Book Title: Dev Vandana Stuti Stavan Sangrah
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निवेदन. सेवा मंत्री निशदिन गणी दु:खीना दुःख टाळं, सेवा तंत्र निशदिन रची दुःख सहना विदारु: सेवा यंत्रो प्रतिदिन करी] स्वार्पणे नित्य राचुं, या तामं सहु परिहरी सेवनामांज राचं. ( कर्म योगमा श्रीमद बुद्धिसागरजी मृरिजी) जेओ श्रीना हृदयमा प्रत्येक क्षणे विश्वना जीवोनी सेवा करवानो मंत्र रमी रह्यो छे. जेमनी नसो नसमां कोडपण भोगे विश्वना जीवोने प्रतिबोध अपने शासनना रशिक बनावी स्वपरोन्नतिकर करवानी तीव्र जिज्ञासा प्रज्वल रही छे ते महात्मा शास्त्रविशारद जैनाचार्य अध्यात्म ज्ञानी योगनिष्ठ बुद्धिसागरजी सूरीश्वरजीनुं संवत् १९७७ नी सा नुं चातुर्मास श्री संघना घणाज आग्रहथी श्री साणंद ( सानंद ) मां थयुं हतुं, त्यारे गुरु महाराज श्रीनी शारीरिक प्रकृति सारी न होवा छतां पण केलाएक श्रावकांनी विनंतीथी जन समाजना क ल्याणार्थे च मासी देव वंदन स्तुति स्तवन संग्रहनो अति उपयोगी ग्रंथ पोतानी विश्वोपकारक प्रभावशाली कसाएली लेखीनीद्वारा रच्यो हतो. जे वाचकांना सदभाग्ये श्रीमद् बुद्धिसागरजी ग्रंथमाळाना arunaH aणकारूपं जनसमाज पासे रजु थाय छे. आ ग्रंथनी अंदरना चैत्यवंदना, स्तुति, स्तवनो आत्म ज्ञानथी भरपूर छे, मध्यस्थभावे अवलोकतां सहेजे तेनी अंदरना त्रिषयोनुं भान करावनारा For Private And Personal Use Only

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