Book Title: Devgadh ki Jain Kala
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 16
________________ 215 221 225 227 2. भट्टारक प्रथा का आविर्भाव मूलसंघ और उसपर कालदोष का प्रभाव, भट्टारक, भट्टारक स्थिति। 3. साधु-धर्म आवास-प्रबन्ध, उद्बोधन, चर्या, निर्माण और निर्माण-प्रेरणा, शास्त्र-सृजन का अभाव। 4. श्रावक-धर्म परिष्कृत अभिरुचि, नवधा-भक्ति, द्रव्य का सदुपयोग, नैतिक पक्ष, ग्रन्थों का पठन-पाठन। 5. पौराणिक कथाओं का प्रचार ऋषभनाथ द्वारा आहार ग्रहण, भरत-बाहुबली, चक्रेश्वरी, वात्सल्य की प्रतिमूर्ति अम्बिका, उपसर्ग-निवारक धरणेन्द्र-पद्मावती, शूकर को सम्बोधन। 6. धार्मिक शिक्षा 7. धार्मिक अनुष्ठान मन्दिर प्रतिष्ठाएँ और पंच कल्याणक महोत्सव, गजरथ, मेला, चातुर्मास (वर्षावास), व्रत, दीक्षा, पूजन-विधान, सतत पाठ आदि । 8. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सूक्ष्म धर्मबोध, समन्वय। 9. निष्कर्ष 229 280 232 232 7. सामाजिक जीवन 234-252 1. अध्ययन के स्रोत 234 2. समाज के विभिन्न वर्ग 234 1. उच्च और निम्नवर्ग, 2. चतुर्विध संघ : साधु, साध्वियाँ, श्रावक-श्राविकाएँ। 3. वंश और उपजातियाँ : कठनेरा, अग्रोतक, गर्ग, अप्टशाख, गोलापूर्व । 3. धर्मपरायणता 4. शिक्षा : शिक्षक, शिक्षार्थी, विषय, उपकरण, शिक्षालय, गुरु-शिष्य-सम्बन्ध। 241 5. लिपि और भाषा 243 6. वेशभूषा और प्रसाधन 243 1. साधु-संस्था (अ) दिगम्बर साधु : पीछी, कमण्डलु । 2.15 239 214 चौदह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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