Book Title: Dhyanhatak Tatha Dhyanstava
Author(s): Haribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
Publisher: Veer Seva Mandir
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पायाल
मूल ग्रन्थगत विशिष्ट शब्दानुक्रमणिका पायाल पाताल
भगाध जल से परिपूर्ण लवणादि समुद्रगत
पाताल (गर्तविशेष) पिसुणवयण पिशुनवचन अनिष्टसूचक वचन पीयलेस्सा पीतलेश्या
पालेश्या से कुछ कम विशुद्ध एक लेश्या पुच्छण प्रच्छना, प्रश्न सूत्र मादि में शंका के उत्पन्न होने पर उसे दूर
____ करने के लिये गुरु से पूछना पुष्वगयसुय पूर्वगत श्रुत उत्पादपूर्वादिरूप पूर्वगत श्रुत पुष्वधर पूर्वघर
उपयोग सहित चौदह पूर्वो के ज्ञाता पत्तवितक्क-सवियार पृथक्त्ववितर्कसविचार भेद अथवा विस्तार के साथ श्रुत से युक्त एक
शुक्लध्यान बहुलदोस बहुलदोष
हिंसानुबन्धी प्रादि सभी रौद्रध्यानों में निरन्तर
प्रवृत्त रहना बंधण बन्धन
रस्सी या सांकल मादि से बांधना बाहिरकरण बाह्यकरण
वचन व काय भव भव
जहां प्राणी कर्म के वशीभूत होते हैं, जन्म
मरणरूप संसार भवकाल भवकाल -
मोक्षगमन के समीपवर्ती शैलेशी अवस्था के
अन्तर्गत अन्तर्मुहर्त प्रमाण काल भवण भवन
भवनवासी देवों के भवन भवसंताण-प्रमंत भवंसन्तान मनन्त शुक्लध्यान में चिन्तनीय एक अनुप्रेक्षा
क्रममेद व स्थानभेद से उत्पन्न होने वाले
भेद, द्रव्य की एक विनाशस्वमवस्था ४६,५२१00E भावणा भावना
ज्ञान-दर्शनादि रूप चार भावनायें मावणा भावना
ध्यानाभ्यास की क्रिया : भूयवायवयण
क्ने-मैदने मादिरूप प्राणिपातपूषक वचन . . मैमत्थ राग- बीच में स्थित (उत्तान)
, मणोजोम
पादारिकक्रियिक मौर माहास्तरीर के
व्यापार से पाने वाली मनोवर्गणा के
माश्रय से होने वाला जीव व्यापार मनोयोगनिग्रह मनोयोग का विनाश मपीधारण मनोधारण अशुभ व्यापार से रहित मन का अवस्थान मद्दव
मानकषाय के परित्यागरूप धर्मविशेष
विशिष्ट वर्णों की प्रानुपूर्वीरूप मंत्रवाक्य माणसदुक्ख मानसिक दुःख मानसिक संक्लेश मायावी मायाविन्
माया से युक्त मारण
तलवार प्रादि के द्वारा प्राणों का वियोग करना मनि मोककी अकालिक अवस्थाका माननेवाला साधु ११. मुक्ति
मुक्ति, कर्म का क्षय मोरखपह मोक्षपथ
मौतमान (संवर व निर्जरा) मोह
प्रज्ञान
भंग
भंग
भूतपात वचन मध्यस्थ .. मनीयोग
.
मार्दव
मुणि
मुत्ति