Book Title: Dangvopakhyanam Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डांग. परथी उठीने मुनिने नमस्कार करीने बेसारतो थको सुंदिर वाणी बोलतो हवो. 18. 1 ॥श्लोक॥ ॥जन्मेजय उवाच॥अहंबालःकलिखिन्नोधर्मज्ञामपितामहा : कस्माद्युद्धं | हरेःसाकंबहिमेमुनिसत्तम // 19 // ॥टीका॥ ॥जन्मेजय शुं बोलतो हवो॥ हे मुनि सत्तम, हुँतो बालक कलियुगनी छायाथी खरडायेलोछु, अने मारा पिता महतो धर्मना जाणनारा हता माटे करीने हे प्रभो हरिनी साथे शा कारणथी युद्ध थy ते मने संभळावो. // 19 // ॥श्लोक // नक्षुधानत्रषाविप्रनक्रोधोविघ्नमेवच॥ यस्मिन्दशेकृष्णवार्तासदेशोतीर्थ वान्मुने // 20 // ॥टीका॥ हे मुने,जे दशमांकष्ण वार्ता थती होय ते देशतो तिर्थरुप गणवो प्रनुन स्मर्ण करतां क्षुधा, तृषा, क्रोध अने विघ्न ततो दुर थइ जाय छे. 20 लोक। अन्यवार्ताकागतीर्थपंकांगोपंकमावहेत् // हंसतीर्थहरेर्वार्तापापपंकश्च नश्पति // 21 // ॥टीका॥ अने बिजी जे कुथलियो छे, तेतो काकतिर्थ कहेवाय छे, || केवीके कचरारुप, अने हरिनी वार्ता तेतो हंसरुप छे, केवीके पापरुपी पंकजनो नाश करवावालि छे. // 21 // ॥श्लोक। तस्माहिमहाप्राज्ञपितामहजगद्गुरो॥ त्वन्मुखान्निर्गतावाणीह्यमृत | 3 For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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