Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 12
________________ दिगंबर जैन । (१०) पक प्रचार करें। हमारे विचारसे इन महात्माओंने अर्वाचीन (Non orthodox) मत साथ साथ केवळ यही कार्य किया और इससे अधिक नहीं। संस्थापित हुए और विकसित हुए तो हम जरूर सैद्धान्तिक नियमों और तस्वोंके संबंधमें दोनों ही उनमें एक समान तत्वों व नियमों की संख्याको ही धर्म बुद्ध और बर्द्धमानके जन्मसे बहुत पा सकेंगे। इसलिए यह विशेषतया सदैव जतपहिले से प्रचलित कहे जासक्ते हैं। दोनों ही लाने योग्य है कि जब कभी किसी विशेष मार. धर्म प्राचीन हैं। अवश्य ही उतने ही प्राचीन तीय दर्शनका अध्ययन किया जा रहा हो तो हैं नितने कि उपनिषद् ! उसकी तुलना देशमें प्रचिलित अन्य मुख्य मतोंसे यह मान्यता कि जैनधर्म और बौद्धधर्मके कोई की जाय । इतिहासिक (Records) वथन उपनिषिदोंके जैन धर्म यद्यपि बंगालमें बहुत कम अपनाया समकालीन नहीं हैं। और इस कारणवश वे और अध्ययन किया गया तो मी उसका स्थान उतने प्राचीन नहीं कहे जासक्ते जितने कि उप- भारतके सैद्धांतिक मतोंमें वास्तविक रीत्या उच्च निषद् हमारे लिए बाधक नहीं है। उपनिषद् है। विशेषतया नैन सिद्धान्त एक पूर्ण दर्शन प्रत्यक्षमें वेदोंसे विलग नहीं हुएथे और तत्फलतः है। उसमें सैद्धांतिक ज्ञानकी सर्व शाखाओंका एक अधिक संख्यामें उसके अनुयायी रहे। समावेश है । वेदान्त न्यायकी शिक्षा नहीं देता। अवैदिक (वेदविपरीत) धर्म पहिले पहिले भीरु वैशेषिक आचार सम्बन्धी नियमोंका वर्णन नहीं रहे होगे और अवश्य ही अपनेको व्यक्त कर- करते । परन्तु जैनधर्ममें उसका स्व. नेके लिए उपयुक्त अवतरकी बाटमें रहे होगे। यंका न्याय है-सिद्धान्त है आचार परन्तुः दर्शन (विचार) नियम होनेकी अपेक्षा वे है अध्यात्मवर्णन आदि है । वास्तवमें उपनिषदों के समय में भी विद्यमान रहे होंगे। यह एक दैदीप्यमान प्राचीन दर्शन है। भार. यह मानना संगत है कि जब विचारशील तीय फिलासफीका अध्ययन अधूरा मनुष्योंने अपने धर्मका विचार करना प्रारंभ ही रह जायगा, यदि जैनधर्मकी किया तब उन्होंने केवल एक पंक्ति ढूंढपाई अवज्ञा की गई। जैसे उपनिषिधोंकी । नहीं ! विचार स्वतंत्र था। हमारे जैन धर्मके अध्ययन करनेका प्रबन्ध इस और उसने आर्षके विपरीत नूतन पंक्तियां भी प्रकार प्रदर्शित हो गया। जैसे कि हम कहते ढूंढ़ निकाली होंगी। और अवश्य ही उपनिषि- हैं वह एक तुलनात्मक अध्ययन होगा। इसमें धोके सिद्धान्त शीघ्राम्य नहीं वहे ना सक्ते संशय नहीं कि यह एक अति कठिन कार्य है वनिस्बत अन्यों के, जिससे कि माना नावे कि वे जो समस्त दर्शनोंके यथार्थ ज्ञानको सम्मिलित अवशयम्भावी रीत्या पहिले से विचार कर लिए कर लेता है । परन्तु हम यहां केवल सनातनी नियमों पर ही विचार करेंगे। मि RARE माने किमाथी की AMERI दियीन का पक्ष गए होंगे।

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