Book Title: Dharmabhyudaya Mahakavya
Author(s): Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 16
________________ बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघी-स्मरणाञ्जलि ६१३ तेनाथी तइन विमुख रहेता हता. तेमने शोख मात्र सारा वाचननो अने कलामयवस्तुओ जोवा-संग्रहवानो हतो.ज्यारे जुओ सारे, तेओ पोतानी गादी उपर बेठा बेठा साहित्य, इतिहास, स्थापत्य, चित्र, विज्ञान, भूगोल के भूगर्भविद्याने लगता सामयिको के पुस्तको वांचता ज सदा देखाता हता. पोताना एका विशिष्ट वाचनना शोखने लीधे तेओ इंग्रेजी, वंगाली, हिंदी, गुजराती आदिमां प्रकट थता उच्च कोटिना, उक्त विषयोने लगता विविध प्रकारनां सामयिक पत्रो अने जर्नल्स् आदि नियमित मगावता रहेता हता. आर्ट, आर्किऑलॉनी, एपीग्राफी, न्युमिमॅटिक, ज्योग्राफी, आइकोनोग्राफी, हिस्टरी अने माइनिंग आदि विषयोना पुस्तकोनी तेमणे पोतानी पासे एक सारी सरखी लाईब्रेरीज बनावी लीधी हती. तेओ खभावे एकान्तप्रिय अने अल्पभाषी हता. नकामी चातो करवा तरफ के गप्पां सप्पा मारवा तरफ तेमने बहुज अभाव हतो. पोताना व्यावसायिक व्यवहारनी के विशाळ कारभारनी बाबतोमा पण तेो बहु ज मितभापी हता. परंतु ज्यारे तेमना प्रिय विषयोनी-जेवा के स्थापत्य, इतिहास, चित्र. शिल्प आदिनी-चर्चा जो नीकळी होय तो तेमा तेओ एटला निमग्न थई जता के कलाको ना कलाको वही जता, तो पण तेओ तेथी थाकता नहिं के कंटाळता नहि. तेमनी वुद्धि अत्यत तीक्ष्ण हती. कोई पण वस्तुने समजवामां के तेनो मर्म पकडवामा तेमने कशी वार न लागती. विज्ञान अने तत्त्वज्ञाननी गंभीर वावतो पण तेओ सारी पेठे समजी शकता हता अने तेमर्नु मनन करी तेमने पचावी शकता हता. तर्क अने दलीलमा तेओ म्होटा म्होटा कायदाशास्त्रीयोने पण आंटी देता. तेमज गमे तेवो चालाक माणस पण तेमने पोतानी चालाकीथी चकित के मुग्ध बनावी शके तेम न हतुं. ___पोताना सिद्धान्त के विचारमा तेओ खूब न मझम रहेवानी प्रकृतिना हता. एक वार विचार नकी कर्या पछी अने कोई कार्यनो खीकार कर्या पछी तेमाथी चलित थवा तेओ बिल्कुल पसंद करता नहि. व्यवहारमा तेओ बहुज प्रामाणिक रहेवानी वृत्तिवाला हता. बीजा बीजा धनवानोनी माफक व्यापारमां दगा फटका के साच-झूठ करीने धन मेळववानी तृष्णा तेमने यत्किंचित् पण थती न हती. तेमनी आवी व्यावहारिक प्रामाणिकताने लक्षीने इंग्लेंडनी मर्कन्टाईल वेंकनी डायरेक्टरोनी बॉडे पोतानी कलकत्ता-शाखानी वॉर्डमां, एक डायरेक्टर थवा माटे तेमने खास विनंति करी हती के जे मान ए पहेलां कोई पण हिंदुस्थानी व्यापारीने मळ्युं न्होर्नु. प्रतिभा अने प्रामाणिकता साथे तेमनामा योजनाशक्ति पण घणी उच्च प्रकारनी हती. तेमण पोतानी ज खतंत्र बुद्धि अने कार्य कुशळता द्वारा एक तरफ पोतानी घणी मोटी जमीनदारीनी अने बीजी तरफ कोलीयारी विगेरे माईनींगना उद्योगनी जे सुव्यवस्था अने सुघटना करी इती ते मोईने ते ते विषयना ज्ञाताओ चकित थता हता. पोताना घरना नानामा नाना कामथी ते छेक कोलीयारी जेवा म्होटा कारखाना सुधीमां-के ज्या हजारो मागसो काम करता होय-बहु ज नियमित, व्यवस्थित अने सुयोजित रीते काम चाल्या करे तेवी तेमनी सदा व्यवस्था रहेती हती. छेक दरवानथी लई पोताना समो. वडीया जेवा समर्थ पुत्रो सुधीमा एक सरखं उच्च प्रकारचें शिस्त-पालन अने शिष्ट आचारण तेमने त्यां देखातुं हतुं सिंधीजीमां आवी समर्थ योजकशक्ति होवा छता-अने तेमनी पासे संपूर्ण प्रकारनी साधनसंपन्नता होवा छतां-तेओ धमालवाळा जीवनथी दूर रहेता हता अने पोताना नामनी जाहेरातने माटे के लोकोमा म्होटा माणस गणावानी खातर तेओ वेवी कशी प्रवृत्ति करता न हता. रावबहादुर, राजाबाहादुर के सर-नाईट विगेरेना सरकारी खितावो धारण करवानी के काउन्सीलोमा जई ऑनरेबल मेंवर वनवानी तेमने क्यारेय इच्छा थईन हवी. एवी खाली आडम्बरवाळी प्रवृत्तिमा पैसानो दुर्व्यय करवा करतां तेओ सदा साहित्योपयोगी अने शिक्षणोपयोगी कार्योमा पोताना धननो सद्व्यय करता हता. भारतवर पनी प्राचीन कळा-मने तेने लगती प्राचीन वस्तुओ तरफ तेमनो उत्कट अनुराग हतो अने तेथी ते माटे.तेमणे लाखो रूपिया खर्ध्या हता. सिंधीजी साथेनो मारो प्रत्यक्ष परिचय सन् १९३० मा शरू थयो हतो. तेमनी इच्छा पोताना सद्गत पुण्यश्लोक पिताना स्मारकमां जैन साहित्यनो प्रसार अने प्रकाश थाय तेवी कोई विशिष्ट संस्था स्थापन करवानो हतो. मारा जीवनना सुदीर्घकालीन सहकारी, सहचारी अने सन्मिन्न पंडितप्रवर श्री सुखलालजी,जेभो बाबू श्री डालचंदजीना विशेष श्रद्धाभाजन होई श्री बहादुर सिंहजी पण जेमनी उपर तेटलो ज विशिष्ट सद्भाव धरावता हता, तेमना परामर्श अने प्रस्तावथी, तेमणे मने ए कार्यनी योजना अने व्यवस्था हाथमा लेवानी विनति करी अने में पण पोताने अमीष्टतम प्रवृत्तिना आदर्शने अनुरूप उत्तम कोटिना साधननी प्राप्ति थती जोई तेनो सहर्ष अने सोल्लास खीकार कर्यों. सन् १९३१ ना प्रारंभ दिवसे, विश्ववंद्य कवीन्द्र श्री रवीन्द्रनाथ टागोरना विभूतिविहारसमा विश्वविख्यात शान्तिनिके। तनना विश्वभारती विद्याभवन मां 'सिंघी जैन ज्ञानपीठ' नी स्थापना करी अने त्यां जैन साहित्यना अध्ययन-अध्यापन अने सशोधन-संपादन आदिनुं कार्य चालु कर्यः आविषेनी केटलीक प्राथमिक हकीकत, आ ग्रंथमाळाना सौमी प्रथम प्रकट थएला. "प्रबन्धचिन्तामणि' नामना ग्रंथनी प्रस्तावमामां में मापेलो छ, तेथी तेनी भहिं पुनशक्ति करवानी जरूर नथी.

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