Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
View full book text
________________
२ उद्देशकः
परणाम आयीरोग
'चउहिं कसायणाए रओ भवेज
श्रीदश- भण्णइ, तंजहा- 'तेसिं गुरूणं ॥४५२॥ वृत्तं, तेसिं णाम जे ते विणओवएससकारादिगुणजुत्ता भाणिया, गुरवो पसिद्धा, वकालका गुणेहिं सागरो विव अपरिमिया जे ते गुणसागरा तेसिं गुणसागराणं, सोच्चाग णाम सोऊण वा सोच्चाण वा एगट्ठा, चूर्णी
मेहावी पुचभाणओ, सोभणाणि भासियाणि सुभासियाणि, 'चरे ‘णाम आयीरओबएसमायरिज्जा, मुणिगहण मुणित्ति वा विनयाध्य. नाणित्ति वा एगट्ठा, पंचसु महब्बएसु जयणाए रओ भवेज्जा, सारक्खणजुत्तोत्ति वुत्तं भवइत्ति, गुत्ते-मणवयणकाइएहिं गुत्तो
भवेज्जा, कोहाईहिं चउहिं कसाएहिं उवसंतेहिं चत्तींह आयरियाणं सुभासियाई गहिऊणमागरेज्जत्ति, जो एयप्पगारगुणजुत्तो
साहू सपूयणिज्जो भवइ, इदाणिं विणयफल भण्णइ-- 'गुरुमिह सययं०॥४५३॥ वृत्तं, तत्थ गुरू पसिद्धो, इहग्गहणेण मनुस्सIPलोगस्स गहणं, कम्मभूमीए वा गहणं कयंति, सययनाम सययंति वा सबकालंति वा एगहा, 'पडियरिय ' नाम जिणोव18 वइटेण विणएण आराहेऊणत्ति वुत्तं भवइ, 'मुणी 'नाम मुणित्ति वा णाणित्ति वा एगट्टा, जिणाणं वयणं२ तमि जिणवयणे णिउणो 13जिणवयणणिउणे, तहा 'अभिगमकुसले ' अभिगमो नाम साधूणमायरियाणं जा विणयपाडवत्ती सो अभिगमो भण्णइ, तं
मि कुसले, वितिय कुसलगहणं कुत्थियाओ कारणाओ स लसइत्ति कुसलो, अहवा अच्चत्थानमित्तं वा पुणो भण्णमाणो
कुसलसद्दो पुणरुतं ण भवतीति, सो एयप्पगारेण धुनिउं अट्ठविहं कम्मरयमलं पुवकयं नवस्स आगमं पिहिऊणं 'भासुरमउलं &ो गई वई' त्ति तत्थ पभासतीति भासुरा, अउला नाम अण्णेण केणवि कारणेण समाणगुणेहिं न तीरइ तुलेउं सा अतुला भण्णइ,
सा सिद्धी, तं भासुरं अतुलं गई वयंतीति, वइंति नाम वयंतित्ति वा गच्छंतित्ति वा एगट्ठा, सावसेसकम्माणो देवलोगे सु-|
॥३२४

Page Navigation
1 ... 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384