Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ धन्ना तिम, नचित कीर्ति सुविचार ॥ ॥ इहलोके सुख संपजे, लहिये नित नवनीधि ॥ अन्न न ? 15 यदान देते थके, परनव शहि समृदि॥ ॥ एक शशक कगारते, पाम्यो झदि नदार ॥ गज नवथी नर नव लह्यो, मेघकुमर मनोहार ॥ ए॥तिम सुपात्र दाने करी, शिव सुख । है पामे जीव ॥ चित्त वित्त शुन्न पात्रथी, त्रिकरण शुक्ष अतीव ॥१०॥ पायसान्न दाने करी, पाम्यो लोग रसाल ॥ धनशाह धर्माग्रणी, पद पद मंगल माल ॥ ११ ॥ शालिन पिण दानश्री, सुख पाम्यो श्रीकार ॥ श्रेणिक किरियाणो कियो, नर नव सुर अवतार ॥१२॥ दीजे दान दया धरी, करी चित्त सुप्रकास।मनवंचित सुख पामीए, कल्पद्रुमपरे खास ॥१३॥ धन्नशाह गुण वर्णवू,वचनथकी लवलेशानिज्ञ विकथा बोझिने,श्रोता सुणो सुविशेष ॥१॥ ॥ ढाल १ ली. ॥ जंबूदीपना नरतमां-ए देशी ॥ जंबडीप सोहामणो, लाख जोयण परिमाणो रे॥ वृत्ताकारे विराजतो. जगति कनकमय जाणो रे॥जंबूदीप सोहामणो॥१॥ए आंकणी ॥ त्रिय लाख सोल सहसथी अधिक बस्से सत्तावीशो रे॥कोष त्रिक ऊपर कह्या, धनु शत एक जगीशो रे । जंबर ॥अठावीसे आगला, अंगूल सामातेर रे ॥ परिधि कही जंबूहीपनी, एहमां फार न फेर है। रे॥ जंबूप ॥३॥ नरतत्र दक्किण दीशे, सोहे जंबूदीपेरे ॥ पांचसे उबीस ब कला, जो CRACTOR-CANCHARACHAN Jain Education national For Personal and Private Use Only X ainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 276