Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुर्त समजाय छे माटे मातृभाषामां स्तवनो, स:तियोवगेरेनी रचना करवीते अत्यंत उपयोगी छे. शब्द बोलतांनी साथे सहेजे अर्थ समजाय अने हृदयमां भक्तिभाव प्रगट थाय एवां स्तवनी अने स्तुतियोने बोलवी जोइए. शब्दना अर्थनी मालुप न पडे अने पोपटनी पेठे फक्त बोली जवाय एवां चैत्यवंदनस्तोत्र स्तवन वगेरेथी भक्तिरस प्रगटतो नथी, भक्तिभावना प्रगटती नथी, माटे जे स्तबनो वगेरेनो परिपूर्ण अर्थ समजाय ते स्तवनोने मुखे करवां अने तद्द्वारा प्रभुनी स्तवना करवी. जे स्तवन बगेरेथी भक्ति करनारने भक्ति आनंदरस प्रगटे तेणे ते स्तवन वगेरेनुं गान करवं. बाह्य पौद्गलिक सुरनरनी ऋद्धि पदवी मेळववानी इच्छाए स्तवनादि अनुष्टान कर, ते गरल अनुष्टान छे. पर भवनां सुख भोगववानी इच्छाए करातुं स्तवनादि अनुष्ठान ते विषानुष्ठान छे बाह्य देखादेखीए गाडरिया प्रवाहे मिथ्यात्व बुद्धिथी जे स्तवनादि प्रवृत्ति करवू ते अनोन्य अनुष्ठान छे. सम्यग् दृष्टिपूर्वक मोक्षनी इच्छाए बाह्य सर्व कामनाथी मुक्त निष्काम बनी मोक्षना हेतुए ज्ञानपूर्वक प्रभुनी स्तवना करवी ते तद्धेतु अनुष्ठान छे. समजण पडे तेवी भाषामां प्रभुनी स्तवना करवी. शब्दनो अर्थ समजीने विधिपूर्वक चढते भावे स्तवना करवी. स्तवन करतां आनंदरस प्रगटे ते अमृतानुष्ठानवाळु प्रभु स्तवन जागवू. एवी रीते सर्व धार्मिक बाबतोमां अनुष्टान स्वरूप जाणवू. प्रभुना पर पूर्ण श्रद्धा प्रेम वधे अने स्तवन करतां आनंदरस भाव उल्लास वधे तेवी रीते स्तवन करवू. एम करवायी आत्मानी अत्यंत शुद्धि थाय छे अने ज्ञानानंदरूपे आत्म प्रभु प्राक्टय क्षणे क्षणे वधतुं जाय छे. एज हेतुए स्वपर आ. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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