Book Title: Dhammapada 12
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 344
________________ एस धम्मो सनंतनो बुद्ध की निराशा में आशा भी नहीं है, निराशा भी नहीं है। आशा के भाव से ही छुटकारा हो गया। अब कोई मांग ही नहीं बची। और जब कोई मांग नहीं बचती, तब तुम्हारे भीतर परमात्मा प्रगट होता है। जब कोई प्रार्थना नहीं बचती, तब परमात्मा प्रगट होता है। छोड़ो भिखमंगापन; सम्राट होने की घोषणा करो।। विराट के साथ एक होकर चलो। विराट के साथ नाचो। इस विराट की रासलीला में सम्मिलित होओ। अलग-थलग खयाल न रखो। अलग-थलग न चलो। वृक्ष और नदियां और पहाड़ और चांद-तारे जिसमें जी रहे हैं; उसमें तुम भी जीओ। तुम भी हरे हो जाओगे। तुम्हारी लाली भी फूल बनकर प्रगट होगी। तुम्हारा सोना भी प्रगट होगा। ___ तुम्हारे जीवन की महिमा निश्चित प्रगट हो सकती है, मगर तुम अपना आपा छोड़ो; मैं-भाव छोड़ो। __इसलिए बुद्ध ने कहा है : जो अनत्ता को उपलब्ध हो जाए, जो जान ले कि मैं नहीं हूं, वही ब्राह्मण है। एस धम्मो सनंतनो। आज इतना ही। 329

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