Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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यणथी अति दीपे रे ॥ जंबूप ॥ ४॥ पट खंम वैतान्ये करी, गंगा सिंधुयी सोहे रे ॥ नरत । 8तणी शोना घणी, देखी सुर नर मोहे रे ॥ जं॥५॥ मध्यखंझमें शोन्नतो, पत्तन पुरप-18
गणोरे॥पुरी सम नपतो, अति उत्तम अहिगणो रे ॥जं॥६॥चौराशी चहुटानलां, गढ मढ मंदिर दीपे रे ॥ देनल श्री जिनराजनां, अमर नुवनने जीपे रे ॥ ॥७॥
पौषधशाला पनवमी, तिम वली पठननी शालो रे ॥ दानशाला अति दीपती, इप्सित दान 15 रसालो रे॥ ॥॥ गोदावरी तटिनी तिहां, अह निशि वहे असरालो रे ।। मच मयर 18 18 क्रिमा करे, सुंदर, सोहे मरालो रे ॥ जं०॥ए। वन नपवन वामी घणी, वृक्षतणा बहर | वृंदो रे ॥ सघन गयाथी शोन्नता, पंथी पामे आणंदो रे ॥ जं ॥१०॥ जितशत्रु नपति तिहां, राजे धनदने तोले रे ॥ खाग त्याग गुणथी नलो, लोक सहू जय बोले रे ॥ ॥ ११ ॥ यतः ।। नपजातिवृत्तम् ॥ इंशत् नृपत्वं ज्वलनात्प्रतापं, क्रोधंयमाश्रिमणाच वित्तं ॥ सन्यस्थिति रामजनार्दनाच्या, मादायराझः क्रियते शरीरं ॥१॥नावार्थ:-इयकी रा-3 जापमुं, अनियकी प्रताप, यमनी पासेथी क्रोध, कुबेरनंमारी पासेयी धन, तेमज राम अने जनार्दननी पासेश्री सन्यस्थिति; ए सर्वे लेइने राजानुं शरीर कराय ने.॥ १॥ सुंदर रूप सोहामणी, गुणसुंदरी पटराणी रे ॥ वचनामृतथी वरसती, शीले सीता जाणी रे ॥
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