Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 331
________________ ४ उद्देशक: १० श्रीदश- जहा दुमपुस्फियाए, एतसि जिणांण वयणं तमि रती जस्स से जिणवयणरए, 'रए' नाम रुइयंति वा संयंति वा एगहा, चकालिक 'अतिंतिणे' अचवले वा (पडिपुण्णाययमाययट्ठिए )पडिपुन्न' नाम पडिपुनति वा निरवसेसंति वा एगट्ठा.सुतत्थेहिं पडिपुण्णो, चूर्णी. आयया (अच्चत्थं, आयओ मोक्खो तमत्थेइ अभिलसतित्ति) सुयाइ आयोर चव समाही आयारसमाही, ताए आयारसमाहीए संवुडे भवति, संवुडे णाम संवरियासवदुवारे, चकारो समुच्चये वट्टइ, न केवलं आयारसमाधिसंवुडे, किन्तु पुबिल्लाहिं समाहीहिं उवेए, समिक्ष्वध्य ५ दंते दविहे इंदिएहि य नोइंदिएहि य, नोईदिएहि 'भावसंधए ' णाम भावो मोक्खो तं दरथमप्पणा सह संबंधए। इदाणी एयाए ॥३२९॥ चउबिहाए समाहीए फलं भण्णइ, तंजहा--' अभिगम चउरो समाहिओ०॥४५९॥ इतं, आभिगयाओ समेयातो | विणयसमाधिमादियाआ चउरो समाहीओ जस्स सो अभिगम चउरो समाधीओ, 'मुविसुद्धो' नाम तेहिं मणवयणकाएहिं जोगेहिं सुटु विसुद्धो सुविसुद्धो, सुठु सत्तरसविहे संजमे समाहिओ अप्पा जस्स सो सुसमाधिअप्पा, विउलं विच्छिन्नं भण्णइ, विपुलं तं हितं च विपुलहितं, सुहमावहतीति सुहावह, पुणसद्दो विसेसणे वट्टइ, किं विसेसयति ?, जहा एयाओ चउरो समाहिओ समणा आयरिऊण य पच्छा अयं विपुलं हितं सुहमावहति णाम कुव्वहात्ति वा घडइत्ति वा एगट्ठा, सेत्ति साधुस्स निद्देसो, पदं ठाणं 'खेमं' णाम खेमंति वा सिवंति वा एगट्ठा, सो य मोक्खो, अत्तणो गहणेण एवं परूवियं भवइ, जहा चेत्तो कम्मं करेइ, सो ४ वेव अविणट्ठो अण्णण परियाएण जुजइ, 'जाइमरणाओ'०॥४६०॥ वृत्तं, जाती मरणं संसारो ताओ संसारातो मुच्चइत्ति, 'इत्थत्थं ' णाम जेणं भण्णइ एस नरो वा तिरिओ मणुस्सो देवो वा एवमादि, सव्वं तं सो जहातीति, सव्वसो नाम ण पुणो सरीरं गेण्हइत्ति, सो एतप्पगारगुणजुत्तो सिद्धो भवइ, सासयो, अप्परए वा देवे, तेण थोवावसेसेसु कम्मत्तणण देवो लवसत्तमेसु ॥३२९॥

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