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राजनीति और धर्म
तो गुरु द्वार है। इसलिए नानक ने ठीक कहा; अपने मंदिर को गुरुद्वारा कहा। बस, गुरुद्वारा ही है गुरु। वह द्वार है। उससे पार चले जाना है। गुरु इशारा है; जिस तरफ इशारा है, वहां चले जाना है। __इसलिए गुरु भी थोड़ा ज्यादा सत्य है, लेकिन असली सत्य तो परमात्मा है।
तो यहां तीन बातें हो गयीं : सांसारिक संबंध; आध्यात्मिक संबंध; पारमार्थिक संबंध। सांसारिक संबंध-पति, पत्नी, बच्चे। बड़े ऊपर के हैं, शरीर तक जाते हैं। बहुत गहरे जाएं, तो मन तक। ___ आध्यात्मिक संबंध-शिष्य और गुरु का संबंध। या कभी-कभी बहुत गहरे प्रेम में उतर गए प्रेमियों का संबंध। शुरू होता है मन से। अगर गहरा चला जाए, तो आत्मा तक पहुंच जाता है।
और फिर कोई संबंध नहीं; तुम अकेले बचो। तुम्हारे एकांत में ही परमात्मा आविर्भूत होता है; तुम ही परमात्मा हो जाते हो। फिर कोई संबंध नहीं है। परमात्मा और आदमी के बीच कोई संबंध नहीं होता-असंबंध है। क्योंकि परमात्मा और आदमी दो नहीं हैं।
तो तू पूछती है : 'क्या आप सत्य हैं?'
थोड़ा ज्यादा, ललित और बच्चों से। लेकिन परमात्मा और तेरे संबंध से थोड़ा कम।।
फिर पूछा है : 'क्या धर्म सत्य है?'
धर्म सत्य है। धर्म का अर्थ है: असंबंधित दशा। धर्म का अर्थ है: अपने स्वभाव में थिर हो जाना; अपने में डूब जाना। कोई बाहर न रहा। किसी तरह का संबंध बाहर न रहा। गरु का संबंध भी न रहा। __ वही है गुरु, जो तुम्हें उस जगह पहुंचा दे, जहां गुरु से भी मुक्ति हो जाए। उस गुरु को सदगुरु कहा है। उस गुरु को मिथ्या-गुरु कहा है, जो तुम्हें अपने में अटका ले। जो कहे, मेरे से आगे मत जाना। बस, यही तुम्हारा पड़ाव आ गया; मंजिल आ गयी। अब आगे नहीं। जो तुम्हें अपने में अटका ले, वह मिथ्या-गुरु। जो तुम्हें अपने से पार जाने दे, जो सीढ़ी बन जाए, द्वार बन जाए; तुम चढ़ो और पार निकल जाओ, वही सदगुरु।
और ध्यान रखना ः सदगुरु के प्रति ही अनुग्रह का भाव होता है। मिथ्या-गुरु के प्रति तो क्रोध आएगा आज नहीं कल; क्योंकि मिथ्या-गुरु वस्तुतः तुम्हारा दुश्मन है। पहले प्रलोभन दिया विकास का और फिर अटका लिया! पहले आशा जुटायी; तुम्हारे भीतर खूब आशा जगायी कि मुक्ति दूंगा। और फिर तुमने पाया कि एक नए तरह का बंधन हो गया। जंजीरें बदल गयीं; दूसरी जंजीरें आ गयीं। एक कारागृह से दूसरे कारागृह में प्रवेश हो गया। एक तरह की गुलामी थी; अब दूसरी तरह की गुलामी शुरू हो गयी।
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