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एस धम्मो सनंतनो
अज्ञात ही नहीं-अज्ञेय। ऐसा भी नहीं कि किसी दिन जान लोगे। _ इसीलिए तो जीसस ने कहा कि प्रेम परमात्मा है। इस पृथ्वी पर प्रेम एक अकेला अनुभव है, जो परमात्मा के संबंध में थोड़े इंगित करता है। ऐसा ही परमात्मा है-अकारण, अहैतुक। ऐसा ही परमात्मा है रहस्यपूर्ण। ऐसा ही परमात्मा है, जिसका कि हम आर-पार न पा सकेंगे। प्रेम उसकी पहली झलक है।
क्यों पूछो ही मत। यद्यपि मैं जानता हूं, क्यों उठता है। क्यों का उठना भी स्वाभाविक है। आदमी हर चीज का कारण खोजना चाहता है। इसी से तो विज्ञान का जन्म हुआ। क्योंकि आदमी हर चीज का कारण खोजना चाहता है कि ऐसा क्यों होता है? जब कारण मिल जाता है, तो विज्ञान बन जाता है। और जिन चीजों का कारण नहीं मिलता, उन्हीं से धर्म बनता है। धर्म और विज्ञान का यही भेद है। कारण मिल गया, तो विज्ञान निर्मित हो जाएगा।
प्रेम का विज्ञान कभी निर्मित नहीं होगा। और परमात्मा विज्ञान की प्रयोगशाला में कभी पकड़ में नहीं आएगा। जीवन में जो भी परम है—सौंदर्य, सत्य, प्रेम-उन पर विज्ञान की कोई पहुंच नहीं है। वे विज्ञान की पहुंच के बाहर हैं। जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, गरिमापूर्ण है, वह कुछ अज्ञात लोक से उठता है। तुम्हारे भीतर से ही उठता है। लेकिन इतने अंतरतम से आता है कि तुम्हारी परिधि उसे नहीं समझ पाती। तम्हारे विचार करने की क्षमता परिधि पर है। और तुम्हारे प्रेम करने की क्षमता तुम्हारे केंद्र पर है।
केंद्र तो परिधि को समझ सकता है। लेकिन परिधि केंद्र को नहीं समझ सकती। क्षुद्र विराट को नहीं समझ सकता; विराट क्षुद्र को समझ सकता है। छोटा बच्चा बूढ़े को नहीं समझ सकता; बूढ़ा छोटे बच्चे को समझ सकता है।
प्रेम बड़ी बात है-मस्तिष्क से बहुत बड़ी। मस्तिष्क से ही क्यों-प्रेम तुमसे भी बड़ी बात है। इसीलिए तो तुम अवश हो जाते हो। प्रेम का झोंका जब आता है, तुम कहां बचते हो? प्रेम का मौसम जब आता है, तुम कहां बचते हो? प्रेम की किरण उतरती है, तुम मिट जाते हो। तुमसे भी बड़ी बात है। तो तुम कैसे समझ पाओगे? तुम तो बचते ही नहीं, जब प्रेम उतरता है। जब प्रेम नाचता हुआ आता है तुम्हारे भीतर, तुम कहां होते हो? खुदी बेखुदी हो जाती है। आत्मा अनात्मा हो जाती है। एक शून्य रह जाता है। उस शून्य में ही नाचती है किरण प्रेम की, प्रार्थना की, परमात्मा की।
नहीं; उसे तुम न समझ पाओगे। जब तुम लौटते हो, तब प्रेम जा चुका। जो समझ सकता था, जब आता है, तो जिसे समझना था, वह जा चुका। और जिसे समझना है, जब वह वहां होता है तुम्हारे भीतर, तो जो समझना चाहता है, वह मौजूद नहीं होता।
कबीर ने कहा है : हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हेराइ। खोजने चला हूं, कबीर
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