस घटनाके महत्वको झट अनुभव का श्वेताम्बर जिन बातों को मानते होंगे उनके लिए लिया और कहा " मित्र चन्द, यह समाचार प्रमाण मांगे जाते होंगे। और तब उन्हें आग- 'तथागन' के समक्ष लानेके उपयुक्त है। मोंको साधुओंकी अस्पष्ट यादगारीपरसे संग्रह अस्तु हमें उनके पाप्त चटकर यह खबर देना करके लिपिबद्ध करनेकी आवश्यक्ता प्रतीत हई चाहिए । " वे बुद्धके पास दोड़ गए जिन्होंने होगी।। इधर उक्त संग्रहमें सुशृंखलता प्रेढता एक दीधे उपदेश दिया । (See Dialogues आदिकी कमी. पूर्वारविरोध और अपने विचा. of the Buddha. pt. III. p. 112. & Kshatriya clans in Buddhist (Iudia) रोसे विरुद्ध कथन पाकर दिगम्बरोंने उनको p. 176) माननेसे इनकार कर दिया होगा। और इससे साफ प्राट है कि म० बुद्धके जीवनअपने सिद्धान्तोंको स्वतंत्ररूपसे लिपिबद्ध करना कालमें और मान महावीर की निर्वाण प्राप्तिके निश्चित किया होगा।" उपरान्त ही संवमें मतभेद पड़ गया था । किंतु जनहितैषी ( देखो माग १३ पृष्ट २६५- यदि ऐसा होता तो वहींसे दिगम्बर और श्वेता२६६ ) के उक्त विवेचनमें जो अन्तिम संश- म्बर -गुली में भेड़ पड़ना चाहिए था, पर यात्मक व्याख्या प्रतिपादित की गई है कि हम देखते हैं कि भगवान के निर्माण के बाद गौतश्वेताम्बर संप्रदायकी वास्तविक उत्पत्तिके पहि. तमस्वामी, सुधर्मास्वामी और जम्बू-बाभी इन तीन

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