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दिगंबर जैन |
MONDA
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करो । वैद्य कहेंगे कि पौष्टिक पाकादिका सेवन 1 करो और ज्योतिषी उपदेश करेंगे कि नवग्रहशान्ति करने में समर्थ हो, परन्तु दीर्घायु प्राकृतिक नियमों के पालनपर निर्भर है। उन नियमका ज्ञान प्राप्त करना हमारा प्रथम कक्तव्य है। मनुष्य जीवन के लिए वायु अत्यन्त आवश्यक हैं। मनुष्य बिना जलके घंटों भी सकता है, परन्तु विना वायुके एक मिनट भी जीवित नहीं रह सकता । शुद्ध [ वायु मनुष्यको स्वस्थ बनाती है और अशुद्ध वायुसे वह रोग ग्रसित होजाता है। इसी कारण नगरके रहनेवालोंकी रूपेक्षा ग्रामीण अधिक पृष्ट और बलशन होते हैं भारत की जन संख्या ९९ प्रति सैकड़ा ग्रामों में निवास करती है । प्राचीन " समय में नगरोंकी मी संख्या बहुत न थी ।
बासे उतरकर दूसरी आवश्यक वस्तु जल है । जल के ऊपर भी मनुष्यका स्वास्थ्य निर्भर है । भशुद्ध जल रोगका कारण है । प्रत्येक स्थानके जल में भेद होता है । पञ्जाबके जल में पाचनशक्ति अधिक है । बङ्गाउका जल अधिक पृष्टिकारक नहीं है, बल्कि मैलेरियादि जरोका उत्पादक है | किसी मनुष्य शरीरकी रचना और उसके माता पिताके शरीरकी रचना देशके जल, वायुपर निर्भर है । परन्तु फिर भी ईश्वर ने मनुष्यके हाथमें स्वास्थ्यकी बागडोर देदी है। " रसामुमांसमेदोऽस्थिमज्जाशुक्राणि धातवः " ये ही सात धातुयें हैं । इन्हींसे शरीर बना हुआ । इनमें प्रधान और सबसे अनमोल वीर्य है। कहा गया है कि जो वीर्य्यको रोकता है वही वीर है । वीर्यकी महिमा कौन नहीं जानता । जो इस रत्नको नष्ट करके आरोग्यता की अभि
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लाषा करता है, वह विना बुनियादके मकान खड़ा करना चाहता है । मनुष्यकी आयु इप बातपर निर्भर है कि उसने कितने समय तक ब्रह्मचर्य धारण किया है। ब्रह्मचर्य कालसे आयु चतुगुंगी होनी चाहिए। यदि ब्रह्मचर्य का २९ वर्ष तक यथार्थ पादन किया है तो कोई कारण नहीं कि आयु सौ वर्ष की क्यों न हो। इसका यह अर्थ न लगाना चाहिए कि यदि जीवन मर ब्रह्मचारी रहे तो वह फिर मरे ही नहीं, परन्तु इतना सत्य है कि ५० वर्ष का अखण्ड ब्रह्मचारी दो सौ वर्ष तक जीवित रहसकता है । हाँ, अकालमृत्युका ग्रास तो मनुष्य हर समय बन सकता है । यदि २९ वर्षसे पहले जिसने वीर्य नष्ट कर दिया है, वह चाहे जिस आयु में मरे | उसकी मृत्यु असमय नहीं कहला सकती। कारण, यह कि उस समय धातु परिपक्व नहीं होती । ऐसे पुरुषकी आयु ६० या ७० वर्ष ऊपर नहीं जासकती । आयुकी दीर्घता इस बात पर भी निर्भर है कि गृहस्थाश्रम में प्रवेश करके हम नियमपूर्वक रहते हैं या नहीं । २९ वर्ष के ब्रह्मन के पश्चात् यदि मनुष्य दुर्भाग्यवश व्यभिचारी होनाय तो वह सौ वर्षे तक जीवित नहीं रहसकता । दूसरी ओर वह मनुष्य जो सामाजिक दुरवस्था या किसी अन्य कारण से २९ वर्ष से पूर्व ही ब्रह्मचर्य नष्ट करचुका है, परन्तु अपना भविष्यका जीवन नियम पूर्वक व्यतीत करे तो वह वृद्धावस्था में भी बढवान् रहेगा और चिरायुको प्राप्त होगा । पञ्चविंशे ततो वर्षे पान् नारी तु षोडशे । समत्वागतवीयौ तौ जानीयात् कुशलो भिषक् । (सुश्रुत सूत्रस्थान ३५ अध्याय)