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________________ दिगंबर जैन। (१०) सोजित्रामें प्राचीन जैन १२ सर्वार्थसिद्धि टीका ५० १९१ १३ स्वामी कार्तिकेय प्राकृत मुत्र प. ४० ग्रन्थ। १४ आप्तमीमांसा टीका लघु समंत. सोमित्रा (गुजरात) में प्राचीन दि. जैन शास्त्र भद्रकृत अथवा अतिशय परीक्षा। भंडार विना सम्हालके हैं ऐसा जानकर हम ------ मगलाचरण ता. ३० जुनको आए व ता. २ जुलाई तक देवं स्वामिनममलं विद्यानंदं प्रणम्य मिजभत्त्या । ठहरकर काष्ठासंधी मंदिरके सर्व शास्त्रों की सूची विवृणोम्यष्टसहश्री विषमपदं लघु समंतभद्रोऽहं॥ बनाकर उनको नंबरवार वेष्टनों में विराजमान करा ... . अंतिम श्लोक दिया गया। यहां एक भधारक विजय. शिष्ट कृतदुर्दृष्टि सहश्री, दृष्ट कृतपरिदृष्ट सहश्री। कीर्ति हो गए हैं उनके स्थापित अनेक ग्रन्थ स्पष्टीकुरुतादिष्ट सहश्री, परमा वेष्टमपष्ट सहश्री।। - नोट-यदि यह प्रकाशित न हो तो प्रगट सूची शास्त्र भंडार। योग्य है। . - संस्कृत प्राकृतके ग्रंथ। नं० १५-पंचास्तिकाय व्याख्या अमृतचाद वेष्टन नं. १ वेष्टन नं. ३ ' ग्रंथ नं १ भाराधनासार सं० टीका रत्नकीर्ति नं. १६ भगवती माराधना प्राकृत मूल १० ७१ लिखी स० १४६६ मालवाके मंडप शुद्ध लिखी सं० १६१३ महीशासनमें प.१३९ दुर्गमें । अंतमें लेख है । इयसिरि सिवायरिय २ धर्म प्रभोत्तर श्रावकाचार प. ७५ विरइया भगवई आराहणा समत्त्वा ३ उपदेशरत्नाकर श्रावकाचार इससे शिवचार्य रहित प्रसिद्ध है। गाथा मट्टारक विद्याभूषणकृत २४ सर्ग श्लोक ४३७५ २१४६ ५० २६४ कि. १७७२ में औरंगाबादमें नं० १७ श्रुतसागरकृत सुत्र टीका जीर्ण (प्रकाशके योग्य है अन्यत्र नहीं) अपूर्ण ... नं. ४ यही पत्रे २१२ १८ गोमटसार मूल प्राकृत टीका सहित पत्रे वे. १ नं. ५समयसार आत्मख्याती १० १३९ ८७ लि. सं. १६३४ सूर्यपुर ( सूरत ) में ६। यही ५० १८५ १९ गोमटसार पंच संग्रह संस्कृत ७ कर्मविपाक सं० सकल कीर्ति श्रीपाल सुत उज्जकृत । अंतमें लेख है-चित्रकूट कृत प० २१ (प्रगट योग्य) वास्तव्य प्राग्वाट वणिनाकृते श्रीपाल सुत उन्जेन ८-९ सिंदूर प्रकरण ५०९-१२ स्फुटः प्रकृति संग्रह । पत्रे ६८ लि. सं.१५५१ १० वह्निशीतत्त्व व्यवस्थावाद ५० ४ नोट-यह शायद विलकुल प्रगट नहीं है, ११ अध्यात्मोपनिषद, हेमचंद्र प. ९ चित्रकूट कहाँ पर है।
SR No.543187
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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