Book Title: Dhammapada 12
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 297
________________ एस धम्मो सनंतनो ये सब बातें सघन होती रही होंगी। उस घड़ी में इन सारी बातों का जोड़ हो गया। उसने सोचा होगाः अब एक क्षण और रुक जाऊं कि मैं भी उसी जाल में पड़ जाऊंगा। और मैं भी वही करूंगा, जो सारिपुत्र ने किया। बेहतर है, मैं भाग जाऊं। कोई बहाना करके उतर गए होंगे-कि जरा घोड़े से उतर जाऊं। और भागे, सो भागे। फिर घोड़े पर वापस नहीं लौटे। शायद दूल्हे को घोड़े पर बिठाकर इसीलिए ले जाते होंगे, जिसमें भाग न सके। छुरी इत्यादि लटका देते हैं। यह उसको समझाने को कि तू बड़ा बहादुर है। भगोड़ा थोड़े ही है। देख, घोड़े पर बैठा है! राजा-महाराजा है! और देख, इतनी बारात चल रही है; इतना बैंड-बाजा बज रहा है! उसको सब तरह का भ्रम देते हैं। जैसे डाक्टर जब किसी का आपरेशन करता है, तो पहले बेहोश करने के लिए क्लोरोफार्म देता है। ये सब क्लोरोफार्म हैं! एक दिन के लिए उसको राजा बना देते हैं-दूल्हा राजा! और एक दिन की अकड़ में वह भूला रहता है और मस्त रहता है। उसे पता नहीं है, इस मस्ती का परिणाम क्या है! मगर यह रेवत बड़ा होशियार आदमी रहा होगा, प्रज्ञावान रहा होगा। यह उतरा और चुपचाप भाग गया। इसने फिर पीछे लौटकर नहीं देखा। जंगल चला गया। भिक्षु मिल गए मार्ग पर, उन्हीं से दीक्षा ले ली। अब बहुत ऐसे लोग हैं जो बुद्ध के पास पहुंचकर भी अर्हत न हो सके। और यह आदमी बुद्ध के सामान्य भिक्षुओं से, अज्ञातनाम भिक्षुओं से, जिनके नाम का भी पता नहीं है, कि किनसे उसने दीक्षा ली थी, कोई प्रसिद्ध भिक्षु म रहे होंगे, उनसे दीक्षा लेकर अर्हत्व को उपलब्ध हो गया! तो खयाल रखना असली सवाल तुम्हारी प्रगाढ़ता का है। तुम बुद्ध के पास होकर भी चूक सकते हो, अगर प्रगाढ़ नहीं हो। अगर तुम्हारे भीतर त्वरा और तीव्रता नहीं है। अगर सारे जीवन को दांव पर लगा देने की हिम्मत नहीं है, तो बुद्ध के पास भी चूक जाओगे। और अगर सारे जीवन को दांव पर लगा देने की हिम्मत है, तो किसी साधारणजन से दीक्षा लेकर भी पहंच जाओगे। एकांत, मौन और ध्यान-इन तीन चीजों में रेवत संलग्न हो गया। अकेला रहने लगा, चुप रहने लगा और अपने भीतर विचारों को विदा करने लगा। यही तीन सूत्र हैं समाधि के। ___ एकांत! ऐसे रहो, जैसे तुम अकेले हो। कहीं भी रहो—ऐसे रहो, जैसे तुम अकेले हो। न कोई संगी है, न कोई साथी। भीड़ में भी रहो, तो अकेले रहो। परिवार में भी रहो, तो अकेले रहो। इस बात को जानते ही रहो भीतर, एक क्षण को यह सूत्र हाथ से मत जाने देना। एक क्षण को भी यह भ्रांति पैदा मत होने देना कि तुम अकेले नहीं हो, कि कोई तुम्हारे साथ है। यहां न कोई साथ है; न कोई साथ हो सकता है। यहां सब अकेले हैं। अकेलापन आत्यंतिक है। इसे बदला नहीं जा सकता। 282

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