Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीदशवैकालिक
चूण.
१०
भिक्षु अ
॥३३५॥
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यतित्ति वा पत्थयति वा एगडियाणि । इदाणिं तस्सेव भिक्खुस्स लिंगाणि दोहिं गाहाहिं भण्णंति- 'संवेगो निव्वेओ० ' ॥ ३५० ॥ गाहा, 'खेती य मद्दवऽज्जव ० ' ॥ ३५९ ॥ गाहा, तत्थ जिणप्पणी धम्मे कहिज्जमाणे परसमए य पुव्यावरविरुद्धे दूसेज्जमाणे | जो संवेगं गच्छ सो तस्स संवेगो भिक्खुलिंग णायव्वंति, तहा नरगभयगन्भवासादिभयमादिसु जो निव्वेयं गच्छ सोवि तेण णिव्वेयमतिएण लिंगण भावभिक्खु णायन्यो, तहा सद्दाइसु विसएस जो विवेगो सो भिक्खुलिंगमेव भवह, तहा सोभणसीले हिं समाणं संसग्गी भिक्खुलक्खणं भवइत्ति, तहा इह (पर) लोगाराहणावि भिक्खुलक्खणं णायव्वं, एवं तवो बाहिरब्भंत, णाणंआभिणिबोधियमादि पंचविधं, दंसणं दुविहं, तं० णिसग्गदंसणं अभिगमुप्पन्नदंसणं च चरित्तं अट्ठारस सीलंगसहस्समयियं, विणओ | विणयासमाधी पुव्वं भणिओ, एते सव्वेऽवि भेदा भिक्खुस्स लिंगाणि भवंति, एगाए गाहाए अत्थो भणिओ । णाणादाण खमणा(मा)णं च दडूण नज्जइ जहां एस भावभिक्खुत्ति, तहा अज्जवजुत्तो अकुडिलभावत्तणेण नज्जइ जहां एस भावभिक्खुत्ति, आहारोवहिमादिसु विमुत्तत्तं लक्खिऊण साहिज्जए जहा एस भावभिक्खुत्ति, तहा अलग्भमाणेसुवि आहारोवहि (माईसु) अद्दीणं पासिऊण नज्जइ जहा एस अद्दीणभावो भावट्टिओ भिक्खु, तहा बावीसं परीसहा तितिक्खमाणं दडूण साहिज्जति जहा एस भावभिक्खुत्ति, जेऽवस्सकरणिज्जा जोगा तेसु सम्मं पवत्तमाणं उवलभिऊण णज्जइ जहा एस ओवस्सगसुद्धिं कुव्यमाणो भावभिक्खू भवइ, एताणि य संवेगमादियाणि तस्स भिक्खुस्स लिंगाणि भणियाणि, इयाणि जेसु ठाणेसु अवडिओ भिक्खू भवद्द जेसु य न भवइ एमि य अत्थे जहा पंचावयवा भवति तहा भाणियव्वं, तं०- 'अज्झयणगुणी० ॥ ३५२ ॥ गाथापुव्वद्धं, जे एतंमि अज्झयणे भिक्खुगुणा भण्णिहिन्ति तेहिं गुणेहिं जो जुत्तो सो भिक्खू, न सेंसगाइ, न एतव्यतिरित्तगुणजुत्तो भिक्खु भवइत्ति एस पइन,
४ उद्देशकः
॥३३५॥

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