Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 328
________________ श्रीदशवैकालिक चूर्णी विनयाध्ययने पुण ते अभिरामयंति ?, एत्थ भण्णइ-'जे भवंति जिइंदिय'त्ति, जेत्ति अणिद्दिट्ठाण गहणं कयंति, एतेसु चउसु ठाणसुते | अप्पाणं अभिरामयंति जे य जिइंदिआ भवंति, न पुण अजितिदियत्ति, विणयमूलो एस जिणप्पणीओ धम्मोत्तिकाऊण अतो पुविन विणयसमाही भाणिया, तंमि विणए अवास्थओ सुतं गेण्हइत्ति, अतो विणय (समाहीए परओ) सुयसमाही भणिया, तंमि य सुए तवो वणिज्जातत्ति अओ तवसमाही भणिया, तवो य आयारादुवत्थियस्स सुद्धो भवइत्ति अतो आयारस्स समाधी भाणया । इदाणिं एतसि एक्ककं चउन्विहं भण्णइ, तत्थ' चउविहा खल विणयसमाही भवइत्ति (सूत्रं १७)''चउब्विहा 'नाम चउव्विहत्ति वा चउभेदत्ति वा एगट्ठा, खलुसद्दो पायपूरणे, विणओ चेव समाधी विणयसमाधी, अहवा विणयसमाधी भवति णाम हवात्त वा एगट्ठा, साय चउनिहावि इमा, तंजहा-अणुसासिज्जतो सुस्सूसइ, पढमं विणयसमाधीए पदं, सम्म संपडिवज्जतित्ति बितियं पदं, वेयमाराहइत्ति ततियं पयं भवति, ण य भवइ अत्तसंपग्गहिए, चउत्थं पदं भवति, तत्थ अणुसासिज्जतो सुस्सूसइ णाम अणुसासणा पडिचोदणा भण्णइ, पडिचोइज्जतो ममेव हितमुवइसतित्ति सुस्सूसइ, 'सुस्सूसइ' नाम तदेव पडिचोदणं पुणो पुणो सोउमिच्छति,' संमं संपड़िवज्जई' नाम तं पडिचोदणं तत्तओ पाडिवज्जइ, 'वेयमाराहइ' नाम वेदो-नाणं भण्णइ, तत्थ जं जहा भाणतं तहेव कुव्वमाणो तमायरइत्ति, न य भवइ अत्तसंपग्गहिए ' नाम नो अत्तुकारसं करेइत्ति, जहा विणीयो जहुत्तकारी य एवमादि, सुत्तकमपरिवाडीए चउत्थमेयं पदं भवइ । भवइ य एत्थ विणय- ॥३२६॥ समाहीए सिलोगो, तंजहा--पेहेइ हिआणुसासणं, सुस्सूसई तं च पुणो अहिठ्ठए। न य माणमएण मज्जई, विणयसमाही आययहिए ॥ ४५५।। 'पेहेइ' नाम पेहतित्ति वा पेच्छतित्ति वा एगहा, 'हिआणुसासणं' नाम जं इहलोगहियं BASA-%%% A4%A5 ॥३२६॥ -315

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