Book Title: Dhammapada 12
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 308
________________ जागो और जीओ चमत्कारी आदमी था। उसकी नाभि में से रोशनी निकलती थी। वे कपड़ा उघाड़-उघाड़कर लोगों को उसकी नाभि दिखाते थे। नाभि देखकर लोग हैरान हो जाते थे। और उन्होंने इसमें एक धंधा बना रखा था। वे कहते थेः जो इसके शरीर को स्पर्श करता है, वह जो चाहता है, पाता है। और जब तक लोग बहुत धन दान न करते, वे उसका शरीर स्पर्श नहीं करने देते थे। ऐसे वे काफी लोगों को लूट रहे थे। भगवान जेतवन में विहरते थे, तब वे उसे लिए हुए श्रावस्ती पहुंचे। जेतवन श्रावस्ती में था। संध्या समय था और सारा नगर भगवान के दर्शन और धर्मश्रवण के लिए जेतवन की ओर जा रहा था। उन ब्राह्मणों ने लोगों को रोककर चंदाभ का चमत्कार दिखाना चाहा। लेकिन कोई रुकना नहीं चाहता था। जिसने भगवान को देखा हो, जिसने किसी बुद्धपुरुष को देखा हो, उसके लिए सारी दुनिया के चमत्कार फीके हो गए। जिसने साक्षात प्रकाश देखा हो, उसके लिए किसी की नाभि में से थोड़ी-बहुत रोशनी निकल रही है—इसका कोई अर्थ नहीं है। बच्चों जैसी बात है। इस तरह की बातों में बच्चे ही उत्सुक हो सकते हैं। __कोई रुका नहीं। ब्राह्मण बड़े हैरान हुए। ऐसा तो कभी न हुआ था। उनके अनुभव में न आया था। जहां गए थे, वहीं भीड़ लग जाती थी। तो उन्हें लगा कि जरूर इससे भी बड़ा चमत्कार कहीं बुद्ध में घट रहा होगा, तभी लोग भागे जा रहे हैं। तो बुद्ध का अनुभाव देखने के लिए कि कौन है यह बुद्ध! और क्या इसका प्रभाव है! क्या इसका चमत्कार है! वे ब्राह्मण चंदाभ को लेकर बुद्ध के पास पहुंचे। भगवान के सामने जाते ही चंदाभ की आभा लुप्त हो गयी। हो ही जाएगी। क्योंकि जो आभा थी, वह ऐसी ही थी, जैसे कोई दीया जलाए सूरज के सामने। सूरज के सामने दीए की रोशनी खो जाए, इसमें आश्चर्य क्या! दीए की तो बात और; सुबह सूरज निकलता है, आकाश के तारे खो जाते हैं। अंधेरे में चमकते हैं; रोशनी में खो जाते हैं। सूरज की विराट रोशनी तारों की रोशनी छीन लेती है। तारे कहीं जाते नहीं; जहां हैं, वहीं हैं। मगर दिन में दिखायी नहीं पड़ते। जंब सूरज ढलेगा, तब फिर दिखायी पड़ने लगेंगे। यह चंदाभ की जो आभा थी, मिट्टी का छोटा सा दीया था। बुद्ध की जो आभा थी, जैसे महासूर्य की आभा। लेकिन चंदाभ तो बेचारा यही समझा कि जरूर कोई मंत्र जानते होंगे। मेरी आभा को मिटा दिया। दुखी भी हुआ, चमत्कृत भी। उसने कहाः हे गौतम! मुझे भी आभा को लुप्त करने का मंत्र दीजिए। और उस मंत्र को काटने की विधि भी बताइए। तो मैं सदा-सदा के लिए आपका दास हो जाऊंगा, आपकी गुलामी करूंगा। बुद्धपुरुष कभी मौका नहीं चूकते। कोई भी मौका मिले, किसी भी बहाने मौका मिले, संन्यास का प्रसाद अगर बांटने का अवसर हो, तो वे जरूरत बांटते हैं। बुद्ध ने यही मौका पकड़ लिया। इसी निमित्त चलो। 293

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