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बन्ना० ॥१२॥ रूपे रति पति सारीखो, सकल कलाये पूरो रे.॥ अरिदमनानिध गुण नीलो, न ?
कुमर अ अति शरो रे ॥ ॥ १३ ॥ वरण अढार वसे सुखी, नृप आणा प्रतिपाले रे ।।
सहु को निज निज धर्मथी, कुल मारग अजुबाले रे ॥ जं ॥१४॥ कोटीध्वज व्यवहारी-टू है या, नोग पुरंदर सारो रे ॥ दान गुणे करी आगला, निवसे अति सुखकारो रे ॥ जंग ॥१५ है।
॥ दृढधरमी गुरु रागीया, नत्तम कुल आचारो रे ॥ समाकतवंत सदा घरे, श्रावकनां व्रत
बारो रे ॥ 5 ॥१६॥ दान कल्पद्रुम रासनी, प्रथम ढाल एह माखी रे ॥ जिन कहे श्री 13/ता सांजलो, मन वच तनु थिर राखी रे ॥ जं ॥ १७ ॥
॥ दोहा. ॥ वमवखती व्यवहारियो, तिहां वसे धनसार ॥ज्ञहि वृद्धि दिन दिन अधिक, जलधि परे विस्तार ॥१॥ जलधितणा जिम रत्ननो, पार न पामे कोय ॥ तिम
धनसारना धन तणो, लेखो कदिय न होय ॥२॥ दानादिक गुणथी अधिक, जिनधरम गु कोण गेह ॥ त्रिय तत्त्व सुधा धरे, व्रतधारी शुचि देह ॥ ३॥ शीलवती तस गेहिनी, नाम
तिसो परिणाम ॥ दंपति जोमी अति उरस, जिम सीता ने राम ॥ ॥ पंच दान नितप्रति 81 दिये, व्रत पञ्चरकाण नलास ॥ दोगुंडक सुरनी परे, विलसे लोग विलास ॥५॥
॥ ढाल २ जी, ॥ कोयलो परवत धूंधलो रे लो.-ए देशी ॥
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