Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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योग्य छ, दुर्गुणोने टाळी सदगुणोने आएवामां खरेखर आ ग्रंथ घणोज उपयोगी छे. समय पचास वर्ष पछात होय छे. सतपुरुषोनी हयातीमां जे किंमत थाय छे. तेनाथी घणीज अधिक पचास वर्षे किंमत अंकाय छे अने ज्यारे भविष्यमा तेमना रचेला ग्रंथो जोवाशे अने भविष्यनी दुनियाना मनुष्याने तेमणे कया स्थाने बेशी अपूर्व भावो प्रकटावी आत्म गुणो प्रकट करावनारा ग्रंथो २च्या छे. ते ज्यारे मालूम पडशे त्यारे ऊच्चकोटीना सत्पुरुपो ते विचारी तेमना भावोने प्रेमथी झीली आत्मगुणों प्रकटाववा प्रयत्नशील बनशे. आ ग्रंथमां द्रव्यानुयोगना विषयथी अलंकृत चोवीश प्रभुना स्तवनोनी बे चोवीशीओ दाखल करवामां आवी छे. जे अगाउ श्री जैनोदय बुद्धिसागर समाज तरफथी प्रकट करवामां आवी हती ते बे चोवीशीओ ग्रंथमा दाखल करवामां आवी हे जे तत्वरुचि जीवोने घणीज उपयोगी अने विचारणीय छे जे मनन करवाथी समजाशे. एकंदरे आ ग्रंथ, सन्मार्ग प्रयाण करवामां साहायक छे. अनी अंबरना विषयो केवा सरळ अने भावथी भरपूर अने अध्यात्म ज्ञानरसथी अलं. कृत छे जे आ ग्रंथना बांचकोने सहेजे समजी शकाशे. सज्जनो हंस चंचुवत् सार ग्रहण करशे. दुर्जनो पयमांथी पण पूरा शोधी काढी काकत्ति धारण करशे. सज्जनवृत्ति धारण करी गुणग्राही बनवानी हमारी दरेकने भलामण छे.
छेवटे निवेदनना अंतमा वाचको प्रत्ये थयेल भूलनी क्षमा इच्छंछु अने आ ग्रंथना प्रकटार्थे जे बंधुओए पोतानी लक्ष्मीनो सदु
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