Book Title: Dash Vaikalika Sutra
Author(s): Hastimalji Aacharya
Publisher: Samyaggyan Pracharak Mandal

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Page 4
________________ प्रकाशकीय वीतराग भगवन्तों की वाणी निदूर्षित होती है । उसमें वचनातिशय होता है। इस वाणी को ही आगम के नाम से जाना जाता है। ये आगम अनादिकाल से जीवन में रहे हुए कषाय, काम, क्रोध, मोह, वासना एवं विकारों को जड़मूल से नाश करने का सामर्थ्य रखते हैं। इन आगमों में रहा नवनीत मोहपाश में आबद्ध प्राणियों के लिए अमृत तुल्य है। आगम- साहित्य के स्वाध्याय से ज्ञानवर्द्धन के साथ जीवन को नवीन दिशा प्राप्त होती है। अध्यात्मयोगी आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. का स्वाध्याय पर विशेष बल था । आप जीवननिर्माणकारी सत्साहित्य के स्वाध्याय के साथ आगमों का स्वाध्याय करने की भी प्रेरणा करते थे । आपका चिन्तन था कि श्रावक समुदाय आगम- स्वाध्याय की ओर आकर्षित हो। इसी लक्ष्य से आपके तत्त्वावधान में कुछ आगमों के ऐसे संस्करण तैयार हुए जो अन्वयार्थ, भावार्थ / विवेचन, टिप्पण आदि के साथ हिन्दी पद्यानुवाद से भी सम्पृक्त हैं। परमपूज्य प्रवचन प्रभाकर आचार्यप्रवर पूज्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. का श्रमणाचार शुद्ध रहता है। श्रमणाचार के प्रतिपादक आगम दशवैकालिक सूत्र का स्वाध्याय करने के साथ ही इसकी गाथाओं का अपने प्रवचनों में आचार्य श्री अधिकाधिक प्रयोग करते हैं। आपकी अभिलाषा रहती है कि आगमों का अधिकाधिक स्वाध्याय हो । दशवेकालिक सूत्र श्रमणाचार का सर्वाङ्ग एवं संक्षिप्त रूप प्रतिपादन करता है। इसके दस अध्ययनों में श्रमण जीवन की आचार संहिता का समुचित कथन हुआ है। श्रमण की आहारवृत्ति का प्रतिपादन प्रथम अध्ययन में किया तो द्वितीय अध्ययन में कामना विजय की प्रेरणा दी गई। तृतीय अध्ययन में 52 अनाचीणों का वर्णन करते हुए साधु को इनसे बचने की बात कहीं । चतुर्थ अध्ययन श्रमण जीवन की आधारशिला 5 महाव्रत एवं छः काय जीव की रक्षा की विवेचना कर रहा है। पंचम अध्ययन गोचरी की विधि का प्रतिपादन कर रहा है। सातवें में पुनः साधु के आचार का वर्णन करने साथ ही आठवाँ अध्ययन साधु की वचन शुद्धि अर्थात् वचन व्यवहार का वर्णन कर रहा है। नौवाँ अध्ययन धर्म का मूल विनय की प्रशस्ति का है। दसवाँ अध्ययन भिक्षु की परिभाषाएँ बता रहा है।

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