Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 09
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 11
________________ दिगंबर जेन। श्वेताम्बर सम्प्रदायोत्पत्ति प्रतीत होती है । क्योंकि स्वयं श्वेताम्बराचार्य निनेश्वर सुरिने आने 'प्रभा-रक्षण' नामक गवेषणा। तर्क ग्रन्थके अन्त में क्षेताम्बरों को आधुनिक (लेखक-बाव कामताप्रसाद जैन-अलीगंन) बतानेवाले दिगम्बरोंकी ओरसे उपरथा की दि० नैन शस्त्र से हमें पता चलता है कि जानेवाली इस गाथाका उल्लेख किया है:श्वेताम्बर संप्रदायकी उत्पत्ति ध्रुके वली भद्रबाहुके "छव्यास सएहिं न उत्तरेंहि तइया सिद्धिंनमानेमें अर्धफालक संप्रदायरूपमें हुई थी, जो गयस्त वीरस्त । अगाड़ी चलकर भनुमानतः ईसवीसन् ८० में कंवलियाणं दिट्टीवलही पुरिए समुप्पण्गा ॥ श्वेताम्बर सम्प्रदायमें परिवर्तित होगई। यह श्वेताम्बरों की उक्त प्रपाणमून गाथा दिगम्मकथन रत्ननन्द्याचार्यके ग्रन्थानुसार है। परन्तु रोंकी गाथाका बिगड़ा हुआ रूपान्तर है, इस. इनके प्रन्थसे प्राचीन ग्रन्थ दर्शनसार और भव. लिए मिथ्या है । और भगवान महावीरके जमाई संग्रहमें इस अर्धफाळक संपदायका कुछ उल्लेख जमालीकी ऐतिहासित प्रम णित करना अवशेष नहीं है । इससे यह मान्यता रत्ननाद्याचार्यकी है । बौद्ध ग्रन्थों में भगवान महावीरके विवाह ही निजकृति मालुम होती है, जो उन्होंने व उनके पुत्र पुत्रियों का उल्लेख कहीं नहीं है। प्राचीन ग्रन्थोंके बतलाए हुए श्वेताम्रोस्मत्ति इसलिए यही प्रगट होता है कि भगवान बाल. समयके करीब ४५० वर्षके अन.रको पूर्ण कर. ब्रह्मचारी रहे थे, क्योंकि यदि उनके निकट नेके लिए की थी। जैनहितैषीके संगदक महो. संबंधी होते तो उनका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ दयने ऐसा ही मत प्रदिर्शत किया है। उधर अश्य करते, जैसे उभोंने वीर पगवान के श्वताम्बर ग्रन्थों में लिखा है कि पहिला मतभेद अन्य भक्तों का उल्लेख किया है। इसे यह तो भगवान महावीरके जीवनकालमें उनके नमाई पाणित हो जाता है कि वेम्मा पहायकी जमाली द्वारा खड़ा किया गया था। और उत्पत्ति ही वास्तव में हुई थी । दिगं ।। सं दाप अन्तिम जो भगवान महावीरके पश्चात् सन् प्राचीन है। और जो इस विषयके दिाम्बर ८३ १० में हा उसे दिगम्बर संपदायकी कथानक हैं । वे करीब करीब सत्य हैं, परन्तु उत्पत्ति हुई । इसके प्रमाण में वह निम्न था उनमें जो श्वेताम्बर संपद यकी उत्पत्ति का समय पेश करते हैं: दिया हुआ है, वह संशयात्मक है। इसलिए छव्वास सहस्सहिं नवुत्तरोहिं सिद्धिं गयस्स इस लेख में उसकी उत्पत्ति के अनुपानतः यथार्य विरस्स। समयको जानने का प्रयत्न किया गया है। तो वोडियाण विट्टी रहवरिपुरे समुपन्ना ॥ समानके विद्वान पठसे. आशा है कि वे परन्तु श्वेताम्बरोंकी यह प्रमाणभूत गाथा अपने सपमाण विचार इस विषयपर अवश्य प्रकट किती दिगम्बर प्रन्यकी एक गााका रूपान्तर करेंगे। उनके निकट रह कहांत मस्य संपव

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