Book Title: Dhyanhatak Tatha Dhyanstava
Author(s): Haribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 167
________________ समाधि . १२, ६८ ५६,६३ साधु मूल ग्रन्थगत विशिष्ट शब्दानुक्रमणिका समाहि समाधि (स्वस्थता) सम्मइंसण सम्यग्दर्शन तत्त्वार्थश्रद्धान सवियार सविचार भर्य, व्यंजन और योग की संक्रान्तिरूप विचार से सहित सव्वण्णु सर्वज्ञ तीर्थङ्कर, अरहन्त संकाइदोस शंकादिदोष सम्यग्दर्शन के अतिचारभूत शंका-कांक्षा आदि संघयण संहनन संहनन-हड्डियों का बन्धनविशेष संजम संयम प्राणातिपातादि पापों से निवृत्ति संठाण संस्थान जीवों आदि के शरीर की प्राकृति संवर संवर मिथ्यात्वादि पानवों का निरोध, अशुभ कर्मों के आने का निरोध संसार संसार जन्म-मरण आदि की परम्परा संसारहेउ संसारहेतु संसार के कारण-राग-द्वेषादि संसारासुहाणुभाव संसाराशुभानुभाव शुक्लध्यान में चिन्तनीय अनुप्रेक्षा विशेष सागर सागर लवणसमुद्रादि सारीर दुक्ख शारीरिक दुःख शीत-पातप आदि शारीरिक दुःख सावय श्वापद जलजन्तुविशेष साहू मुनि सिरोरोम शिरोरोग शिर का रोग । सील व्रत आदि का समाधान सीलंग शीलांग पृथिवीकायविषयक संरम्भका परित्याग मादि सुन ...श्रुत.. सामायिक मादि बिन्दुसार पर्यन्त श्रुत सुक्कझाण शुक्लध्यान शोक को नष्ट करने वाला अथवा भाठ प्रकार ... के कर्मरूप मल को शुद्ध करने वाला शुक्लध्यान सुक्कलेस्सा खुल्नलेख्य . प्रमलेश्या से बिशुद्ध लेश्याविशेष . सुहासव ., . शुभास्रव पुण्यास्रव. सुहुमकिरिया नियट्टि सूक्ष्मक्रिय-निवति । जो शुक्लध्यान सूक्ष्म क्रिया से युक्त होकर निवृत्त होने वाला नहीं होता सूलरोग . शूलरोग रोगविशेष सेलेस शैलेश शैलेश-पर्वतों का राजा मेरु । सेलेसी शैलेशी, शैलर्षि, सुमेरु के समान स्थिरता (शैलेशी), अथवा शीलेश सुमेरु के समान स्थिरता को प्राप्त ऋषि (शैलषि), अथवा सर्वसंवरस्वरूप शीलों की प्रभुता सेलेसीगय शैलेशीगत शैलेशी अवस्था को प्राप्त अयोगकेवली सोग शोक शोक, दीनता सोयण शोचन आंसुओं से परिपूर्ण नेत्रों की दीनता जिज्ञासित धर्म से युक्त पदार्थों का गमक हेतु शील - ८२ हेतु

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