Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 327
________________ ४ उद्देशक श्रीदश लपच्चायाई लभ्रूण पच्छा सिज्झिज्जा, बेमि नाम तीर्थकरोपदेशात्, न स्वाभिपायेण ब्रवीमि । वैकालिक ___विणयज्झयणसमाहीए तइओ उद्देसो सम्मचो घूर्णी. चउत्थउद्देसगत्थाभिसंबंधो-विणयसमाधी अविसेसिया भणिया, तब्भओवदरिसणत्थमिदमुच्यते---'सुतं मे आउसंतण भगवयाएवमक्खायंति' (सूत्रं १६) एयस्स अत्थो जहा छज्जीवनियाए, इहत्ति नाम इह सासणे, खलुसदो विसेसणे, किं विवेविनयाध्यायति?.न केवलं गोयमाईहिं थेरेहिं तित्थगरसगासओ सोउं चउचिहा विणयसमाही भण्णइ, किन्तु तीयाणागयथेरतेहिवि अप्पणो यने गरुसगांसे सोऊण एते चेव चत्तारि विणयसमाधिट्ठाणा अतीता पन्नवेंति या, अणागया पण्णवेस्संति एवं विसेसपंति, थेरगहणण ॥३२५॥ गणहराणं गहणं कय, भगवतेहिं नाम भयो-जसो भण्णइ, सो जेसिं आत्थ ते भगवंतो, अतो तेहिं भगवंतेहिं, चत्तारित्ति संखा, विणयो चेव समाही विणयसमाही, समाही वा णाम ठाणं ति वा भेदोत्ति वा एगट्ठा, पण्णत्ता नाम परूविया, आह-कयर खलु जाव पन्नत्ता?, आयरिओ भणइ-' इमे खलु जाव पन्नत्ता, तंजहा-- विणयसमाही सुयसमाही तवसमाही आयारसमाही' विणय एव समाही विणयसमाधी, सुतमेव समाधी सुतसमाधी, तव एव समाही तवसमाही, आयार एव समाही आयारसमाही, एसो पदअत्थो, अत्थो इमाए संगहणीए भण्णइ-विणए सुते य॥४५४॥ सिलोगो, अहवा तत्थेव तेर्सि चेव अत्था-1 लणं फुडीकरणाणिमित्तं अविकप्पणानिमित्तं च पुणो गहणं कयंति, उक्तंच-"यदुक्तो यः(त्र) पुनःश्लोकैरर्थस्समनुगीयते । तद् व्यक व्यवसायार्थ, दुरुक्तो वाऽथ गृह्यते ॥११॥" तम्हा एतेण कारणेण सो चेव अत्थो पुणो सिलोगेण भण्णइ--विणए सुए अतवे, आयारे निच्चपंडिआ। अभिरामयंति अप्पाणं' अभिरामयंति नाम एतेहिं कारणेहि अप्पाणं जोतंति त्ति वुत्तं भवइ, के REAK ॥३२॥ BENER

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