Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07 Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 4
________________ दिगंबर जैन। विना सम्पादक क्या कर सकते हैं ? जनमित्र और ब्रह्मचारीजी । दूसरी बात यह है कि बहुत से सभासदोंसे पाठकों जिनमित्र अंक २५ वर्ष २४"से यह हमें सूचना मिली है कि जहांतक नांदगांवके जान र अत्यंत दुःख हुआ कि समानके परम प्रस्ताव पर मीटिंग होकर विचार न हो वहां तक हितैषी पूज्य ब्र• शीतलप्रसादमीसे सम्पादकीका बाप ही जै-मित्र का कार्य चलाते रहें इसलिये लय कार्य कर पं. वंशीधरजी शास्त्रीको सौंग अमी मी हम जैनमित्र पूर्व अवस्थामें बराबर जानेवाला है । ब्रह्मचारी जी ने जो सेवा समाप्रकी चला रहे हैं व जहां तक कुछ निर्णय न होगा व नवीन प्रकाशक नियत नहीं होगा 'मित्रका' करा S, करी है वह बंधुओंपर प्रगट ही है । यह ब्रह्म कार्य हमें चालु ही रखना पड़ेगा। चारी जीके ही प्रयत्नका फल है कि जैनमित्र हमें निस्य कई पत्र आरहे हैं कि मैनमित्रके जैन समाजमें ही नहीं किन्तु जैनेतर समाजोंमें सम्पादक ब्र० शीतलप्रसादजी ही कायम रहने , भी सर्वप्रिय हो रहा है। वर्तमान समय में चाहिये (व दूसरे सम्पादक नियत होंगे तो हम कोई भी ऐसा जैन पत्र नहीं है जो जनमित्रकी ग्राहक नहीं रहना चाहते) तथा गुजरातके अनेक . तुलना कर सके । नैनमित्रमें सम्पादकीय लेख स्थानोंके भाईयों को मीटिंग सरत में हो गई नूतन जन अजैन देशी विदेशी समाचार व समजिनमें भी ऐसा ही प्रस्ताव हआ है इसलिये योचित मावपूर्ण कवितायें निकलती रहती हैं। गुमरातके व अन्य स्थानों के जैन मित्र के ग्राहकों. क्या कोई अन्य जैन पत्र मी ऐसा है जो इतने को हम विश्वास दिलाते हैं कि हम आपको नूतन समाचारों लेखों और कविताओंसे विभू. किसी मी अवस्थामें ब्रह्मवारीजीकी लेखनी से पित होकर नियमितरूपसे समयपर निकलता वंचित नहीं रखेंगे। अर्थात ब्रह्मचारी नीके संपाः रहता हो ? उत्तर स्पष्ट है "नहीं" | जैन मित्रके, दकत्वमें व हमारे प्रकाशकत्वमें साप्ताहिक २५ वे अंकसे ही यह भी ज्ञात होता है कि पत्र अवश्य २ पलू ही रहेगा । तौमी प्रत्येक ब्रह्मचारी नीने कोई त्यागपत्र (स्तीफा) न्हीं दिया माम व शहर की विशेष सम्प्रति मिलनेकी हमें हैं ऐसी स्थितिमें बिना कोई विशेष कारण हुये आवश्यकता है इस लिये जैन मित्र' के संपा. मित्रको एक परोपकारी संपादकसे निकालकर अन्य दक कौन होने चाहिये इसपर अपनी२ सम्मति संपादकके आधीन करना सर्वथा अनुचित और हरएक प्रम व शहरके भाई हमें भेन । हानिकारक है। हां उस हालत में अब कि संपा महावीरजी क्षेत्र-के इसारके मेले पर दक महोदयके निकट समयाभाव हो-समाके वेरिटर मातरायनीके सभापतित्वमें इस क्षेत्रकी, नियमोंके विरुद्ध लेखादि पत्रमें निकलते हों या प्रबन्ध कमेटी २१ समापदों की हुई है जिसमें और कोई अन्य विशेष कारण हो उस दशामें ८ भासद जयपुरके हैं। व समापति भट्टारकनी एक संपादकको हटाकर अन्य संपादकको नियुक्त व मंत्री ला० महावीरप्रसादजी नियुक्त हुए हैं। करना न्यायानुमोदित है। परन्तु जब कि ब्रह्मचाPage Navigation
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