Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीदशकालिक
चूर्णौ.
९
विनयाध्य
यने
॥३२७॥
पर लोगहियं चाइज्जइ तं पेद्दयति, आयरियउवज्झायादओ य आदरेण हिओवदेसगत्तिकाऊण सुस्वसह, तमेव पुणो तेसिं हिओवएसं संमं अहियतीति, अहिट्टेति नाम अहिदूयतित्ति वा आयरइत्ति वा एगट्ठा, 'ण य माणमएण मज्जई' न मा ( णं कुणइ ) जहा विणयसमाहीए पडुच्च को मए समाणो अण्णोत्ति, 'आययट्टिए ' नाम आयओ मोक्खो भण्णइ, तं आययं कंखयतीति आययट्ठए, अथवा विषयसमाधीए आययट्ठाए अच्चत्थं आदरो जस्स सो विषयसमाधीआययडिआ भण्णइ, विणय समाधी भणिया । इदाणिं सुयसमाधी भण्णइ, तंजहा - 'सुअं मे भविस्सइत्ति अज्झाइअव्वं भवइ, पढमं सुतसमाधीए पदं, | एगग्गचित्तो भविस्सामित्ति अज्झाइअव्वयं भवइ, बितियं सुयसमाधीए पदं, अप्पाणं टावइस्सामित्ति अज्झाइ अव्वयं भवइ, तइयं सुयसमाहीए पदं, ठिओ परं ठावइस्सामित्ति अज्झाइअव्वयं भवइ, चउत्थं सुयसमाहीए पयं भवतित्ति ॥ ( सूत्रं १८ ) अज्झाइयब्वयं भवइ 'सुयं नाम दुवालसँग गणिपिडगं तं मे गाय भविस्सतित्ति एयं आलंबणं काउं साहुणा अज्झाइयन्वं भवति, एगग्गचित्तं श्रज्झायंतस्तु भविस्सतित्ति एवं आलंबणं काउं साधुणा अज्झाइयां भवइ, तहा सुहविरागं जाणमाणो सुहं अप्पा धम्मे ठावेहामित्ति एयं आलंबणं साहुणा काऊण अज्झाइयच्वं भवइ, सुयं कमपरिवाडीए, उत्थमेयं पदं भवइ । भवइ य एत्थ सुयसमाहीए सिलोगो, तंजहा--नाणमेगग्गचित्तो, ठिओ अ ठावई परं । सुआणि अ अहिज्जित्ता. रओ सुअस माही ||४५६ || अज्झाइए णाणमंतो भवइ, गणणगुणेण एगग्गचित्तो, एगग्गचित्तो य धम्मे निच्चलो, ठिओ सो सम्मं समत्थो परमवि ठावेडंति, नाणाविहाणि य सुयाणि अहिज्जमाणो रओ सुयसमाधीपत्ति । इदाणिं तवसमाधी भण्णइ - चउव्विहा खलु तवसमाही भवइ, तंजहा-नो इहलोगट्ट्याए तवमहिडिज्जा ० ( सू १९ )
४ उद्देशकः
॥३२७॥

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