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है तो हम रानिके अंधेरे से ही उठकर उप ओर पवान करने लगेंगे तब कहीं बच कर प्रभातके सुहाउने कामें उन शिखिरों की वन्दना कर पायेंगे जिसके लिए हम इतने लालायित हो रहे थे ।
दिगंबर जैन |
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उनको काल करके उसके दिलसे निकलवा देना चाहिए । यह हमारा धर्म हमको सिखाना है । वीरप्रभुं वीरादेश हमको वीर अहिं वृत्तिको उसके यथार्थ स्वरूपमें धारण करके वीर बनने का उपदेश देता है । बतलाता है कि धार्मिक तत्व ● धार्मिक वृत्तिशं केवल धार्मिक कव्यों तक ही सीमित नहीं रहते हैं । सुतां उनका गहरा सम्बन्ध हमारे जीवन घरग्रहस्थीके रोनानाके कार्यों से रहता है जिसके विश्वास लाने के लिए आपका आलोचनापठका पाठ ही पर्याप्त है परन्तु धार्मिक विचारकी - वीर देश की उपेक्षा करके आपका यह आलोचना राठका कोरा पठ कार्यकारी नहीं हो सक्ता । इसलिए हमको अपने धर्मको अपने अमली जीवनमें लाकर दिखाना चाहिए | धर्म निश्च यथार्थ विस्तीर्ण भावपर ध्यान देना चाहिए । वीरप्रभूके वीर-विद्यारोंसे आने अमली जीवनको उन्नत बनाना चाहिए । किसीको भी हताश होनेका अवसर ही न देना चाहिए । हमारा आदर्श सर्वविरूपातू परम निर्मत्र परम पवित्र परमोच्च परम बलशाली परमानन्दमई परमात्मपर है । पर आज यह जानकर हताश हो बैठना हमारे दिए शोभनीक नहीं है कि हम आधुनिक कालमें अपने आद शको प्राप्त नहीं कर सक्ते । इस विचारसे हमा रेमें तनिक भी कमजोरी न आना चाहिए । हम क्रमशः प्रयत्न करते ही वहां तक पहुंच सकेंगे । एकदम चटसे उसे नहीं पालेंगे। अपने इस छोटे जीवनसे ही जब उसके पीछे लग जांयगे तत्र शुभ प्रकृतियों के अनुसार उसके निकट पहुंचते जांबगे । यदि हमें शिखरनीकी वन्दना करनी
इसे कहना होगा कि जैसा हमारा अदर्श उच्च उत्कृट और सम्पूर्ण है उसी तरह हमारे विचार मी वैसे ही प्रभावशाली होने चाहिए | क्योंकि विचारोंसे ही कार्योंकी उन्नति होती है । अस्तु हमें अपने अपलमें प्रभूवीर के उपदेश-प्रभूवीरके उन्नत विचार लाना चाहिए जिससे हम अपना और परका उपकार कर सकें, सबके भीवन के महत्वका अनुमा कर सकें और संप्तरको प्रभूवीरकी सार्वभौमिक सर्व हितैषी सरस वाणीकी सरलता पर परमोत्कृष्टता अपने ही चारित्र द्वारा दिखा सकें । याद रखिए:
जीवन, बिनु प्रेम-प्रेम विनु जीवन जीवन पर धरम विनु नाहीं । घरम, विनु सुकन- सुकन, विनु घरम धरम विनु विवेक न सुहाई ।
सुनिन करतब देखहु मनलाई !
रक्षाबंधन कथा हिंदी भाषा मेंसलूना पूजन व श्रीविष्णुकुमार महामुनि पूजा सहित - छपकर अभी ही तैयार हुई है । रक्षावन पर्व के लिये थोम्बं भव मगाइये | मूल्य सिर्फ ढाई भने ।
मैनेगर, दिगंबर जैन पुस्तकालय -सूरत ।