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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
दिगंबर जैना. THE DIGAMBAR JAIN.
नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्तताम्, दैगम्बर जैन समाज-मात्रम् ॥
वर्ष १६ वॉ. || वीर संवत् २४४९. आपाद वि० सं० १९७९. . || अंक ९ वाँ.
हो सके तो सब भाई खुद नित्य किसी न किसी शास्त्रका स्वाध्याय करें । नियमित रूपसे स्वाध्याय करनेसे अनेक शास्त्रोंका पठनपाठन
हो सकता है । हमारे करीब २ सभी शास्त्र अष्टान्तिका पर्व पूर्ण होचुका और चातुर्मासका छपकर प्रकट होचुके हैं इसलिये जहां २ के
शास्त्र न हो मंगाकर अवय चातर्माला प्रारंभ होचुका है। वर्षके , मंदिरमें जो
'', १२ महिनोंमें आषाढ़ रखने चाहिये । अपने निजी खसे नहीं तो श्रवण भादों और आश्विन ये ४ मास ऐसे हैं मंदिरके भंडारके द्रव्यसे सभी शास्त्र मंगाकर कि जिनमें सभीको व्यापार धन्धेसे अवकाश संग्रह करनेकी परम आवश्यकता है। रहता है तथा वर्षा के कारण पृथ्वी जीवमयी स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्दनीकी स्मृ. होनाने से त्यागीमण इन चार महिनोंमें विहार तिमें एक संस्कृत ग्रन्थमाला प्रकट होरही है नहीं करते हैं अर्थात् एक ही स्थान पर रहकर जिसके द्वारा २३ संस्रुत ग्रन्थ प्रकट हो चुके धर्मसाधन करते हैं । यद्यपि ब्रह्मचारियों को एक हैं व लागत (अल्प) मूल्यसे मिलते हैं उनकी ही स्थान पर चातुर्मास करने की शास्त्रमें थाज्ञा एक २ प्रति हरएक शास्त्रभंडारमें अवश्य होनी नहीं है तो भी ब्रह्मचारियों में चातुर्मास एक ही चाहिये । संस्कृत न पढ़ सकेंगे तो भी शास्त्र स्थानपर करने की प्रवृत्ति होगई है जो बुरी नहीं है। भंडारमें ये ग्रन्थ होनेसे कभी न कभी उपयोगी
अब चातुर्मासमें जहां २ कोई भी मुनि, होंगे। इस ग्रन्थमालाके सभी ग्रंथ हमारे पुस्तऐलक, क्षुल्लक, ब्रह्मचारी या भट्टारकका निवास कालयसे भी मिलते हैं। होगा वहां तो नित्य सुबह शाम शास्त्र सभा जितना भी आरम्भ और परिग्रह हम कम होगी परन्तु जहां कोई त्य गीगण नहीं है करें उतना ही अच्छा है इसलिये इन दिनोंमें वहांके किसी विद्वान भ ईका कर्तव्य है कि वे हमें व्रत, उपवास, एक मुक्त गत्रि अन्न पानी खुद नित्य शास्त्र सभा करके सब भाइयोंको त्याग तथा हरी वस्तु अमुक संख्यामें ही वर्ष धर्म का उपदेश देवे और ऐसा भी प्रबन्धन नेका नियम लेना चाहिये । इसके लिये पूर्व