Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir relai atai aise वो सार्वदेशीय नियम सिद्ध यतो नथी, कारण तेमां रुचिभावनी मुख्यता छे अने तेवी स्वतंत्रता पर कोइ - नाथी साहित्य विषयक कायदाओने घडीने अंकुश मूकी शकातो नथी. लघु वालकना अव्यक्त शब्दो - कालाघेला शब्दो पण तेना मावापने प्रिय लागे छे. पोताने जे प्रिय न लागतां होय एवां स्तEat at अवश्य अन्योने प्रिय लागे छे अने तेथी तेओनी भावना खीलेले तेथी त्यां अमुक नियम कलाविधान कायदाओनी परतंत्रताने को करे नहि. सत्य रहस्य तो ए छे के जेने जे रुचे ते ग्रहे, अने न रुचं तेनुं खंडन न करे. भक्तिविषय स्तवनोथी आत्मानी अशुद्धि तो थती नयी तेथी तेना खंडननी माथाकूटमां पडवानी जरुर रहेती नथी. स्तवनी वगेरे कर्तानुं हृदय छे. उद्गारवाळां स्तवनो वगेरेमा तेना रचविताना दशानुं प्रतिबिंब पडया विना रहेतुं नथी, समान दशावाळाने स्वहृदय भाव सरखां स्तवनो रुवे छे तेथी अमुक सा वा अमुक नरसुं कवानो सार्वजनिक दृष्टिए अधिकार नथी. कलाविधान स्तवन साहित्यज्ञोमां भिन्न भिन्न विषयरुचि होय के तेथी एक सरखो कायदा सर्वने लागु पडतो नथी. भावनगरना रहीश सुश्रावक कुंवरजीना पुत्र परमानंद, जो आवी दृष्टिए स्तवनोनी प्रियतानो विचार करशे तो तेओ अनेक दृष्टियोनी अपेक्षानुं स्तवन साहित्य स्वरूप विचारीने शांत सापेक्ष दृष्टिवाळा नशे. पोतानी दृष्टिए जे पसंद पडे छे ते कंइ सर्वनी दृष्टियो माटे नथी. पोताने जे अपेक्षाए सत्य लागे छे ते कंइ सर्वने सत्य लागे • For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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