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________________ दिगंबर जैन। · खनियाधानामें शिक्षालय-स्थानीय.. प्रवेश उत्थ्यव-श्री कुंथलगिरी में कुलभूषण बाल सभाकी ओर से यहां रसिकेन्द्र दि. जैन आश्रमके लिये नया मकान बना है उसका शिक्षालय रामा बहादुर जूदेव ( २ सिकेन्द्र) प्रवेशउत्सव सेठ कस्तूरचंद परमचंद परंढ़ावालोंके के ह थसे ता० ६३ जुलाई को खुल गया तब हस्तसे हि ज्ये वदी १ ३ को हुआ था। रानाजी व पं० मन्नीलालका विद्या के महत्वपर तब सेठनीने भाश्रमको १०१) दिये व ६६) व्याख्यान हुआ व विद्यार्थियों को मीठाई बांटी और मिले थे। गई थी। कारंजा-के महावीर ब्र• आश्रमको पंढरदस्ता स्वत्वहक्षिणी सभा-सोनी- पुरनिवासी सेठ जोतीराम दादानीने १००००) पतमें दस्सा भाईयोंको पृजन न करने देनेकी प्रदान दिया है । इस आश्रमका १२०० ) हठ बीमा भाई वर्षो से कररहे हैं यहांतक कि मासिक खर्च है जब अय ८००.) मासिक है । वहांके दसा भाई अपनो आम्नाय तक बदल असहमतसंगम-नामक पुस्तक जो ने को तैयार होगये हैं जिससे वहांके धर्मप्रेमी बेरिस्टर बाबू चंपतराय नी हरदोईने अंग्रेजी, भाइयोंने 'दि जैन दस्ता स्वत्व रक्षिणी समा” हिन्दी व उर्दू में प्रकट की है उसकी यूरोपमें स्थापित की है जिसका उद्देश दरका भाइयों को बहुत प्रसंसा होरही है । वहां के कई विद्वानों के निन प्रतिमा पूजन का पूर्ण अधिकार दिलाना है। उत्तम २ अभिप्राय जैनधर्मके विषय में मिलरहे प्रवेश फी १) व वार्षिक फीस १) है । सबको हैं । अंग्रेजी पुस्तकका नाम है Contluence सभासद बनना चाहिये। व्यवस्थापक भाईदयाल & Opposites व मूल्य १) है। बेरिस्टर जैन, दि. जैन स्वत्व रक्षिणी सभा-सोनीपत साहब व हमसे भी अंग्रेजी व हिन्दी दोनों ( रोहतक) मिल सकती हैं। पुत्रजन्ममें दान- सेठ हजारीलालजी चतुर्मतीसे सावध रहो मुनि नामधारी छिंदवाडाने अपने यहां पुत्र जन्मकी खुशीमें हर्षकीर्ति (दोहदवाले)की चतुर्मती बड़ी टग है। ३०७)का विद्यादान किया है। अभी वह व्यावर जाकर ठगबाजीसे ५५०) ले देहलीके अनाथालय-की भजनमंडली गई और जैपुरसे एक प्रतिमा व हनारों . • १३ विद्यार्थी सहित मुरादाबाद पधारी थी तब एकत्र कर गई व कई स्थानोंसे फूल केशर भी आश्रमको ५४ ४) की सहायता मिली व एक खूब एकत्र करती है इसलिये जहां भी यह धून पाठ वर्षका अनाथ जैन बालक प्रवेशार्थ चतुर्मती ( जो अपने को आनिका बताती है ) मिला था। पहुंचे तो उनसे सावध रहें व एक पाई भी न आरा-में जैन सिद्धांत भवनका नया मकान देवें | इनका यह धंधा है कि द्रव्य इकत्र करके बाबू निर्मलकुमारजीके अथक परिश्रमसे बन हर्षकीर्तिको लेजाकर सोंपती है व खुद भी रहा है। वहां अहर्निश रहती है ।
SR No.543187
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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