Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 332
________________ HOST- सकारभिक्षुपदयो निक्षेपाः श्रीदश- 18| परममहिढिएसु भवइ, अनेसु वा वेमाणिएसु इंदसामाणियादिसु महिडिओ भवइ, बेमि नाम तीर्थकरोपदेशात्, न स्वाभिवैकालिक प्रायेणेति, इदाणी णया-'णायंमि गिण्हियव्वे.'॥ गाहा, 'सव्वेसिपि णयाणं०॥ गाहा, पूर्ववदिति ।। चूर्णी. विणयसमाहीअज्झयणं सम्मत्तम् समिक्ष्वध्य एतेसु नवसु अज्झयणत्थेसु जो वट्टइ सो भिक्खू , एतेण अभिसंबंधेणागतस्त दसमझयणस्स चत्वारि अणुयोगदारा जहा ला आवस्सए, नवरं नामनिप्फण्णो निक्खेवो सभिक्खू, सगारो निक्खिवियब्वो, भिक्ख य निक्खिवियन्बो, तत्थ पुर्व सगारो ॥३३०॥ भण्णइ, सो चविहो, तंजहा-नामसकारो ठवण दव्व० भावसगारो यत्ति, णामठवणाओ गयाओ, दबसगारो दुविहो, तंजहा-आगमओ णोआगमओ य, आगमओ जाणए अणुवउत्ते, नोआगमओ तिविहो, तंजहा-जाणयसरीरदव्वसगारो भवियसरीरदब्बसगारो जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्तो दव्वसगारोत्ति, तत्थ जाणगसरीरदव्वसगारो जीवो सगारजाणी तस्स जं सरीरगं जीवरहियं पुब्वभावपण्णवणं पडुच्च, जहा अयं घयकुंभे आसि, एस जाणगसरीरदव्वसगारो, इयाणी भवियसरीरदव्वसगारो जो जीवो सगारं जाणिहित्ति अणागयभावपण्णवणं पडुच्च, जहा अयं घयकुंभे भविस्सइ अयं महुकुंभ भविस्सइ, इदाणिं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्तो इमेण गाथापुव्वद्धेण भण्णइ-'निद्देसपसंसाए.॥३३१ ॥ अद्धगाथा, सगारा तिसु अत्थेसु वइ-निद्देसे पसंसाए अत्थिभावे य, निद्देसे जहा से णं तओ अणंतरं उबट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे एवमादि, पसंसाए जहा पुरिसा सप्पुरिसेहिं समं वसंता भवंति पुरिसुत्तिमा वइरिंदनीलमरगयमणिणो इव जच्चकणगसहसंबद्धा एवमादि, अस्थि| भावे जह समय अमुगं कज्जति एवमादि, व्वसगारो भणिओ, भावसगारो णाम जो जीवो सगारोवउचो सो भावसगारो SURROSE%E%EC%A7 COACHAR ॥३३०॥

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