Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ न०१ रबर धन्ना लो, टालवा पापना पंक रे ॥ सो०॥ व्य० ॥ ए॥ रथयात्रा रलीयामणी रे लो, साधूने व- सती दान रे । सो ॥ पमिलाने नावे करी रे लो, निरवद्य असन ने पान रे॥सो० व्य ॥ १०॥ यतः॥ अनुष्टुब्वृत्तम्. ।। जयंति वंकचूलाद्या, कोश्या चाश्रय दानतः ।। अवंतिसुकुमालश्च, तिर्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ जावार्थ:-साधु मुनिराजने रहेवा माटे स्थानक आपयाधी कोश्या वेश्या, अवंतिसुकुमाल अने वंकचूलादिक; ए सर्वे जयवंता वर्तो. कार के.तेन संसार सागरने तरी गया ॥डाना नित्य प्रत्ये सांजलेरेलो. दंपति ||धरी गम रे ॥ सो। सातदेत्रने साचवे रे लो, नियम धरे हित काम रे ॥ सो०॥ व्य० ॥११॥ पुण्य संयोगे अन्यदा रे लो, शीलवती सुकुमाल रे ॥ सो० ॥ गर्न धरे संयोगथी रेलो, निरुपम नाग्य विशाल रे । सो ॥ व्य० ॥१॥ देख्यो सुपनो दीपतो रे लो, - फल्यो फूल्यो 'सुरवृक्ष रे ॥ सो० ॥ देखी आनंद ऊपन्यो रे लो, कंतने कहे परतक रे ॥ सो०॥ व्य०॥ १३ ॥ कंत कहे कामिनी प्रते रे लो, दोशे पूत्र प्रधान रे ॥ सो०॥ कुल मंमण कुल दिनमणी रे लो, रूपे नूप समान रे ॥ सो० ॥ व्य० ॥१५॥ प्रत्यूषे प्रति प्रेमशं रेलो, तेड्या शास्त्रना जाग रे ॥ सो०॥ फल पूज्यां सुदणांतणारे लो, बोल्या तेह सुजा * कल्पवृक. सवारे. RECENCE Jain Education national For Personal and Private Use Only 177 linelibrary.org

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