Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 09
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
Catalog link: https://jainqq.org/explore/543187/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Digamber Jain-Surat. Regd. No: B-744.41 बीर सं०२४४९ आषाढ। संपादकविक्रम १९७९. J मूलचंद किसनदास कापड़िया-सूरत । वर्ष १६ वां अंक ९वां ई. सन् १९२३ न० SE5255555555555SEEEEESESEGE विषयानुक्रमणिका। विषय १ संपादकीय वक्तव्य २ गुजरातमां ब्रह्मचारीजीन भ्रमण..... ३ जैन समाचार संग्रह .... .... .... ४ श्वे० सम्प्रदायोत्पत्ति गवेषणा (वा. कामताप्रसाद जैग) ९ ५ महुआके शास्त्रभंडारकी सुची (ब• शीतलपसादनी) १३ ६ मम देश जीवन प्राण है। (वा. पन्नालाल जैन-फुलेरा) १७ ७ व्याराके शास्त्र भंडारकी सुची (व: शीतलप्रसादजी) १८ ८ सोनीत्राके ९ आपणो पाचीन सहकार (हरजीवन रायचंद शाह) २४ १० बीर विचार (नाफामता प्रसाद जैन .... ११ एमां शु. (चुनीलाल वीरचंद गांधी )..... २८ १२ पुकार........(पं० हजारीलाल च्यायतीर्थ) ३ मममममम ममममs पेशगी वार्षिक मूल्य रु० १-१२-० पोस्टेज सहित ।। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ454545-50-55ऊवाराम “दिगम्बर जैन” के तीन उपहारग्रन्थकी वी० पी० होरही हैं। SSNRAORDING RSESCES- SECY OROSIIRISHORECHOR दिगम्बर जैन (वर्ष १४ व १५वाँ) वीर सं० २४४७ व २४४८ अर्थात सं० १९७७-७८ का वार्षिक मूल्य करीब २ सभी ग्राहकोंसे वसूल आनंका है और इन दो वर्षों के तीन उपहार ग्रन्थ १. श्रावक प्रतिक्रमण (विधि, अर्थ सहित ) २. बालबोध जैनधर्म ( चतुर्थ भाग ) ३. जैन इतिहास प्रथम माम ( प्रथम १२ तीर्थंकरोंका चरित्र ) तैयार हैं और दो वर्षोंका मूल्य ६सूल करनेके लिये रु० ३।'-)की वी० पी० । से भेजे जारहे हैं। आशा है सम ग्राहक वी० पी० आते ही मनीऑर्डर चार्ज) सहित ३॥) देका तुर्त छुड़ा लेवेगे। जब इन दो वर्षों के सभी अंक आपको मिल चुके हैं तब आपका प्रथम वर्तव्य है कि वी० पी० अवश्य छुड़ा लेवें । इन पीछले दो वर्षोंका मूल्य देरसे वसुल करने में हमारा ही प्रमाद कारणरूप है । तपान १६ वें वर्ष में मी एक न थ उपहार में दिया जायगा जो तैयार होने पर इस वर्ष का मुख्य भी सूल दिया जाएगा। जिन २ ग्राहकों का मूल्य आगया है उनको ये ग्रन्थ बुकपेवे टसे भेजे जयगे। किसी ग्राहकको हिसाबमें कुछ भूल मालुम हो तो मी वे वी० पी० वापिस न करें । जो कुछ भूल होगी, दूरे वर्षके मूल्य समज ली जायगी। मैनेजर, दिगम्बर जैन-सूरत । -424 U S Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दिगंबर जैना. THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्तताम्, दैगम्बर जैन समाज-मात्रम् ॥ वर्ष १६ वॉ. || वीर संवत् २४४९. आपाद वि० सं० १९७९. . || अंक ९ वाँ. हो सके तो सब भाई खुद नित्य किसी न किसी शास्त्रका स्वाध्याय करें । नियमित रूपसे स्वाध्याय करनेसे अनेक शास्त्रोंका पठनपाठन हो सकता है । हमारे करीब २ सभी शास्त्र अष्टान्तिका पर्व पूर्ण होचुका और चातुर्मासका छपकर प्रकट होचुके हैं इसलिये जहां २ के शास्त्र न हो मंगाकर अवय चातर्माला प्रारंभ होचुका है। वर्षके , मंदिरमें जो '', १२ महिनोंमें आषाढ़ रखने चाहिये । अपने निजी खसे नहीं तो श्रवण भादों और आश्विन ये ४ मास ऐसे हैं मंदिरके भंडारके द्रव्यसे सभी शास्त्र मंगाकर कि जिनमें सभीको व्यापार धन्धेसे अवकाश संग्रह करनेकी परम आवश्यकता है। रहता है तथा वर्षा के कारण पृथ्वी जीवमयी स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्दनीकी स्मृ. होनाने से त्यागीमण इन चार महिनोंमें विहार तिमें एक संस्कृत ग्रन्थमाला प्रकट होरही है नहीं करते हैं अर्थात् एक ही स्थान पर रहकर जिसके द्वारा २३ संस्रुत ग्रन्थ प्रकट हो चुके धर्मसाधन करते हैं । यद्यपि ब्रह्मचारियों को एक हैं व लागत (अल्प) मूल्यसे मिलते हैं उनकी ही स्थान पर चातुर्मास करने की शास्त्रमें थाज्ञा एक २ प्रति हरएक शास्त्रभंडारमें अवश्य होनी नहीं है तो भी ब्रह्मचारियों में चातुर्मास एक ही चाहिये । संस्कृत न पढ़ सकेंगे तो भी शास्त्र स्थानपर करने की प्रवृत्ति होगई है जो बुरी नहीं है। भंडारमें ये ग्रन्थ होनेसे कभी न कभी उपयोगी अब चातुर्मासमें जहां २ कोई भी मुनि, होंगे। इस ग्रन्थमालाके सभी ग्रंथ हमारे पुस्तऐलक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी या भट्टारकका निवास कालयसे भी मिलते हैं। होगा वहां तो नित्य सुबह शाम शास्त्र सभा जितना भी आरम्भ और परिग्रह हम कम होगी परन्तु जहां कोई त्य गीगण नहीं है करें उतना ही अच्छा है इसलिये इन दिनोंमें वहांके किसी विद्वान भ ईका कर्तव्य है कि वे हमें व्रत, उपवास, एक मुक्त गत्रि अन्न पानी खुद नित्य शास्त्र सभा करके सब भाइयोंको त्याग तथा हरी वस्तु अमुक संख्यामें ही वर्ष धर्म का उपदेश देवे और ऐसा भी प्रबन्धन नेका नियम लेना चाहिये । इसके लिये पूर्व Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन | COPO J ( १ ) बही दिन है कि जिस दिन मिथ्यात्वी बलिने जो उपसर्ग अकंपनाचार्यादि ७०१ मुनियोंको किया था उसका निवारण विक्रियारुद्विधारी - श्री विष्णु कुमारजी महामुनि द्वारा हुआ था तब मुनि रक्षा के स्मरणमें लोगोंने अपने हाथपर सुतकाडोरा बांधा था व मुनियोंको आहार दान दिया था । इस पर्व की कथा ( गुजराती भाषा में ) व पूजा हम दस वर्ष हुए हमारे पाठकों को भेंटमें दे चुके हैं उसको निकालकर इस दिन अवश्य पढ़ना चाहिये तथा जिनकी पास न होवे रक्षाबंधन कथा पूजन सहित जो हिंदी भाषा में छपकर अभी प्रकट हुई है प्रथमसे अवश्य मंगा लेवे और रक्षाबंधन के दिनको सब भाई ब बहिनों के समक्ष इस कथाको पढ़कर फिर सलूना पूजन व विष्णुकुमार महामुनि पूजन करें । o रक्षाबंधन के पवित्र दिन जो भाई रक्षाबंधते हैं वे अपवित्र रेशमके डोरेकी न बांधकर हाथके कते शुद्ध सुतके डोरेकी ही रक्षा बांधें तथा यथाशक्ति दान जैसे कि बम्बई श्राविकाश्रम, कुन्थल गिरे आश्रम आदिको भ वश्य २ भेजें । वहां दान देने से एक नहीं परन्तु चारों प्रकारके दानका फल मिलता है । * * हमारी अनेक जातियोंमें दस्ता दीसाके भेद हैं जिनमें दस्सा भाइयों की भाइयोंको ओरसे भी मंदिर अन्याय । बने मौजूद हें व अनेक प्रतिष्ठायें भी दस्ता भाइयों द्वारा होचुकी हैं तब भी सोनीपत आदिके वीमा भाई दस्सा भाइयोंको मंदि में पूजन नहीं करने देते, न प्रतिमाको स्पर्श करने देते! जिसका झगड़ा वर्षोंसे चलरहा है जिससे ब्रह्मचारीजी शीतलप्रसादजी कृत नियम पोथी एक आने में मंगा लेनी चाहिये । विना नियम लिये परिग्रह कम नहीं हो सकता इसलिये नियम पोथीमें अपने नियम ठीक करके लिख रखने चाहिये । * * * इस वर्ष ललितपुरकी गजरथ प्रतिष्ठा के समय मोरेना विद्यालय विषयक लेख पं० पन्नालालजीद्वारा प्रकट होनेपर बुंदेलखंड भाइयोंको गहरी चोट लगी थी जिसका नतीजा यह हुआ कि वहांकी परवार महासभाने पांच लाख रु०इकत्र करके जबलपुर में जैन शिक्षा मंदिर खोलनेका प्रस्ताव किया था वह मिती ज्येष्ठ सुदी ५ को अमल में आ गया अर्थात् सेठ डालचन्द नारायणदासकी बोर्डिग में शिक्षा मंदिरका मुहूर्त होगया व इसका कार्य जोर शोर से चल रहा है । अभी इसके पांच लाख रु० के फंडके लिये वर्णीनी पं० गणेशप्रसादजी, वर्णाजी पं० दीपचन्दजी आदिका डेप्यूटेशन बुंदेलखण्ड प्रान्त में घूम रहा है । इसलिये जहां २ यह डेप्युटेशन पहुंचे वहां के श्रीमानोंका कर्तव्य है कि इस शिक्षा मंदिर के लिये अच्छी रकम प्रदान करें । जबलपुर शिक्षा मंदिर | * * सरे हिंदुस्थान में श्रावण सुदी १५को रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता रक्षाबंधन पर्व | बहिन अपने भाई को रक्षाका डोरा बांघती है तब भाई भी कुछ भेंट बहि देता है परंतु यह पर्व सभी जाति व धर्म बाले अलग२रूपसे मानते हैं परंतु वास्तव में देखा जावे तो इस पर्व की उत्पत्ति जैनियोंसे ही है । यह * Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ૨ ) दस्साभाई अपनी आम्नाय तक बदलने को उतारू हुए हैं यह कितना अनुचित है परन्तु जो अंतिम समाचार मिले हैं उससे मालूम हुआ है कि सोनीपत ( रोहतक ) के धर्मप्रेमी भाइयोंने दस्सा स्वत्वरक्षिणी सभा कायम की है जो दस्सा भाइयोंको पूजनका पूर्ण अधिकार વિજ્ઞાનેન્ના નીતોડ઼ પરિશ્રમ ની । દૈમારે સ્થાનકે માઢ્યોના સેવ્ય હૈં જિફર રમાનેં सभासद होकर सहायक होवें व दस्ता भाइयोंके स्वत्वकी रक्षा करें । * * दिगंबर जैन | ONGO ગુજરાતમાં બ્રહ્મચારીજીનું ભ્રમણ. શીતલપ્રસાદજીએ પૂજ્ય જૈનધર્મ ભૂષણૢ શ્ર ગયા માસમાં ગુજરાતમાં પધારી ગુજરાતપર અતહઃ ઉપકાર કર્યો છે. આપના ભ્રમણનું વૃત્તાંત દૂર-‘જૈતમિત્ર'માં પ્રકટ થયું છે જેને ગુજરાતી સાર નીચે મુજબ છેઃ— ત્રાના પ્રાચીન શાસ્ત્ર આ અંકમાં મહુઆ, બ્યાર, અને સાજગુરાતનુ પ્રાચીન ભંડારાનુ ઉપયાગી સૂચી સાહિત્ય. પત્ર જે પૂજ્ય બ્રહ્મચારીજી શીલપ્રસાદજીએ તીવ પશ્રિમ લઇ તૈયાર! યુ છે તે પ્રકટ કર્યું છે તયા આવતા અંકમાં કરમસદ અને સુરત હપુરાના મંદિરનું મેટુ' સુચીપત્ર પશુ પ્રકટ કરીશું જેથી અમારા ગુજરાતના ભાગૈાંતે જણાશે કે આપણા ગુજરાતમાં કેવા કેવા અલભ્ય શારÀા હસ્ત લિખિત અસ્તવ્યસ્ત સ્થિતિમાં પડેલા છે અને જેના ઉદ્ધાર કરવાતી હવે જરૂર છે. આજ મુજબ ઇડરમાં ઘણા મેાટા શાસ્ત્રભંડાર છે જેનું સુચીપત્ર થવાની અત્યંત જરૂર છે. જો ઇડરની પંચ ધારે તે આ કામ સ્હેલથી થઇ શકે એમ છે માટે ઇડરની પંચે આ ચાતુર્માંસ પછી પૂજ્ય -શ્ર॰ શીતલપ્રસાદજીને આમંત્રણૢ કરી દડર મેલાવવા જોઇએ અને શાસ્ત્રભંડારની રક્ષા કર્વી જોઇએ વળી પ્રાચીન ગુજરાતી ગ્રન્થા ગુજરાતી ભાષામાં લાગટ કિંમતે છપાવીને પ્રકટ કરવા માટે સુરતમાં જે ગુજરાત દિ જૈત પ્રાચીન સાહિત્યદ્વારક કુંડ સ્થાપન થયુ' છે. તેમાં - ગુજરાતના ભામ્ બનતી મદદ કરવી જોઇએ જેથી શ્વેતુ સારૂ' જેવુ કુંડ થયેથી કામ ચાલુ થઇ શકે. સુરત—મુંબાઇથી તા૦ ૧૩ જીતે સુરત આવ્યા. પશાળામાં જન ધર્મપર ઉપદેશ આપ્યા અને ૧૪મીએ શ્રાવિકાશ!ળાનું નિરીક્ષણુ કયું".૪૧ વ્હેતા અને ૨૦કન્યા લાભ ૯ઇ રહી છે જેને અધ્યાપિકા કૃષ્ણુાભાઇ પ્રેમથી ભણાવે છે. - વ્યારા—તા॰ ૧૪મીએ વ્યારા જઇ રાત્રે ધમઁદા આપ્યા ને ખીજે દિને આખા દિવસ રહી શાસ્ત્રભડારની સંભાળ કરી સૂચીપત્ર બનાવ્યું. અત્રે ભ॰ સુરે‘દ્રષ્ટીર્તિજીના ઉપદેશથી શેઠ શીવલાલ નૃસિઝવેરચંદે મંદિરના ઉદ્ધાર કરવા ૩૦૦૦૦) આપેલા જેથી મંદિર બંધાવવા મડાયું. પણ તે કામ ૨૦ પુરા થવાથી ચાર વર્ષ થયાં અધુરૂં પડયું છે. ભટ્ટારા જીએ ત્યાં જઇ કાઇપણ રીતે બીજી ક્રૂડ કરી એક કામ પુરૂં કરાવવું જોઈએ. રાત્રે જાહેર સભા કરી સેવાધર્મી પર ભાષગુ આપ્યું. મુખી શેઠ શીવલાલ ઝવેરચંદ અને બહેચરદાસ છે.” મહુવા—તા. ૧૬મીએ ખારડાલી સ્ટેશનથી માઇલ મહુવા આવ્યા. આ ગામ નદી કીનારે વસેલું છે. અત્રેનું દિ॰ જત મદિર પ્રાચીન અને વિશાળ છે. મદિરના ભેોંયરામાં શ્રી પાર્શ્વનાથજીની વેલુની વિશાળ મૂર્તિ રા હાથ ઉંચી પદ્માસન કૃષ્ણ પાષાણુની છે R અને વિષ્રહપાર્શ્વનાથ કહે છે, જેને પારસી, હિન્દુ સત્રે પૂજે છે તે લેાકેા માનતાઓ પણ માને છે. એક પારસીએ માનતામાં કાગળ ચઢાવ્યા હતા તે અમેાએ જોયા. અદ્વૈતામાં એની માન્યતા ધણી છે. જો જૈષમ સબંધી માહિતિવાળું એક નાનું સરખું પુસ્તક છૂપાવીને તે લે.કે ( જે પૂજવા આવે તે) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ને વેંચવામાં આવે તો તેઓને માલમ પડે કે મૂર્તાિ વેત નિર્મલ પાષણમાં શિલ્પ અને સ્થાન જેને આપણે માનીએ છિયે તેઓને ધર્મ કે અભૂત નમૂને છે. જે ભાઈ બી. બી. સી. આઈ છે. આ મૂર્તિ વિક્રમ સં. ૧૭૫૩ માં ખાનદેશના ૨૯માં જાય અને તેણે આ મૂર્તિનાં દર્શન જીલ્લા સુલતાનપુરની પાસે તેડાવા ગામમાં એક અવશ્ય કરવાં જેએ. ટેગામાં એક કલાકમાં ખેતરમાંથી ખોદતાં નીકલી હતી ત્યારે શેઠ ૨૭- જવાય છે. અત્રેના ભેદોમાં ઉપદેશ સાંભળવાની રામ ઝવેરચંદની આઠમી પેઢીના શેઠ ડાહ્યાભાઈ રૂચિ એછિી છે ત્રણ દિ સ ઉપદેશ આપ્યો. એક શિવદાસને ન આવ્યું હતું કે તેઓ ત્યાં ભાઈ_મને લાલ મેટ્રિક પાસ રાત્રિ પાઠશાળામાં જઇને આ મૂર્તિને અત્રે લાવ્યા હતા. ઉપરની ૧ ભણાવે છે જેમાં ૨૪ છે. કરાં મૈ ભણે છે. કામ વેદીમાં ચાવીસી સફેત પાષાણનો પટ છે. મધ્યમાં સારું ચાલે છે. અત્રે ની જે મારા ના અને શહેરિષભદેવજી ૩ હાથ કાગે છે. આ મૂર્તિ ના ૫ણ આગેવાન શઠ છે ટિ: લાલ ઘેલાભાઈ ગાંધી નવસારીના દિ. જૈન મંદિરમાંથી સં. ૧૮૧૧ પોતાની સ્ત્રી, એક ચાર વર્ષના પુત્ર ને બે પુત્રીમાં અત્રે આવેલી છે જે દર્શનીય છે. બે વેદી ઓને છોડી નાગપુરમાં રાષ્ટ્રીય વવટાની માન બીજી પણ છે. અત્રે ૨ ઘર નૃસિંહપુરાના છે તેમાં રક્ષાર્થ ચાલતા સત્ય ગ્રડ સંગ્રામમાં જોડાવા મુખ્ય શેઠ ઇચ્છારામ ઝવેરચંદ છે ને રાયકવાલના નાગપુર જતાં પકડાઇ એક વર્ષની જેલ ગયા છે. ૮ પર છે, તેમાં મુખ્ય શેઠ અમરતલાલ જગજી- અાપ શાંત પરિ, મી અને શ્રીમંત છે. દેશ માટે વિનદાસ ને શેઠ પ્રેમચંદ ગુલાબચંદ છે. અત્રે એમણે મારું સાહસ કર્યું છે. ભોંયરામાં આરસ વગેરે જડાવી શાભનીક બનાવ. વડોદરા-તા૦ ૨૮ મી એ ખાવ્યા. રાત્રે મંદિર વાની જરૂર છે. અત્રે બે દિવસ રહી શાસ્ત્રભંડાર બહાર ચોગાનમાં જૈન ધર્મ પર ઉપદેશ આપ્યો. ઠીક કર્યો. ધર્મ સાધન માટે આ સ્થાન સારું છે. પૂજનના વારા બાંધવામાં આવ્યા ને કન્યાપાશ્રાવક પણ ભાવિક છે. ના લોકોની ઇરછા છે ઠેશાલાને પ્રબંધ થયો. ભાઈ ભેગીલાલ ઓનરરી કઈ વિદ્વાન ભાઈ અત્રે રહીને ધર્મ સાધન કરે તે ૨૫થી ધર્મ શીક્ષણ આપે છે. તા. ૨૮ મી એ સિયાજી સ્કુલમાં “સેવા ધર્મ' પર જાહેર ભાષણ સુરત-તા. ૧૮મી જુને ફરી સુરત આવ્યા ને આપ્યું જેની જનતાપર ઘણી અસર થઈ. એ તાપીનદીને કીનારે ગાંધી પર્વને દિને ગાંધીજીના શેઠ હરજીવનક્કસ લાલદે ૩૦) અને ન થુલાલજીવનપર વ્યાખ્યાન આપ્યું. અત્રે ગોપીપુરાપાં છએ ૫) રયા મહાવિધાલય ક શી માટે આપવા કાષ્ટાસંધનું નૃસંપુરા જ્ઞાતિનું પ્રાચીન મંદિર છે કહ્યું. જ્યાં એક મોટો શાસ્ત્રભંડાર તદન અવ્યવસ્થિત સેજીત્રા-તા૦ ટ ૮મી જાને જીત્રા આવ્યા, સ્થિતિમાં પડે છે એમ ભાઈ મુલચંદ કાપડિયા અત્રે કાટાસંગઅને મૂળસંઘના બે પ્રાચીન મંદિ દ્વારા માલમ પડવાથી તેની સાર સંભાળ કરી સૂચી રે છે. એ સિવાય શેઠ મૂલચંદજીનું બનાવેલું - પત્ર બનાવવાનું કામ તા૦ ૧૦થી ૨૫ સુધી રહીને પદ્માવતીનું મંદિર છે એમાં ઘણી જ મનેઝ પ્રાચીન કહ્યું. જેમાં શેઠ નગીનદાસ કરમચંદે ઘણી મદદ મૂર્તિ એ ૨ા હાથ ઉચી પદ્માસન ખડગાસન આપી હતી. રાત્રે રોજ ગુજરાતીને દહેરે શાસ્ત્ર વિરાજમાન છે. કેટલીક પ્રતિમા છે ખંભાતના સભા થતી હતી. ભ'ઈ ચીમનલાલ ફતેચ દે ૬૦) મંદિરેક રાત્રે લાવવામાં આવેલા છે. અત્રે ચા મહાવિદ્યાલય કાશી માટે આપવા કબૂલ્યું. તેના ૬૦ ઘર છે જેમાં મુખ્ય શેઠ મૂલચંદ કલેશ્વર તા. ૨૫મીએ આવ્યા. નાથુલાલ- હીરાલાલ, શેઠ ભગવાનદાસ ઝવેરુદાસ, વ્રજલાલ સા ધર્મપ્રેમ સારો છે. આપની સાથે તા. ૨૬ લખમીચંદ ને કલ્યાણદાસ કહાનદાસ છે. અને ત્રણ એ સત ગયા. ત્યાં શીતલનાથજીની મનોજ્ઞ દિવસ રહી ભાઈ ત્રિભે વનદાસની મદદથી કાષ્ટાપ્રતિમાજીના દર્શન કરી પરમેલાભ પ્રાપ્ત થશે. આ સંધી મંદિરના પ્રાચીન શાસ્ત્રભંડારની સંભાળ કરાવે. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) दिगंबर जैन । * जैन समाचारावलि। | કરી સૂચીપત્ર બનાવ્યું. ત્રણ રાત્રે ધર્મોપદેશ આપો. ઉપદે સંભાળવાની રૂચિ ઓછી છે. અત્રે પાઠશાલાની બહુ જરૂર છે. એક બે ગ્રેજ્યુએટ છે તેમણે ધર્મ જાગૃતિ માટે પ્રયત્ન કરવો જોઈએ. કુરઅસદ-તા. ૨ જુલાઈએ કરમસદ આવ્યા. ** * यत्र शीतलनाथ स्वाभीतुं ये महि२ २ ३०५२ जेल से छूटे-सेठ चिरंजीलालजी वर्धा तो पी। भैया माध्यमाना छ. २मा भु५५ : अवे . सवा मासकी जेलयात्रा पूरी करके प्रथम छूटे २४ास २४ास ५२नुस, मसिहास, २४ थे और अब श्री० यादवराव श्रावणे भी जेल. ડદાસ, છે. અત્રેના ભાઈઓમાં ઉપદેશ સાંભળવાની " यात्रा पूरी करके छूट गये हैं । आपका वर्धाकी રૂચિ સારી છે. અત્રે વૃદ્ધ બ૦ હેમસાગરજી કાયમ २ . मन शास्त्र भा२नी समास ४२अने. जैनसमाजने अच्छा स्वागत किया व बोर्डिगमें भभूय शास्त्राना शनया घरी। मान यया ता० सभा होकर अभिनंदन पत्र दिया गया। ૪ થીએ મહાદેવના મંદિરમાં જાહેર સભા કેરી । जैन शिक्षा मंदिर-जबलपुरके वास्ते सेवा म ' ५२ स५२ गायु सत्रया' " पांच लाख रु० की पूर्ति के लिये जो डेप्यूटेशन અમો તા. ૫ મી બે ઇંદોર રવાના થયા. - निकला है वह पं० गणेशप्रसादगी वर्णी, पं० विवाहमें दान-सर सेठ हुकम चन्दनीके दीपचंद जी वर्णी आदिके साथ अमरावती आयाथा मुनीम ला० हजारीलाल जी (नीमच) के पुत्रका वहां करीब ६॥ हनार रु० का चंदा हुआ है। विवाह महूमें द्वि० ज्येष्ठ सु० ८ को हुआ था ब्र. वृद्धिचदजी-अभी गमपंथानी (मसतब इन्दौरसे सेठ साहूकार भी उपस्थित हुए रुल, नासिक) में हैं । भापका इरादा ओनररी थे व वेश्यानृत्य भातिशबानी आदि कुरीति तौरपर विद्यालय चलाना, उपदेश करना, क्षेत्रनहीं हुई थी और ६८१) का दान इस प्रकार की कोठियोंकी समाल करना आदि है । जिन्हें किया गया-रु. ३२५)चार मंदिरोंमें छत्र चंव जरूरत हो ब्रह्मचारीजीको लिखे । रादि, १०१) गौशाला महू छा०, २१) सेबा लग्नमें दान-अभी आषाढमें घेवरचंदजी समिति नीमच, ३२) अनाथालय-औषधालय गोधा अलवरके पुत्रकी शादी ब्यानामें जैनबड़नगर, ३१) उदासीनाश्रम इन्दौर, २५) ब विधसे हुई थी तब कुरीति न होकर १६०१) आश्रम जयपुर, २१) देहली अनाथालय, २०) मंदिरजी व ८८) संस्थाओंको दान किया गया। मूक प्राणियोंको रोटी व ५ जैनगजट विशेषांक) अभी तो विद्यादानमें विशेष दान करनेका खंडवा-में अष्टानिका पर्व बड़े समारोहके समय है । साथ हुआ था क्योंकि साथमें तेरहवीप विधान कीर्तनकार चाहिये-बु हानपुर (नीम ड़) भी हुआ था । नित्य शास्त्र व व्याख्यान सभा से सेठ हीराचंद नंदराम लिखते हैं कि भादों में होती थी व नृत्य गायन भी होता था । अंतिम उपदेशके लिये एक उपदेशक व कीर्तन कारकी दिन रथयात्रा भी हुई थी। हमें आवश्यकता है। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन। · खनियाधानामें शिक्षालय-स्थानीय.. प्रवेश उत्थ्यव-श्री कुंथलगिरी में कुलभूषण बाल सभाकी ओर से यहां रसिकेन्द्र दि. जैन आश्रमके लिये नया मकान बना है उसका शिक्षालय रामा बहादुर जूदेव ( २ सिकेन्द्र) प्रवेशउत्सव सेठ कस्तूरचंद परमचंद परंढ़ावालोंके के ह थसे ता० ६३ जुलाई को खुल गया तब हस्तसे हि ज्ये वदी १ ३ को हुआ था। रानाजी व पं० मन्नीलालका विद्या के महत्वपर तब सेठनीने भाश्रमको १०१) दिये व ६६) व्याख्यान हुआ व विद्यार्थियों को मीठाई बांटी और मिले थे। गई थी। कारंजा-के महावीर ब्र• आश्रमको पंढरदस्ता स्वत्वहक्षिणी सभा-सोनी- पुरनिवासी सेठ जोतीराम दादानीने १००००) पतमें दस्सा भाईयोंको पृजन न करने देनेकी प्रदान दिया है । इस आश्रमका १२०० ) हठ बीमा भाई वर्षो से कररहे हैं यहांतक कि मासिक खर्च है जब अय ८००.) मासिक है । वहांके दसा भाई अपनो आम्नाय तक बदल असहमतसंगम-नामक पुस्तक जो ने को तैयार होगये हैं जिससे वहांके धर्मप्रेमी बेरिस्टर बाबू चंपतराय नी हरदोईने अंग्रेजी, भाइयोंने 'दि जैन दस्ता स्वत्व रक्षिणी समा” हिन्दी व उर्दू में प्रकट की है उसकी यूरोपमें स्थापित की है जिसका उद्देश दरका भाइयों को बहुत प्रसंसा होरही है । वहां के कई विद्वानों के निन प्रतिमा पूजन का पूर्ण अधिकार दिलाना है। उत्तम २ अभिप्राय जैनधर्मके विषय में मिलरहे प्रवेश फी १) व वार्षिक फीस १) है । सबको हैं । अंग्रेजी पुस्तकका नाम है Contluence सभासद बनना चाहिये। व्यवस्थापक भाईदयाल & Opposites व मूल्य १) है। बेरिस्टर जैन, दि. जैन स्वत्व रक्षिणी सभा-सोनीपत साहब व हमसे भी अंग्रेजी व हिन्दी दोनों ( रोहतक) मिल सकती हैं। पुत्रजन्ममें दान- सेठ हजारीलालजी चतुर्मतीसे सावध रहो मुनि नामधारी छिंदवाडाने अपने यहां पुत्र जन्मकी खुशीमें हर्षकीर्ति (दोहदवाले)की चतुर्मती बड़ी टग है। ३०७)का विद्यादान किया है। अभी वह व्यावर जाकर ठगबाजीसे ५५०) ले देहलीके अनाथालय-की भजनमंडली गई और जैपुरसे एक प्रतिमा व हनारों . • १३ विद्यार्थी सहित मुरादाबाद पधारी थी तब एकत्र कर गई व कई स्थानोंसे फूल केशर भी आश्रमको ५४ ४) की सहायता मिली व एक खूब एकत्र करती है इसलिये जहां भी यह धून पाठ वर्षका अनाथ जैन बालक प्रवेशार्थ चतुर्मती ( जो अपने को आनिका बताती है ) मिला था। पहुंचे तो उनसे सावध रहें व एक पाई भी न आरा-में जैन सिद्धांत भवनका नया मकान देवें | इनका यह धंधा है कि द्रव्य इकत्र करके बाबू निर्मलकुमारजीके अथक परिश्रमसे बन हर्षकीर्तिको लेजाकर सोंपती है व खुद भी रहा है। वहां अहर्निश रहती है । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _दिगंबर जैन । दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा-एक तहसीलदारका कहना मानकर दोनों ओरसे लाख का ध्रुव फंड कर रही है जिसमें १०००) चार २ पंच नियत कर एक माहके अंदर मामला मंत्री आमगोंडा पाटीलने, १०००)तात्या के शव निवट लेनेको निश्चित हुआ है । चोरडेने दिये व एक ग्रहस्थने ५०००) देना नसीराबादमें ब्रह्मचर्याश्रम-यहां बाबू स्वीकार किया है। विशेष फंड होना चालू है। लक्ष्मी चंदनी सेठीने निन खर्चसे नसीराबादमें . दक्षिणमें धर्मजाग्रति अच्छी है। वर्तमानमें ब्रह्मचर्याश्रम खोलना निश्चित किया है व आप मराठी हाईस्कूल व कोलेजोंमें ५०० विद्यार्थी भी उदासीन वृत्ति से अपना जीवन यहां व्यतीत पढ़ते हैं व २५०००) वार्षिक खर्च है। करेंगे। यह सब ब्र० चांदमलनी के प्रयास का फल विवाहसहायक समिति-शेरगढ़ है । इसकी देखरेख भी चांदमलनी वर्णी ही (मथुरा)में अग्रवाल विवाह सहायक समिति रखेंगे। मासिक २००) का खर्च सेठजी स्थापित हुई है जो लड़फेवाले को लड़की व ही देंगे। लड़कीवालेका कडके का अच्छा संबंध मिला देगी। त्यागियोंका चातुर्मास। इनकी पास ४ लडकीके लिये वरकी व २ लड. निम्न लिखित त्यागी ब्रह्मचारियोंने नीचे कोंके लिये लड़कीकी मांग आई है। मंत्री लिखे स्थानोंपर चातुर्मास किया है । अन्य रामदयाल जैन चौधरी, शेरगढ़ ( मथुरा ) से त्यागियोंके चातुर्मासके समाचार भी मिलनेपर पत्र व्यवहार होसकता है । __ आगामी अंकमें प्रट रंगे। भोपाल-में सेठ मुरलीधरनीने पौत्र जन्म- - १ मुनि शांतिसागर जी-कोन्नूर (बेलगाम) की खुशीमें तेरहद्वीप पूजन विधान १५ दिन २ ऐलकजी पन्नालाल जी-फिरोजपुर छावनी तक बडे ठठवाठसे कराया था। हि. ज्ये. ३ ब० सीतल प्रसादसी-पानीपत (पंजाब) सु. चतुर्दशीको कलशाभिषेक होकर विसर्जन ठिकाना-अरहदास जैन रईस । हुआ था तब ५५) भोपाल जैन मंदिर को दिये ४ भ० सुरेंद्रकीर्तिनी-झहेर (महीकांठा) व १२००)विजातियोंकों जाति भोजन दिया ५ ब गेबी लाल नी-बड़वानी इन्दौर) था । आप बड़े परोपकारी हैं। ६ त्यागी जानकीदालनी-एटा भावगढ-(मंदसोर) के अपने मंदिर संबंधी ----७ व. जोतिप्रसाद नी-पाढम (मैनपुरी) जो केस श्वेतांवरियों ने अपने पर चलाया था वह ८ क्षुल्लक शांतिसागरजी - सागवाड! (मेवाड) ता. १८ जुलाईको चला था। तीर्थक्षेत्र कमे- ९ ब. चन्द्रसागर जी (कर्णाटकी)-कुंथलगिरी टीसे मैनेजर गया था। व उज्जैन पंचायतसे मालवा सभ!-के परीक्षालयकी परीक्षा गुलाबचंद बन वकील व परतापगढसे झुमकलाल इस वर्ष भादोंमें न होकर विद्यार्थिों के सुभीते जैन वकील हानिर थे । यद्यपि नीचे से ऊपरता के लिये आगामी दिसम्बर अथवा जनवरीमें मंदिर दिगंबरी होने की पूर्ण सबूत है तो भी परीक्षा होगी। Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - લિવર જૈન ઝહેરમાં પ્રાચીન પ્રતિમાજી-ભ૦ સુરેંદ્ર- ઈડરમાં વ્રત વિધાન-ઈડરમાં આ વર્ષે કીર્તિ એ ઝહેર (મહીકાંઠા) માં ચાતુર્માસ કર્યો અષ્ટાનિકા પવ બહુજ ધામધૂમથી ઉજવાયો હતો છે જેઓ લખી જણાવે છે કે અત્રેના દેરાસરમાં કેમકે ઘણું ભાઈએ અંઠાઈગ્રત કર્યું હતું તથા પવાસણની નીચેની કટની ઉપર ૩ પ્રતિમાજી ધર્મપ્રેમી શેઠ કેવળદાસ રાવજીએ કર્મદહન મંડળ ધાતુની આશરે દેઢ ફુટ ઉંચી છે, જે ઘણું વર્ષો વિધાન કર્યું હતું. રોજ પૂજન ને શાસ્ત્ર સભા થતાં ની પ્રાચીન અને સગપાંગ છે અને તે પર નીચે હતાં. અત્રે બે ત્રણ માસથી એક દિવ્ય જૈન યુવક મુજબ ચિન્હો જોવામાં આવે છે. મંડળ સ્થાપિત થયું છે જેની બેઠક દર રવીવારે પાછલના કુંઠિખ ઉપર ભામંડલનો આકાર થાય છે. ઇડરના સરસ્વતિ ભંડારની વ્યવસ્થા તથા મુમટ ઉપર ત્રણ છત્રાને આકાર, બે બગડી રહેલી છે. આ વર્ષે તો ધુપ પણ થયો બાજુમાં ઇદ્રો ઉપલા ભાગમાં પુષ્પની દૃષ્ટિ કરી નહોતો. પૂજ્ય બ્ર૦ શીતલપસાદજીએ ગુજરાતના ૪હ્યા છે. અને મધ્યમાં પદ્માસને શ્રી શાંતિનાથ ઘણા શાસ્ત્રભંડારેને ઉદ્ધાર કર્યો તો ઈડરના જીની પ્રતિમા ચિન્હ સાથે છે. વળી બે બાજુએ શાસ્ત્ર ભંડારને પણ આપ ઉદ્ધાર કરશે એમ કાસગે પ્રતિમાઓ છે. તેમની બે બાજુએ આશા છે. નંદનલાલ જૈન વિધિ. ઇંદ્ર ચામર ઢળે છે ને તેમની બીજી બાજુએ લેક્ષ ચક્ષણીની પ્રતિમા છે વળી તેમની (ભગવા સાહિત્ય કુંડને મદદ-દિવ જેન ગુજરાતી - નની ) પલાંઠીની નીચે નવગ્રહનાં ચિન્હ છે અને સાહિત્ય દ્વાર ફંડને શેઠ હરજીવનદાસ રાયચંદ તેના નીચલા ભાગમાં બે બાજુએ ક્ષેત્રપાલ અને આમોદ નિવાસીએ ૧૦૧) અને બનતી મદદ પાવતીનાં ચિન્હ છે અને વચલા ભાગમાં હર- આપવા ઈચ્છા દર્શાવી છે. ણનું ચિન્હ છે. આ મુજબ પ્રતિમા ઉપર ચિન્હ દાહોદ-માં જૈન પાઠશાલા ઉત્તમ રીતે ચાલી જોવામાં આવ્યાં છે ને એના ઉપર કોઈ લેખ રહેલી છે અને ત્યાં હવે બોડિગ ખોલવાને નથી વળી એ ત્રણે પ્રતિમા સરખા રૂપમાં છે અને સમય નજદીક આવી જાય છે. ઘણી મા ને દર્શન કરવાથી આપણ શાન્ત પરી- ખંભાતનું પ્રાચીન મંદિર-ખંભાત બંદર , ણામ થય ભાવ ઉત્પન્ન થાય છે. આવી ૨માં આપણું દિ૦ જૈન મંદિર ઘણું પ્રાચીન પડી જતી સ્થિતિમાં મહા મુશીબતે સચવાઈ રહ્યું છે. વે છે જેથીજ આ હકીકત પ્રકટ કરીએ છીએ. તેને ચાલુ સાલે દુરસ્ત કરાવા સિવાય છુટકો ન ત્રે પ્રસ્તક ભંડાર નથી. શાસ્ત્રને સ્વાધ્યાય હેવાથી એક છાર ફડની સ્થાપના શ્રીકામાં પર તથા રાત્રે થાય છે ને બધા શ્રાવકો તથા સાયમાં દિગંબર જૈન પંચ તરફથી કરવામાં શ્રાવિકાઓ શ્રવણનો લાભ લે છે. આવી છે. ને તે ફંડમાં નાણાં ભરાવવા માટે અમદાવાદની પ્રે. મે દિ૦ જૈન બેડિ થી સાયમા, કાણીસાનો પંચમાંથી બે ગમાં રૂપાબાઈ મારક મંડળ તરફથી તા. ૨૫ માણસે શ્રાવણ માસમાં નીકળનાર છે. તો જ્યાં જીલાઈ કે જે દિવસે મુસલમાનોને બકરી ઈદને જ્યાં તેઓ આવે તેમને ઘટીત મદદ કરવો ખંભાત હેવાર આવે છે તે દિવસે જીવહિંસા અટકે માટે મંદિર તરફથી હું વિનંતી કરું છું. ભાઈએ ! વિધાર્થિ ઓએ ઉપવાસ કર્યો હતો તથા સવારે ખંભાત જેવા પ્રાચીન શહેરમાં દિગંબર જૈનનું પૂજન કરીને સભા કરી હતી જેમાં ઈદના હેવા- નામ નાબુદ ન કરવું તે આપ સુજ્ઞજનોના હાથમાં રની ઉત્પત્તિ વિષે વિવેચન થઇ એવો ઠરાવ થયો છે નહિ તે મંદિરની ઇમારત તો પડવાની જ હતો કે “આજના હેવાર પર મુસલમાન ભાઈના તૈયારીમાં છે. દરેક જણું ઘટતી મદદ કરી ફંડ હૃદયમાં દયા ઉત્પન થાય અને જીવહિંસા ન કરે ભરાવી આપશે એમ આશા રાખતો લખનાર હું એવી આ સભા કે ભાવના છે. કું ખંભાત દિજૈન મંદિરનો સ્વયંસેવકછેટેલાલ ૫ મેહનલાલ મથુરાદાસ શાહ-કા બીસા.. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जेन। श्वेताम्बर सम्प्रदायोत्पत्ति प्रतीत होती है । क्योंकि स्वयं श्वेताम्बराचार्य निनेश्वर सुरिने आने 'प्रभा-रक्षण' नामक गवेषणा। तर्क ग्रन्थके अन्त में क्षेताम्बरों को आधुनिक (लेखक-बाव कामताप्रसाद जैन-अलीगंन) बतानेवाले दिगम्बरोंकी ओरसे उपरथा की दि० नैन शस्त्र से हमें पता चलता है कि जानेवाली इस गाथाका उल्लेख किया है:श्वेताम्बर संप्रदायकी उत्पत्ति ध्रुके वली भद्रबाहुके "छव्यास सएहिं न उत्तरेंहि तइया सिद्धिंनमानेमें अर्धफालक संप्रदायरूपमें हुई थी, जो गयस्त वीरस्त । अगाड़ी चलकर भनुमानतः ईसवीसन् ८० में कंवलियाणं दिट्टीवलही पुरिए समुप्पण्गा ॥ श्वेताम्बर सम्प्रदायमें परिवर्तित होगई। यह श्वेताम्बरों की उक्त प्रपाणमून गाथा दिगम्मकथन रत्ननन्द्याचार्यके ग्रन्थानुसार है। परन्तु रोंकी गाथाका बिगड़ा हुआ रूपान्तर है, इस. इनके प्रन्थसे प्राचीन ग्रन्थ दर्शनसार और भव. लिए मिथ्या है । और भगवान महावीरके जमाई संग्रहमें इस अर्धफाळक संपदायका कुछ उल्लेख जमालीकी ऐतिहासित प्रम णित करना अवशेष नहीं है । इससे यह मान्यता रत्ननाद्याचार्यकी है । बौद्ध ग्रन्थों में भगवान महावीरके विवाह ही निजकृति मालुम होती है, जो उन्होंने व उनके पुत्र पुत्रियों का उल्लेख कहीं नहीं है। प्राचीन ग्रन्थोंके बतलाए हुए श्वेताम्रोस्मत्ति इसलिए यही प्रगट होता है कि भगवान बाल. समयके करीब ४५० वर्षके अन.रको पूर्ण कर. ब्रह्मचारी रहे थे, क्योंकि यदि उनके निकट नेके लिए की थी। जैनहितैषीके संगदक महो. संबंधी होते तो उनका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ दयने ऐसा ही मत प्रदिर्शत किया है। उधर अश्य करते, जैसे उभोंने वीर पगवान के श्वताम्बर ग्रन्थों में लिखा है कि पहिला मतभेद अन्य भक्तों का उल्लेख किया है। इसे यह तो भगवान महावीरके जीवनकालमें उनके नमाई पाणित हो जाता है कि वेम्मा पहायकी जमाली द्वारा खड़ा किया गया था। और उत्पत्ति ही वास्तव में हुई थी । दिगं ।। सं दाप अन्तिम जो भगवान महावीरके पश्चात् सन् प्राचीन है। और जो इस विषयके दिाम्बर ८३ १० में हा उसे दिगम्बर संपदायकी कथानक हैं । वे करीब करीब सत्य हैं, परन्तु उत्पत्ति हुई । इसके प्रमाण में वह निम्न था उनमें जो श्वेताम्बर संपद यकी उत्पत्ति का समय पेश करते हैं: दिया हुआ है, वह संशयात्मक है। इसलिए छव्वास सहस्सहिं नवुत्तरोहिं सिद्धिं गयस्स इस लेख में उसकी उत्पत्ति के अनुपानतः यथार्य विरस्स। समयको जानने का प्रयत्न किया गया है। तो वोडियाण विट्टी रहवरिपुरे समुपन्ना ॥ समानके विद्वान पठसे. आशा है कि वे परन्तु श्वेताम्बरोंकी यह प्रमाणभूत गाथा अपने सपमाण विचार इस विषयपर अवश्य प्रकट किती दिगम्बर प्रन्यकी एक गााका रूपान्तर करेंगे। उनके निकट रह कहांत मस्य संपव Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक . दिगंबर जैन । (१०) है कि दि० कथानकों में दिया हुआ श्वेतांबरो- चार्यने श्वेताम्बर सम्प्रदायकी स्थापना की, ऐसा त्पत्ति समय संशयात्मक है। जैसे कि निम्न मानना चाहिए । परन्तु दर्शनमारमें श्वेताम्बर पृष्ठोंमें दिखाया गया है। दि० कथानकों का सम्प्रदायकी उत्पत्तिका समय विक्रम सं० १३६ वर्णन सत्यको लिए हुए प्रकट होता है, फिर बतलाया गया है । अर्थात् दोनों में कोई ४५० यह मय संशयात्मक क्यों प्रमाणित होता है ? वर्षका अंतर है। यदि यह कहा जाय कि यह क्या विद्वज्जन इस ओर अपने ज्ञानका प्रकाश भद्रबाहु पंचम श्रुकेवली नहीं, किन्तु कोई दूसरे डालेंगे ? हां ! यह जतला देना मी यहां पर ही थे, तो भी बात नहीं बनती। क्योंकि मद्रयोग्य है कि यह देख किसी संप्रदाय प्रति लक्ष्य बाहुचरित्र आदि ग्रंथों में लिखा है कि भद्रबाहु करके नहीं लिखा जा रहा है। मात्र ऐतिहा- श्रुतकेवली ही दक्षिणकी ओर गए थे और राना दिक सत्यके निर्णय के लिए काम काले किए चन्द्रगुप्त उन्हींके शिष्य थे। श्रवणवेल्गुलके जा रहे हैं, जिससे कि दिगंबर-श्वेतांवर विद्वान हेखों में भी इस बातका उल्लेख है। दुर्भिक्ष ही इस विषय पर प्रकाश डालें । अस्तु। रहींके समय में पड़ा था, जिसके कारण मुनि जैन ग्रंथोंके वर्णनोंसे श्वेताम्बरोंकी उत्पत्तिका योंके आचरण में शिथिलता आई थी। अतएव समय वि० सं० १३६ प्रष्ट होता है। पर भद्रबाहु के साथ विक्रम संवत् १३६ की संगति यह समय प्रमाणित नहीं नान पड़ता । क्योंकि नहीं बैठती।........श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रंथों में भद्रबाह श्रुकेवल का समय श्रुतावतारादि अनेक शान्त्याचार्यके. शिष्य बिनचंद्रका कोई उल्लेख ग्रंथोंके अनुसार वीर निर्भण सं० १६२ के नहीं मिलता जो कि दर्शनसारके कथनानुसार लगभग निश्चित है । १६२ में उनका स्वर्गवास इस प्रदायका प्रवर्तक था। इसके सिवाय य.दे हो चुका था । श्वे ाम्बर गुर्वावलियों में बतलाया गोम्मटसारकी 'इंदो विय संसहयो' आदि गाथाका हुआ समय भी इसी के समीप है । उनके अनुः अर्थ वही माना जाय, जो ट काकारों ने किया मा वीर नि० सं० १७० मै अन् र सर्ग- है, तो वे बिर हम्प्रदायका प्रवर्तक 'इन्द्र' के आइसका है । जति बोलोक का मकान आचार्यको समझना चाहिए । दाहरि के सय मिटर . ११ है। मामले की जो की इन दोको र २१ कर मरूप स्वर १२ १५का दुर्भिक्ष पड़ा था, उसका उल्लेख मा द्रादिको इसका प्रवर्तक बतल ते हैं। इधर ३२श्वेताम् ग्रंथों में है, जिसे दिगम्बर ग्रन्थों में तांबर सम्प्रदायके ग्रंथों में दिगंवर सम्प्रदायक। श्वेताम्बर सम्प्रदाय होने का एक मुख्य कारण प्रवर्तक 'सहश्रमल' भयवा किस के म से शिव माना है । अब यदि भद्रबाहुके शि.प्य शांतया. मुति' नामक साधु बतल.या गया है। पर चाय और उनके शिष्य जिनचन्द्र इन दोनोंके दिगंबर ग्रन्थों में न सहस्रग्लका पता लगता है होनेमें ४० वर्ष मान लिए जाय तो दर्शन- और न शिवभूतिका । क्या इस परसे हम यह सारके अनुसार वीरनि० स० २०० में जिनचंद्रा- अनुपान नहीं कर सकते कि इन दोनों सम्प्रदा. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । योंकी उत्पत्तिका यथार्थ मूल किप्तीको भी । लेसे संघमें मतभेद अवश्य मौजूद रहा होगा; मालूम न था ? सबने पीछे से · कुछ लिखना यह विशेष युक्तिसंगत है। क्यों कि बौद्ध चाहिए ' इसी लिए कुछ न कुछ लिख दिय ग्रन्थों से हमें पता चलता है कि भगवान महावीरहै ।........श्वेतांबर सम्प्रदायके आगमका सूत्र के मोक्षलाभ करने के उपरान्त ही म० बुद्ध के ग्रन्थ वीरनि०सं०९८० (विक्रम सं० ११० के जीवन काल में ही संघों मतभेद उपस्थित होगया लगमग बल्लपुर में देवर्षिगणि क्षमाश्रमण . था। जैसे कि मि० ला की पुस्तक The Ks. की अध्यक्षतामें संगृहित होकर लिखे गये hatriya clans in Buddhist India हैं और जितने दिगम्बर श्वेतांवर ग्रन्थ उम से व्यक्त है कि " जैन संघमें जो भगवानकी हब्ध हैं और नो निश्चय पूर्वक साम्प्रदायिक निर्वाण प्राप्तिके बाद मतभेद पड़ा था, उससे म० कहे जाप्तते हैं वे प्रायः इस समयसे बहत पहि. बुद्ध और उनके मुख्य शिष्य सारीपत्तने अपने लेके नहीं हैं। अतएव यदि यह मान लिया धर्मका प्रचार करने का विशेष लाभ उठाया जाय कि विक्रम संवत ४१. के सौ पचास प्रतीत होता है। 'पासादिक सुत्तं' से ज्ञात है वर्ष पहिले ही ये दोनों भेद सुनिश्चित ओर कि पावाके चन्द नामक व्यक्तिने मल देशके सुनियमित हुए होंगे तो हमारी समझमें - हागाममें स्थित आनन्दको मान तीर्थ कर गत न होगा। इसके पहिले मी भेद रहा होगा: मह वीके शरीरान्त होने की ख र द थी। परन्तु वह स्पष्ट और सुशंखलित न हुआ होगा। आनन्दने इस घटनाके महत्वको झट अनुभव का श्वेताम्बर जिन बातों को मानते होंगे उनके लिए लिया और कहा " मित्र चन्द, यह समाचार प्रमाण मांगे जाते होंगे। और तब उन्हें आग- 'तथागन' के समक्ष लानेके उपयुक्त है। मोंको साधुओंकी अस्पष्ट यादगारीपरसे संग्रह अस्तु हमें उनके पाप्त चटकर यह खबर देना करके लिपिबद्ध करनेकी आवश्यक्ता प्रतीत हई चाहिए । " वे बुद्धके पास दोड़ गए जिन्होंने होगी।। इधर उक्त संग्रहमें सुशृंखलता प्रेढता एक दीधे उपदेश दिया । (See Dialogues आदिकी कमी. पूर्वारविरोध और अपने विचा. of the Buddha. pt. III. p. 112. & Kshatriya clans in Buddhist (Iudia) रोसे विरुद्ध कथन पाकर दिगम्बरोंने उनको p. 176) माननेसे इनकार कर दिया होगा। और इससे साफ प्राट है कि म० बुद्धके जीवनअपने सिद्धान्तोंको स्वतंत्ररूपसे लिपिबद्ध करना कालमें और मान महावीर की निर्वाण प्राप्तिके निश्चित किया होगा।" उपरान्त ही संवमें मतभेद पड़ गया था । किंतु जनहितैषी ( देखो माग १३ पृष्ट २६५- यदि ऐसा होता तो वहींसे दिगम्बर और श्वेता२६६ ) के उक्त विवेचनमें जो अन्तिम संश- म्बर -गुली में भेड़ पड़ना चाहिए था, पर यात्मक व्याख्या प्रतिपादित की गई है कि हम देखते हैं कि भगवान के निर्माण के बाद गौतश्वेताम्बर संप्रदायकी वास्तविक उत्पत्तिके पहि. तमस्वामी, सुधर्मास्वामी और जम्बू-बाभी इन तीन Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । SCENO ( १२ ) केवलज्ञानियों तक दोनों सम्यदायों में एकता है । इसके आगे जो श्रुतके वली हुए हैं वे दिगम्बर सम्प्रदाय में दूसरे हैं और श्वेताम्बर में दुसरे | आगे मद्राको अवश्य ही दोनों मानते हैं। इस लिए यह प्रतीत होता कि मगदानकी निर्माण प्राप्ति के साथ ही मतभेद उपस्थित नहीं होगया था, बल्कि श्रुतके चिटियों के जमानेसे हुआ होगा | जिन आचार्योंने सनातन धर्मके अनुसार श्रद्ध न रखखा होगा उनका नाम दिग म्बर गुर्वावली में मिलता है । और जिनने उसमें २ का करके स्त्री मुक्ति आदि सिद्धान्त माने होंगे, उन्हें पश्चात् में श्वेताम्बरोंने अपनाया होगा । परन्तु ऐसा अनुमान कर लेने से बौद्धग्रन्थका उक्त वर्णनखण्डित हो जाता है । और इसलिए रह 1 अनुमान बाधित होता है । किन्तु बौद्ध ग्रन्थके उक्त वर्णन में तिशयोक्ति प्रमाणित होती है। क्योंकि एक अन्य वौद्ध ग्रंथ 'मज्झिमनिकाय भाग २ एष्ट १४३ में निम्न उल्लेख है। एवम् समरम् भगवा इक्केसु विहारति सामगाये | तेखोपन समयेण निगन्यो नातप्रत्तो पावारम् अधुना कालको होति । तस्ल कालक्रियाय भिन्न निगन्य द्वेधिकजाता भंडनजाता कलह जाता विशदापन्ना अण्णमण्णम् मुखसत्तीहि वितुदन्त विहारान्ता " ३ : 66 इससे यह प्रगट नहीं होता कि म० बुद्धके जीवन काल में ही जैन संघ में दो भेद हो गए थे । और यहां पर बताया गया है कि म० बुद्धने सामगमको जाते हुए मर्ग में स्वयं मग वान महावीरका निर्वाण होते पावामे देखा था । इसमें आनन्दके खबर पहुंचाने और म० बुद्ध के 1 उपदेश देनेका कोई उल्लेख नहीं है । इस प्रगट है कि भगवानकी निर्वाण प्राप्तिके साथ ही संघ में मतभेद उपस्थित नहीं हुआ था | बल्कि उसके कुछ समय ही बाद मतभेद खड़ा हो गया था, जो दिवादसम्पन्न रहा । और दोनों मतके अनुयायी अपने२ श्रद्धान अनुसार विचरते रहे ऐसा प्रतीत होता है । और हमारे इस अनुमानकी पुष्टि होती है कि तीनों केवलज्ञानियों तक तो संघ में पूर्ण ऐक्यता रही। परन्तु श्रुतकेवढियों के समय से मतभेद उपस्थित हो गया, जो क्रमशः चलवर अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु और राजा चंद्रगुप्तके जमाने में प्रगटरीत्या बाह्य वेषमें मी प्रगट हो गया । और फिर दो विभागोंमें संघ विभक्त हो गया, जैसा कि जैनहितेर्ष के उक्त वर्णन में व्यक्त किया गया है । इस प्रकार श्वेतांबर संप्रदाय की उत्पत्ति हुई थी जिसके प्रारम्भिक मुख्य कारण सैद्धान्तिक थे अर्थात् स्त्रीमवसे मुक्ति मानना और केवलियोंको आहार करते मानना आदि और अन्त में राजा चन्द्रगुप्तके काल में उसके वाह्य वेष में मी अन्तर पड़ गया था | भगवान महावीरके पश्चात् तीन केवलियोंका होना माना गया है। जिनमें अन्तिम केवलज्ञानी जम्बूस्वामी थे । परन्तु त्रिलोकप्रज्ञ' त' के ६९ वीं गाथामें कहा गया है कि केवलज्ञानियों में सबसे अन्तिम श्रीधर हुए जो कुण्डका गरिसे मुक्त हुए। ऐसी दशा में यह समझ में नहीं आता कि यहां श्रीधरको क्यों अन्तिम केवली बतलाया गया । शायद यह अन्तःकृत केवली हो । परन्तु इस संशयात्मक विवरणसे हमारी उक्त व्याख्याकी पुष्टि होती Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) है कि वलियों के समय से संघ में मतभेद हुआ था । इसी समय अन्य आचार्योंने केवलियोंको भोजन करना आदि स्वीकार कर लिया प्रतीत होता है और मतभेद प्रारंभ होगया था जिसका अन्त श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति में हुआ । इस प्रकार हमारी श्वेताम्बर सम्प्रदायोत्सत्ति गवेषणाका अन्त होता है । और हम अन्तमें फिर भी गण्य मन्य विद्वानोंसे 'शा रखते हैं कि वे ऐतिहासिक सत्य पर और भी विशेष प्रकाश डालेंगे जिससे अंधकार में पड़ा हुआ जैन इतिहास प्रगट होतके । प्राचीन जैन स्मारक ब्र० शीतलप्रसादजी द्वारा अतीव खोजके साथ पादित होकर प्राचीन श्रावकोद्धारिणी सभा-कलकत्ता की ओरसे प्रकट होगया है । पृ० ११० पाई सफाई उत्तम और लागत मूल्य पांचआने । कवंद तुर्त ही मगा लीजिये अन्यथा पछताना होगा मैनेजर, दि० जैन पुस्तकालय - सूरत नये २ ग्रंथ मगाइये । ) प्राचीन जैन इतिहास प्रथम भाग जैन बालबोधक चौथा भाग- में ६७ विषय हैं । पृ० ३७९ होनेपर भी मू० सिर्फ १ = ) है । पाठशाळा व स्वाध्यायोपयोगी है। आत्मसिद्धि-अंग्रेजी, संस्कृन, गुजराती III) जिनेंद्र भजन भंडार ( ७९ भजन ) 1-) - मैनेजर, दिगम्बर जैन - सूरत। पता दिगंबर जैन | O00 महुवा श्री विघ्नहरपार्श्वनाथ ( नौसारी प्रांत जिला - सूरत ) दि० जैन प्राचीन मंदिरके सरस्वती भंडारकी सूची । हमने यहां ता० १६ व १७ जुन सन् २३ दो दिन ठहरकर यहां के व्यवस्थापक सेठ इच्छाचंद झवेरचंदकी मदद से सर्व सरस्वती मंडारको जो यहां विना सूत्रीके था उसको देखकर व उसकी सम्हाल करके सूचीपत्र बना दिया उसका संक्षेप सार नीचे प्रमाण है । बारा व बम्बई के सिद्धांत को यह सूत्र सम्हालकर रखनी चाहिये । वेष्टन नं १ ग्रंथ नं० १ तत्वार्थ रत्नप्रभाकर-त्यार्थपुत्र टीका प्रमाचंद्र कृ० श्लोक २७५०. पत्रे ११९ २- ४ तप:सूत्र ५ षट् पाहुड मूल प्राकृत श्री कुं० पत्रे १७ ६ कल्याणमंदिर सटिपण ७-८ सिंदूरप्रकरण व कल्याणमंदिर वेष्टन नं ० २-१ ९ से २८तक अनेक संस्कृत पुनाएं व उब:पन हैं इनमें नं० २१ कर्मदहन पूजा वादिचंद्र सुरि पत्रे २३, नं० २३ त्रिकाल चौवीसी पूना पत्रे १९, नं० २४ जंबूद्वीप के अकृत्रिम चैत्यालय ७८ की सं० पूना, नं० २.१ जिन सहस्रनाम पूना महीचंद्र कृत, नं० २६ सहश्र - गुणित पुना धर्मकीर्ति कृत पत्रे १२३ ( इसमें कविता उत्तम है । यह प्रकाशके योग्य है | ) वेष्टन नं० ४ २९ प्रतिष्ठापाठ आशाघर सं० १९८३ का Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । ११) .३० जिनसहश्राम प सवलीय रण विधि (नोट-इस ग्रन्यको मंत्र ज्ञाता विद्वानको ३१ । हूतविधि ५०५,२० ३२ जटहोम ५.६ शोधन करके प्रकाशमें जाना चाहिये । इसमें ३३ वसुनंदि प्रतिष्टापाठ लि० स० १६५३ मंत्रोंके बनानेकी विधि वर्णन की गई है) . ३४ अंकुरारोपण १० ९ _____......देष्टन न० १० ३५ प्रतिष्ठापाठ सामग्री व यंत्र पत्र ९२ . ५२ पद्मपुराण छंद खुशालचंदकृत रचा R. बेष्टन नं. ५ - १७८३ पर्व ३३ (अनन्तकीर्ति ग्रन्थमाला द्वारा ३६ ढई द्वीप पुजा सं० ५० १२१ : प्रगट योग्य ) ३७ पद्मावती कल्प मंत्र यंत्र लि.स. १८०२ - वेष्टन नं० ११. ३८ पद्मवती स्तोत्र मंत्र यंत्र ५० ११ ९ ५ पर्चाशतक भाषा पत्र ६४ ३९ नमोकार का मंत्र यंत्र पत्रे १९ ९ ४ चंद्र मुपुराण माषा छंद ५० यशकीर्ति ४० अन्यमतके श्लोक प०६ कृत । लुम्बर में १० १८५५ में रचा। पर्व १२ ४१ योगशस्त्र प्रथम प्रकाश प० ५ (नोट-इस ग्रंथको भी प्रकाशमें लाना चाहिये) वेष्टन नं. ६ ५६ महापुराण (६३ शामाचरित्र) छंदबन्द ४२ श्रीपार्श्वनाथचरित्र सं० सकलकीर्तिकृत म० यशकीर्ति कृत स. १८७१ में रचा १३ पत्रे १३७ ( यह प्रगट योग्य है) मिलोड़ामें पत्र ३१९ यह भट्टारक बड़े विद्या. ४३ सिद्धांतशास्त्र सालकीर्तिकृत श्लोक ४५१६ प्रेमी थे। हरएक चौमासेमें ग्रन्थकी रचना ४४ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार संसकलकीर्तिकृत करते थे । पत्रे ११७ लि० स० १६१६ वेष्टन नं० १२ ४५ वर्द्धमानपुराण सकलकीर्तित स.१८५३ ५६ आत्मावलोकन भाषा प० १७ वेष्टन नं. ७ ५७ पात्र विचार मा० ५०४ ४१ त्रैलोकसारप्राकृत टिप्पणि स. १७९१ ५८ धनकुमारचरित्र छंद खुशालकृत प० ४१ १७ लघु व वृद्ध चाणक्यनीति रामनीति १९ नया माषा हेमराज प० १५ शास्त्र गुजराती टिप्पणी, सूना, नोट- यह मी देखने ६० दंडक भाषा ५० ४४ व प्रगट हाने योग्य नीति ग्रन्थ है। (अजैन ) ६१ अकलंकाष्टक भाषाटीका ५० १० ४८ चाणक्य नीति ५०९ ६२ चारदान तथा मा० २९ ४९ आलापपद्धति प० १६ ६३ कर्मकांड भाषा हेमराजकृत ५० ५६ वेष्टन नं. ८ इसमें १४८ प्रकृतियोंका वर्णन है। ५० ढाईद्वीप पूजा सं० ५० १५१ ६४ अनंतव्रत कथा ७ . ____ वेष्टन मं० ९ १५-६१-दंडक - ५१ विद्यानुसद मंत्र पाल सं०१४ समुदेश ६७ चसिमाधान मा पत्र ९१ . Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५) दिगंबर जन।... . छन वेष्टन न. १३ ८५ श्रीपाल रास १८ आश्रयत्रिभगी, बंधनत्रिंगी, उदयत्रि - वेष्टन नं० २० मंगी सत्ता व विशेष सत्ता त्रिभंगी, मावत्रिभंगी ८६ यशोधर रात गु. ऐसे ६ त्रिमगी मूल प्राकृत भाषा टीका सहित ८७ जीव विचार सूत्र टीम (प्रगट ये ग्य)। ८८ श्रावकाचार गु० पदपसाह कत ६९ आत्मानुशासन भाषा : वेष्टन नं. १४.. ९० रनपाल राप गु० ७० शांतिनाथपुराण भाषा सेवाराम ९१ महापुराण वीनती गु० ७१ पुण्याश्रय माषा पत्र ३४१ ९९ त्रिलोकसार ध्यान गु० ७२ भक्तामर कथा विनोदीलाळ ९३ श्रेणिक प्रश्न गु० वेष्टन १५ ९४ भादिपुण रा० गु० ७३ त्रिलोकसार माषा ९५ आषाढभूतिधमाल गु० .. . वेष्टन १६ वेष्टन नं० २१ ७. गोमटप्सार म'• जीवकांड ९९ महापुराण सं० १० ४५३ वेष्टन नं. १७ ७९ क्षपणासार मा० वेष्टन नं० २२ वेष्टन नं. १८ ९८ गोमट्टपार जीवकांड सं• १० ११५ ७६ समशरण पूमा मा० - , ९९ , कर्मकांड मूल सटिप्पण १०८३ ७७ चौवीसी पूना बखतावर लि० सं० १६१६ (दर्शनीय). ७८ पंचकल्याण उद्यापन-मा० १.. आराधनो कथाकोश सं० ५० १११ ७९ नुर प्रकाश पा. वेष्टन नं. २३ .. .. १०१ भादिपुरःण सं.लि. सं० १५८८ ८. रामपुरण गुतं छंद ब० जिनदास कृत १०२ अनेकार्थकोष स्वोपज्ञटीका हेमचंद श्वे ८१ हरिवंश गु० रास ब्र• मिनदाप्त. ५० आचार्यकृन लिखा सं०१५५० पत्रे ३५५२४६ सं० १५२० का लिखा (नोट-४५० वर्ष (नोट-यदि यह मुद्रित न हो तो प्रकाश पहले की गुजराती माषा न हिन्दी लिपिका योग्य है।)अच्छा नमूना है) ___वेष्टन न० २४ ८२ लब्धि विधान रास गु० १०३ सर्वार्थसिद्धि स० ५० १२५ ८३ रनपाल राप्त १०४ , , २०० लि. १६७७ में ८४ अनंत रात . सवालक्ष देशमें (यह राजपूतानामें!) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन। (१६ । १०५-समयसार कलश सं० पर टिप्पणी. पत्रे ११८ आदिपुराण स० केशवसेनकन स्कंध ३७ । बड़ी अच्छी टिप्पणी है। . २२ ( यह अवश्य प्रकाशके योग्य है) १०६-षट् पाहुड़ प्राकृत सं० छाया। ११९ गोम्मटसार स० ५७ आश्रासे प०६७ १०७-वृस्वामी च० सं० सालकीर्ति सर्ग. १२० ज्ञानसूर्योदय नाटक सं० पावित ११ लि. स. १६२६ ( प्रगट योग्य ) ..__कृत (प्रगट योग्य ) १०८-यशोधर च० सं० वादिचन्दकृत ६ सर्ग १२१ ज्ञानार्णव सं० १३७ .. (प्रगट योग्य) १२२ सूक्तिमुक्तावली १०९-पांडवपुराण सं० ५० ५४३ १२९ वाग्मट्ट टीका अपूर्ण लि० सं० १६८६ ग्राम वैरागरमें। १२४ द्रव्यसंग्रह मूल ११०-धर्मपरीक्षा सं० ममितिगति __ वेष्टन नं० २९ वेष्टन नं० २६ १२५ पदमपुराण रविषेणाचार्य शुद्ध उत्तम १११-षट् पाहुड़ श्रुतसागर टी० स० लिखा स० १८०१ का श्लोक १६००० . ११२-सामायिकादि भक्ति मोटे अक्षरों में नोट-इस ग्रंथको अवश्य प्रकाशमें लाना लि० सं० १५६३ ( देखने योग्य ) चाहिये। ११३-उपदेशरत्नमाला सं० सालभूषण वेष्टन नं० १०. कृत ( प्रगट योग्य) - १२६ धर्मामृत नाम सुक्ति संग्रह माशाधर . वेष्टन नं० २७ कृत ९ अध्याय ( मूल अनगार धर्मामृत मालुम ११४-कर कंडु महारान चरित्र प्राकृत होता है) लि० स० ११३१ मुनि कनकामररचित १० परिच्छेद लि० सं० १२७ ३२० वासुत्र न १७६३ सुर्यपुर में । नोट-धाराशिवमें कुंथकगि- १२८ गुणस्थान.चर्चा .. . रीके पास श्री करवंडु महाराज प्रतिष्ठित श्री १२९ संखेश्वर पाचगपस्तु . पार्श्वनाथ जी की सांगोशंग मूर्ति गुफा है, उसी १३० भैरव ९द्म वती करा यंत्र मंत्र मल्लि. महाराजका यह चरित्र ऐतिहासिक मालुम होता भूषण कृत १३१ सामायिक पाठ ८ है। इसको अवश्य प्रकाशमें लाना वेष्टन नं. ३१ चाहिये। . १३२ त्रिलोकदर्पण भा० खडगसेन कृत स० ११५ सिद्धांतसार सं० सालकीर्ति कृत १७१३ में रचा प्रगट योग्य । १३६ मक्तामर कथा मा० ३६१ १११ उपदेशरत्नमाला वेष्टन नं. ३२ ११७ रामपुरःण सं० सोमसेन कृत १३४ से १३८ समवशरण पूना नाटक समवेष्टन नं० २८ - याप्तारादि। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • १३९ छंदोपस्थान पिंगल भाषा अजैन ( प्रगट योग्य ) - वेष्टन नं. ३३ १४० रामपुराण मा० खुशालकृत वेष्टन नं.३० १४१ से १४३-रामायण व आदिनाथ रास व फाग गुजराती। वेष्टन नं० ३५ १४४-५-समाधितंत्र व यशोघरचरित्र गुजराती । वेष्टन नं० ३६ अनेन व्याकरण काव्यादि ज्योतिष । वेष्टन नं. १७ ३७ से ४१-पूजापाठादिके गुटके वेष्टन नं. ४२ १४९-गोम्मटसार कर्मकांड भाषा। वेष्टन नं. ४३ १५०-त्रिलोकसार वर्णन कर्णाटकी लिपि (मवन बम्बईको इसकी बालबोध लिपि करानी चाहिये) वेष्टन नं. ४१ १५१-यशोधरचरित्र सं० शीतलप्रसाद ब्रह्मचारी। दिगंबर जैन । . यां इस कदर धन-धान है ॥२॥ . हैं कहां ऐसे विचित्र, • पहाड़ पवित्र नदी कहां ? ये खेत ऐसे हरे भरे, ऐमी कहांपर शान है ? ॥३॥ हैं किस जगह ये मैस गोएं, दूध घी जिनसे मिल ? भी प्यारा प्यारा पक्षियोंका, .. ये कहांपर गान है ? ॥४॥ ये तत्ववेत्ता-श्रेष्ठ-ज्ञानी, .. . वीर-सतवादी कहां। जिन धर्मको छोड़ा नहीं, गर मान भी कुरवान है ॥५॥ भोलादकी या रानकी, कुछ भी नहीं परवा जिन्हें । ईमान पर सावित रहे, ऐसा कहां ईमान है॥६॥ वो पार माई-पाईक', माता पिताकी भ'ज्ञ' । वो प्रेम दंपतिका कहां, मुख दुखमें एक समान है ॥७॥ वो चांद सुरजका उजाला, और विनलीकी चमक । ऐसी ऋतु कहां, देखडालो ___ युरुपो जापान है ॥ ८॥ खत्म करता हूँ 'प्रिये अब, . भारजु बस है. यही । " मैं देशका प्यारा रई, __ मम देश जीवन प्राण है"९ __"प्रिय" फुलैरा मम देश जीवन प्राण है। .. ( गजल-सोहनी.) ये देश भारत ही हमारा,- - . सब सुखोंकी खान है। --देखो, सबको मिला, इसकी बदौलत मान है ॥१॥ ये पल रहे हैं देश सारे, सिर्फ इस ही देशसे । मर जांय भूखों गर न हो, Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन | TOP५०% ( १८ ) । व्यारा (जि० सूरत) का अलंकारिक है इसमें कथा लुपतासे दी है । बहुत उपयोगी है । प्राचीन शास्त्रभंडार । हम और मई छगनलाल सरैया - सुरतने ता० ११ जू' ११ को व्य ग जाकर यहांके मंडारकी सम्हाल करके जो ग्रं लिखे उनकी सूची१ पंचाख्यान (पंचतंत्र ) गुजराती छंद टीका श्वे० पं० रतनचंद कृत सं० १६४८ में रची पन्ने २४१ ० श्लोक सहित । नोट- यह प्रकाश योग्य है | गुजरात छात्रों को बहुत उपयोगी । २ श्रावकाचार गुजराती छेद पदमसाह कृत वाग्वर देशके साकपुर में बना सं० १६१५ में श्लोक २७५० पत्त १६६ । नोट - इसमें विस्तार से त्रेपन क्रियाका कथन है इसको अवश्य प्रगट कराना चाहिये । ३ पूज्यपाद कृत श्रावकाचार श्लोक १०८ तथा व्रत फल लो० ३३ प्रम्मचंद कृत पत्रे १० मंगलाचरण श्रावकाचार श्रीमज्जिनेन्द्रस्य चंद्रव क् चन्द्रकांगिनं । हृष्टदुष्टष्टसंत पनक्षमं ॥ घनसार कृत र्ट का गुजराती पत्रे १७- यह मी प्रकश होने योग्य है । ५ सं० हनुमानचरित्र अजित ब्र० कृत यह गोशृंगार थे व भृगकच्छपुर में बनाया । सर्ग १२ श्लो० २००१ पत्रे १४२ यह भी प्रकाश योग्य है । सं० १६३९का लिखा । ६ वृषभनाथचरित्र सं० सकलकीर्ति कृत पर्व २० श्लोक ४६२८ पत्रे २१६ यह भी 5. कश योग्य है । महापुराण बहुत बड़ा व ७ यही - यह प्रति सं० १७५ में वागर देशके नौतनपुर में लिखी गई थी । ८ सुदर्शनचरित्र सं० सकलकीर्तिकृत श्लोक ९०० पत्रे ४६ यह भी प्रगट होना चाहिये । ९ धनकुमारचरित्र प्राकृत रैधूकृत ४ सर्ग पन्ने ४९ । यह सं० १७३५ में सुरतके आादि नाथ मंदिर में लिखा गया था । नोट- रैधू ववि दशकाक्षणी पूजन कर्ता बड़े विद्वान हुए हैं उनके ग्रंथोंको मी प्रगट करना चाहिये । १० समाधितंत्र पर्वतधर्मार्थीकृत ११ यही १२ त्रीस चौवीसी पूजा सं० शुभचन्द्रका ११ समवश्रुत पूना सं० ललितकीर्तिक १४ महाअभिषेक सं० पत्रे ३६ १९ घनंनयनाममाला १६ आलापपद्धति १७ पंच लक्षण पूना सं० १८ क्षेत्रपाल पूजा सं० १९ विषापहार सं० वृत्ति २० कल्याणमंदिर २१ 91 "" " २२ भूपाल चौवीसी २३ श्री पार्श्वनाथ स्तोत्र सं० वृत्त २४ जनगुणसम्पत्ति व्रतोद्यापन पूना सं० २५ कल्याण मंदिरमू २६ तत्वार्थ सूत्र सं कृर टिप्पणीसहित नट - इसमें संक्षेपसे बहुत उपयोगी टिप्पणी दी हुई है । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९) - दिगंबर जैन । " २७ सुक्तमुक्तावली सोमदेव ५१ वर्द्धमानचरित्र तक कीर्तिकृत अपूर्ण २८ क्रियाकलाप सं. प्रभाचन्द्रकृत वृत्ते ५२ हनुमानचरित्र सं० . पत्रे १२८ सं० १७८१ का लिखा। ५३ वर्द्धपानचरित्र , नोट-यह भी प्रगट योग्य है। १४ प्रमाणपरीक्षा १९ उत्तरपुराण संकी टिप्पणी संमें पर्व.५५ उपदेशरस्नमाला ४८ से ७६ तक। कठिा शब्दोंके अर्थ सं० ५६-१ न्यायचर्चा पत्रे ६ १५८७ वाल्मीकपुरे। यह बहुत उपयोगी है। ५७ - फुटार काव्य सं. हिन्दी टिप्पणी ३. धन्यकुमार चरित्र सं० सकल कीकृत ५८ चित्रसेन पद्मावती कथ। सं० पत्रे २० ३१ सुभाषितरत्नावकी सं० ,, - यह सं० १५२२ का लिखा है। ५९ सप्तभंगी वर्णन पत्रे ४ ३३ श्रीपाल चरित्र सं० , नं. ६० से ७१ तक भाषा हिन्दी व गुज३४ बृहत् द्रव्यसंग्रह वृत्त - रातीके रामादि ग्रंथ व २० ग्रंथ । ३. मूलसंघविरदावली श्री महावीरसे म.. वेष्टन न० ११ में कुमारसंमत्र, रघुवंश आदि धर्मचंद्रकृत सं०में जूनी देखने योग्य पत्रे १६ । अजैन कई ग्रंथ हैं। ३६ त्रेपनक्रिया उद्यापन वेष्टन न० १२ से २६ तक संस्कृत व गुन३७ अमरकोश जुना अपूर्ण राती रासोंके संग्रहादि हैं। ३८ श्रावक प्रतिक्रपण, वेष्टन २४ पद्मपुराण भाषा। ३९ ऋषभनाथचरित्र सं० . . _न० ३, ५, ६, ८, ९, १२, १३, २८, ४० सुकमालचरित्र सं० २९, ३१, ग्रन्थ माणकचंद ग्रन्थमालामें ४१ सत्मानुशासन भाषाटीका अपूर्ण प्रकाश योग्य हैं। नोट-बम्बई व आराके पर स्वती मंडारोंको यह सुची नोट कर लेनी चाहिये। ४२ उदय और बंध त्रिभंगी भाषा हिन्दी ४३ सम्यक्त कौमदी जोधरान का छंद . - शीतलप्रसाद ब्रह्मचारी । ४४ नागश्री कथा छंद किशनसिंह कृत नये २ ग्रंथ मगाइये। ४५ पुण्याश्राकयाकोष दौलतराम कासली. प्राचीन जैन इतिहास प्रथम भाग) वान कृत हिन्दी जैन बालबोधक चौथा भाग-समें ४६ नाटक समयसार लि० सं० १८१८६७ विषय हैं। पृ० ३१२ होने पर भी मू० सिर्फ ४७ विनोदीलाल कृत छंद पत्रे ३२ १८) है । पाठशाला व स्वाध्यायोपयोगी है। ४८ ब्धिविधान कथा आत्मसिद्धि-अंग्रेजी, संस्क।, गु राती ॥) ४९ भक्तामर कथा ४८ वीं जिनेंद्रभजनभंडार (७५ मनन ) ।) ५० कथाकोश सं० अर्ण पता-मैनेजर, दिगम्बर जैन-सूरत। Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन। (१०) सोजित्रामें प्राचीन जैन १२ सर्वार्थसिद्धि टीका ५० १९१ १३ स्वामी कार्तिकेय प्राकृत मुत्र प. ४० ग्रन्थ। १४ आप्तमीमांसा टीका लघु समंत. सोमित्रा (गुजरात) में प्राचीन दि. जैन शास्त्र भद्रकृत अथवा अतिशय परीक्षा। भंडार विना सम्हालके हैं ऐसा जानकर हम ------ मगलाचरण ता. ३० जुनको आए व ता. २ जुलाई तक देवं स्वामिनममलं विद्यानंदं प्रणम्य मिजभत्त्या । ठहरकर काष्ठासंधी मंदिरके सर्व शास्त्रों की सूची विवृणोम्यष्टसहश्री विषमपदं लघु समंतभद्रोऽहं॥ बनाकर उनको नंबरवार वेष्टनों में विराजमान करा ... . अंतिम श्लोक दिया गया। यहां एक भधारक विजय. शिष्ट कृतदुर्दृष्टि सहश्री, दृष्ट कृतपरिदृष्ट सहश्री। कीर्ति हो गए हैं उनके स्थापित अनेक ग्रन्थ स्पष्टीकुरुतादिष्ट सहश्री, परमा वेष्टमपष्ट सहश्री।। - नोट-यदि यह प्रकाशित न हो तो प्रगट सूची शास्त्र भंडार। योग्य है। . - संस्कृत प्राकृतके ग्रंथ। नं० १५-पंचास्तिकाय व्याख्या अमृतचाद वेष्टन नं. १ वेष्टन नं. ३ ' ग्रंथ नं १ भाराधनासार सं० टीका रत्नकीर्ति नं. १६ भगवती माराधना प्राकृत मूल १० ७१ लिखी स० १४६६ मालवाके मंडप शुद्ध लिखी सं० १६१३ महीशासनमें प.१३९ दुर्गमें । अंतमें लेख है । इयसिरि सिवायरिय २ धर्म प्रभोत्तर श्रावकाचार प. ७५ विरइया भगवई आराहणा समत्त्वा ३ उपदेशरत्नाकर श्रावकाचार इससे शिवचार्य रहित प्रसिद्ध है। गाथा मट्टारक विद्याभूषणकृत २४ सर्ग श्लोक ४३७५ २१४६ ५० २६४ कि. १७७२ में औरंगाबादमें नं० १७ श्रुतसागरकृत सुत्र टीका जीर्ण (प्रकाशके योग्य है अन्यत्र नहीं) अपूर्ण ... नं. ४ यही पत्रे २१२ १८ गोमटसार मूल प्राकृत टीका सहित पत्रे वे. १ नं. ५समयसार आत्मख्याती १० १३९ ८७ लि. सं. १६३४ सूर्यपुर ( सूरत ) में ६। यही ५० १८५ १९ गोमटसार पंच संग्रह संस्कृत ७ कर्मविपाक सं० सकल कीर्ति श्रीपाल सुत उज्जकृत । अंतमें लेख है-चित्रकूट कृत प० २१ (प्रगट योग्य) वास्तव्य प्राग्वाट वणिनाकृते श्रीपाल सुत उन्जेन ८-९ सिंदूर प्रकरण ५०९-१२ स्फुटः प्रकृति संग्रह । पत्रे ६८ लि. सं.१५५१ १० वह्निशीतत्त्व व्यवस्थावाद ५० ४ नोट-यह शायद विलकुल प्रगट नहीं है, ११ अध्यात्मोपनिषद, हेमचंद्र प. ९ चित्रकूट कहाँ पर है। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) पहात दिगंबर जैन । २०-५७ आश्रम गाथा प० २१ ३७ मक्तामर स्तोत्र ५०४ बेष्टन नं.-४ ३८ विवेक विकास श्वे. जिनदत्त मुरि १० . २१ नियमसार सं० टीका प्रमरम लि. ७० लि० सं० १५१३ सं० १७९८ उदयपुर में । ___३९ प्रस्ताविक श्लोक ५०८ १२ अाप्तपरीक्षा विद्य नंदि ४० पद्मावती स्तोत्र प. ४ २३ परमात्मा प्रकाश मुल प्रा० वेष्टन नं. ६। २४ धनंजयनाममाला प० २० २५ धर्मोपदेश पियूष वर्ष श्रावका. ४१ भविष्यदत्त चरित्र श्रीधर ५०८२ चार ब. नेमिदत्तकृार्ग ५ ५० १८ (यह ४२ श्रीपालच० सोमकीर्ति लि०सं० १५८५ मी प्रगट योग्य है) ४३ यही प० २५ लि० सं० १५७९ ___२६ अमितिगति श्रावकाचार प० ८१ श्लो. . सुर्यपुर सीतलनाय मंदिरमें १८२५ लि० सं० १९६५ . १४ वृषभनायचरित्र सालकीर्ति लि० सं० . २७ प्राकृत आदिपुराण पंजिका . १६९२ प्रमाचंद्रका ३७ पर्वतक । श्लो० २०००प० ४५ करकंडुचरित्र प्राकृत काकामर.६२ लि. सं० १९९६ फतहपुरमें नाहरखांके का प० १०० लि० १६२३ सुन्दर । राज्यमें। . ४६ गौतमस्वामी चरित्र विमदासनोट-यह बढ़ी उपयोगी टिप्पणी है-कठिन का प० ४१ लि० सं०१८३० (पगट योग्य) शब्दोंके अर्थ हैं - ४७ पार्श्वनाथ चरित्र सकलकीर्ति २८ सद्भाषितावली १० ३१ अपूर्ण वेष्टन नं. ७ १९ तत्वार्थसुत्र सटिप्पणी वेष्टन नं०५ .... ४८ नेमिपुराण श्रीभूषणकृत लि० सं० मं० ३. संशयिवदनविदारण शुभचन्द्र १६६३ सं० १९२४ ४९ जंबूस्वामीचरित्र जिनदास लि. १५०७ ३१ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार , १६२. गंधार मंदिरमें १२ वाग्मट्टालंकार --- नोट-यह गंवार गुजरातमें अमोदके पाप्त है ३३ अमिधानचिंतामणि नाममाला हेमचन्द्र ५० जिनदत्तकथा गुणभद्र लि० १५५५ ३४ पंचाख्यान लि० सं० १८२६ सूरतमें गंघारमें। ३५ साधु प्रतिक्रमण सुत्र ५० ६२ ५१ गौतम चरित्र श्रुतप्त गर छत ५० १६ पानंदी पच्चीसी शुद्ध अन्वय ३१ लि. सं० १९३३ गांधारमें चिन्ह सहित ५० ९९ कि० सं० १९९५ - ( नोट-यह प्राचीन है । इसको अवश्य प्रगट सीरन माममें (इसी मांति पगट योग्य है) करना चाहिये ।) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । (२२) ५२ मुभौम चरित्र-मचंद्रकृत ५०४६ ( यह दिगम्बर जैन गुजराती ग्रंथेद्ध । फंडसे सर्ग ७ (यह भी प्रशश योग्य है) प्रगट योग्य है। ५३ शोधर चरित्र सोमकीर्ति लि० १६५३ ९५ आदिपुराण मिनदासकृत प० १५१ ५४ यही . . ९० ३३ ९६ रामायण निन्दा कम ५९ यशोधर चरित्र बादिरा न ५० १९.१००-यशोधरचरित्र देवेन्द्रका (यह प्रगट योग्य है ) १०३ वर्मविपाक जिनदासकृत . ५६ हरिवंशपुराण जिनदास लि० सं० १०४ सिद्धांत चौपाई ५० १० १६९६, १०५ ध्यानामृत रास ५० ३० इसमें वेप्टर नं. ८ . ध्यान।। अच्छा वर्णन है। ५७ पद्मचरित्र (मराण) चंद्रकीर्ति कृत १०८ और १११-द्रव्यसंग्रह गुजराती गाख्या ५० ४९५ लि० सं० १७४९ (रह भी प्रगट पर्वत धर्मार्थीकन प० २७ नहीं है ) १०६ कर्मप्रकृति प० २७ १८ उत्तर पुराण गुणभद्र शुद्ध लि. प. ३६७ १०९ स्तुभाषित कोश ५०१८ । १९ ईमान काव्य असग — ५० १५६ . (ये सक प्रगट योग्य हैं) ___ नं. १४से १७ वेष्टनों में हिंदी के ग्रंथ है६० मेघदूतपर नेमिचरित्र-काव्य मेरु नीचे जानने योग्य हैं नं० ११३से १३३ तक तुंग कृत ४ सर्गप०८ (यह भी प्रगट योग्य है) नं० १११ गुणस्थान चर्चा आदि ५० १० ६१ भद्रबाहुचरित्र रत्ननंदिकृत . ११५ इष्टोपदेश टीका संघी पन्नालाल .. ६२ रोहतीन कथा ११७ चर्चा प०९ वेष्टन नं. ९ और १० में नं०६३ से ८४११८ बनारसी विलास ५० १०८ तक संस्कृत पूजन व विधान हैं जिसमें जानने १९२ चारों गतिपर उदय बंध सत्ता ५०५ योग्य नं० ७१ त्रीस चौवीसी पूमा विद्याभूषण १२६ उपयोगी गुरु शिष्य प्रश्न ५० ४९ कृत प. १९२ लि. १६७० है ० ७२ ' अपूर्ण में जैन गायत्री व जैन संध्याके मन्त्र हैं नं०७४ न० १८ वेष्टनमें नं० १३४ मराठी भाषाका में पंचप मेष्ठ पूना प० २४ बहुत मनोज्ञ हैं। पद्मपुराण-गुणकीर्ति आचार्य का प०१५८ हर्ग प्रकाश योग है। .नं. ११-१२-१३ वेष्टनमें प्रत्र नं ८९ नं० १३५ मराठी रत्नत्रय व इतवार कथा से ११२ तक गुदराती भाषाके ग्रन्थ बालबोध ब्र. महतीसागकृत है। प०८ व नं. १३६ में लिपिमें हैं। जानने योग्य न.चे लिखित हैं- मराठी में मंगलाचरण है। प० २ . नं० ८६ धर्मपरीक्षारास सुमतकीर्ति वेष्टन न० १९से १२ तक ग्रन्थ न० १३७ कत १० १०५ रचा सं. १६२५ महवामें से १८६ तक अन अन्य वैद्य ज्योतिष Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन । काव्य व्याकरण न्यायके हैं जिनमें कुछ के नाम पत्र पर हैं । यद्यपि किसी २ पर कुछ नाम बालबोधमें लिखा था पर विश्वासयुक्त न होनेसे नं० १३७ मन्त्रमहोदधि ५. ३१३ नोट नहीं किया, किप्ती कर्णाटकी जाननेवाले १५० मेदिनीकोष १० ११९ भाईको आकर इनका विवरण मालुम कर यहां के १५४ न्यायदीप प० १४ रजिष्टर में लिख देना व प्रगट कर देना चाहिये १५९ चम्पूका ५० १६ नं० २२५में कागन पर लिखा एक कर्णाटकी १६१ ज्योतिषरत्नमाला प० ३५ -- ग्रन्थ है। १६३ सारदातिलक ( वैद्यक ) ५० १५२ देष्टन नं० ३० से ३८ तकमे बहुतसे पूना १६५ कपकल्पलता प० ११४ पाठा दके गुटके हैं। नं० ३९ में अपूर्ण पत्रे हैं१६९ मदनपाल वैद्यक प० ३९ अपूर्ण . दि. जैन विद्वानों को यहां आकर इस मंडारके ११७ श्रावणभूषण प० २५ दर्शन करने चाहिये। १७० विवाह वृन्दावनटीका प० ८२ माणिकचंद ग्रंथमालाके कार्यकर्ताओं १७३ योगमंनरी काव्य ५० १३. . को उचित है कि नं०३, ७, ११, १४, १९, १७५ नंदोपाख्यान ५० १४ २५, २७, ३६, १५, ४६,५१,५२, ५५, १७८ सामुद्रिक हि० माषा प० ९ ५७, १०, १७५ पर ध्यान देवें । हमारी वे. न० २३ में नं० १८७ से २०० तक रायमें ये प्त प्रकाशके योग्य हैं। भपूर्ण जैन ग्रन्थ हैं इसमें नं० १९१ कल्पशास्त्र यहां ग्रन्थों के लिये मूलचन्द हरीलाल व मग. पं० १९३ तीर्थ प्रबन्ध (श यद वे हैं) व० है) वानदास नवरदाप्त को लिखना चाहिये। उत्साही १९४ पंचालान प्रथमतंत्र ५० ५१ है न युवक परोपकारी त्रिभुवनदास व फूलवेष्टन नं० २४ में . चानी हैं इन्होंने प्रमों की सम्हाल में बहुत २०१ पद्मपुराण सोपर्क कृ द्ध ही। मदद दी। पीला 17 बगः सीलला ।द ब्रह्मचारी । २.२ परमात्म प्रक'श सं० टो: प० १९७ शुद्ध लि० सं० १५१८ प्राचीन जैन स्मारक . २०३ प्रद्युम्न चरित्र, सं० २०५ अर्ण ---. २०४ स्वयंभूस्तोत्र सटीक प. ३०, ब्र. शीतलप्रसादनी द्वारा अतीव खोनके साथ . २.५ से २.८ तक साधारण हैं।-- सपा देत होकर प्राचीन श्रावको द्धारिणी समा-कल . कताकी ओरसे प्रकट होगया है । पृ० १५० वे० न० २५ में २०९से २११ तक अनेन - छपाई सफाई उत्तम और लागत मूल्य पांचआने। ज्याकरण व न्याय अपूर्ण हैं। थोवंद तुर्त ही मगा लीनिये अन्यथा पछताना होगा न० २६ से २९ तक वेष्टनों में २० २१ २से २२४ तक १३ प्रन्य कर्णाटकी लिपि ताड. पैने नर, दि० जैन पुस्तकालय-सूरत Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगंबर जैन | accom ( १४ ) आपणो प्राचीन सहकार । ( दंतकथा उपरथी ) कडो वर्ष पहेलां दिल्हीमां हिंदु राजाको पछी मुसलमानो राज्य कर्ता हता. दिल्ही शहे.. रनी बस्ती ते बखते लाखोनी संख्याथी गणाती, समृद्धि पण लाखोथी अंकाती हती. अग्र वाल जैनोनी वस्ती ते वखते ए शहरमा एक लाख घरनी हती एम कहेवातुं हतुं. एकवार अग्रवाल जैनोनो वरघोडो मोटा ठाठमाठथी नीवळयो हतो. नवा मुख्य माणसो हाथी घोडा अने पाखीओनां वाहनोमां बैठा हता, तेमनो पोषाक अने घरेणां रजवाडाने छातां तां तेथी तेभो बचाए ठाकोरो होय एवा देखावा हता. आ| वरघोडो जोवाने भाखुं शहेर हळपली रह्यु हतुं. भने ते बात छेक रामाना कान सुधी पहोंची गयेही होव यी राजा पोते पण वरघोडो जोवाने माहेर जग्या उपर बिराज्या हता. एक लाख मुख्य माणसो, तेमनां एक लाख वाहन, तेनो ठ'ठमाठ अने ते लाख माणसोनो कुटुम्ब परिवार (स्त्रीओ तेपन पुत्र पुत्रीओ) सघळु भोईने राजाने विस्मय थयुं भने भ्रांति थई के आ सवळ सामान्य माणसो छे के जागीरदार - ठाकोरो छे ? तेथी तेमणे पूछयुं. ए "यह सरवत किनका है ? " हजूरी - धनियेका । बादशाह - सबके सब बड़े मालदार दिख पढते हैं ! हजुरी - हां साब ! ऐसा ही है । बादशाह - क्यों सब ठकराछे हैं ? हजूरी-जी नहीं हजूर ! सत्र व्यापारी हैं। बादशाह - व्यापारी होवें तो कोई गरीब होवें, कोई तवंगर होर्वे, सब ऐसे एक सरीखे मालदार किस तरहसे हो सकते हैं ? बिना जागीर, बिना टकराई इतना ठठारा किस तरहसे एकता हो सकता है ? हजुरी- नहीं जनाब ! इनकी पास न तो कोई जागीर, और न तो कोई उकरात है । राजा - तब इनका क्या मायना होना चाहिये ! हजुरी - जहांपनाह ! इनका मायना इनकी जातिका रस्म है ! और वह रस्म ऐसा है कि जब कोई अग्रवाल किसी न किसी कारण से गरीब हो जाते हैं और घरबार रहित हो जाते हैं तब इनकी जातिके एक लाख घर हैं वे सब घरवाले एक एक रुपया देते हैं और एक एक मटीकी ईंट उस गरीब आदमी को देते हैं ! और वह आदमी इंसे घर बन्ध ते हैं और रुपिये से लक्षाधिपति होते हैं इसी तरहसे सब "अगराले ठकराले" बन जाते है ! यह चमत्कार इनका सहकार का है ! बादशाह - बडी भजनकी बात ! बनियेकी बडी अक मंदी ! और बडी विद्या ! अच्छा, ऐसा है तो "अगराले सब ठकराले" इनमें कुछ सन्देशा नहीं वाह वाह सहकार वाह सहः कार ! अच्छा, तो कलसे अपनी सारी जाति में आदमजहान में बादशाह - ये कौनसे बनिये हैं ? हजुरी - महाँपना ! यह " अग्रवाल जैन" कह और सारे शहेर में और सारी - छाते हैं । ऐसा सहकार बनादो । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) दिंगबर जैन । हजूरी-जो हुकम हजूरका ! वृद्धिसे काम लेना न जानते हों, धर्म और (ऊपरनी वातचीत पछी शु थयु ते आपणे कर्पके यथार्थ मर्मसे भिज्ञ न हों और सौम्य जाणता नथी, पण एक "थीओसोफीस्ट" सज्जन सत्यता एवं पवित्र निष्पक्षताके अगाड़ी धन और कहेछे के भा बनायने पांचसो वर्ष थी गयां छे, बसर मोहित होना न जानते हों। नैन समा. तेथी ते वखतना दिरहीना लोको तेमनी अधुरी ममें इन सब बातों की कमी है। आने घर्षका रहेली सहकारनी वासना तृप करवाने सारु हाल आघापद्ध। ज्ञान उन्हें ऊंचे उठानेके स्थानपर जन्म्या छ भने ते राना तथा तेना कार्यवाहकोए नीचेको गिरा रहा है। उधर पढे लिखे धके हालना सहकारना प्रवर्तक नेताओनो जन्म जानकार विद्वान् व धनवान आपसी श-नमानमें लीधो छे. ते वखते तार, टपाल, छापखाना, पस्त हैं तो घर विचारे अधिकांश धर्मकै उच्च. भागगाडी विगेरे बीजां साधनो न हतां, तेथी मावोंसे अनभिज्ञ जनसमुदाय और भी बुरी तेमनी पाखी दुनिभामा सहकार फेसावधानी इच्छा तरह अपने जीवनकी उत्तमता और उत्कृष्टताका तृप्त थाय तेम नहोतुं, तेथी जे वासना रही अन्त कर रहे हैं। दोनों ओर बेसुधी बेखुदीका गएली तेनी हालनां साधनो द्वारा सहकार फेलावी बाजार गरम है । लेकिन कोई भी मनुष्य इस तेभो तृप्ति करे छे !!) कोटिमें हमारे धर्मके ज्ञाता मनुष्यों-सज्जनोत्तम हरजीवन रायचर शाह-आमोद. मनुष्यों को विशेष अपराधी करार देगा। मझ्या गिरिकी समीरमें यदि सरस सुगन्धं न हो तो वह किस कामकी | जहां वह हो वहां अपने ee * वीर-विचार! अड़ोसीपड़ोसीको भी अपने जैसा न बना सकी तो उसकी सत्ताकी क्या आवश्यक्ता ? *** BY दिल्लीकी बिम्बप्रतिष्ठा के मेले पर यह दृश्य देखती (लेखक बाबू कामताप्रसाद मैन, अलीगंन) हुई आंखों के सामने था। यहां जैनप्तमानकी आमनुष्योंके आचारविच र ही उस देश और धुनिक अवस्थाका ख मा चित्र बड़ी ही खूबीसे जातिकी आदर्शताको बतलानेवाले होते हैं। जिस दिखाई पड़ रहा था, चाहे शारीरिक दृष्टिले देश व नातिके वे निवासी वा अङ्ग हों और चाहे धार्षिक अथवा किसी भी दृष्टिसे . देखा जा किसी भी धर्म, किसी भी जाति, किसी मी सक्ता था । बों, स्त्रियों और युवकोंके मुखों कौमकी किसी तरहकी भी उन्नति होना उस पर उनकी अवस्थानुपार लोन और ते नकी अवस्था तक असम्भव है जबतक कि उत्त देश कमी पर बनावटी शृंगार उनके शारिरीक हासको व जातिके मनुष्यों में वास्तविक ज्ञानकी विवेक- दिखा रहा था । कारमान शत्रु मा न होने शक्ति अपना प्रकाशन फेला रही हो और देनेकी नौरत न पहुंने दे॥ --तमाशबीनीमें, मनुष्य मांख खोलकर अपनी विवेक विचक्षण शैरगर्दी में अपने समयको विता देना उनको Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - दिगंबर जैन । उनके धर्मके प्रति प्रेपको दर्शा रहा था-अज्ञान- और फिर यदि इससे मी कहीं बच गया तो तममें पड़ा हुभा जतला रहा था । और विद्वान ज्योनार पूनापाठ करके नाम कमाना चाहिए । व धर्मके ज्ञाता - मनुष्प इधर कोरी शानमानमें क्या वह कि हम अपने धर्मके उद्देश्योंका थे कि जिप्ससे तेरा तीन होते वने । यही हालत ध्यान करें, जातिकी दशाका विचार करें और हरएक जगह जैनियों में में जूद है । बात यह है उ. का ज्ञानतम मेटनेके प्रचारका उपाय करें ! वह अपने धर्म के मर्मसे नावाकिफ हैं। नैन- पर यहां तो है शानगुमान और अपना मतलब ? ध के सिद्धांतोंके अनुसार चलकर यदि हम कैसे अनोखे जैनी आज हम हैं ! वहां जैन अपने जीवन के दैनिक कार्य कर तो हमारे न धर्मका सिद्धान्त ! कहां वीरप्रभूका उपदेश कहां, उतना पापका बन्ध हो और न हमारी हारत हम ! उतनी खराब हो नितनी कि हो रही है । अपने वीर-धर्मके माननेवाले प्यारे वीरो ! विकार धर्मके सर्व प्रथम माव-अहिंसाभावका ध्यान रख- कीजिए ! विश्वास कीरिए ! वीरकी वाणीको नेसे हममें प्रेमका प्रचार होने लगे जिसकी आव- विवेकबुद्धिसे ग्रहण कीजिए । आपका धर्म श्यक्ता आजकलके जमाने में सबको मालुम पड़ सिखाता है कि पुद्गल अनादि है। वैसे ही जीव रही है। और शक्ति के प्रथकत्वके स्थानमें एक- भी सदैव रहने वाला है । जीवका गुण चेतना स्वको प्राप्त होनेसे सब कुछ सध सके । पर ऐसे (देख ना जानना) है । जीवनमें मनुष्यका वर्तव्य हो कैसे ? हमारी हिंसा बहुत अंशों में अब यह होना चाहिए कि वह आत्मामें शक्ति और शरीर और पद्दल तक सीमित हो गई है। शांतिकी उन्नति करे । इस कारण प्रत्येक जीवको अहिंसाके यथार्थ भाव हमसे कोसों दूर हैं। हम अपनी आत्मोन्नति करनेका सर्वाधिकार स्वयं किसी भी मनुष्यको किाना भी मानसिक दुःख प्राप्त है। किसी भी जीवको विसी भी दूसरे क्यों न २-वेशक अपने मान कष.यों के वर्श भूत जीवकी किसी तरहकी आत्मिक, शारीरिक व होकर-पर वह हमारे निकट सिा नहीं है। लौकिक उन्नतिमें बाधा डालनेका स्वत्व प्राप्त हिसा वेवल किसी कीवकी मृत्यु करने का नहीं है। हां ! यह अवश्य है कि उन सब शारीरिक कष्ट देने में ही समझी जाने हगो है। जीवों को जो विसी मी ताहकी योग्य उन्नति बातोंसे कृत्योंसे किसी के दिलको वितना भी करना चाहते हैं, अपनी उन्नति अपने आप करने सताऐं-कितना भी दुख ऐं-यहां तक कि जिप्तके देना चाहिए। यदि हो सके तो हमारा यह कारण उसके प्राण इतने क्लिष्ट हो जाएं कि दम कर्तव्य होना चाहिए कि उनके कार्यों की राहे ठों पर आनाय १२ उसमे हपको तनिक मी ना करके उनके उत्साहको बढ़ाते रहें अथवा हिंसाकी वू नहीं दिखाई देगी ! हमारा मतलब जो विशेष ज्ञानके धारी हों उनका यह धर्म सघना चाहिए । हापा कमाना चाहिए । उसे होना चाहिए कि यदि वे सन्मार्गसे विमुख हैं सामाजिक नोंकचों में खून खर्च करना चाहिए। तो उनका वह भ्रप अति नम्र हो प्रेमके साथ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) है तो हम रानिके अंधेरे से ही उठकर उप ओर पवान करने लगेंगे तब कहीं बच कर प्रभातके सुहाउने कामें उन शिखिरों की वन्दना कर पायेंगे जिसके लिए हम इतने लालायित हो रहे थे । दिगंबर जैन | ONGO उनको काल करके उसके दिलसे निकलवा देना चाहिए । यह हमारा धर्म हमको सिखाना है । वीरप्रभुं वीरादेश हमको वीर अहिं वृत्तिको उसके यथार्थ स्वरूपमें धारण करके वीर बनने का उपदेश देता है । बतलाता है कि धार्मिक तत्व ● धार्मिक वृत्तिशं केवल धार्मिक कव्यों तक ही सीमित नहीं रहते हैं । सुतां उनका गहरा सम्बन्ध हमारे जीवन घरग्रहस्थीके रोनानाके कार्यों से रहता है जिसके विश्वास लाने के लिए आपका आलोचनापठका पाठ ही पर्याप्त है परन्तु धार्मिक विचारकी - वीर देश की उपेक्षा करके आपका यह आलोचना राठका कोरा पठ कार्यकारी नहीं हो सक्ता । इसलिए हमको अपने धर्मको अपने अमली जीवनमें लाकर दिखाना चाहिए | धर्म निश्च यथार्थ विस्तीर्ण भावपर ध्यान देना चाहिए । वीरप्रभूके वीर-विद्यारोंसे आने अमली जीवनको उन्नत बनाना चाहिए । किसीको भी हताश होनेका अवसर ही न देना चाहिए । हमारा आदर्श सर्वविरूपातू परम निर्मत्र परम पवित्र परमोच्च परम बलशाली परमानन्दमई परमात्मपर है । पर आज यह जानकर हताश हो बैठना हमारे दिए शोभनीक नहीं है कि हम आधुनिक कालमें अपने आद शको प्राप्त नहीं कर सक्ते । इस विचारसे हमा रेमें तनिक भी कमजोरी न आना चाहिए । हम क्रमशः प्रयत्न करते ही वहां तक पहुंच सकेंगे । एकदम चटसे उसे नहीं पालेंगे। अपने इस छोटे जीवनसे ही जब उसके पीछे लग जांयगे तत्र शुभ प्रकृतियों के अनुसार उसके निकट पहुंचते जांबगे । यदि हमें शिखरनीकी वन्दना करनी इसे कहना होगा कि जैसा हमारा अदर्श उच्च उत्कृट और सम्पूर्ण है उसी तरह हमारे विचार मी वैसे ही प्रभावशाली होने चाहिए | क्योंकि विचारोंसे ही कार्योंकी उन्नति होती है । अस्तु हमें अपने अपलमें प्रभूवीर के उपदेश-प्रभूवीरके उन्नत विचार लाना चाहिए जिससे हम अपना और परका उपकार कर सकें, सबके भीवन के महत्वका अनुमा कर सकें और संप्तरको प्रभूवीरकी सार्वभौमिक सर्व हितैषी सरस वाणीकी सरलता पर परमोत्कृष्टता अपने ही चारित्र द्वारा दिखा सकें । याद रखिए: जीवन, बिनु प्रेम-प्रेम विनु जीवन जीवन पर धरम विनु नाहीं । घरम, विनु सुकन- सुकन, विनु घरम धरम विनु विवेक न सुहाई । सुनिन करतब देखहु मनलाई ! रक्षाबंधन कथा हिंदी भाषा मेंसलूना पूजन व श्रीविष्णुकुमार महामुनि पूजा सहित - छपकर अभी ही तैयार हुई है । रक्षावन पर्व के लिये थोम्बं भव मगाइये | मूल्य सिर्फ ढाई भने । मैनेगर, दिगंबर जैन पुस्तकालय -सूरत । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ફિયા બૈરા ( ૨૦ ) બે થી છે. એ જ રીતે నను వినికిడి પાંચમે મજલે (સીમલાની ટેકરીની ઉંચાઈ) બેઠા બેઠા વાઇસરોય સાહેબ, જોઈએ તેવા કાયદા ઘડાવી શકે છે, તેવી જ રીતે ગુજરાતમાં વસ્તા કેટલાક મદભર શ્રીમતો જેમ ફાવે તેમ વ તો એ એમને એમાં શું ? જેની પાસે પૈસા હોય, જેની પાસે વિભવ હોય, બસ અમર ચારનાં ઘોડાં લેખક-ચુનીલાલ વીરચંદ ગાંધી-મુંબાઈ) હોય પછી ચાહે તેમ બોલવાનો અધિકાર પણ કોઈ પણ કાર્ય કરતા પહેલાં ઘણાએ એમ ન હોય ? કહી દે છે કે, “ એમાં શું? ” પરંતુ સંપૂર્ણ ગયા છ માસમાં પેથાપુર મુકામે ગુજરાતવિચાર કર્યા સિવાય કાર્ય કરવા જતાં જયારે ના (પ્રાતીજ ઓરાણ વિભાગ) ભાઈઓનું પંચ પ્રવૃત્તિ પ્રતિકૂળ નીવડે છે. ત્યારે પશ્ચાતાપ થાય છે, મલ્યું હતું તે પ્રસંગે પાછળથી ચાલીય એકતાલીસ “ એમાં શું ?” કહેનારા અજ્ઞાનતા અને પ્રમાદના ની સંમતિ અને સંપબળથી કામકાજ ઠીક થયું ગુલામ નથી શું ? બળ, બુદ્ધિ, રસ્તા, લક્ષ્મિ,. હતું પરંતુ તે પહેલાં તો પંચના બે પક્ષો વહેં-. અને મનુષ્યબળના આવેશમાં ન કરવાનું કરી નાખે ચાઈ સામસામે ગોઠવાયા હતા, અરસપરસના પક્ષે તેમજ ન બોલવાનું બોલી નાખે, ત્યારે, ગુમાનીને એકબીજાનો દોષ કહેતા અને હૈયા ખાલી કરતા ભાન હોતું નથી, છતાં જ્યારે કોઈ પણ સાચા હતા. પંચ રહી જશે એવું ચોકસ લાગવાથી ૨૦ બોલો. યાતો તેહી થાદ દેવડાવી ભુલ સુધારવા મોહનલાલના પક્ષકારોની આગેવાન અને મેહનલાલે કહે તે પ્રત્યુત્તર એવોજ મળે કે “ એમાં શું ?” હાયપલટો કર્યો હતો. શેઠાઈને માટે આ લડાઈ લંકેશ પતિ રાવણે જનક કન્યાનું હરણ કરયું છે, એમ ર૦ કેશવલાલ અને તેમના પક્ષકારોના હતું ત્યારે તેને વિદ્યાબળ, બાહુબળ અને સંપૂર્ણ કહેવાથી રાક મેહનલાલે, પંચનું અસ્તીત્વ આબાદ એશ્વર્યનો_ડ હતો. રાખવા માટે પોતાની શેઠાઈ છોડી દીધી હતી, તે પછી શેઠ તરીકે ચુંટાયા હતા, પાછળથી પંચનું બળવાન કર્યું કે, ધિશ જરાસંધ, અને કામ સરળ રીતે ચાલ્યું હતું તે દરમિયાન પંચમાં અને બળવા રાજા મહારાજા, પણ ભિન્ન ભિન્ન કરતાં કરતાં એક બીજી વાત સાંભળી. મોટાઈ અને છોટાઈના બોલ બેલાતા હોય, જેના જીવકપની તપ કળા અને કૌશલ્યના તેજથી નમાં અભિમાન જ પ્રધાન પદ ભગવતો હેય, વૈભગર્વિત જર્મન કયસરને ભારે હાર ખમવી પડી ના ક્ષણભંગુર ઝળકાટથી ઝુંપડીઓમાં રહેનાછે. યુરોપના દરેક રાજ્યની સામે નીડરતા નિયા- રામને તુચ્છ માનતા હોય, તે તેવા ભુલ કરતા થતા, અને આત્મબળથી ઈસ્લામનો ઉદ્ધાર કર્તા બંધુઓની ભુલ સુધારવા કંઇ લખવું જોઈએ એમ એ કમાલ પાશા અને જગલુલ જાશા અભિમાની માનું છું. ભુલતા માણુની ભૂલ ન બતાવતાં ન હતા, તેમજ દરેક ઐશ્વર્યશાળીની માફક હાજી હા કરવું એ ચે,ખી ખુયામાં છે. મહા છે એમાં ?” કહી ઝીપલાવનાર, રાક્ષસી મહતવા પા૫ છે, પાપ કરતી અટકાવવે. એ સ્નેહી તરીકાંક્ષાભિલાસી ન હતા. હિંદની પ્રજા આવિક કેની માનવ તરીકેની અનીવાર્ય ફરજ છે. રથીતિમાં કફોડી હાલતમાં હેય? હિંદના લાખે મુરલીસ થઈશું, દરદી થઈશું, નીરાધાર સ્ત્રી પુરૂષને એકટંક ખાવાના પણ સાંસા હોય, થઈશું એવી પુન્ય અને પાપાધીન કલ્પનાઓ અર્ધા ની હાલત કરે, છતાં મીઠાપરને કર બેવડે સાચી માની કોઈની પણ સહેમાં (તેજમાં ) દબાઈ કરતાં વાઈસરોય સાહેબને એમજ લાગ્યું કે-એ માં શું? ગુલામી જીવન ગુજારવું એ શું માનવ રીત છે ! Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ૧૨ ) મરવાની આશાએ ડૂબીમવું એ શું વીરતા છે, અશકિતના કારણે સહન કરવું એ શું સાચી શકિત છે? આપણે જેટલાં પાપ છુપાવીએ છીએ, અને જેટલાં અવિચારી કાર્યાત ટકા આપતા રહીશું, તેટલીજ જોખમદારી વધે છે, કુમકુમ અગર કાજળના ચાંદલા સ્વબુદ્ધિ અનુસાર વહેારી રહ્યાં છિએ. 1 પંચમાં જોસભેર ચર્ચા શની ચાલતી હતી તે વાતપર આવીએ. શું ? રાજ્યકન્યા છત્રમાં જશે ?'' આ અભીમાની ખેાલ નહિ । બીજું શું? આવી ભાવનાઓથી કન્યાઓને કામા`ત્રત લેવાં પડશે અને કુમારેશને પશુ કામાત્રતનું પણ લેવું પડશે ? * અભિમાન કૃણિધરને નહિ, દુધ પાઇને પૈધાડવો રાવણસરીખેરાજ વેપણ,લીધાનથીક લાડવા, અભિમાન કાઇના રહેતા નથી, રહ્યા નથી, હેરો પણ ના. એ ચેાપ્પુ' સમજવા છતાંએ શા માટે ભૂલ કરતા હશું? એજ નવાઇ લાગેછે. રાજ્ય કન્યા કયાંથી થઇ, એમની માતાએ તા ઘણા ભાગે સાજનીજ કન્યા હશે ? એમ મારૂં માનવું છે. રાજની અભિમા સ્થંભે અને શ્રીમ’તાઇના તેજને અખંડ પ્રકાશિત રાખ નાર તા એ આછી આછી છાયેલી સાજની મઢુલીની કન્યા અને તમારી આશાની ઊષા સમી તમારીજ તે તારણહાર વેલીઓથી વીંટળાયેલી અને આછાં આછાં પુષ્પોની સુગ ંધિથી અેકતી મઢુલીએનાં જીવન એટલાં બધાં નિર્દોષ હોય છે, એટલાં બધાં નીરાગી હેાય છે, તેમજ કુદરતી પરિચિત 'હૅય છે, એજ ઢુલીના પ્રતાપે રામે રાવણને મહાત કર્યા હતા, એજ મઢુલી અને મહાલયની કીંમત આંકનાર તીર્થ કરીએ મેક્ષપદ મેળવ્યું છે, અને એન્જ લાલીત્યરસભીની મહુ લીના સહવાસમાં કેટલાએ રૂષ મુનીઓ જીવન સફળ પરી ગયા છે, જે મઢુલીની કીંમત છે, જે કુદરતની મીઠી મઝા અને મીઠી સુગધીની ભરપુર આખા હવાને બરાબર સમજે મીઠી સમજે છે, જેને ઝુ'પડીની કદર નથી આંકી શકતાજ નથી. પણ કુટી હા યા તે दिगंबर जैन | 099 એ મહેલેાની કીંમત રાજયમહેલ હા "3 પર'તુ જ્યાં જે ધરમાં આગેવાન ગુમાની થાય છે, ત્યાં ન્યાય નીતિ પ્રેમ અને દયાના અાત્રાય છે, ગ્રડનાકાના સુકાની દીૠડીણુ થાય છે. ત્યારે કેળવશુંીના અભાવે “ સરકારે સિદ્ધિ એટલે વડીÀાના સરકારાથી આખું કુટુંબ તેવાજ સંસ્કારમાં પરિપૂર્ણ થાય છે, જયાં પુરૂષ અભી માની થાય છે અને કુદરતને ભુકે છે, ત્યારે સ્ત્રીએ પણ ગુમાની થાય છે, પુરૂષથી સાઈ અને છે, મેટાઇની ભાવનાએ જ્યારે રગેરગમાં ઊમરાય છે, ત્યારે હળાહળ સ્વાર્થ છલકાય છે, ધાર્યું. તે। કુદરતનું થાય છે, છતાં મચ્છરવ ત માનવ ફુલાય છે, પછડાય છે, રીખાય છે, છતાં અભિમાની પળે પળે એમજ કહે છે એમાં શું?” આમ્રવૃક્ષ જ્યારે ળાથી લચે છે. ત્યારે કેવું નશ્રીભૂત થાય છે, જેમ જેમ વિશેષ ફળથી લગે છે. ત્યારે નમીતે ા સ્વમાલીકને અને વટેમાર્ગુને આપે છે. આપણે ખીજી ઉદારતાન દર્શાવી શકીએ છતાં ખેાલી નાખવાની. સમાજને ચુંથી નાખવા જેટલી ઉદારતા તેા નજ બતાવીએ. માડીંગ પ્રત્યેની સહાનુભૂતિ નથી ગમતી, કે નથી ગમતી કેળવણી ખાળકા માટે; આપણુતે તા તમાસાજ પ્રિય છે. ખેલવામાં જે શૂરાપણું, પક્ષા પડવામાં જે મધ અને સ્વાર્થ સાધક બનવામાં અમીરીને ભેગ આપીએ છીએ, તેટલેાજ ભેગ પાઠશાળા, ખાર્ડીંગ, કે બાળકાના ઉદ્ધાર માટે આપવાની શું જરૂર નથી ? રાજવાળા કે સાજવાળાએ કન્યા કે પુત્રની કેળવણીમાં વધારે હિત ચક્રાંતા હૈય એમ કર્યા પણું દેખાતુ નથી, કેળવણીમાં કે ક આગળ વધી હાય તેા ત્રણુ ચાર વ્યકિત છે. અને તે વ્યકતી પણ કુટીનીજ વિભૂતિ છે. પૈસા હાય જીભ હૈાય એટલે શ્રીમંત વર્ગના બાળકોને માટે ભણવાની જરૂર ઓછી હાય એમ તેખે માનતા હાવા જોઇએ ! Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ લિવર જૈન ( ૨૦ ) તમને ચાહાય છે, તે તમે શા માટે દૂર અજ્ઞાન રાખી છિન્નભિન્ન કરી નંખાય છે, તે રહે છે. તમે સાજની મઢુલી માં મહેમાન પછી લગ્ન માટે શું વિચારવાના હતા ? . તરીકે તમારા કોઇ નેહી કે સગાને ત્યાં જાઓ છો તહેવાર માર્ગ, અને ધર્માભ્યાસ ત્યારે તમારી સરભરા કેવા પ્રેમથી કરે છે, તમોને કન્યા પિતા ધર્મ સમજતી થાય છે. પાક શાસ્ત્રમાં ઓછું પડશે, એવી ધારણાએ-તમારી સેવામાં પ્રવિણતા અને સ્ત્રી ધર્મની રહસ્યતાજ ફક્ત સમઘરકામ ભૂલી જાય છે, ચોવીસે કલાક તમારી સેવા જાવવામાં આવે તો શુદ્ધ સંસ્કારના વળે તે આદર્શ બજાવે છે, સાજવાસીની સાધન ખામીને લઈ કુમારિકા થઈ અંતે સતિ સીતા, સતી અંજના, કદાચ એકાદ ચીજ ઓછી પડી જાય—અને તેથી અને આદર્શ માતા થયછે. આજકાલ તો કેળતમે તો ફજેતો બીજે કરે એવા ભયથી, વણી આપવામાં ભલું માનતા નથી. હાર બુદ્ધિ ઉછીની ભગીને પણ ટી બે પુરી કરે છે, અને આપવામાં સાર નથી પરંતુ આખી જીંદગીનું તમને ખુશી રાખે છે, છતાં જ્યારે એ સાજવાસી ભલું કષા છે કે પેલા શ્રી સંતના પુત્રને રંડાવવામાં ” તમારા મહાલયને આંગણે આવે ત્યારે, તમારે મન રહ્યું છે. કેવી આસુરી ભાવનાઓ? તેને હીસાબ નહિ, સરભરા નહિ, માન નહિ પાન બાળકોનું ભાવિ સારું નીવડે એવી ચીવટ નહિ, કયાંથી હોય ? જ કયાંએ મહાલયવાસી રાખવી એ માબાપની પહેલી ફરજ છે સાચી ફરજ અને કયાંએ સાજવાસી ” સાજવાસીજ જાણે તે માબાપની એવી હોવી જોઈએ કે— તમારી સરભરા માટે સરજયા નહિ હોય એમ પુત્ર વરસ પંદર કે સોળ વરસને થાય, અને માને છે. કોઇપણ ભેળે કે ગરીબ માણસ મહે. પુત્રી ઓછામાં ઓછા દસ વરસની થાય ત્યારે. માની કરવા જાય ત્યારે પુરૂષ તે ટીકા કરે પરંતુ આદર્શમય, વરવધુનું જોડું થાય તેવી ઇચ્છાથી, બૈરાંઓ પણ ટીકા કરી બીચારાને મુંઝાવે, આ વેવીશાળ કરવાં જોઇએ, સ્વભાવમાં પ્રકૃતિમાં અને શું રાજરીત છે કે શું એ અમીરી છે, તમારાં કેળવણીમાં પૂર્ણ પ્રેમી હોય તેવી પ્રસંદગી હેવી એ મહાલય છે, કે સાંજવાસીની ફજેતીના જોઈએ. શ્રીમંત વર્ગમાં પૈસા જેવા, બુદ્ધિશાળી અખાડા છે. વર છે, અને આદર્શ ભાવનાઓ જોવી જોઇએ, શ્રીમંત તે એજ કે જેઓ અમીરી ની પરિ- કદાચ બુદ્ધીશાળી વરની ખામી હોય તો સુગુરુશાળી લ, ઉદારતા પ્રેમ, સરળતા, અને મીઠી સ્વાગતથી કન્યા પિતાની થેલીને પરણાવી સ્વફરજથી મુકત પમરાવી શકે છે, શ્રીમંતો તો એજ કે દુઃખી થાય થયા છીએ એમ માની છુટી જવાતું નથી પરંતુ છે. પિતે દુખી સ્થીતિમાં હોય તે, પોતાના માટે પળે પળે પુત્રીને નીસાસા અને શ્રાપના ભેગા થવું પણુ એ લાચારી હોય છે, એવી કલ્પના કરી પડે છે, શકે છે. તેજ દુઃખમાં મદદગાર રહે છે. વર આદર્શ ભાવનાઓથી ભરપુર હોય, કર્મપૈસાદારીજ કન્યાનું ભલું કરે છે એમ પણ શાળી હોય, અને પિતાનું ગુજરાને કોઈની પણ માનવું ન જોઈએ તેમજ મલીના વાંસી કન્યાના પ્રશામત કે લાચારી વિના ચાહે તેવી સ્થીતિ શુભેચ્છક હોય છે એ પણ ખેડુ' છે. કન્યાની પુરૂ કરવા શકિતવાન હોય, ખાનદાની હોય, તો ઉત્પત્તિ એટલે લક્રિમની પ્રાપ્તિ છે, એમ જેઓ તેનાથી બીજી એક ઉત્તમ નથી. હમણાં એકજ માને છે જાણે છે તેજ કન્યાને દેવકન્યા બનાવી કન્યાં બીજે પરણાવવાની તૈયારી ચાલે છે. તેજ શકે છે, અને તેના ઉદ્ધારને ખરો રસ્તો શોધે છે, દાખલો લઈએ, જ્યારે વેવીશાળ કરતાં અરસપુત્રીનું સાચું હીત પૈસાદારને પુત્ર વિધુર થાય પરસની લાયકાત જોતા નથી, કન્યાને વર નહિ (રાડે) તેમાં નથી. પુત્રીનું સાચુ હિત પૈસા મળે એમ કન્યાવાળા માને છે અને વરને કન્યા જેવાથી નથી, કન્યાનું હીત તે પહેલાં જ કન્યાને નહિ મળે એમ વરવાળા માને છે. આવી બેઊ છે Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ હિમવર ના અધીરાઇમાં આવો એક પણ બનાવ આખી કોમની ઠગાયા પરંતુ હજારોને જેઓ ઉઠાં ભણાવતા હતા. દુર્દશા છિન્નભિન્નતા કરે છે. અને બેઉ પક્ષોને તેઓ ઠગાયા છે. કુદરતે તેમને ચેતાવ્યા કે તું મહાન આઘાત થાય છે. મારી વીરૂદ્ધ ન ચાલ, તારામાં કેટલી વિકતા છે? કન્યાને બીજે પરણાવીને તેને બાપ પિતાને કેટલી સમજ શક્તિ છે ? તે વિચાર પણ તે સુજે સુખી તો માનતો જ નથી, પરંતુ જીવે છે ત્યાં કયાંથી? પૈસાના તોરમાં ન સમજ્યા તે ન સમજ્યા. સુધી બાળપણમાં વેવીશાળનાં બંધ કરવાં ને હવે તો કોઈ વાર રડે ( બીચારા કોઈપણ જોઇએ તેવો પશ્ચાતાપ કરે છે. જેટલો પશ્ચાતાપ ભાઈની પુત્રી મરી જાય ) ત્યારે, એ ઉજવળ કન્યાના બાપને થાય છે તેટલોજ બળાપે, તેટ: રસ્તા મળે અગર હજુ પણ જેમાં ખાનદાન છે. લંજ દખ તેમને પશુ થાય છેચેતે, મારા પરંતુ તેમનાં દીલ માનતાં નથી તે ) તેઓના ભાઈઓ ચેતે, તમારાજ ઠરાવ, તમારા જ વિચાર સામે મીઠી નજરથી નીહાળે તેજ ઈચ્છા પાર પડે ઉલટી બેડીઓ રૂ૫ થાય છે, આ વેવીશાળનું શુ એમ લાગે છે, કરવું. એ તે ઉભયનું ભાવીજ રસ્તો શોધી લેશે. હાલનું પરિવર્તન પસામાં. ઘણુએ એવા લગ્ન થાય છે કે લાકડે માંકડ - ફલાણે સારા દાગીના પહેરી લાવ્યો છે. ભલે પૂર્ણ કજોડાં થાય છે, એટલાએ એવા વેવીશાળે પછી ભાડુતી હોય, ફલાણે વધારે પઇસા કમાય બાળકોના થાય છે. કે બાળક એક દિવસને લાગે છે પછી ભલે કંઈ ના હોય પરંતુ અત્યારે હોય છે, આવાં પરિવર્તન ન કરવા વિષે કહ્યું કશું તો વિચીત્ર જમાનો છે. 5 0 ત્યારે એવો જુવાબ મળ્યો કે પછી કોણ જાણે આવા પરિવર્તનમાં પૈસાદાર કહેવડાવવામાં કન્યા ન મળી તો. વર ન મળે છે, માટે સાનું મોટો લાભ તો એ છે કે તરત જ કન્યા મળે, અને નશીબ સૈની પાસે “એમાં ?” તે પણ મોટા ઘરની. આ પરિવર્તન એટલું બધું પૂર્વના સંસ્કારે સિવાય એક પણ કાર્ય દુઃખકારક છે કે ખરેખર આપણી અધોગતિની બનતું નથી, છતાં મનુષ્યોએ પુરૂષાર્થ કોડ નશાની છે. આજકાલ આવા પરિવર્તનમાં સફળ ન જોઈએ. કુદરતી વિરૂદ્ધ આશાએ, હવાઈ કીહલા તે પામેલા ઘણાએ દાખલા બન્યા કરે છે, બાંધવા અને વર રોડે અને કન્યા પરણે એ શું કરવું ? આવા પરિવર્તનમાં પાંચસો તો આકાશકુસુમત જેવું છે, પાંચસેના એ મનીઓડર અરબસ્તાનથી પરસ્તાન ભરૂચ ગુમાવ્યું આ કહેવત ઘણા વખતથી અને પરસ્તાનથી કબરસ્તાન આઠ દસ વખત સો ચાલે છે. રવબળને મદ એ ભરૂચના દિવાનને બસ રૂપીઆને 'ખરચે મોકલવાથી પૈસાદારની હતો અને તેથી હોતા હૈ ચલતા હૈ' એવી વાતોમાં ડીગ્રી પર જવાય છે. આવા પરિવર્તનમાં ચળકાટના લલુભાઈએ ભરૂચ ગુમાવ્યું હતું એવી વાત ચાલે ભુખ્યા પેલા લક્ષમીદાસ ભાઈ, જરૂર તમારે છે, અને ત્યારથી વાતવાતમાં લલુભાઈએ ભરૂચ આંગણે દોડી આવશે,” લોભી આ વિશે ત્યાં ધુતારા ગુમાવ્યું એમ કહે છે. તેવી જ રીતે કઈ-વ-સડે ભૂખે ન મરે ” એ બરાબર સાબીત થાય છે. આ જ ભમણામાં ઘણાએ ફાં માર્યા', છતાં વર જે કર્તવ્યબળ ઉપરજ ભવિષ્યનું ચણતર રાંડયાં નહિ. અને રાંડયા તે પત્રિીસ વરસ ઉપરના, છે એમ માને છે, જેઓ જેવું વાવે છે તેવુંજ. હવે આ અરસામાં પંચ ભેગું થયું. પહેલાં કન્યા- લણે છે, એવું ભાન રાખે છે. જેઓ જેવું આપ કાળ કહેવાતો હતો. આ સમયે વરને ટાટ જણાય તેવું પામે છે, એમ માને છે. તેવા ધર્મને માનમોટી મોટી વાતો કરતા હતા તેમણે કાંઈપણ નારા માનવ ફરજ સમજનારા કર્તવ્યપરાયણ તે વેળા વીચાર કર્યો. જેવું તેવું પણ પછી નહિ મનુષ્ય કોઈપણ દિવસ એવી જાળ પાથરીને મોટા - ન મળે એ વિચારથી ભેળા દીલના માણસો ન ખરચા કરીને કે ખુશમિતીયા ટેળી પાસે વાહ વાહ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રિવર ના કહેવડાવીને, મોટા થવા કે પૈસાદાર કહેવડાવવા સેવિકાને ધર્મ પૂર્ણ કરવા તેમજ પતિપરાયણતા વિચાર સરખે પણ કરતા નથી, પરંતુ જ્ઞાનના સિદ્ધ કરવા યાર હતાં છતાં તેમને દેશનેતાઅભાવે આવા પરિવર્તનમાં ઘણએ માણસ ખોટે ઓએ રાકયાં છે એટલે તેમાં ઘેર રહ્યાં છે. લાભ લઈ શકે છે જેવા થાય તેવા થઈએ, તેજ સ્ત્રોમાં પણ આટલી શકિત છે, આટલો ગામ વચ્ચે રહીએ, એ કહેવત યાદ આપી જમા- દેશ માટે પ્રેમ છે, કામ માટે છે, ધર્મ માટે છે, નાનું ભાન કરાવે છે. તેવી પ્રેમની એકજ અંજલી પીઓ અને પાઓ સાચે શ્રીમંત તે પિતાની આદર્શ માળા પણ બસ છે. તમને કેમ ફેરવવી તે શીખવી તમારાથી હમેશને અંદર અંદર લડવામાં આપણી બુદ્ધિ ખરચી, માટે દૂર રહયો છે. એ છીએ, મોટા મોટા બેલ બેલવામાં ફુલીએ સાચી અમીરીને પાઠ ભણાવનાર આપણા છીએ તેથી શું આપણી અમીરી છે ? માનવંતા જૈનકુલભૂષશુ દાનવીર શેઠ માણેકચંદ પ્રપંચ, મોટાઈ અને સ્વાર્થની ઝાંખી કરવાને હીરાચંદ જેપી. જ હતા. નાનાની સાથે એજ માટે એજ દલિત; અને પુણ્ય સંચય કરવાને માટે અમીરી અને મેટા ની સાથે પણ એજ અમીરી વર્ગ મેળવવાને માટે અને દાનવીરની પદવી મેબતાવતા હતા. કોઈને મોટા કે નાના ગણુતા ળવવા માટે પણ એજ દોલત, નહોતા. લાખ રૂપીઆની સખાવતે અને તેથી દૌલતમાં હું કોણ છું એનું ભાન થાય છે. સ્થાપેલી અનેક સંસ્થાઓથી તેમને લેશમાત્ર પણ અને દૌલતમાં “ એમાં શું ?” બેલતા ગુમાની અભિમાન હોય એમ સાંભળ્યું ન હતું. અભિમાન થાય છે. તું ઘણુંએ પણ ધર્મનું જ હતું. દાનવીર પુણા વાટીકાઓમાં હજુ હજારો પં. ખીડાઓ માનવપદ પામે છે. તમારાજ ભાઈઓ બધાં દરદને વિસારી એજ શાન્તિભુવનમાં પોતાનું ઘર માની આંનદ કરી રહ્યા છે. મુંબઇમાં રહ્યો નાથ શ્રવ ધ્ર હેતુ અવતાર भूल गये हम निज स्वरूपको, पुन: करो सञ्चार ॥नाथ॥ મળે પણ ઓટલે ન મળે, એ કહેવત તમારા जैन जातिकी जर्जर नैया, दुःख समुद्र मझ धर। માટે અરે તમારા બાળકોને માટે તેમની સાથે લઈ डूब रही है कर्णधार विन, इसे लगाओ पार ॥नाथ। 'ગયા છે, તમારે માટે અનેક ઇમારતે આપી ગયા છે. था घर घर विज्ञान जहांपर, अति निर्मल अधिकार । એજ અમીર દિલનું કુટુંબ, એજ અમીરી, हाय! आज अज्ञान वहांपर, प्रगटित हुआ अपार ॥नाथ એજ દયા, એજ પરોપકારમાં તરવરી રહ્યું છે. વિજ્ઞ હશો તો ૪ ક. દશે કુમી દાના આપણે ઈશ્વર પાસે તેમના આત્માની શાંતિ અને મંત્ર “ભલા પરમોધર્મ,” વિષે રથા નિદાન તેનાથી તેમના કુટુંબની દીર્ધાયુષ ઇચ્છીએ છીએ. नष्ट हुभा सर्वस्व हमारा, नहीं रहा आचार। . એમાં શું ? ક્યાં સુધી બેસીશું. આટલી દેશ મતિ વિદ્યા દ્રોહ કરા, ઘ ઘર દુગ્રા પ્રવાર નાથ ! પરિસ્થિતિ જાણ્યા છતાં પરદેશી કપડા, છોડતા हे दुःखभंजन करुणासागर, है अब यही पुकार। નથી. આપણુજ દિગંબર ભાઈઓ જેવાકે જો ગુદ્ધિ ફુલ “નૈનનાતિ” જો, નિષ દોસદ્ધાર પાનાથી છોટાલાલ ઘેલાભાઈ મેવાડા તથા ઠાકોરદાસ હરજીવનદાસ આમોદવાળા છે, તેઓ નાગપુર મુકામે રાષ્ટ્રીયધ્વજના રક્ષણાર્થે જઈ કેદ થયા છે, તેમાં નિ વારાહી–સાગર ભાઈ છોટાલાલના ધર્મપત્ની પણ કેદમાં જઈ દેશ हजारीलाल जैन न्यायतीर्थ, Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1652 ఆవశ్యకతను 8. आवता - पर्युषण-पर्वना पवित्र दिवसोमा तमारा प्रभु चैत्यालयो माटे मनने प्रफुल्लित करी सुगंध पसरावे एवो धूप अने अगरबत्ती तेमज मंदिरजीमा उपयोगी पवित्र वस्तुओ क्याथी मंगायशो ? -: प्रशंसापात्र थई चुके लो :- पवित्र द्रव्योथी बनावेलो RE सळी वगरनी अगरबत्ती SNASASASASNYSISANSAS Sassa SSNANSASasasasasasasasasasas SES* सळीपर पतळी अगरबत्ती अगरनी रतल रु. ४) सुखडनी, रु. २) रु.२॥) परतल. kasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasasx अगरनी रतल २) सुखडनी, १) स्वदेशी काश्मीरी केशर तो.१रु.॥) _ळी हमारे त्यांची पवित्र शी अत्तरो, तेओ, सोना चांदीना वरख, वाळ'कूची, कस्तुरी, अंबर, सुखड, ख दी रंगवाना पाका रंगो, पानमा सानो के डओ कायो, मोती नो सुरमो, चोखु सुखडनुं तेल ( दवामां बापरवा माटे) अनेक माता वसाणाओथी भरपुर धुपेठना वाव नी पडीओ तेमन च ख्खु धूपेल, सुरत विलाप्त कंकुनी डबी, जनोई वगेरे वानवी भावथी मळ सार्नु ठेकेणु: सरैया बर्स जैनी-सुरत. SURAT, assassagasasesasasass9ESSASSASSANA Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2/3R दूसरीवार छपकर तैयार होगया। श्रीमान जैनधर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलपमादजीकृतहर एक गृहस्थ को उपयोगी सर्वोत्तम ग्रन्थ न गृहस्थधमे / जो प्रथमवार बिक जानेपर कई वर्षों से नहीं मिलता था दूसरीवार __ सूरतमें छपकर तैयार हो गया। गृहस्थधर्म में कौन 2 विषय हैं ? इस महान ग्रन्थके 31 अध्यायों में पुरुषार्थ, आदिकी विधि भी है। सारांश कि गृहस्थाश्रम में सम्यकूचारित्रकी आवश्यकता, श्रावककी पात्रता, सुख व धर्मरूप रहने के लिये इस 'गृहस्थधर्म गर्भाधानादि सभी संस्कारका खुलासा व विधि, अन्य हरएक श्रावकके पाप्त रहना चाहिये / अनैनको श्रावककी पात्रता, श्रावक श्रेणी में प्रवे- इस एक ही प्रन्यसे लौकिक, धार्मिक, सामाशार्थ प्रारम्भिक श्रेणी, श्रावककी 11 प्रतिमा- जिक समी कार्य सब सकते हैं। पृष्ठ 312 ओंका अलग 1 वर्णन, विवाह के पश्च त् गृहस्थके मुल्य 1 // ) व पक्की जिल्द 1 // ) आवश्यक संस्कार, संस्कारित माताका उपाय, गृहस्त्री धर्मा वरण, समाधिमरण क्रिपा, जन्म मरण और चार नये ग्रंथ तैयार। अशौच का विचार, समर की कदर, जैनधर्मकी श्रीपालचरित्र-(अष्टानिका व्रत माहात्म्य) 12) सनातनता व उन्नतिका उपाय, हम क्या खाये जैन इतिहास-दूसा भग व पयें, नित्यपूजा आदि इतने विषयों का संग्रह आत्मधर्म-(ब्र.शीतल प्रसाद नीकृत दूरीकार) =) है कि इस ग्रन्थके पढ़नेसे एक जैनी जैनधर्मका मल्लीनाथपुराण- (खुरे पृष्ठ, सचित्र)-४) सच्चा श्रद्धानी बन सकता है / यज्ञोपवित, विवाह श्रीपाल नाटक (नवीन बड़े अक्षरों में) 1) मगानेका पता मैनेजर, दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत। "जन विजय" प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला,-सूरतमें मूलचंद किसनदास कापड़ियाने मुद्रित किया और "दिगम्बर जैन" आफिस, चंदावाड़ी-सूरतसे उन्होंने ही प्रकट किया।