Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 09
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ दिगंबर जैन । काव्य व्याकरण न्यायके हैं जिनमें कुछ के नाम पत्र पर हैं । यद्यपि किसी २ पर कुछ नाम बालबोधमें लिखा था पर विश्वासयुक्त न होनेसे नं० १३७ मन्त्रमहोदधि ५. ३१३ नोट नहीं किया, किप्ती कर्णाटकी जाननेवाले १५० मेदिनीकोष १० ११९ भाईको आकर इनका विवरण मालुम कर यहां के १५४ न्यायदीप प० १४ रजिष्टर में लिख देना व प्रगट कर देना चाहिये १५९ चम्पूका ५० १६ नं० २२५में कागन पर लिखा एक कर्णाटकी १६१ ज्योतिषरत्नमाला प० ३५ -- ग्रन्थ है। १६३ सारदातिलक ( वैद्यक ) ५० १५२ देष्टन नं० ३० से ३८ तकमे बहुतसे पूना १६५ कपकल्पलता प० ११४ पाठा दके गुटके हैं। नं० ३९ में अपूर्ण पत्रे हैं१६९ मदनपाल वैद्यक प० ३९ अपूर्ण . दि. जैन विद्वानों को यहां आकर इस मंडारके ११७ श्रावणभूषण प० २५ दर्शन करने चाहिये। १७० विवाह वृन्दावनटीका प० ८२ माणिकचंद ग्रंथमालाके कार्यकर्ताओं १७३ योगमंनरी काव्य ५० १३. . को उचित है कि नं०३, ७, ११, १४, १९, १७५ नंदोपाख्यान ५० १४ २५, २७, ३६, १५, ४६,५१,५२, ५५, १७८ सामुद्रिक हि० माषा प० ९ ५७, १०, १७५ पर ध्यान देवें । हमारी वे. न० २३ में नं० १८७ से २०० तक रायमें ये प्त प्रकाशके योग्य हैं। भपूर्ण जैन ग्रन्थ हैं इसमें नं० १९१ कल्पशास्त्र यहां ग्रन्थों के लिये मूलचन्द हरीलाल व मग. पं० १९३ तीर्थ प्रबन्ध (श यद वे हैं) व० है) वानदास नवरदाप्त को लिखना चाहिये। उत्साही १९४ पंचालान प्रथमतंत्र ५० ५१ है न युवक परोपकारी त्रिभुवनदास व फूलवेष्टन नं० २४ में . चानी हैं इन्होंने प्रमों की सम्हाल में बहुत २०१ पद्मपुराण सोपर्क कृ द्ध ही। मदद दी। पीला 17 बगः सीलला ।द ब्रह्मचारी । २.२ परमात्म प्रक'श सं० टो: प० १९७ शुद्ध लि० सं० १५१८ प्राचीन जैन स्मारक . २०३ प्रद्युम्न चरित्र, सं० २०५ अर्ण ---. २०४ स्वयंभूस्तोत्र सटीक प. ३०, ब्र. शीतलप्रसादनी द्वारा अतीव खोनके साथ . २.५ से २.८ तक साधारण हैं।-- सपा देत होकर प्राचीन श्रावको द्धारिणी समा-कल . कताकी ओरसे प्रकट होगया है । पृ० १५० वे० न० २५ में २०९से २११ तक अनेन - छपाई सफाई उत्तम और लागत मूल्य पांचआने। ज्याकरण व न्याय अपूर्ण हैं। थोवंद तुर्त ही मगा लीनिये अन्यथा पछताना होगा न० २६ से २९ तक वेष्टनों में २० २१ २से २२४ तक १३ प्रन्य कर्णाटकी लिपि ताड. पैने नर, दि० जैन पुस्तकालय-सूरत

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36