Book Title: Dangvopakhyanam Author(s): Publisher: View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाग. लाक॥ मिथ्यावैरंसमाजातमिथ्यायुद्धकृतंनृप // दुर्वासोवाक्यपालत्वाक्रष्णन अ.२ 1 तमेवतत्॥२६ टीकाहे नृप,हे जन्मेजय,ते समयमां यादवोने ने पांडवने तोमिथ्या वैरथयु,कारणके दुर्वासा मुनिनुंवाक्य पाळवाने अर्थे क्रष्णने संग्राम करवो पड्यो.२६ ॥श्लोक // श्रृणुत्वंकृतकत्यश्चत्वंचएकाग्रमानसःयत्श्रुलासर्वपापानांक्षयोभवति भारत // 27 // ॥टीका॥ हे भारत, हे जन्मेजय एकाग्र चितवडे करिने तुं सांभळ, जे सांभळवावडे करिने सर्व पापनो नाश थई जाय एवं चरित्र तने संभळावू . // 27 // ॥इतिश्रीमहाभारतेडांगवोपाख्यानेजन्मेजयमुनिसवादप्रथमोऽध्यायः॥१॥ त्तटिकायां रैव कुलोद्भव जयशंकर सुत गंगाधर विरचितायां गामोट गामिनी व्याख्यायां प्रथमोऽध्यायः // 1 // बैशंपायनउवाच॥ ॥श्लोक। एकस्मिन्वत्सरेराजन्, यज्जातंश्रुयतांनृप // दुसाशंकरस्यांशोनर्मदातीरमास्थितः॥१॥ टीका-वैशंपायन रुषी,जन्मेजय प्रत्ये। बोलता हवा; हे राजन्, हे जन्मेजय,एक समयने विशे एक कारण उत्पन्न थयुं ते तुं सांभळ, शंकरनो अंश एवा जे दुर्वासा मुनि ते नर्मदातिरनो श्राश्रय करीने रह्याछे.१ ॥श्लोक // नमोदधत्तीर्थयात्राप्रसंगेजनमेजय // पुष्कराद्यानितीर्थानिकृतवान् ? For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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