Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 366
________________ रतारतसुखदुःखे श्रीदशवैकालिक चूर्णी रतिवाक्ये ॥३६२॥ CCESSASS HARSA परिआए' जदीति अतिक्रान्ता क्रियामाकांक्षति, अहमिति अप्पाणमेव णिदिसति, रमतो इति रई विदंतो, परियायो णाम पब्बज्जा, बहुत्तमितिकाउं सा विससिज्जति 'सामण्णे', सोय समणभावो तत्थ विसेसो जिणदेसिए, न बोडियनिहगाइसच्छदगहणं । ओहाणुप्पेहिस्सेव मतीथिरीकरणत्थमिदमुच्यते-'देवलोगसमाणो० (अ वृ.॥४९॥ सिलोगो, देवाणं लोगो देवलोगो, देवलोगेण समाणो देवलोगसमाणो, समाणो तुल्लो, जहा तंमि देवलोगे देवा रतिसागरोगाढा गतंपि कालं न याणंति, विविहाणि | य माणसाणि दुक्खाणि ण संभवति, तहा पब्बज्जाए विधिइ अप्पमओ तेण देवलोगसमाणो, तुसद्दो विसेसयति, किं विससेति ? अरतीतो रति, परियागरइयाण, तविवरीयरताण य, तुसद्दो तहेव रतीओ अरई विसेसयति, निदरिसणं मणुस्सो, दुक्खाणुगमेण द्र'महानरयसारिसों' महानिरओ जो सब्भावनिरओ तउ मणुस्सदुक्खो उवयारमत्तं, अहवा सत्तमादिमहानिरओ, सेण सरिसो-स| माणो दुक्खो जस्स सो महानिरयसारिसो, एवं अरयस्स सामण्णपरियाए, सामण्णे रयाणं च सुहदुक्खसहाणोपमाणं भणियं अरयाणं, एयस्स चव अत्थस्स उवसंहरणोवदेसो समुण्णीयते-'अमरोवमं जाणिअ॥४९॥सिलोगो, मरणं मारो न जेसि मारो अस्थि ते अमरा, अमराणं सोक्खं अमरसोक्खं, अमरसोक्खेण उवमा जस्स तं अमरसोक्खोवम, उत्तरपदलोपे को अमरोवम, 'जाणिय' जाणिऊण, सोक्खस्स भावो सोक्खं 'उत्तमं उकि, देवलोगसरिसं सोक्खं भवइ रताणं परियाए, एवं जाणिऊण अरविच विवज्जेऊण परियाए रमियव्यंति, तहा 'अरयाणं' ति उत्तरपदेण संबज्झइ, तं पुण इमं 'णिरयोवम जाणिअ दुक्खमुत्तम' तहेति तेणप्पगारेण जहा रयाण सुरसुक्खसरिसं, तहेव अरयाणं नरगदोसोवमं दुक्ख मृतमं जाणिऊण रमेज्ज-सामण्ण घिति उप्पाएज्जा, 'तम्हा' इति हउवयणं, रयारयाणं सुहदुक्खपरिणाणहेऊ, एतेण कारणेण परियार रमिज्ज. एवं पंडिओ भवइ, एवं परियाय प३६२।

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