Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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चूर्णी
श्रीदश- 15 परितावो सुदारुणो भवइत्ति. अहवा परितावो निठुरचोयणतज्जियस्स जो मणि संतावो सो परितावो भण्णइ, तं च परितावं ४२ उद्देशकः वैकालिक
र सुदारुणं 'निअच्छंति' नाम निग्गच्छति वा पावंति वा एगट्ठा, जुत्ता नाम तंमि सिक्खियव्वे निजुज्जंतित्ति, ललिइंदिया णाम | आगब्भाओ ललियाणि इंदियाणि जोर्स ते ललिइंदिया, अच्चन्तसुहितत्ति वुत्तं भवति, ते य रायपुत्तादि, किंच,
'तेऽवि तं गुरु' .॥४३०॥ सिलोगे, तेऽवि ताव सच्छंदललिया रायपुत्तादि तमुवरोहपहारादि विसहति, तमायरियं च विनयाध्य.
। पूजयंति 'तस्स सिप्पस्स कारणा, ते य पूयाइया तं 'सकारेंति नमसंति तुट्टा निद्देसवत्तिणों' अहवा पूया महुरवयणा॥३१४॥
| भिनंदणी भन्नइ, सक्कारो भोजणाच्छादणादिसंपादणओ भवइ, णमंसणा अब्भुहाणंजलिपग्गहादी, तुहा णाम परोक्खमवि णमोक्कारादीहिं णमंसंति, '
निदेसवत्तिणों' णाम जमाणवेति तं सव्वं कुव्वंतीति णिद्देसवत्तिणो, जति तावेवं लोइया सुहलिच्छाए कारणाए कुवंति । 'किं पुण जे सुअग्गाही . ॥४३१॥ सिलोगे, किमिति एसो पुच्छाए वट्टइ, पुणसद्दा विसेसणे, कि विसेसयति ?, जहा गायति भगवंतो साधवो सीसाण उवट्ठावणादीण कुवंतित्ति एवं विसेसयति, सुअ दुवालसंग गणिपिडगं, सुतं गाहयंतीति सुयम्गाही, अणंतं हितं कामयतीति अणतहितकामए, मोक्खसुहकामएत्तिवुत्तं भवति, जम्हा ते इहलोगे परलोग हितं सुयं गाहयंति तम्हा जं ते आयरिया वदेज्जा तं भिक्ख 'नाहवत्तए'णाम णातिकमेज्जत्ति । इदाणि विणओवाओ भण्णइ-'नीयं सिज्जं गई ठाणं' ॥ ४३२ ।। सिलोगो, सेज्जा संथारओ भण्णइ, सो आयरिवरसतियाओ णीयतरो
॥३१४॥ कायव्वो, तहा णीया गति कायव्वा, 'णीया' नाम आयरियाण पिडओ गंतव्य, तमविणो अच्चासणं, नवा अतिदुरत्येण गंतव्वं, अच्चासन्ने ताव पादरेणुण आयरियसंघट्टणदोसो भवइ, अइदरे पडिणीयआसायणादि बहवे दोसा भवंताति, अती णच्चासणे
RESPECASSASRA
घट्टणदोसोमव आयरियाण पिडआना संधारो भगवा

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