Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० छे. समयानुकूलरागो अने जमानाने अनुसरीने आ ग्रंथ रचवामां गुरु महाराजश्री घणीज प्रशंसनीय प्रवृत्ति सेवेली छे. ए स्पष्टन छे. आ ग्रंथनी अंदर ॐ ए मयाळावाला चैत्यवंदनो अने ॐ महावीर प्रभुए संज्ञावाळा स्तोत्रो वगेरे जे छे. ते जगत्ना जीवोने बाह्य रोग अने अनेक जातना विघ्नो विनाश करवामां सहायभूत छे अने आत्माना गुणो प्रगट करवामां आवता विघ्नो नाश करवामां खरेखर उपयोगी छे पण तेनुं चितवन शुद्ध प्रेम भावी करनारज फळ पामी शके छे. आ ग्रंथनी अंदरना विषयो आत्माना ज्ञानदर्शन चारित्रादि गुणोनी वृद्धि करनारा छे. आ ग्रंथ क्रियाना अभिलाषी जीवोने सत्य शुद्ध क्रियाना मार्गे लइ जवामां दीपक समान अने तेनी साथे अध्यात्मामृतनुं पान करावनारो छे. अत्यारे जैनसमाजमां अध्यात्म ज्ञाननी अत्यंत आवश्यकता छे. अध्यात्म ज्ञान विनानुं जीवन खरा आत्मिक गुणोने प्रगटावी शकतुं नथी. आत्मज्ञान साथे जे शुद्ध क्रिया करवामां आवे छे. तेन खरेखर इच्छित सुखने अर्पनार छे. तेओश्रीए अभिनंदन प्रभुना चैत्यवंदनमां कथं छे के " प्रभु गुण वरवा भक्ति छे, साध्य एज मन धर, घटाटोपशो गुणविना, गुण माप्तिमां मरतुं" हमारुं साध्य बिंदु प्रभुना गुण वरवामां याने प्राप्त करवामांज छे, अने ते माटेज हमारुं जीवन छे. बाकी घटाटोप गुणविनानो नकामो छे. बाह्यक्रियायोगे अंतरना गुणोने प्रदीप्त करवा एज मनुष्य जीवनमां सारभूत छे. आ ग्रंथनी अंद रना स्तवनो, चैत्यवंदनो, स्तुतिओ विचारणीय, मनन करवा For Private And Personal Use Only

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