Book Title: Dhammapada 12
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 329
________________ एस धम्मो सनंतनो 'तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं मुकद्दर आजमाना चाहता हूं।' मुकद्दर तुम्हारा अभी तक फूटा नहीं? कितने जन्मों से आजमा रहे हो। खोपड़ी सब जगह से पिट गयी है। अभी भी मुकद्दर आजमाना चाहते हो! अब छोड़ो। यह मुकद्दर आजमाना बचकानी बात है। यह भी अहंकार का ही फैलाव है। इसमें भी दुनिया को कुछ करके दिखाने का भाव है कि कुछ करके दिखा दूं; कुछ होकर दिखा दूं। 'मुझे बस प्यार का एक जाम दे दे।' देखो, जिसे प्यार चाहिए हो, उसे प्यार देना सीखना चाहिए, मांगना नहीं। मांगने से प्यार नहीं मिलता। जो मांगने से मिलता है, वह प्यार होता ही नहीं। प्रेम के मिलने की एक ही कला है कि दो। तुम मांग-मांगकर भिखारी होने की वजह से तो चूके; आज तक मिला नहीं। जहां गए, भिखारी की तरह खड़े हो गए। प्रेम मिलता है सम्राटों को भिखारियों को नहीं। भिखारी को भिक्षा मिलती है, प्रेम नहीं मिलता। और भिक्षा कभी प्रेम नहीं है; सहानुभूति है। और सहानुभूति में क्या रखा है! दया। दया में क्या रखा है? मांगोगे, तो जो मिलेगा, वह दया होगी। और दया बड़ी लचर चीज है। दोगे, तो जो मिलेगा, प्रेम होगा। प्रेम उसी मात्रा में मिलता है, जितना दिया जाता है। जो अपना पूरा हृदय उंडेल देता है, उसे खूब मिलता है, खूब मिलता है। चारों तरफ से बरसकर मिलता है। प्रेम पाने के लिए जुआरी चाहिए, भिखारी नहीं। सब दांव पर लगाने की हिम्मत होनी चाहिए। __ और क्या एक जाम मांगते हो! एक जाम से क्या होगा? तुम्हारे ओठों पर लगेगा मुश्किल से। पूरा सागर उपलब्ध हो और तुम जाम मांगो! मगर कंजूसी की ऐसी वृत्ति हो गयी है! देने की हिम्मत नहीं रही है, तो लेने की हिम्मत भी खो गयी है। जो देना नहीं जानता, वह लेना भी नहीं जानता है। क्योंकि वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उनमें भेद नहीं है। यहां तो भिक्षा मत मांगो! इसलिए मैंने जानकर बुद्ध के प्यारे शब्द भिक्षु को अपने संन्यासी के लिए नहीं चुना। जानकर। नहीं तो बद्ध से मेरा लगाव गहरा है। मैंने स्वामी शब्द को चुना। क्योंकि मैं तुम्हें मालिक बनाना चाहता हूं। __मैं चाहता हूं : तुम सम्राट बनो। तुम भिक्षा की आदत छोड़ो। तुम मांगना ही बंद करो। मांग-मांगकर ही तो तुम्हारी यह दुर्दशा हो गयी है। अब मांगो ही मत। अब जो मिल जाए, उससे राजी। जो न मिले, उससे राजी। अब तुम्हारे राज़ीपन में कोई फर्क ही नहीं पड़ना चाहिए-मिले, न मिले। और तुम पाओगे कि इतना मिलता है, इतना मिलता है कि सम्हाले नहीं सम्हलता। तुम्हारी झोली छोटी पड़ जाएगी। तुम छोटे पड़ जाओगे। 314

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