Book Title: Dashvaikalik Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 323
________________ श्रीदशवैकालिक चूणों विनयाध्य. ॥३२१॥ विइत्ति वुत्तं भवति: वायादुरुत्ताणि पुण दुरुद्धराणि भवंति, वेराणुबंधीणि य भवति, 'महन्भयाणि य' भणियव्यंति सोयारस्स कहमाणस्स य दोण्हविः &R उद्देशकः तत्थ सोयारस्स जहा चोरोत्ति भणिए किं परेण सुत होज्जात्त भयमुप्पज्जति, तहा भासगस्सवि एवं गिरा दोसादि महत भव-| तित्ति । ते एवं 'समावयंता ॥ ४४६ ।। वृत्तं, 'समावयंता' नाम अभिमहमावयंताणि वयणाणि कडुगफरुसाणि णेहविवज्जियाणि अभिघाया वयणाभिघाता 'कन्नं गया दुम्माणि जणंति' ति, • दुम्मणि' नाम दोमणस्सति । वा दुम्मणियंति वा एगट्ठा, वयणाभिघाए कोयि असत्तिओ सहइ कोइ धम्मोत्ति, जो पुण धम्मोत्तिकाऊण सहइ सो य 'परमग्गसूरे' भवइ, परमग्गसूरे णाम जुद्धसूर-तबसूर-दाणसूरादीणं सूराणं सो धम्मसद्धाए सहमाणो परमग्गमूरो भवइ, | सव्वसुराणं पाहण्णयाए उवरि वट्टइत्ति वुत्तं भवति. 'जिइंदिए 'त्ति साहुस्स गहणं, जो एवं वयणाभिघाए सहइ यो पूयणिज्जो भवहात्ति । एते वयणदोसे णाऊण 'अवण्णवायं ॥४४७ ॥ वृत्तं, अवन्नो नाम अयसा, तस्स अवन्नस्स वयणं अबन्नवाओ भण्णइ, तं अवन्नवादं परम्मुहस्स नो भासेज्जा, पच्चक्खमवि जा य पडिणीयभासा, जहा तुमं चोरो पारदारिओ वा, तहा ओहारिणिं अप्पियकारिणिं च भासं नो भासेज्जा, तत्थ ओहारिणी संकिया भण्णति, जहा एसो चोरो पारदारिओ , एवमादि, भाणियं च-'से मंते! मण्णामित्ति ओहारिणी भासा' आलावगो, 'अप्पियकारिणी' नाम भासिज्जमाणी अदे ॥३२॥ सकालपयत्तत्तेण अण्णेण वा केणइ कारणण सोतारस्स णो पीइमुप्पाएइ सा अधि(प्पिय)कारिणी भण्णात्ति, तमेवप्पगारं जो ण भासइ सदा सो पूयाणज्जो भवइत्ति । 'अलोलुए ॥ ४४८ ।। वृत्तं, 'अलोलुए' नाम उक्कोसेसु आहारादिसु अलुद्धो भवइ, हा अहवा जो अप्पणोवि देहे अप्पडिबद्धो सो अलोलुओ भण्णइ, तथा कुहगं--इंदजालादीयं न करेहात्ति अक्कुहएत्ति, अहवा वाइ ४७॥ वृत्त, अवनयभासा, जहा तुमचारी पारदारिआ , क

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