Book Title: Digambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 07 Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 3
________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दिगंबर जैन. THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम् दैगम्बरं जैन समाज - मात्रम् ॥ वीर संवत् २४४९. वैशाख वि० सं० १९७९. वर्ष १६ वाँ. अंक ७. और अंत में गंदगांव कि जहां खास केवल उनके अनुयायी खंडेलवाल हो सम्मिलित होनेवाले थे वहां प्रशंसाका अधिवेशन खंडेलवाल समाके साथ २ इस मामें करावा व वहां ब्रह्मचारीजी का नाम जैन मित्र स्वयेंसे निकाल देनेका प्रस्ताव किया गया है जबकि समाके स्थायी सभापति सेठ हीराचंद नेमचंद, उपसभापति व कोषाध्यक्ष सेठ ताराचंद चंद, उपसभापति सेठ सुखानंदजी तथा अन्य बहुत से सभासद इस बात से विरुद्ध हैं व ऐसा पत्र भी उन्होंने नांदगांव मेना या तौमी वहां ऐसा हमारे पाठक अच्छी तरहसे जानते हैं कि हमारी बम्बई दि० जैन प्रांतिक सभाकी ओरसे 'जैन मित्र' नामक पाक्षिक जैन मित्र । पत्र १२ वर्ष से श्री जैनधर्मभूषण पूज्य ब्र० शीतलप्रसादजी के सम्पादकत्व में प्रकट होरहा है बी करीब ६-७ ६र्ष से तो सुरतसे सापारिक रूपमें व हमारे प्रकाशकत्वमें प्रस्ट होता है । प्रस्ताव हुआ है । अब विचार किया जाता है तो मालूम होता है कि अबतक गांव जिसको हम प्रस्ट करते हैं उसकी प्रशासभाकी संपूर्ण कार्रवाई प्रस्ट नहीं हुई है तौ हम कैसे करसकते हैं परंतु इतना तो अवश्य प्रकट करना पड़ता है कि 'जैनमित्र' सारे हिंदके जैनियों में एक उच्च शैली के पत्रका स्थान पा रहा है व दिनों दिन पूज्य ब्रह्मचारी नीका मान व आदर बढ़ा रहा है जो इनेगिने द्वेषी मंडितगण व उनके मुट्ठी पर शिष्वोंसे सहन न होनेसे ब्रह्मचारीजी पर निर्लज्ज व झूठे आक्षेप कई दिनोंसे लगा रहे हैं और वे लोग इसी विचारमें थे कि ऐसी कोई कार्रवाई करें कि जिससे "जैनमित्र ही उनके हाथसे ले लेवें मी इतना ष्टा पड़ता है कि दो समाके समासद अलगर आये होंगे तब प्रजेक्ट कमेटी अलग होनी चाहिये थी व एक प्रांतिक व एक जातीयका मेल कैसे बैठ सकता हे इस लिये नांदगांव में जो समाकी कार्रवाई हुई है वह अनियमित ही मालूम पड़ती है । और जबसे जैनमित्र सप्ताहिक हु है तबसे नवीन चुनाव के समय प्रकाशकका नाम चुना जाता है जो इसबार नहीं चुा गया है इससे प्रकाशक कोई मी नियत नहीं हुआ है और प्रकाश के 1Page Navigation
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