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समग्र संस्कृति का सृजन
ब्राह्मण हो जाना। सब समर्पित कर देना। लेट जाना पृथ्वी पर चारों हाथ-पैर फैलाकर, जैसे मिट्टी में मिल गए, एक हो गए। झुक जाना सूरज के सामने या वृक्षों के सामने। झुकना मूल्यवान है; कहां झुकते हो, इससे कुछ मतलब नहीं है। उसी झुकने में थोड़ी देर के लिए ब्रह्म का आविर्भाव होगा।
ऐसे धीरे-धीरे, धीरे-धीरे अनुभूति बढ़ती चली जाए, तो हर व्यक्ति अंततः मरते-मरते ब्राह्मण हो जाता है। ___ जन्म तो शूद्र की तरह हुआ है, ध्यान रखना, मरते समय ब्राह्मण कम से कम हो जाना। मगर एकदम मत सोचना कि हो सकोगे।
कई लोग ऐसा सोचते हैं कि बस, आखिरी घड़ी में हो जाएंगे। जिसने जिंदगीभर अभ्यास नहीं किया, वह मरते वक्त आखिरी घड़ी में रेडियो टटोलेगा; स्टेशन नहीं लगेगा फिर! पता ही नहीं होगा कि कहां है! और मौत इतनी अचानक आती है कि सुविधा नहीं देती। पहले से खबर नहीं भेजती कि कल आने वाली हूं। अचानक आ जाती है। आयी कि आयी! कि तुम गए! एक क्षण नहीं लगता। उस घड़ी में तुम सोचो कि राम को याद कर लेंगे, तो तुम गलती में हो। तुमने अगर जिंदगीभर कुछ और याद किया है, तो उसकी ही याद आएगी।
इसलिए तैयारी करते रहो; साधते रहो। जब सुविधा मिल जाए, ब्राह्मण होने का मजा लो। उससे बड़ा कोई मजा नहीं है। वही आनंद की चरम सीमा है।
चौथा प्रश्नः
आप गांधीवाद की आलोचना करते हैं। लेकिन क्या गांधीवाद का सादगी का सिद्धांत सही नहीं है?
सि द्धा त कोई सही नहीं होते। सादगी सही है; सिद्धांत सही नहीं है। फर्क क्या
होगा? जब भी तुम सिद्धांत के कारण कोई चीज साधते हो, वह सादी तो हो ही नहीं सकती। सिद्धांत के कारण ही जटिल हो जाती है। सिद्धांत से पाखंड पैदा होता है, सादगी पैदा नहीं होती।
इसलिए गांधी ने जितने पाखंडी इस देश में पैदा किए, किसी और ने नहीं। और जिनको तुम जानते हो, उनकी मैं बात नहीं कर रहा हूं, जिनको तुम जानते हो कि हां, ये पाखंडी हैं। मैं उनकी तुमसे बात करना चाहूंगा, जिनको तुम जानते नहीं कि पाखंडी हैं, वे भी पाखंडी हैं। जिनको बिलकुल त्याग की और सादगी की प्रतिमा समझा जाता है, वे भी पाखंडी हैं।
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